शनिवार, 2 अप्रैल 2016

वर्णवादी व्यवस्था क्यों (मनुवादी सोच)

��वर्ण व्यवस्था की आवश्यकता��

यदि हम मानव प्रकृति का अध्ययन करें तो हम इस परिणाम पर पहुंचते हैं कि वर्ण व्यवस्था मानव-प्रकृति के अनुकूल है।हम देखते हैं कि समाज में कुछ ऐसे व्यक्ति होते हैं जिनमें सत्वगुण की प्रधानता होती है।त्याग,तप और ज्ञान प्राप्ति ही उनके जीवन का लक्ष्य होता है।इन लोगों से यदि युद्ध लड़ने,व्यापार करने और सेवा कार्य निभाने को कहा जाये तो ये उतने सफल नहीं होंगे जितने ब्राह्म-कर्म में।

समाज का यही वर्ग ब्राह्मण-वर्ण के नाम से पुकारा जाता है।

समाज में कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जिनमें रजोगुण की प्रधानता होती है।उनके मन में अत्यधिक उत्साह और भुजाओं में यथेष्ठ बल होता है।ये स्वभावतः नीर्भिक होते हैं।ऐसे व्यक्ति युद्ध प्रिय होते हैं।समाज में इस वर्ग को क्षत्रीय वर्ण कहा जाता है।

समाज में कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जिनमें थोड़ा रजोगुण और अधिकतर तमोगुण होता है।ये व्यक्ति धन के इच्छुक होते हैं।इनकी वाणिज्य और व्यापार में रुचि होती है।समाज का यही वर्ग वैश्य वर्ण कहलाता है।

समाज में कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैंजिनमें तमोगुण की प्रधानता होती है।वे चाहते हैं कि उन्हें भरपेट भोजन मिले और वे खाएं-पिएं,इसके बदले में वे सामाजिकों की सेवा कर दें।न उनकी पढ़ने में रुचि होती है,न शौर्य की प्रवृत्ति,और न व्यापार में कोई रुचि होती है।समाज का यह वर्ग शूद्र वर्ण कहलाता है।अतः वर्ण-व्यवस्था मनोवैज्ञानिक है और यह समाज की आवश्यकता है।

समाज की इस मनोवैज्ञानिक आवश्यकता को वेदमन्त्र में सुन्दर रीति से उपस्थित किया गया है-

क्षत्राय त्वं श्रवसे त्वं महीया इष्टये त्वर्थमिव त्वमित्यै ।
विसदृशा जीविताभिप्रचक्ष उषा अजीगर्भुवनानि विश्वा ।। (ऋ० 1/113/6)

अर्थ-एक को बल और राष्ट्र-सम्बन्धी यश के लिए,एक को बड़े-बड़े यज्ञों के लिए ,एक को धन के लिए,एक को चलने-फिरने के लिए-इस प्रकार असमान स्वभाव वाले प्राणियों को अपने-अपने काम के लिए(प्रकाशित करने के लिए) उषा ने सब लोकों को निगलकर अन्धकार से बाहर कर दिया है।मन्त्र का आशय यह हैं कि उषा ने लोगों को अन्धकार से बाहर इसलिए किया कि विभिन्न स्वभाव वाले व्यक्ति अपने-अपने कर्म कर सकें।

इस मन्त्र में विभिन्न गुण-कर्म-स्वभाव के आधार पर वर्ण-व्यवस्था का वर्णन किया गया है।

अब हम दूसरे दृष्टिकोण से वर्ण-व्यवस्था की आवश्यकता का प्रतिपादन करते हैं।मानव-समाज के चार शत्रु हैं-अज्ञान,अन्याय,अभाव और आलस्य।

अज्ञान मनुष्य और मनुष्य-समाज का मुख्य शत्रु है।संसार के पदार्थों की जानकारी और गुण-दोष़ो का विवेचन ज्ञान के द्वारा होता है।यह ज्ञान समाज का ब्राह्मण वर्ण प्रदान करता है।

समाज का दूसरा शत्रु अन्याय होता है।समाज का सबल-वर्ग निर्बल-वर्ग के प्रति अन्याय करता है।समाज के इस अन्याय को राजपुरुष(पुलिस) दूर करते हैं।एक देश लोभ के वशीभूत होकर दूसरे देश पर आक्रमण कर देता है।इस अन्याय को दूर करने वाले वर्ग को क्षत्रीय-वर्ण कहा जाता है।

राजपुरुष और सैनिक दोनों ही क्षत्रीय-वर्ण के अन्तर्गत आते हैं।

समाज का तीसरा शत्रु अभाव है।समाज के धन के अभाव को वाणिज्य और व्यापार के द्वारा दूर करने वाले वर्ग को वैश्य-वर्ण कहा जाता है।अधिकाधिक अन्नोत्पादन द्वारा समाज में खाद्यान्न के अभाव की पूर्ति करते हैं।पशुधन की वृद्धि द्वारा देश को समृद्ध करते हैं।
यह व्यापारी,कृषक और पशुपालक वर्ग समाज का वैश्य-वर्ण कहलाता है।

समाज का चौथा शत्रु आलस्य है।इस आलस्य को दूर करने वाला वर्ग शूद्र वर्ण कहलाता है।इस वर्ण के लोग सेवा द्वारा विभिन्न कार्य करते हैं ।

समाज के उपर्युक्त चार शत्रुओं को दृष्टि में रखते हुए भी वर्ण व्यवस्था की आवश्यकता होती है।

��चारों वर्णों के गुण,कर्म व स्वभाव:-

ब्राह्मण के:-
अध्यापनमध्ययनं यजनं याजनं तथा ।
दानं प्रतिग्रहश्चैव ब्रह्मणानामकल्पयत् ।।(मनु० 1/88)
पढ़ना-पढ़ाना,यज्ञ करना-कराना,दान देना और लेना ब्राह्मणों के कर्म कहे गये हैं।

शमोदमस्तपः शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च।
ज्ञानविज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम् ।. (गीता 18/42)

मन से बुरे काम की इच्छा न करना,इन्द्रियों को बुरे मार्ग से हटाना,ब्रह्मचर्य रखकर व जितेन्द्रिय रहकर सत्यजीवन व्यतीत करना,पवित्रता,सरलता,
आध्यात्मिक ज्ञान,पदार्थों का पूर्ण ज्ञान,आस्तिकता-ये ब्राह्मण के कर्म हैं।

क्षत्रीय के निम्नलिखित गुण,कर्म,स्वभाव बतलाये हैं:-
प्रजानां रक्षणं दानमिज्याध्ययनमेव च ।
विषयेष्वप्रसक्तिश्च क्षत्रियस्य समासतः ।। (मनु० 1/89)
प्रजा की रक्षा करना,दान देना,यज्ञ करना,पढ़ना और विषयों में आसक्त न होना-ये क्षत्रीय के कर्म हैं।

शौर्यं तेजो धृतिर्दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनम् ।
दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्मस्वभावजम् ।। (गीता 18/43)
शूरता,तेज,धैर्य,दक्षता,युद्ध से न भागना और प्रजा के साथ पुत्रवत् बर्ताव-ये क्षत्रीय के कर्म हैं।

वैश्य के-

पशूनां रक्षणं दानमिज्याध्ययनमेव च ।
वाणिक्पथं कुसीदं च वैश्यस्य कृषिमेव च ।. (मनु० 1/90)
पशुपालन,दान,यज्ञ,अध्ययन,व्यापार,सूद पर धन चढ़ाना और कृषिकर्म -ये वैश्य के कर्म हैं।

शूद्र का कर्म-
एकमेव तु शूद्रश्य प्रभुः कर्मसमादिशत् ।
एतेषामेव वर्णानं शुश्रूषामनसूयया ।। (मनु० 1/91)
शूद्र का यही कर्म है कि वह निन्दा,ईर्ष्या व अभिमान को छोड़कर इन तीनों(ब्राह्मण,क्षत्रीय,वैश्य) की सेवा करे।

वर्ण व्यवस्था का आधार गुण-कर्म-स्वभाव है,न कि जन्म।
पूर्वजन्मों के कर्मो़ के अनुसार मनुष्य ब्राह्मण,क्षत्रीय,वैश्य और शूद्र कुल में जन्म लेता है।।तदनन्तर वह अपने गुण,कर्म और स्वभाव के अनुसार वर्ण को प्राप्त होता है।

��जन्म के आधार पर वर्ण-व्ययवस्था मानने में कई दोष हैं:-
जिन ब्राह्मणों,क्षत्रीयों और वैश्यों में ब्राह्मणत्व,क्षत्रीयत्व और वैश्यत्व का अभाव हो जाता है,वे शूद्र नहीं कहलवाना चाहते।
वे अपने को जन्म के आधार पर ही ब्राह्मण,क्षत्रीय,वैश्य और शूद्र मानते हैं।
इस प्रकार इनमें जन्म के आधार पर जात्यभिमान उत्पन्न हो जाता है।इसके कारण उन्हें यह भय नहीं रहता कि वे जन्मजात वर्ण से वंचित किये जा सकते हैं।दूसरी और शूद्रों को अपने गुणों के विकास करने का अवसर ही प्राप्त नहीं होता।उनके ब्राह्मणत्व,क्षत्रीतत्व और वैश्यत्व के दरवाजे ही बंद हो जाते हैं।उन्नति के अवसर न मिलने के कारण वे हतोत्साहित हो जाते हैं।

जन्म के आधार पर कई उपजातियों का निर्माण हो जाता है,जैसाकि,अब देखने में आता हैं।

इससे शिल्प तथा व्यापार की भी हानि होती है।उच्चवर्ण के लोग धोबी,नाई,तेली,कुम्हार और चमार का काम करने को तैयार नहीं होते।

अपने धर्म में नए प्रविष्ट व्यक्तियों को किन वर्णों में सम्मिलित किया जाये यह समस्या उत्पन्न होती है।

वर्ण-व्यवस्था का आधार प्रतिस्पर्धा नहीं,अपितु सहयोग है।चारों वर्ण एक दूसरे के पूरक हैं।इनका परस्पर कोई विरोध नहीं है।जिस प्रकार मुख,भुजाएं,उदर,जंघा और पांव एक दूसरे के पूरक और सहयोगी हैं,वैसे ही चारों वर्ण परस्पर सहयोगी होकर सुन्दर समाज की रचना करते हैं।

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2016

सत्ता हस्तांतरण

15 अगस्त 1947 में

भारत आज़ाद नही हुआ ,

99 साल की लीज पर है भारत । ( तथ्य पढ़े )

99 साल की लीज पर भारत

युद्ध भूमि में भारत कभी नहीं हारा, लेकिन अपने ही देश मे आर्यो से  मनुवादीयो गद्दारो से हारा है।

अपनों ने जो समझौते किये, यह उससे हारा है, अपनी मूर्खता से हारा है। उन्हीं समझौतों में एक “सत्ता के हस्तांतरण का समझौता” भी शामिल है। पाकिस्तान गान्धी की लाश पर बन रहा था, लेकिन इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 का न तो गान्धी ने विरोध किया, न ही जिन्ना ने, न ही नेहरू ने और न ही सरदार पटेल ने। सभी ने ब्रिटिश उपनिवेश यानी ब्रिटेन की दासता स्वीकार की थी। वाकई मुझे उनकी बुद्धि पर तरस आता है जो कश्मीर को उपनिवेश इण्डिया से उपनिवेश पाकिस्तान में मिलाने के लिए रक्त बहाते हैं। भारत को छद्म स्वतन्त्रता देने का विचार तो 1942 में ही कर लिया गया था, 1948 तक का समय सुनिश्चित करना तो महज़ एक बहाना था। 1947 के जून महीने में यह ज्ञात हुआ कि मुहम्मद अली जिन्ना, जो वास्तव में पुन्जामल ठक्कर का पोता था, की टी.बी. की बीमारी अन्तिम स्तर पर है और अधिक से अधिक 1 वर्ष की आयु शेष बची है।
.
भारत की (छद्म) स्वतन्त्रता और भारत- विभाजन की प्रक्रिया को तेज़ कर दिया गया । 4 जुलाई सन् 1947 से आरम्भ हुई यह प्रक्रिया 14 अगस्त सन् 1947 तक मात्र 40 दिनों में ही कूटनीतिक षड्यन्त्रों के तहत सम्पूर्ण हुई। गान्धी ने कहा था कि विभाजन मेरी लाश पर होगा जिसे सुनकर वर्तमान पाकिस्तानी पंजाब में रहने वाले भारतीयो ने वर्तमान भारतीय क्षेत्रों में आकर बसने के निर्णय को बदल दिया । 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान बन गया और भारतीय  वहीं फँस गये। इस प्रकार नरसंहार का एक ऐतिहासिक काल आरम्भ हुआ । भारत पाकिस्तान भयानक नरसंहार के बीच किसी ने ध्यान ही नहीं दिया कि आखिर हुआ क्या?
भारत पाकिस्तान का विभाजन भी मूलवासीयो पर सदैव के लिए ब्राह्मणवाद का शासन स्थापित करने के लिए किया गया ।

1946 के चुनावों के बाद जो सर्वदलीय संसद बनी उसमें विभाजन के प्रस्ताव को पारित करने हेतु संयुक्त रूप से 157 वोट समर्थन हेतु डाले गये, जिसमें प्रमुख पार्टियाँ थीं कांग्रेस, मुस्लिम लीग और कम्यूनिस्ट पार्टी। समर्थन में पहला हाथ नेहरू ने उठाया था । विरोध में 17 वोट पड़े। विभाजन का प्रस्ताव पारित हो गया।
उसके बाद की समस्त प्रक्रिया दिल्ली में औरंगजेब रोड स्थित मुहम्मद अली जिन्ना के घर पर ही सम्पूर्ण हुई। जिन्ना गांधी व नेहरू इतने धूर्त थे कि जहाँ भू-तल पर नेहरू-गाँधी लार्ड माउंटबैटन के साथ कानूनी सहमतियाँ बना रहे थे वहीं प्रथम तल पर जिन्ना अपनी कुछ सम्पत्तियाँ और औरंगजेब रोड पर स्थित अपने घर को बेचने की प्रक्रिया पूरी कर रहा था।
मुहम्मद अली जिन्ना एक वकील था। नेहरू एक वकील था । गान्धी एक वकील था। उस समय के अधिकतर नेता वकील ही थे। वे सब जानते थे कि यह सम्पूर्ण स्वतन्त्रता नहीँ, अपितु अल्पकालिक स्वतन्त्रता है। जी हाँ अल्पकालिक स्वतन्त्रता! यह छद्म स्वतन्त्रता ही थी इससे अधिक और कुछ नहीं। सत्ता का हस्तांतरण हुआ था। अर्थात् सत्ता तो अंग्रेजों के पास ही रहेगी और उनकी भ में शासन की व्यवस्था सम्भालेंगे आत्मा से बिके और चरित्र से गिरे हुए कुछ लोग। सत्ता के इस हस्तान्तरण का साक्षी बना  “Transfer of Power Agreement ” जो कि लगभग 4000 पेजों में बनाया गया था और जिसे अगले 50 वर्षों हेतु सार्वजनिक न करने का नियम भी साथ में लागू किया गया । सन् 1997 में इस Agreement को सार्वजनिक होने से बचाने हेतु समय से पहले ही तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री इन्द्र कुमार गुजराल ने इसकी अवधि 20 वर्ष और बढ़ा दी और यह 2019 तक पुन: सार्वजनिक होने से बच गया। ऐसे सत्ता के हस्तान्तरण के Agreements ब्रिटिश सरकार के अधीन भारत समेत समस्त 54 देशों के हैं साथ हुए हैं जिनमें आस्ट्रेलिया, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, न्यूजीलैंड, श्रीलंका, पाकिस्तान आदि 54 देश हैं।
यह 54 देश ब्रिटिश राज के उपनिवेश कहलाते हैं। इन 54 देशों के नागरिक ब्रिटेन की रियाया (प्रजा) हैं अर्थात् ब्रिटेन के ही नागरिक हैं। इन 54 देशों के समूह को “राष्ट्रमण्डल” के नाम से जाना जाता है जिसे आप Common Wealth के नाम से भी जानते हैं अर्थात् संयुक्त सम्पत्ति ।
यदि आप सबको कोई आशंका हो तो उदाहरण के तौर पर आप यूँ समझ लें कि ब्रिटेन समेत सभी ब्रिटिश उपनिवेश अथवा राष्ट्रमण्डल देशों के भारत में विदेशमन्त्री तथा राजदूत नहीं होते अपितु विदेश मामलों के मन्त्री तथा उच्चायुक्त होते हैं और ठीक इसी प्रकार भारत के भी इन देशों में विदेश मामलों के मन्त्री तथा उच्चायुक्त ही होते हैं।
.
1. Minister of Foreign Affairs
.
2. High Commissioner
.
जैसे कि भारत की विदेश मन्त्री हैं सुषमा स्वराज, तो यह सुषमा स्वराज का अधिकारिक दर्जा विदेश मन्त्री के तौर पर केवल रूस, जापान, चीन, फ़्रांस, जर्मनी, बेल्जियम आदि स्वतन्त्र देशों में ही रहता है। परन्तु ब्रिटिश उपनिवेशिक अर्थात् राष्ट्रमण्डल देशों जैसे आस्ट्रेलिया, कनाडा आदि देशों में सुषमा स्वराज का अधिकारिक दर्जा Minister of Foreign Affairs का ही रहता है।
आखिर भारत जैसे गुलाम देश की नागरिक क्वीन एलिज़ाबेथ की विदेश मन्त्री कैसे हो सकती है क्योंकि यह कनाडा, आस्ट्रेलिया, भारत आदि देश तो क्वीन एलिज़ाबेथ के ही अधिकार क्षेत्र या मालिकाना क्षेत्र में आते हैं जिसे आजकल आप Territory के नाम से समझते हैं।
इसी प्रकार उपनिवेशिक राष्ट्रमण्डल देशों में भारत का कोई राजदूत (Ambassodor) नहीं होता अपितु मात्र उच्चायुक्त (High Commissioner) ही होता है। Transfer of Power Agreement की शर्तें लगभग 4000 पेजों में विस्तार से लिखी गई हैं।
जिसके कुछ अंश निम्नलिखित हैं।
.
1. गोरे हमारी भूमि को 99 वर्षों के लिये हम भारतवासियों को ही किराये पर दे गये।
.
2. भारत  अभी भी ब्रिटेन के अधीन है।
.
3. ब्रिटिश नैशनैलिटी अधिनियम 1948 के अन्तर्गत हर भारतीय, आस्ट्रेलियाई, कनाडियन चाहे हिन्दू हो, मुसलमान हो, इसाई हो, बोद्ध हो अथवा सिक्ख ही क्यों न हो, ब्रिटेन की प्रजा है।
.
4. भारतीय संविधान के अनुच्छेदों 366, 371, 372 व 395 में परिवर्तन की क्षमता भारत की संसद तथा भारत के राष्ट्रपति के पास भी नहीं है।
.
5. गोपनीय समझौतों (जिनका खुलासा आज तक नहीं किया जाता) के तहत ही हमारे देश से 10 अरब रुपये पेंशन प्रतिवर्ष महारानी एलिजावेथ को जाता है।
.
6. इन्हीं गोपनीय समझौतों के तहत प्रति वर्ष 30 हजार टन गौ-मांस ब्रिटेन को दिया जाता है। यही वह गोपनीयता है, जिसकी शपथ भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस, सभी राज्यों के मुख्यमन्त्री तथा अन्य समस्त मन्त्री तथा प्रशासनिक अधिकारी लेते हैं। अत: उपरोक्त समस्त पदाधिकारी समस्त स्वतन्त्र देशों की भाँति मात्र पद की शपथ नहीं लेते अपितु “पद एवं गोपनीयता” की शपथ लेते हैं।
.
7. अनुच्छेद 348 के अन्तर्गत उच्चतम न्यायालय व संसद की कार्यवाही केवल अंग्रेजी भाषा में ही होगी।
.
8. राष्ट्रमण्डल समूह के किसी भी देश पर भारत पहले हमला नहीं कर सकता।
.
9. भारत किसी भी राष्ट्रमण्डल समूह के देश को जबरदस्ती अपनी सीमा में नहीं मिला सकता।
.
ऐसे बहुत से नियम एवं शर्तें लिखित रूप से दर्ज़ हैं Trasfer of Power Agreement में और यदि भविष्य में भारत किसी भी नियम या शर्त को भंग करता है तो
.
1. भारत का संविधान तत्काल प्रभाव से Null & Void हो जायेगा।
.
2. छद्म स्वतन्त्रता भी छीन ली जायेगी।
.
3. भारत में 1935 का Goverment of India Act तत्काल प्रभाव से लागू हो जायेगा क्योंकि उसी के आधार पर ही Indian Independence Act 1947 का निर्माण किया गया था ।
.
4. ब्रिटिश राज पुन: लागू हो जायेगा पूर्ण रूप से।
.
Indian Independence Act 1947
http://www.legislation.gov.uk/ukpga/Geo6/10-11/30
.
British Nationality Act 1947
http://lawmin.nic.in/legislative/textofcentralacts/1947.pdf
.
British Nationality Act 1948
http://www.uniset.ca/naty/BNA1948.htmr
.
1. आज कश्मीर यदि पाकिस्तान को दे दो तो भी वह ब्रिटेन की रानी का ही रहेगा।
.
2. आज सिक्खों को खालिस्तान दे दिया जाए तो वह भी रानी का ही रहेगा।
.
3. पूरा पाकिस्तान, बर्मा, बांग्लादेश, श्रीलंका भी रानी का ही है।
.
4. भारत आज भी क्वीन एलिज़ाबेथ के अधीन है। यह कहना छोड़िए कि हम स्वतन्त्र हैं। आज तक बिना रक्त बहाये किसी को स्वतन्त्रता नहीं मिली।
.
अब भविष्य में पुन: किसी गाँधी-नेहरू पर विश्वास न करना।ये भारत के मूलवासीयो को सदैव मनुवाद का गूलाम बनाऐ रखने हेतू कितनी नीचता कर सकते है❓

आज समता मूलक समाज के संस्थापक बाबासाहेब डॉ बी आर अम्बेडकर ज्योतिराव फूले  विवेकानन्द  शाहूजी महाराज   पेरियार  नारायण गूरू   झलकारी बाई   बिरसा मुंडा   मातादीन  चन्द्रशेखर आज़ाद, रामप्रसाद ‘बिस्मिल’, भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव, बटुकेश्वर दत्त, रोशनसिंह, आदि देशभक्त क्यों पैदा होने बन्द हो गये?

क्योंकि भारत की जनता को छद्म स्वतन्त्रता और गाँधी-नेहरू आदि की झूठी कहानियाँ सुना-सुनाकर खोखला कर दिया गया है।

नई पीढ़ी अपने कैरियर और मौज-मस्ती को लेकर आत्म-मुग्ध है। हाथों में झूलते बीयर के गिलास और होठों पर सुलगती सिगरेट के धुएँ में उड़ता पराक्रम और शौर्य की विरासत नष्ट-सी होती दिखाई दे रही है। आज तथागत बुद्ध  भी आ जायें तो निस्संदेह उन्हें सम्पूर्ण भारत देश में एक भी योग्य पराक्रमी पुरुष प्राप्त नहीं होगा ।
लाखों करोड़ों युवाओं के रूप में कभी यह राष्ट्र “बुद्धत्व की शक्ति” के रूप में समस्त विश्व में प्रसिद्ध था और आज विडम्बना देखो कि उसी देश के वीर्यवान व्यक्ति अपने बल-बुद्धि-प्रज्ञा समान ओज को युवावस्था में ही नष्ट कर डालते हैं।

सेना आपकी रक्षक है किन्तु भारत में सेना का मनोबल तोड़ने के लिये 1947 से ही लगातार षड्यन्त्र जारी है। 1947 में भारतीय सेना जब पाकिस्तानियों को पराजित कर रही थी तब सेना वापस बुला ली गयी।

सैनिक हथियार बनाने और परेड करने के स्थान पर जूते बनाने लगे। परिणाम 1962 में चीन के हाथों पराजय के रूप में आया। 1965 में जीती हुई धरती के साथ हम अपने प्यारे प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री को खो बैठे। सन् 1971 में पाकिस्तान के 93 हजार युद्धबन्दी छोड़ दिये गये लेकिन भारत के लगभग 54 सैनिक वापस नहीं लिये गये। एलिजाबेथ के लिये इतना कुछ करने के बावजूद इन्दिरा और राजीव दोनों मारे गये। आप सबसे विनम्र निवेदन है कि आप संगठित हों और एकजुट होकर अपने

बुद्ध व अशोक महान के देश  की रक्षा करें।

बचा लीजिये इस नष्ट होते कबीर बुद्ध की धरा तथा मूलवासीयो  की इस पवित्र भूमि स्वरूप इस देश को हम परतन्त्र क्यों बना रहें है?

हम ब्रिटेन के नागरिक क्यों बने रहें? हम ब्रिटेन के गुलाम क्यों बने रहें ? राष्ट्रमण्डल का विरोध करो। सत्ता-हस्तान्तरण के अनुबन्ध का विरोध करो । क्वीन एलिज़ाबेथ की दासता का विरोध करो। क्या आप में भारतीयत्व अभी भी जीवित है ? क्या आप भारत भूमि को दासता की बेड़ियों से मुक्त कर सकते हैं ? क्या आप झलकारी बाई मातादीन बिरसा मूंडा बाबासाहेश पेरियार चन्द्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ आदि का पर्याय बन सकते हैं?

जो बुद्धि से लड़ना ही भूल जायें वे न तो स्वयं सुरक्षित रहेंगे और न ही अपने देश को सुरक्षित रख सकेगे ।

कृपया ज्यादा से ज्यादा शेयर करके सबको सच्चाई बताये।

भारत भूमि के गद्दारो के काले कारनामे उजागर करो।

RTI लिखने का तरीका

��⭕⭕⭕ RTI ⭕⭕⭕��
         RTI लिखने का तरीका -
����RTI मलतब है सूचना का अधिकार - ये कानून हमारे देश में 2005 में लागू हुआ।जिसका उपयोग करके आप सरकार और
किसी भी विभाग से सूचना मांग सकते है। आमतौर पर लोगो को इतना ही पता होता है।परंतु आज मैं आप को इस के बारे में कुछ और रोचक जानकारी देता हूँ -

����RTI से आप सरकार से कोई भी सवाल पूछकर सूचना ले सकते है।
����RTI से आप सरकार के किसी भी दस्तावेज़ की जांच कर सकते है।
����RTI  से आप दस्तावेज़ की प्रमाणित कापी ले सकते है।
����RTI से आप सरकारी कामकाज में इस्तेमाल सामग्री का नमूना ले सकते है।
����RTI से आप किसी भी कामकाज का निरीक्षण कर सकते हैं।
����RTI में कौन- कौन सी धारा हमारे काम की है।

����धारा 6 (1) - RTI का आवेदन लिखने का धारा है।
����धारा 6 (3) - अगर आपका आवेदन गलत विभाग में चला गया है। तो वह विभाग
इस को 6 (3) धारा के अंतर्गत सही विभाग मे 5 दिन के अंदर भेज देगा।
����धारा 7(5) - इस धारा के अनुसार BPL कार्ड वालों को कोई आरटीआई शुल्क नही देना होता।
����धारा 7 (6) - इस धारा के अनुसार अगर आरटीआई का जवाब 30 दिन में नहीं आता है
तो सूचना निशुल्क में दी जाएगी।
����धारा 18 - अगर कोई अधिकारी जवाब नही देता तो उसकी शिकायत सूचना अधिकारी को दी जाए।
����धारा 8 - इस के अनुसार वो सूचना RTI में नहीं दी जाएगी जो देश की अखंडता और सुरक्षा के लिए खतरा हो या विभाग की आंतरिक जांच को प्रभावित करती हो।
����धारा 19 (1) - अगर आप
की RTI का जवाब 30 दिन में नहीं आता है।तो इस
धारा के अनुसार आप प्रथम अपील अधिकारी को प्रथम अपील कर सकते हो।
����धारा 19 (3) - अगर आपकी प्रथम अपील का भी जवाब नही आता है तो आप इस धारा की मदद से 90 दिन के अंदर दूसरी
अपील अधिकारी को अपील कर सकते हो।
.............
����अब मित्रो केंद्र से सूचना मांगने के लिए आप 10 रु देते है और एक पेपर की कॉपी मांगने के 2 रु देते है।
����हर राज्य का RTI शुल्क अगल अलग है जिस का पता आप कर सकते हैं।
����जनजागृति के लिए जनहित में शेयर करे।
����RTI का सदउपयोग करें और भ्रष्टाचारियों की सच्चाई /पोल दुनिया के सामने लाईए
������������������