शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017

इतिहास में अत्याचार

यह पोस्ट,   अनु- सूचित जाति या जन- जाति,पिछडे  वर्ग्  से सम्बन्धित  लोगो के लिए  पढना मैनडेटरी  है । क्योंकि   इस  ब्राह्मणवाद   को खत्म करने  के  लिए  यह  जानना जरूरी  है कि  ब्राह्मणवादी लोगों ने  इस  वर्ण  पर   क्या क्या  अत्याचार  किए थे।  जान कर आपके रोंगटे  खड़े हो जाएंगे।  इस   देश मे अंग्रेजी    शासन   नही   आता    तो    अनुमान    नही लगा    सकते  आज  क्या    हालत   होती । वैसे   अभी  भी   कोई   कसर   बाकि नही है।    आप      से   करबद्ध  अनुरोध  है  कि आप को   जब   भी  समय मिले   तो  यह   पोस्ट  जरूर जरुर  पढे ।
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अंग्रेजों ने भारत पर 150 वर्षों तक राज किया ब्राह्मणों ने उनको भगाने का हथियार बन्द
आंदोलन क्यों चलाया?
जबकि भारत पर सबसे पहले हमला मुस्लिम
शासक मीर काशीम ने 712 ई. में किया! उसके बाद महमूद   गजनबी, मोहमंद गौरी, चन्गेज खान ने हमला किए और फिर  कुतुबदीन   एबक, गुलामवंश, तुगलकवंश, खिलजीवंश, लोदीवंश
फिर मुगल आदि वन्शो
ने भारत पर राज किया
और   खूब    अत्याचार
किए  लेकिन ब्राह्मण ने
कोई क्रांति या आंदोलन
नही चलाया ! फिर
अन्ग्रेजो के खिलाफ़ ही
क्यों क्रांति कर दी ।

जानिये  क्रांति   और  आंदोलन की वजह ।

1- अंग्रेजो  ने    1795
में अधिनयम 11  द्वारा
शुद्रों  को   भी    सम्पत्ति
रखने का कानून बनाया।

2- 1773 में ईस्ट इंडिया
कम्पनी ने रेगुलेटिग एक्ट पास किया जिसमें न्याय
व्यवस्था समानता    पर
आधारित थी ।  ।6 मई 1775 को  इसी  कानून द्वारा बंगाल के सामन्त ब्राह्मण  नन्द कुमार देव को फांसी हुई थी ।

3- 1804 अधिनीयम 3 द्वारा   कन्या  हत्या   पर रोक   अंग्रेजों  ने  लगाई (लडकियों के पैदा होते ही तालु में अफीम चिपकाकर, माँ के
स्तन पर धतूरे का
लेप लगाकर, एवम्
गढ्ढा बनाकर उसमें दूध डालकर डुबो कर मारा जाता था ।

4- 1813 में ब्रिटिश सरकार ने कानून बनाकर शिक्षा ग्रहण करने का सभी जातियों और धर्मों के लोगों को अधिकार दिया।

5- 1813 में  ने दास प्रथा का अंत कानून बनाकर किया।

6-  1817  में     समान नागरिक संहिता कानून बनाया ।   1817    के पहले सजा का प्रावधान वर्ण के आधार पर था। ब्राह्मण को कोई   सजा नही होती थी ओर   शुद्र को   कठोर   दंड   दिया
जाता था। अंग्रेजो      ने सजा का प्रावधान समान कर दिया।

7- 1819 में अधि- नियम  नम्बर  7 द्वारा ब्राह्मणों  द्वारा    शुद्र  स्त्रियों के शुद्धिकरण पर रोक लगाई।  (शुद्रों की शादी होने पर दुल्हन को अपने यानि दूल्हे  के घर न जाकर कम से कम तीन रात  ब्राह्मण के घर शारीरिक   सेवा देनी पड़ती थी।)

8- 1830 नरबलि प्रथा पर रोक - (देवी देवता को प्रसन्न करने के लिए ब्राह्मण शुद्रों,  स्त्री   व् पुरुष दोनों को मन्दिर
में सिर पटक पटक कर
चढ़ा देता था। )

9- 1833   अधिनियम 87 द्वारा सरकारी सेवा में भेद भाव   पर   रोक अर्थात  योग्यता ही सेवा का  आधार     स्वीकार किया गया तथा कम्पनी केअधीन किसी भारतीय
नागरिक     को     जन्म स्थान, धर्म, जाति या रंग के आधार   पर   पद  से वंचित  नही   रखा    जा सकता है।

10- 1834  में   पहला भारतीय  विधि  आयोग का गठन हुआ । कानून
बनाने   की     व्यवस्था जाति,  वर्ण,  धर्म  और क्षेत्र की भावना से ऊपर उठकर  करना   आयोग का प्रमुख उद्देश्य था।

11-  1835  प्रथम  पुत्र को गंगा दान पर रोक !   (ब्राह्मणों ने नियम बनाया  की शुद्रों के घर यदि पहला बच्चा लड़का पैदा हो तो  उसे गंगा में फेंक देना चाहिये।
पहला पुत्र ह्रष्ट-पृष्ट एवं
स्वस्थ पैदा होता है।यह
बच्चा ब्राह्मणों से लड़ न
पाए इसलिए पैदा होते ही गंगा को दान करवा देते थे। )

12- 7 मार्च 1835 को
लार्ड मैकाले ने   शिक्षा
नीति राज्य  का  विषय
बनाया और उच्च शिक्षा
को   अंग्रेजी   भाषा का
माध्यम  बनाया  गया।

13- 1835 को कानून बनाकर अंग्रेजों ने शुद्रों को कुर्सी पर बैठने का अधिकार दिया।

14- दिसम्बर 1829 के
नियम 17 द्वारा विधवाओं को जलाना अवैध घोषित कर सती प्रथा का अंत किया।

15- देवदासी   प्रथा पर
रोक लगाई। ब्राह्मणों के
कहने   से  शुद्र   अपनी
लडकियों को मन्दिर की
सेवा के लिए  दान  देते थे। मन्दिर  के   पुजारी उनका शारीरिक शोषण करते थे। बच्चा पैदा होने पर उसे  फेंक देते थे।और उस बच्चे को हरिजन नाम  देते थे।
1921 को जातिवार जनगणना के आंकड़े के अनुसार अकेले मद्रास में कुल जनसंख्या 4 करोड़
23 लाख थी जिसमें 2
लाख देवदासियां मन्दिरों में पड़ी थी।  यह प्रथा अभी भी दक्षिण भारत के मन्दिरो  में  चल रही है।

16- 1837 अधिनियम द्वारा ठगी प्रथा का अंत किया।

17- 1849 में कलकत्ता
में एक बालिका विद्यालय जे ई डी बेटन ने स्थापित  किया।

18-  1854 में अंग्रेजों ने  3 विश्वविद्यालय कलकत्ता मद्रास और बॉम्बे में स्थापित किये। 1902 मे विश्वविद्यालय आयोग   नियुक्त किया गया।

19- 6 अक्टूबर 1860
को अंग्रेजों  ने  इंडियन
पीनल    कोड  बनाया।
लार्ड मैकाले ने सदियों
से  जकड़े   शुद्रों    की
जंजीरों  को  काट दिया
ओर भारत में जाति, वर्ण और धर्म के बिना  एक
समान   क्रिमिनल   लॉ
लागु कर दिया।

20- 1863 अंग्रेजों   ने कानून बनाकर   चरक पूजा पर रोक लगा दिया (आलिशान भवन एवं पुल निर्माण पर शुद्रों को
पकड़कर जिन्दा चुनवा
दिया जाता था इस पूजा
में मान्यता थी की भवन
और पुल ज्यादा दिनों
तक  टिकाऊ  रहेगें।

21- 1867 में  बहू विवाह प्रथा पर पुरे देश में  प्रतिबन्ध लगाने के
उद्देश्य से बंगाल सरकार
ने एक कमेटी गठित किया ।

22- 1871 में अंग्रेजों ने भारत में जातिवार गणना प्रारम्भ की। यह जनगणना 1941 तक हुई । 1948 में पण्डित नेहरू ने कानून बनाकर जातिवार गणना पर रोक लगा दी।

23- 1872 में सिविल
मैरिज एक्ट द्वारा 14
वर्ष से कम आयु की कन्याओं एवम् 18 वर्ष से कम आयु के लड़को
का विवाह वर्जित करके
बाल  विवाह  पर   रोक
लगाई।

24- अंग्रेजों ने महार और चमार रेजिमेंट बनाकर इन जातियों को सेना में  भर्ती किया लेकिन 1892  में ब्राह्मणों के दबाव के कारण सेना में अछूतों की भर्ती बन्द हो गयी।

25- रैयत वाणी पद्धति अंग्रेजों    ने    बनाकर प्रत्येक पंजीकृत भूमिदार को  भूमि का स्वामी स्वीकार  किया।

26- 1918 में साऊथ
बरो कमेटी को भारत मे
अंग्रेजों ने भेजा ।   यह कमेटी भारत में   सभी जातियों का विधि
मण्डल (कानून बनाने
की संस्था) में भागीदारी
के लिए आया था। शाहू
जी महाराज   के  कहने पर  पिछङो    के   नेता भाष्कर   राव जाधव ने एवम् अछूतों के नेता डा
अम्बेडकर ने   अपने लोगों को विधि मण्डल में  भागीदारी के लिये
मेमोरेंडम दिया।

27- अंग्रेजो ने 1919 में भारत सरकार अधिनियम का गठन किया ।

28- 1919 में अंग्रेजो ने ब्राह्मणों के जज बनने पर रोक लगा दी थी और
कहा था की इनके अंदर
न्यायिक चरित्र नही होता है।

29- 25 दिसम्बर1927
को डा अम्बेडकर द्वारा
मनु समृति का दहन किया। मनु स्मृति में
शूद्रों और   महिलाओं   को गुलाम   तथा  भोग  की वस्तु समझा जाता था एक  पुरूष   को अनगिनत  शादियां करने का धार्मिक अधिकार है। महिला अधिकार विहीन तथा दासी की स्थिति में थी। एक - एक औरत के अनगिनत  सौतने   हुआ करती थी   औरतो- शूद्रों को सिर्फ   और    सिर्फ गुलामी लिखा है जिसको एक  राक्षस मनु  ने  धर्म का नाम दिया है।

30- 1 मार्च 1930 को
डा अम्बेडकर द्वारा काला राम मन्दिर (नासिक)  प्रवेश का आंदोलन  चलाया।

31- 1927 को अंग्रेजों ने कानून बनाकर शुद्रों के सार्वजनिक स्थानों पर जाने का अधिकार दिया।

32- नवम्बर 1927   में साइमन   कमीशन   की नियुक्ति की। जो 1928 में भारत के अछूत लोगों की  स्थिति का सर्वे करने और उनको अतिरिक्त अधिकार देने के लिए आया। भारत के लोगों को अंग्रेज अधिकार न दे सके इसलिए इस कमीशन के भारत पहुँचते ही गांधी और लाला लाजपत राॅय ने इस कमीशन के विरोध में बहुत बड़ा आंदोलन चलाया। जिस कारण
साइमन कमीशन अधूरी
रिपोर्ट लेकर वापस
चला गया। इस पर
अंतिम फैसले के लिए
अंग्रेजों ने भारतीय
प्रतिनिधियों को 12
नवम्बर 1930 को लन्दन गोलमेज सम्मेलन में  बुलाया।

33- 24 सितम्बर 1932 को अंग्रेजों ने कम्युनल
अवार्ड घोषित किया
जिसमें प्रमुख अधिकार
निम्न दिए----

A--वयस्क मताधिकार

B--विधान मण्डलों और
संघीय सरकार में जन संख्या   के  अनुपात
में अछूतों को आरक्षण
का अधिकार

C--सिक्ख, ईसाई और मुसलमानों की तरह अछूतों (SC/ST )को  भी स्वतन्त्र निर्वाचन के क्षेत्र का अधिकार मिला। जिन क्षेत्रों में अछूत प्रतिनिधिखड़े होंगे उनका चुनाव केवल अछूत ही करेगें।

D--प्रतिनिधियों को चुनने के लिए दो बार वोट का
अधिकार मिला  जिसमें
एक   बार  सिर्फ  अपने
प्रतिनिधियों को वोट देंगे
दूसरी   बार    सामान्य
प्रतिनिधियों   को   वोट देगे।

34- 19 मार्च 1928 को बेगारी प्रथा के विरुद्ध डा अम्बेडकर ने मुम्बई एवम राम चरन निशाद एड  ने सन्युक्त प्रांत की
विधान परिषद में आवाज
उठाई , जिसके बाद
अंग्रेजों ने इस प्रथा को
समाप्त कर दिया।

35- अंग्रेजों ने 1 जुलाई 1942 से लेकर 10 सितम्बर 1946 तक डाॅ अम्बेडकर को वायसराय की कार्य साधक कौंसिल में   लेबर   मेंबर बनाया। लेबरो को डा अम्बेडकर ने 8.3 प्रतिशत आरक्षण दिलवाया।

36-- 1937 में अंग्रेजों
ने भारत में प्रोविंशियल गवर्नमेंट   का    चुनाव करवाया।

37-- 1942 में अंग्रेजों
से डा. अम्बेडकर ने 50
हजार हेक्टेयर भूमि को
अछूतों एवम् पिछङो में
बाट देने के लिए अपील
किया ।  अंग्रेजों ने 20 वर्षों की समय सीमा तय किया था।

38- अंग्रेजों   ने  शासन प्रसासन में ब्राह्मणों  की भागीदारी को 100% से 2.5% पर लाकर खड़ा
कर दिया था।

इन्ही सब वजाह से ब्राह्मणों  ने अन्ग्रेजो के खिलाफ़  क्रांति शुरू कर दी क्योकि  अन्ग्रेजो  ने शुद्रो और महिलाओं को सारे अधिकार दे दिये थे और  सब जातियो के लोगो को एक समान अधिकार देकर सबको बराबरी मे लाकर खडा किया.
 
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सोमवार, 26 जून 2017

महाराजा बिजली पासी

महाराजा बिजली पासीबारहवीं शताब्दी पासी राजाओं के साम्राज्य के लिए बहुत अशुभ साबित हुई। इसी शताब्दी के अन्तिम वर्षों में अवध के सबसे शक्तिशाली पासी महाराजा बिजली वीरगति को प्राप्त हुए थे। सन् 1194 ई. में इससे पहले राजा लाखन पासी भी वीरगति को प्राप्त हुए। महाराजा बिजली पासी की माता का नाम बिजना था, इसीलिए उन्होंने सर्वप्रथम अपनी माता की स्मृति में बिजनागढ की स्थापना की थी जो कालांतर में बिजनौरगढ़ के नाम से संबोधित किया जाने लगा।बिजली पासी के कार्य शेत्र में विस्तारहो जाने के कारण बिजनागढ में गढ़ी का समिति स्थान पर्याप्त न होने के कारण बिजली पासी ने अपने मातहत एक सरदार को बिजनागढ को सौंप दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी पिता की याद में बिजनौर गढ़ से उत्तर तीन किलोमीटर की दूरी पर पिता नटवा के नाम पर नटवागढ़ की स्थापना की।यह किला काफी भव्य और सुरक्षित था। बिजली पासी की लोकप्रियता बढ़ने लगी और अब तक वह राजा की उपाधि धारण कर चुके थे। नटवागढ़ भी कार्य संचालन की द्रिष्टि से पर्याप्त नहीं था, उसके उत्तर तीन किलोमीटर एक विशाल किले का निर्माण कराया जिसका नाम महाराजा बिजली पासी किला पड़ा। जिसके अवशेष आज भी मौजूद हैं, अब राजा बिजली पासी महाराजा बिजली पासी के नाम से विभूषित हो चुके थे। यह किला लखनऊ जिला मुख्यालय से 8 किलोमीटर सदर तहसील लखनऊ के अंतर्गत दक्षिण की ओर बंगला बाजार के आगे सड़क के दाहिनी ओर आज भी महाराजा बिजली पासी के साम्राज्य के मूक गवाहके रूप में विद्यमान है। महाराजा ने कुल 12 किले राज्य विस्तार के कारण बनवाये थे। 1- नटवागढ़ 2- बिजनौरगढ़ 3- महाराजा बिजली पासी किला4- माती 5- परवर पश्चिम 6- कल्ली पश्चिम किलों के भग्नावशेष आज भी मौजूद हैं। 7- पुराना किला 8- औरावां किला 9- दादूपुर किला 10- भटगांव किला 11- ऐनकिला 12- पिपरसेंड किला। उत्तर में पुराना किला, दक्षिणी में नींवाढक जंगल सीमा सुरक्षा के रूप में कार्य करता था। इसके मध्य में महाराजा बिजली पासी का केन्द्रीय किला सुरक्षित था। महाराजा बिजली पासी के अंतर्गत 94,829 एकड़ भूमि अथवा 184 वर्ग मीलका भू-भाग सम्मिलित था, इस क्षेत्र की भूमि उपजाऊ थी, धान, गेहूं, चना, मटर, ज्वार। बाजरा आदि की खेती होती थी। महाराजा बिजली पासी की प्रगतिसे कन्नौज का राजा जयचंद्र चिन्तित रहने लगा क्योंकि महाराजा बिजली पासी पराक्रमी उत्साही और महत्वकांक्षी थे। बिजली पासी के सैन्य बल एवं वीर योद्धाओं का वर्णन सुनकर जयचंद्र भयभीत रहता था। लेकिन अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए जयचंद्र की भी इच्छा रहती थी। जयचंद ने सबसे पहले महाराजा सातन पासी के किले पर आक्रमण कर दिया, इस आक्रमण में घमासान युद्ध हुआ और जयचंद की सेनाओं को भागना पड़ा। इस अपमान जनकपराजय से जयचंद का मनोबल टूट गया था। किंतु बाद में जयचंद ने कुटिलता पूर्वक एक चाल चली और महोबा के शूरवीर आल्हा ऊदल को भारी खजाना एवं राज्य देने के प्रलोभन देकर बिजनौरगढ़ एवं महाराजा बिजली पासी के किले पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया। आल्हा ऊदल कन्नौज की सेनायें लेकर अवध आये और उनका पहला पड़ाव लक्ष्मण टीला था। इसके बाद पहाड़ नगर टिकरिया गये। बिजनौरगढ़ से 10 किलोमीटर दक्षिण की ओर सरवन टीलें पर उन्होंने डेरा डाला। यहां से उन्होंने अपने गुप्तचरों द्वारा बिजली पासी किले से संबंधित सूचनाएं एकत्र की। जिस समय महाराजा बिजली पासी अपने पड़ोसी मित्र राजा काकोरगढ़ के किले में आवश्यक कार्य से गये हुए थे। उसी समय मौका पाकर आल्हा ऊदल ने अपना एक दूत इस संदेश के साथ भेजा कि राजा हमें अधिक धनराशि देकर हमारी अधीनतास्वीकार करें। यह सूचना तेजी से संदेश वाहक ने महाराजा बिजली पासी को काकोरगढ़ किले में दी उसी समय सातन पट्टी के राजा सातन पासी भी किसी विचार विमर्श के लिए काकोरगढ़ आये थे। संदेश पाकर महाराजा बिजली पासीघबराये नही। बल्कि धैर्य से उसका मुंह तोड जवाब भिजवाया कि महाराजा बिजली पासी न तो किसी राज्य के अधीन रहकर राज्य करते हैं और न ही किसी को अपनी आय का एक अंश भी देने को तैयार हैं। जब आल्हा ऊदल का दूत यह संदेश लेकर पहुंचा उसे सुनकर आल्हा ऊदल झुंझलाकर आग बबूला हो गये और अपनी सेनाएं गांजर में उतार दी। यह खुला मैदान था, यहां पेड़ पौधे नही थे। इस स्थान पर मुकाबला आमने सामने हुआ। यह मैदान इतिहास में गांजर भांगर के नाम से मशहूर है। यह युद्ध तीन महीना तेरह दिन तक चला। इस युद्ध में सातन कोट के राजा सातन पासी ने भी पूरी भागीदारी की थी। युद्ध बड़ा भयानक था। इसमें अनेक वीर योद्धाओं का नरसंहार हुआ। गांजरभूमि पर तलवार और खून ही खून था इसलिए इसे लौह गांजर भी कहा जाता है। वर्तमान में इस स्थान पर गंजरिया फार्म है। इस घमासान युद्ध में पराक्रमी पासी राजा महाराजा बिजली पासी बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। यह युद्ध सन् 1194 ई. में हुअा था। यह समाचार जब पड़ोसी राज्य देवगढ़ के राजा देवमाती को मिला तो वह अपनी फौजों के साथ आल्हा ऊदल पर भूखे शेर की भांति झपट पड़ा। इस युद्ध की भयंकर गर्जन और ललकार सुनकर आल्हा ऊदल भयभीत होकर कन्नौज की ओर भाग खड़े हुए। परन्तु आल्हा ऊदल के साले जोगा भोगा राजा सातन ने खदेड़ कर मौत के घाट उतार दिया और पड़ोसी राज्य से सच्ची मित्रता तथा पासी समाज के शौर्य का परिचय दिया। महाराजा बिजली पासी के किले के अलावा उनके अधीन 11 किलोंका वर्णन इतिहास में बहुत ही सतही ढंग से किया गया है।

शुक्रवार, 26 मई 2017

सपने और प्राप्त फल

*सपने तथा उनसे प्राप्त होने*
1- सांप दिखाई देना- धन लाभ
2- नदी देखना- सौभाग्य में वृद्धि
3- नाच-गाना देखना- अशुभ समाचार मिलने के योग
4- नीलगाय देखना- भौतिक सुखों की प्राप्ति
5- नेवला देखना- शत्रुभय से मुक्ति
6- पगड़ी देखना- मान-सम्मान में वृद्धि
7- पूजा होते हुए देखना- किसी योजना का लाभ मिलना
8- फकीर को देखना- अत्यधिक शुभ फल
9- गाय का बछड़ा देखना- कोई अच्छी घटना होना
10- वसंत ऋतु देखना- सौभाग्य में वृद्धि
11- स्वयं की बहन को देखना- परिजनों में प्रेम बढऩा
12- बिल्वपत्र देखना- धन-धान्य में वृद्धि
13- भाई को देखना- नए मित्र बनना
14- भीख मांगना- धन हानि होना
15- शहद देखना- जीवन में अनुकूलता
16- स्वयं की मृत्यु देखना- भयंकर रोग से मुक्ति
17- रुद्राक्ष देखना- शुभ समाचार मिलना
18- पैसा दिखाई- देना धन लाभ
19- स्वर्ग देखना- भौतिक सुखों में वृद्धि
20- पत्नी को देखना- दांपत्य में प्रेम बढ़ना
21- स्वस्तिक दिखाई देना- धन लाभ होना
22- हथकड़ी दिखाई देना- भविष्य में भारी संकट
23- मां सरस्वती के दर्शन- बुद्धि में वृद्धि
24- कबूतर दिखाई देना- रोग से छुटकारा
25- कोयल देखना- उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति
26- अजगर दिखाई देना- व्यापार में हानि
27- कौआ दिखाई देना- बुरी सूचना मिलना
28- छिपकली दिखाई देना- घर में चोरी होना
29- चिडिय़ा दिखाई देना- नौकरी में पदोन्नति
30- तोता दिखाई देना- सौभाग्य में वृद्धि
31- भोजन की थाली देखना- धनहानि के योग
32- इलाइची देखना- मान-सम्मान की प्राप्ति
33- खाली थाली देखना- धन प्राप्ति के योग
34- गुड़ खाते हुए देखना- अच्छा समय आने के संकेत
35- शेर दिखाई देना- शत्रुओं पर विजय
36- हाथी दिखाई देना- ऐेश्वर्य की प्राप्ति
37- कन्या को घर में आते देखना- मां लक्ष्मी की कृपा मिलना
38- सफेद बिल्ली देखना- धन की हानि
39- दूध देती भैंस देखना- उत्तम अन्न लाभ के योग
40- चोंच वाला पक्षी देखना- व्यवसाय में लाभ
41- स्वयं को दिवालिया घोषित करना- व्यवसाय चौपट होना
42- चिडिय़ा को रोते देखता- धन-संपत्ति नष्ट होना
43- चावल देखना- किसी से शत्रुता समाप्त होना
44- चांदी देखना- धन लाभ होना
45- दलदल देखना- चिंताएं बढऩा
46- कैंची देखना- घर में कलह होना
47- सुपारी देखना- रोग से मुक्ति
48- लाठी देखना- यश बढऩा
49- खाली बैलगाड़ी देखना- नुकसान होना
50- खेत में पके गेहूं देखना- धन लाभ होना
51- किसी रिश्तेदार को देखना- उत्तम समय की शुरुआत
52- तारामंडल देखना- सौभाग्य की वृद्धि
53- ताश देखना- समस्या में वृद्धि
54- तीर दिखाई- देना लक्ष्य की ओर बढऩा
55- सूखी घास देखना- जीवन में समस्या
56- भगवान शिव को देखना- विपत्तियों का नाश
57- त्रिशूल देखना- शत्रुओं से मुक्ति
58- दंपत्ति को देखना- दांपत्य जीवन में अनुकूलता
59- शत्रु देखना- उत्तम धनलाभ
60- दूध देखना- आर्थिक उन्नति
61- धनवान व्यक्ति देखना- धन प्राप्ति के योग
62- दियासलाई जलाना- धन की प्राप्ति
63- सूखा जंगल देखना- परेशानी होना
64- मुर्दा देखना- बीमारी दूर होना
65- आभूषण देखना- कोई कार्य पूर्ण होना
66- जामुन खाना- कोई समस्या दूर होना
67- जुआ खेलना- व्यापार में लाभ
68- धन उधार देना- अत्यधिक धन की प्राप्ति
69- चंद्रमा देखना- सम्मान मिलना
70- चील देखना- शत्रुओं से हानि
71- फल-फूल खाना- धन लाभ होना
72- सोना मिलना- धन हानि होना
73- शरीर का कोई अंग कटा हुआ देखना- किसी परिजन की मृत्यु के योग
74- कौआ देखना- किसी की मृत्यु का समाचार मिलना
75- धुआं देखना- व्यापार में हानि
76- चश्मा लगाना- ज्ञान में बढ़ोत्तरी
77- भूकंप देखना- संतान को कष्ट
78- रोटी खाना- धन लाभ और राजयोग
79- पेड़ से गिरता हुआ देखना किसी रोग से मृत्यु होना
80- श्मशान में शराब पीना- शीघ्र मृत्यु होना
81- रुई देखना- निरोग होने के योग
82- कुत्ता देखना- पुराने मित्र से मिलन
83- सफेद फूल देखना- किसी समस्या से छुटकारा
84- उल्लू देखना- धन हानि होना
85- सफेद सांप काटना- धन प्राप्ति
86- लाल फूल देखना- भाग्य चमकना
87- नदी का पानी पीना- सरकार से लाभ
88- धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाना- यश में वृद्धि व पदोन्नति
89- कोयला देखना- व्यर्थ विवाद में फंसना
90- जमीन पर बिस्तर लगाना- दीर्घायु और सुख में वृद्धि
91- घर बनाना- प्रसिद्धि मिलना
92- घोड़ा देखना- संकट दूर होना
93- घास का मैदान देखना- धन लाभ के योग
94- दीवार में कील ठोकना- किसी बुजुर्ग व्यक्ति से लाभ
95- दीवार देखना- सम्मान बढऩा
96- बाजार देखना- दरिद्रता दूर होना
97- मृत व्यक्ति को पुकारना- विपत्ति एवं दुख मिलना
98- मृत व्यक्ति से बात करना- मनचाही इच्छा पूरी होना
99- मोती देखना- पुत्री प्राप्ति
100- लोमड़ी देखना- किसी घनिष्ट व्यक्ति से धोखा मिलना

माला में 108 मनके क्यों होते है

माला में क्यों होते हैं 108 दाने- 12 राशियांत्रिक क्यों होती है

क्या आपने कभी ग़ौर किया है कि जाप की सभी मालाओं में 108 दाने ही क्यों होते हैं? संख्या 108 ही क्यों है, 107 या 109 क्यों नहीं? आख़िर हिंदू धर्म में 108 का इतना ज़्यादा महत्व क्यों है? तो आइए जानते हैं संख्या 108 क्यों है, कहां से आई है, इसकी महत्ता क्या है और क्या हैं इसके हेल्थ बेनीफिट्स?

संख्या 108 से जुड़ी मान्यताएं

संख्या 108 के उद्भव, महत्व व उपयोगिता से जुड़ी चार मान्यताएं प्रचलित हैं-

1. सूर्य से गहरा रिश्ता

पहली मान्यता के अनुसार मालाओं का सूर्य से बहुत गहरा रिश्ता होता है, इसीलिए उनमें 108 दाने होते हैं. इस मान्यता के अनुसार, सूर्य सालभर में कुल 2,16,000 कलाएं बदलता है. इस दौरान सूर्य दो बार अपनी स्थिति भी बदलता है यानी छह महीने उत्तरायण और बाकी छह महीने दक्षिणायन. इस तरह कह सकते हैं कि सूरज छह महीने में कुल एक लाख आठ हज़ार (1,08,000) बार कलाएं बदलता है. संख्या 1,08,000 से अंतिम तीन शून्य को हटा दें, तो अंक 108 बनता है. यह भी कहा जाता है कि सृष्टि में सूर्य ही एकमात्र साक्षात दिखनेवाले देवता हैं, इसलिए उनकी कलाओं के आधार पर संख्या 108 तय की गई है. किसी माला का हर दाना सूर्य की एक हज़ार

कलाओं का प्रतीक है यानी एक बार जाप करने पर

एक हज़ार गुना फल मिलता है. सूर्य ब्रह्मांड में ऊर्जा

का स्रोत है, इसीलिए यह व्यक्ति को ऊर्जा देकर उसे सेहतमंद बनाता है.

2. सांसों की संख्या दर्शाता है 

दूसरी मान्यता के अनुसार माला के दानों की संख्या का निर्धारण एक पूर्ण तंदुरुस्त आदमी के दिनभर में सांस लेने की संख्या के मुताबिक़ हुआ है. अमूमन, एक व्यक्ति 24 घंटे में 21600 बार सांस लेता है यानी 12 घंटे में वह कुल 10800 बार सांस लेता है. शास्त्रों में कहा गया है कि 10800 बार मंत्रोच्चारण करते समय प्रभु को याद करना बहुत ज़रूरी है. चूंकि यह मुश्किल काम है, इसीलिए 10800 बार सांस लेने की संख्या से अंतिम दो शून्य हटाकर जाप के लिए 108 संख्या तय कर दी गई. इसी आधार पर माला में 108 दाने होते हैं. जैसा कि हम जानते हैं, सांस का संबंध सीधे हमारी सेहत से होता है. अगर आदमी की श्‍वसन प्रणाली दुरुस्त है, तो इसका मतलब है कि शरीर के लिए

आवश्यक ऑक्सीजन की पूर्ति हो रही है.

3. ग्रहों व राशियों की चाल का प्रभाव  

तीसरी मान्यता ज्योतिष के सिद्धांत पर आधारित है. ज्योतिष शास्त्र ब्रह्मांड को 12 राशियों में विभाजित करता है. इन 12 राशियों के नाम मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्‍चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन हैं. इन राशियों में नौ ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु विचरण करते हैं. अत: 9 ग्रहों को 12 राशियों से गुणा करने पर संख्या 108 प्राप्त होती है और इसीलिए माला में 108 दाने होते हैं. ग्रहों व राशियों की चाल का सीधा प्रभाव हमारी सेहत पर पड़ता है, जिसे संतुलित रखने के लिए हमें 108 बार जाप करना पड़ता है.

4. नक्षत्रों  के चरणों पर आधारित

चौथी मान्यता भी ज्योतिष से ही संबंधित है. इसके अनुसार ज्योतिष शास्त्र में कुल 27 नक्षत्र बताए गए हैं. हर नक्षत्र के 4 चरण होते हैं और 27 नक्षत्रों के कुल चरण 108 ही होते हैं. माला का एक-एक दाना, नक्षत्र के एक-एक चरण का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए लोग मंत्र जाप के लिए 108 दानोंवाली माला का इस्तेमाल करते हैं.

वैज्ञानिक आधार भी हैं

संख्या 108 की महत्ता धार्मिक और ज्योतिष संबंधी मान्यताओं पर ही आधारित नहीं है, बल्कि इसके वैज्ञानिक आधार भी हैं. हर मान्यता के अनुसार मंत्र जाप के लिए 108 दानेवाली माला का ही प्रयोग करना चाहिए. इसकी महत्ता शास्त्रों में इस श्‍लोक के ज़रिए बताई गई-

षट्शतानि दिवारात्रौ सहस्राण्येकं विशांति।

एतत् संख्यान्तितं मंत्रं जीवो जपति सर्वदा॥

यानी किसी माला के दानों की संख्या 108 संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करती है और चूंकि हमारा शरीर इस ब्रह्मांड का ही हिस्सा है, इसलिए हम जितने ही ब्रह्मांड से जुड़े कॉस्मोलॉजी-फ्रेंडली होंगे, उतने ही तंदुरुस्त भी रहेंगे.

108 के हेल्थ बेनीफिट्स 

–   जो व्यक्ति 108 दानों की माला से मंत्र का जप करता है, उसे अन्य के मुक़ाबले अधिक लाभ होता है.

–    मंत्र जप की माला रुद्राक्ष, तुलसी, स्फटिक, मोती या नगों जैसी मूल्यवान चीज़ों से बनी होती है, जिनका हमारी सेहत पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

–    रुद्राक्ष से बनी माला मंत्र जप के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है, क्योंकि इसे महादेव का प्रतीक माना गया है. रुद्राक्ष में सूक्ष्म कीटाणुओं का नाश करने की शक्ति भी होती है. साथ ही, रुद्राक्ष वातावरण में मौजूद सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करके साधक के शरीर में पहुंचा देता है.

–   दरअसल, जब माला लेकर किसी मंत्र का 108 बार जाप करते हैं, तो शरीर का ब्रह्मांड से साक्षात्कार होता है, जिसे कुछ लोग समझ जाते हैं, जबकि ज़्यादातर लोगों को मालूम ही नहीं पड़ता. जो जान जाते हैं, उन्हें इसका सबसे ज़्यादा हेल्थ बेनीफिट मिलता है. जो नहीं जान पाते, उन्हें थोड़ा कम, लेकिन सेहत संबंधी लाभ हर हाल में होता ही है.

–    चूंकि 108 की कनेक्टिविटी सीधे सूरज से है, इसलिए इससे जुड़ी हर चीज़ से हेल्थ लाभ होता है.

–    माला का जाप 108 बार करने के लिए सही तरीक़ा अपनाना चाहिए. हर माला में सबसे ऊपर सुमेरू होता है. जाप उसी से शुरू होता है और वहीं ख़त्म होता है. इस माला से जाप का मतलब है कि हम ब्रह्मांड के नियमों का पालन करते हैं यानी ब्रह्मांड-फ्रेंडली काम करते हैं, इसीलिए संख्याहीन मंत्रों के जप से फल नहीं मिलता, क्योंकि वह ब्रह्मांड से जुड़ा नहीं होता.