मंगलवार, 24 अप्रैल 2012

भौतिकतावादी

 हर व्यक्ति का भौतिकवादी बनना काफी सरल काम है और है भी दुनिया के सभी लोग भौतिकवादी ही है ,ये अलग बात है कि कुछ लोग अध्यात्म का नाम लेकर ,आत्मा अमर है ,शरीर नश्वर है ,यही कहते -कहते मर जाते है ,पर हासिल क्या हुआ ,,वो सोचते है पुनः हमारा जन्म होगा और अपने कर्मो को सुधार लेंगे ,पर ऐसा कब होगा ,,उसे ही पता नही ,,एक ऐसी शक्ति(अद्रश्य ) के ऊपर भी विश्वास करता है जिसे सारी उम्र भी लग जाने के बाद भी मिलना नही हो पाता ,और जीवन कि सारी घटनाओं को उस शक्ति से जोड़ कर अपने अनुभव को लोगो के सामने बड़ी शेखी के साथ बखान करता रहता है ,,पर भौतिकतावाद में कम से कम जो हम कहते है वह लोगो को बता तो सकते है उसे स्पर्श करके भी बता सकते है ,,लोगो का प्रकृति के ऊपर विजय पाने का एक विज्ञान है !!!
मौज -इस भौतिकतावादी दुनिया में मानव को रोटी,कपडा,मकान के अलावा और भी अवश्कताए है ,,जिसे वह हमेशा अपने बहुबल,बुद्धिबल के प्रयोग से निरंतर पाने का प्रयत्न करता है ,,,बुद्दिवादी लोग विकाशशीलता कि बात करते है ,,और यह काम अध्यात्म के द्वारा सम्भव नही है ,,इसके द्वारा कुछ तथाकथित लोग ही अध्यात्म कि दुकान चलाकर मौज कर सकते है ,,जब कि ऐसे लोगो का देश समाज के विकास में इनका योगदान नगण्य रहता है
इसके लिए भगत सिंह जैसे लोगो कि आवश्कता है ,जो ऐसी व्यवस्थाओं का समूल नष्ट कर एक समाजवादी स्वरूप को अपनाया जाए ,जिससे सभी को बराबरी का न्याय प्राप्त हो सके ,,सभी को एक समान रहने के लिए इस विचारधारा को भी अपनाया जा सकता है ,वरन हम इसके लिए प्रयास करे ,,
    आज के इस दौर में हम अध्यात्मवादी ज्यादा बनते जा रहे है ,,निर्मल बाबा जैसे लोग समाज को लूटते जा रहे है ,जनता है कि मानती ही नही है ,,हम जिस विकासशील देश कि कल्पना करते है ,वो ऐसे ही अध्यात्मवादियो के कारण खोखला होता जा रहा है ,,देश समाज को जिन्दा रहने के लिए भोजन कि आवश्यकता होती है ,जिसका उत्पादन मेहनतकश मजदूरो के द्वारा होता है ,पर हमारा समाज भी दो वर्गों में बटा है शोषक और शोषित ,,,शोषक तो कुछ गिने चुने लोग ही है पर शोषितों कि जनसंख्या तो ८० प्रतिशत ही है ,,भारतीय समाज में जाति व्यवस्था भी इसके दुखदाई कारणों में से मुख्य है ,,आज देश को आजाद हुए ६५ वर्ष बीत गए ,पर इन जातिवादियो कि मानसिक गुलामी आज भी कठोर पत्थर कि भांति मौजूद है ,,,

शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

दिल का दर्द


""यू मत पूछो मेरी बेबसी को ,बस यादों के जख्म लिए बैठे है
  उम्मीदे
तो बहुत थी उसे,  मुझसे   , बस नादान बने बैठे है ""
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गांव
के बाहर एक शिव मंदिर है ,जो लगभग २०० वर्ष पुराना है ,मैं अपन दोस्तों के साथ
वहा
खड़ा था ,तभी वहा पर रमा(रमला) का आना हुआ ,,दिन सोमवार था तो आज ज्यादा
भीड़
भी रहती है ,,जब मैंने उसे देखा तो बस देखते ही रह गया ,देखते ही एक शेर याद
आया
"""""तुझे देखते ही होश खो बैठा ,,,क्या लाजबाब हुश्न था मैं ,,मैं बहोश हो बैठा ""
अब
जैसे ही सोमवार आता ,मैं पहले से ही वहा उसके इंतजार में खड़ा रहता ,ऐसे करते -करते कई सोमवार निकल गए ,पर कुछ कहने कि हिम्मत हुई ,,पर उसे पता हो गया कि मैं उसे देखता हू
'मेरे
दोस्तों कहा कि अरे तुम साले पागल हो जाओगे ,और रमा को कुछ कह भी नही पाओगे ,और
समय
बीत जागा इन्तजार  में ही ,,सो उनके कथनानुसार मैंने भी हिम्मत जुटाई,,और जैसे ही वह मंदिर से निकली और मैं बगल में हो लिया ,,बहुत हिम्मत दिखा कर मैंने कह दिया कि रमा एक बात कहनी है ,,उसने कहा ,,हा बोलो ,तो मैंने कहा ,,""तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो ,आई लव यू """,,,,पर उसने बिना कोई जवाब के आग बढ़ गई ,,अब मन में संसय होने लगा कि कही इसने घर पर बता दिया तो सिर पर एक भी बाल नही बचेंगे ,,खैर शाम तक इसी कस्मकस में दिन बीत गया ,और कुछ भी नही हुआ और डर भी दूर हो गया ,,लगभग १० दिनों बाद एक उसने मुझे पत्र दिया उसमे यही था कि मैं भी आपको आपके कहने के पहल से ही चाहती हू ,पर मैं कह सकी ,,
ये
सिलसिला धीरे- धीरे चलता रहा ,,चिट्टी -पत्रों के माध्यम से ,इस बीच मेरी छुट्टियाँ भी बीत गई और मैं फिर  बाहर चला गया ,,ऐसा करते-करती १० माह निकल गए पर मैं उस भुला नही,,,,,परिक्षाओ के बाद मई-जून कि फिर छुट्टियाँ हो गई ,फिर मैं गांव पंहुचा ,, इस बीच मुझे य भी नही मालूम कि प्यार क्या होता है .मैं इन सब बातों से  बिल्कुल अनजान था ,बस ये समझो कि ये मेरा लड़कपन था ,जो कि दोस्तों कि उकसाई हुई आग में कूद पडा था !
रमा
से से फिर चलते - फिरते कई बार बातचीत हो जाती पर कभी फुरसत में या कभी एकांत मिलकर बात न हो पाती ,इसके लिए मैं तो बेचैन तो था ही पर रमा को भी उतनी ही चाहत मुझसे मिलन कि थी ,,फिर एक दूर गांव में एक मेला लगता है ,जो मेरे गांव से लगभग या किलोमीटर है ,दोनों वहाँ  जाने को तैयार हो गए ,, वो भी अपनी सहेलियों के साथ मेला दखने गई .मैं भी दोस्तों साथ गया ,,अब यहाँ गांव के लोग नही थे !थे भी तो भीड़ में पहचाने कौन ,फिर हम दोनों पास के एक आम का बहुत बढ़ा बगीचा था वहाँ चले गए ,,पहली बार हमने एक - दूसरे को जी भर कर देखा ,घंटो बात किये ,,एक-दूसरे को बाँहों में भर कर चूमा ,,बस ये कह लो कि एक दूसरे को छोड़ ही नही पा रहे थे ,,उस दिन तो ऐसा लगा कि हमने सब कुछ पा लिया ,,काफी समय हो गया था सो हम मेले में वापस चले गए ,,शाम को घर भी वापस गए ,,,फिर भी मैं अभी तक उसकी भावनाओं को समझने में असमर्थ था ,मैं प्यार कि परिभाषा नही जानता कि प्यार क्या होता है ,,ये तो बस ऐसे चाल रहा था कि समय बिताने लिए करना है कुछ काम ,,,,,,,,,,,,,,,
धीरे
-धीरे समय बीतता गया ,,और एक दिन उसका सन्देश आता है कि मैं तुमसे मिलना चाहती हू ,,,समय लगभग रात को ७:३० पर हल्का अँधेरा हो जाता है ,मैं गया ,वो भी आई ,,और आते ही रोने लगी ,मैंने कहा हुआ क्या है ये तो बता ,,पर वह रोंने के आगे मान ही नही रही थी ,,तब उसने बताया कि मेरे घर वाले मेरी शादी करने जा रहे है ,,,तुम मुझे यहाँ से ले चलो ,,
इतना
सुनते ही ,""""""मुझे काटो तो खून नही""""""",,,,मैं इस सोच में पड़ गया कि मैं तो अभी पढ़ रहा हू ,कोई नौकरी या काम-धंधा भी नही ,,मैं इसे कहा लेकर जाऊ ,,क्या खिलाऊंगा ,क्या पहनाऊंगा ,,,मेरे बड़े भाई कि अभी शादी भी नही हुई ,,,बहुत सारे सवाल मेरे दिमाग में घूमने लगे ,,मैं काफी टेंसन में  हो गया ,,,,,,,,पर मेरी हिम्मत हुई कि इसे कहा लेकर जाऊ ,,ऊपर से माँ-बाप ,,,समाज का डर ,,पर मैं इन बंधनों को तोड़ पाया ,,,मैं डर-ही-डर में समय निकाल दिया,,,,
फिर
वापस पढ़ाई के लिए जाना पडा ,और मैं चला गया ,,अगली बार फिर छुट्टियों २ मई को आया तो पता चला कि उसकी शादी मई कि है ,,पर पता नही मैं क्यों मजबूर था जो उसका साथ दे पाया ..उसकी बारात भी आई और चली भी गई .मैं मूक दर्शक कि भांति देखता ही रह गया ,और मैं अपने -आप को ठगा सा देखता रहा ,और वह दिल्ली चली गई ,,,अब तो मुलाकात नही होती कभी दिख जाती तो मैं ही काफी शर्म महसूस करता और नजरे चुराने लगता ,,,,,पर उसने एक ही बात कही कि शायद किस्मत वालो को मिलता है ,प्यार के बदले प्यार ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

रविवार, 8 अप्रैल 2012

उद्देश्य कि पूर्ति


एक बार एक आदमी अपने किसी उद्देश्य के लिए बहुत दूर जाना था !
घर
से निकल पडा अपना उद्देश्य पूरा करने के लिए ,चलते-चलते
उसे
कई पर्वत ,पहाड ,नदिया पार करनी थी ,एक शाम वह काफी दूर निकल गया
वह
जगह बहुत ही वीरान थी ,वह रुकने कि जगह तलाश करने लगा !
उसे
दूर एक कुटिया में दीपक जलता हुआ दिखाई दिया ,,उसने सोचा क्यों वही
जाकर
मैं रुक जाऊ !वह घर के पास पंहुचा ,और दरवाजा खटखटाया और अंदर से
एक
नव युवती निकली ,,,,उसने बोला कहिये क्या बात है ,व्यक्ति ने बोला >मैं अपने उद्देश्य कि पूर्ति के लिए बहुत दूर जाना है ,इसके लिए मुझे कई पर्वत,पहाड ,नदिया पार करनी है ,मुझे काफी दूर जाना है
इसलिए
मुझे आज रात रहने का ठिकाना मिल जाए तो अच्छी बात रहेगी ,,फिर मई सुबह अपने
उद्देश्य
कि पूर्ति में चला जाऊँगा ,,,
महिला
ने कहा >हा ठीक है रुक जाओ ,मुझे कोई परेशानी नही है ,,रात होने लगी ,खाना खाया -पिया
इर
रात में सोने कि बात आई ,,तब पता चला कि उसका पति तो बाहर गांव गया हुआ है ,वह घर पर अकेली है ,,उसकी छोटी कुटिया थी इसलिए एक ही चारपाई भी थी ,,महिला ने उसके सोने के लिए चारपाई का बिस्तर लगा दिया ,और खुद सोने के लिए नीचे बिस्तर लगा लिया ,आगंतुक को चारपाई वाले बिस्तर में सुला दिया और खुद नीचे सोने लगी ,,
पर
ऊपर बिस्तर में सो रहा युवक को नींद नही रही थी ,क्यों कि वह सोच रहा था कि ,,देखो मैं यहाँ पर आया हू और वह मेरे लिए कष्ट उठा रही है ,मुझे ऊपर सुलाया और खुद नीचे सो रही है ,,वह उठकर बैठ गया ,तो महिला ने सकुचाते हुआ पूछा क्या हो गया क्या बात है ,,
आगंतुक
ने बोला मई ऊपर नही सोऊंगा ,क्यों कि मैं आप के घर में आया और आप नीचे सो रही है
  ,,और मैं ऊपर सो रहा हू ,,ये मुझसे नही होगा ,,आप ऊपर सो जाइए ,मैं नीचे सो जाता हू
महिला
ने कहा कि >नही आप मेरे मेहमान है आप ऊपर ही सोएंगे ,,पर युवक नही माना
ऐसा
करते -करते युवती मान गई ,,तब युवती ऊपर और युवक नीचे सो गया
अब
युवती को ऊपर नींद नही रही थी ,वो ये सोचने लगी कि मेरा मेहमान नीचे सोया है ,और मैं खुद ऊपर सोई हू ,
वह
उठकर बैठ गई ,उसने युवक से बोला कि आप ऊपर सो जाए  ,,पर युवक भी माना ,ऐसा तु-तु ,मैं-मैं करते हुए यह तय हुआ कि हम दोनों ही ऊपर बिस्तर में सो जाए ,और बीच में एक तकिया फंसा लेते है कोई परेशानी भी नही होगी ,,,दोनों तैयार हो गए !
दोनों
रात भर अराम से सोए ,सुबह हो गई ,,
युवक
फिर अपने उद्देश्य को जाने के लिए तैयार हो गया ,और युवती से विदा लेने लगा और बोला कि
मैं
अपने उद्देश्य कि पूर्ति के लिए जा रहा हू और मुझे अभी तो कई पर्वत,जंगल पहाड ,नदिया पार करनी है ,तो अब मुझे विदा दो
महिला
ने बोला >>आप तो अब घर लौट जाओ ,आप अपने उद्देश्य को पूरा नही कर पाएंगे
युवक
>युवक सकपकाया और बोला आप ऐसा क्यों बोल रही हो
युवती
>वो इसलिए कि आप हम एक बिस्तर में सोए ,रात भर ,,और रात भर में आपने एक तकिया पार नही कर पाए तो क्या पर्वत.जंगल,पहाड ,नदिया ,क्या खाक पार कर पाओगे ,जाओ लौट जाओ