##ज़िन्हें लगता है कि #महमूद_गजनवी मंदिर लूटने आए थे उन पाखंडियों को शर्म आनी चाहिए, #देवदासी प्रथा की बंदी महिलाओं को छुड़ाने के लिए गजनवी ने हर मंदिर-मंदिर ढ़ूढ़ा महिलाओं को मुक्त कराया##आप भी पढ़े पुस्तक का अंश##हालांकि ये पुस्तक भारत सरकार बैन कर चुकी है!!##
#गुजरात का सोमनाथ आज फिर दलितों के अत्याचार पर अपने हक़ीक़ी मोहसिन को पुकार रहा है।
.......... महमूद गजनवी का ज़हूर एक ऐसे समुद्री तूफ़ान की तरह था जो अपनी राह में मौजूद हर मौज को अपनी आगोश में ले लेती है , वह ऐसा फातेह था जिसकी तलवार की आवाज़ कभी तुर्किस्तान से आती तो कभी हिंदुस्तान से आती , उसके कभी न् थकने वाले घोड़े कभी सिंध का पानी पी रहे होते तो कुछ ही लम्हो बाद गांगा की मौजों से अटखेलियां करते ।
वह उन मुसाफिरों में से था जिसने अपनी मंजिल तै नही की थी , और हर मंजिल से आगे गुजर जाता रहा.....
उसे फ़तेह का नशा था , जीतना उसकी आदत थी , वैसे तो वह इसी आदत की वजह से अपने परचम को खानाबदोश की तरह लिए फिरता रहा और जीतता गया , पर अल्लाह रब्बुल इज्जत ने उसे एक अज़ीम काम के लिए चुना था .. और अल्लाह अपना काम ले कर रहता है।
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................ भारत का पुराना इतिहास खगालने पर यहाँ का यहाँ का सामाजिक ताना बाना पता लगता है ,
वेस्ट एशिया से एक फ़तेह कौम का भारत पर वर्चस्व हुआ , तो उन्होंने अपनी रिहायश के लिए , हरे भरे मैदान चुने और हारे हुए मूल निवासियों को जंगल दर्रों और खुश्क बंजर ज़मीनों पर बसने के लिए विवश किया गया ,
चूँकि मूल भारतियों की तुलना में आर्य कम थे इसलिए उन्होंने सोशल इंजीनियरींग का ज़बरदस्त कमाल् दिखाते हुए , मूल भारतियों को काम के हिसाब से वर्गों में और जातियों में बाँट दिया , और इस व्यवस्था को धर्म बता कर हमेशा के लिए इंसानो को गुलामी की न् दिखने वाली जंजीरों में जकड़ लिया ।
ब्राह्मणों ( आर्य) के देवता की नज़र में , मूल भारतीय एक शूद्र , अछूत , और पिछले जन्म का पाप भोगने वाले लोगों का समूह बन गया ,
ब्राह्मणों के धर्म रूपी व्यवस्था की हिफाज़त के लिए एक समूह को क्षत्रिय कहा गया , ,
वह क्षत्रिय, ब्राह्मणों के आदेश को देवता का हुक्म मानते और इस तरह सदियों सदियों से लेकर आज तक वह ब्राह्मणवादी व्यवस्था से शूद्र बाहर नही निकल सके ,
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महमूद गजनवी को राजा नन्दपाल की मौत की खबर मिल चुकी , अब ग़ज़नवी की फौज नन्दना के किले को फ़तेह करने के लिए बेताब थी , इधर तिर्लोचन पाल को राज़ा घोसित करके गद्दी सौंप दी गयी , त्रिलोचन पाल को जब ग़ज़नवी के फौजों की पेश कदमी की खबर मिली तो उसने किले की हिफाज़त अपने बेटे भीम पाल को सौंप दी
भीम पाल की फ़ौज गज़नबी के आगे एक दिन भी न ठहर सकी ,
उधर कश्मीर में तिरलोचन ने झेलम के शुमाल में एक फ़ौज को मुनज्जम किया जो एक सिकश्त खोरदा लश्कर साबित हुई।
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रणवीर एक राजपूत सरदार का बेटा था जो भीम सिंह से साथ नन्दना के किले पर अपनी टुकड़ी की क़यादत कर रहा था , रणवीर बहुत बहादुरी से लड़ा और यहाँ तक कि उसके जौहर देख कर गज़नबी मुतास्सिर हुए बिना न् रह सका , वह तब तक अकेला ग़ज़नवी के लश्कर को रोके रहा जब तक उसके पैरों में खड़े रहने की ताकत थी , उसके बाद ज़मीन पर गिर कर बेहोश हो गया, आँखे खोली तो गज़नबी के तबीब उसकी मरहम पट्टी कर रहे थे , रणवीर ने गज़नबी के मुताल्लिक बड़ा डरावनी और वहशत की कहानियां सुनी थीं , लेकिन यह जो हुस्ने सुलूक उसके साथ हो रहा था , उसने कभी किसी हिन्दू राज़ा को युद्ध बंदियों के साथ करते नही देखा । उसे लगा कि शायद धर्म परिवर्तन करने के लिए बोला जायेगा इर तब तक अच्छा सुलूक होगा , मना करने पर यह मुस्लिम फ़ौज उसे अज़ीयत देगी ,
उसने इस खदशे का इज़हार महमूद से कर ही दिया , कि अगर तुम क़त्ल करना चाहते हो तो शौक से करो पर मै धर्म नही बदलूंगा , उसके जवाब में ग़ज़नवी के होंठों पर बस एक शांत मुस्कराहट थी , गज़नबी चला गया,
रणवीर के जखम तेज़ी से भर रहे थे , वह नन्दना के किले का कैदी था पर न् उसे बेड़ियां पहनाई गयी और न् ही किसी कोठरी में बंद किया गया।
कुछ वक़्त गुजरने के साथ ही कैदियों की एक टुकड़ी को रिहा किया गया जिसमें रणबीर भी था , रिहाई की शर्त बस एक हदफ़ था कि वह अब कभी गज़नबी के मद्दे मुकाबिल नही आएंगे,
यह तिर्लोचन पाल के सैनिकों के लिए चमत्कार या हैरान कुन बात थी , उन्हें यक़ीन करना मुश्किल था ,
खैर रणवीर जब अपने घर पहुंचा तो उसे उम्मीद थी कि उसकी इकलौती बहन सरला देवी उसका इस्तकबाल करेगी और भाई की आमद पर फुले नही समाएगी ,
पर घर पर दस्तक देने बाद भी जब दरवाज़ा नही खुला तो उसे अहसास हुआ कि दरवाज़ा बाहर से बंद है , उसे लगा बहन यहीं पड़ोस में होगी , वह पड़ोस के चाचा के घर गया तो उसने जो सुना उसे सुन कर वह वहशीपन की हद तक गमो गुस्से से भर गया ,
उसकी बहन को मंदिर के महाजन के साथ कुछ फ़ौजी उठा कर ले गए , चाचा बड़े फ़ख्र से बता रहा था कि , रणवीर खुश किस्मत हो जो तुम्हारी बहन को महादेव की सेवा करने का मौका मिला है ,
लेकिन यह लफ्ज़ रणवीर को मुतास्सिर न् करसके , रणबीर चिल्लाया कि किसके आदेश से उठाया ,
चाचा बोले , पुरोहित बता रहा था कि सोमनाथ से आदेश आया है कि हर गाँव से तीन लड़कियां देव दासी के तौर पर सेवा करने जाएंगी , हमारे गाँव से भी सरला के साथ दो और लड़कियां ले जाई गयी हैं।
रणवीर खुद को असहाय महसूस कर रहा था , कहीं से उम्मीद नज़र नही आ रही थी , ज़हनी कैफियत यह थी कि गमो गुस्से से पागल हो गया था , वह सोच रहा कि वह एक ऐसे राज़ा और उसका राज़ बचाने के लिए जान हथेली पर लिए फिर रहा था , और जब वह जंग में था तो उसी राज़ा के सिपाही उसकी बहन को प्रोहित के आदेश पर उठा ले गए , उसने सोचा कि राज़ा से फ़रयाद करेगा , अपनी वफादारी का हवाला देगा , नही तो एहतिजाज करेगा,,, चाचा से उसने अपने जज़्बात का इजहार किया , चाचा ने उसे समझाया कि अगर ऐसा किया तो धर्म विरोधी समझे जाओगे और इसका अंजाम मौत है।
उसे एक ही सूरत नज़र आ रही थी कि वह अपने दुश्मन ग़ज़नवी से अपनी बहन की इज़्ज़त की गुहार लगायेगा।
लेकिन फिर सोचने लगता कि ग़ज़नवी क्यू उसके लिए जंग करेगा , उसे उसकी बहन की इज़्ज़त से क्या उज्र ,वह एक विदेशी है और उसका धर्म भी अलग है ,, लेकिन रणवीर की अंतरात्मा से आवाज़ आती कि उसने तुझे अमान दी थी , वह आबरू की हिफाज़त करेगा , और बहन के लिए न् सही पर एक औरत की अस्मिता पर सब कुछ दाव पर लगा देगा , क्यू कि वह एक मुसलमान है।
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रणवीर घोड़े पर सवार हो उल्टा सरपट दौड़ गया...........
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इधर सोमनाथ में सालाना इज़लास चल रहा था , इस सालाना इज़लास में सारे राज़ा और अधिकारी गुजरात के सोमनाथ में जमा होते , जो लड़कियां देवदासी के तौर पर लायी जातीं उनकी पहले से डांस की ट्रेनिंग दी जाती , जो लड़की पहले न. पर आती उस पर सोम नाथ के बड़े भगवान का हक़ माना जाता , बाकी लड़कियां छोटे बड़े साधुओं की खिदमत करने को रहतीं और अपनी बारी का इंतज़ार करतीं , उन सभी लड़कियों को कहा जाता कि साज़ श्रृंगार और नाज़ो अदा सीखें , जिससे भगवान को रिझा सकें ।
एक दिन ऐसा आता कि जितने वाली लड़की को कहा जाता कि आज उसे भगवान् ने भोग विलास के लिए बुलाया है , उसके बाद वह लड़की कभी नज़र नही आती , ऐसा माना जाता कि महादेव उस लड़की को अपने साथ ले गए और अब वह उनकी पटरानी बन चुकी है।
यह बातें रणवीर को पता थीं , उसकी सोच सोच कर जिस्मानी ताक़त भी सल हो गयी थी , ताहम उसका घोडा अपनी रफ़्तार से दौड़ रहा था,
ग़ज़नवी से मिल कर उसने अपनी रूदाद बताई ,
एक गैरत मन्द कौम के बेटे को किसी औरत की आबरू से बड़ी और क्या चीज़ हो सकती थी , वह हिंदुत्व या सनातन को नही जानता था , उसे पता भी नही था कि यह कोई धर्म भी , और जब परिचय ही नही था तो द्वेष का तो सवाल ही नही था , हाँ उसके लिए बात सिर्फ इतनी थी कि एक बहादुर सिपाही की मज़लूम तनहा बहन को कुछ पाखंडी उठा ले गए हैं और सब उसका भाई उससे मदद की गुहार लगा रहा है , वह गैरत मन्द सालार अपने दिल ही दिल में अहद करलिया कि वह एक भाई की बहन को आज़ाद कराने के लिए अपने आखरी सिपाही तक जंग करेगा ,
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ग़ज़नवी जिसके घोड़ो को हर वक़्त जीन पहने रहने की आदत हो चुकी थी , और हर वक़्त दौड़ लगाने के लिए आतुर रहते , वह जानते थे कि सालार की बेशतर जिंदगी आलीशान खेमो और महलों में नही बल्कि घोड़े की पीठ पर गुजरी है ,
गज़नबी फ़ौज को सोमनाथ की तरह कूच का हुक्म दिया ।
यह अफवाह थी कि सोमनाथ की तरफ देखने वाला जल कर भस्म हो जाता है , और गज़नबी की मौत अब निश्चित है , वह मंदिर क्या शहर में घुसने से पहले ही दिव्य शक्ति से तबाह हो जायेगा ,
अफवाह ही पाखंड का आधार होती है ,
गज़नबी अब मंदिर परिसर में खड़ा था , बड़े छोटे सब प्रोहित बंधे पड़े थे , राजाओं और उनकी फ़ौज की लाशें पुरे शहर में फैली पड़ीं थीं जिन्हें चील कवे खा रहे थे , और सोमनाथ का बुत टूट कर कुछ पत्थर नुमा टुकड़ों में तब्दील हो गया था ,, दरअसल सबसे बड़ी मौत तो पाखंड रूपी डर की हुई थी,
कमरों की तलाशी ली जा रही थी जिनमे हज़ारो हज़ार जवान और नौ उम्र लडकिया बुरी हालत में बंदी पायी गईं , वह लड़कियां जो भगवान के पास चली जाती और कभी नही आती , पूछने पर पता चला कि जब बड़े प्रोहित के शोषण से गर्भवती हो जातीं तो यह ढोंग करके कत्ल करदी जाती , इस बात को कभी नही खोलतीं क्यू कि धर्म का आडंबर इतना बड़ा था कि यह इलज़ाम लगाने पर हर कोई उन लड़कियों को ही पापी समझता ।
महमूद ने जब अपनी आँखों से यह देखा तो हैरान परेशान , और बे यकीनी हालात देख कर तमतमा उठा , रणवीर जो कि अपनी बहन को पा कर बेहद खुश था , उससे गज़नबी ने पुछा कि क्या देवदासियां सिर्फ यहीं हैं , रणवीर ने बताया कि ऐसा हर प्रांत में एक मंदिर है।
उसके बाद गज़नबी जितना दौड़ सकता था दौड़ा , और ब्राह्मणवादी जुल्म , उनके बुत कदों को ढहाता चला गया , पुरे भारत में न् कोई उसकी रफ़्तार का सानी था , और न् कोई उसके हमले की ताब ला सकता था , सोमनाथ को तोड़ कर अब वह यहाँ के लोगों की नज़र में खुद एक आडंबर बन चूका था , दबे कुचले मज़लूम लोग उसे अवतार मान रहे थे , गज़नबी ने जब यह देखा तो तौहीद की दावत दी , वह जहाँ गया वहां प्रताड़ित समाज स्वेच्छा से मुसलमान हो उसके साथ होता गया , उसकी फ़ौज में आधे के लगभग हिन्दू धर्म के लोग थे जो उसका समर्थन कर रहे थे ।
उसकी तलवार ने आडंबर , ज़ुल्म और पाखंड को फ़तेह किया
तो
उसके किरदार ने दिलों को फ़तेह किया ।
वह् अपने जीते हुए इलाके का इक़तिदार मज़लूम कौम के प्रतिनिधि को देता गया और खुद कहीं नही ठहरा ।
वह एक लुटेरा नही , इज़्ज़ातो का अमीन था।
वह जो ........ महमूद गज़नबी था।
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शनिवार, 31 अगस्त 2019
महमूद गजनवी
शनिवार, 8 जून 2019
देवदासियां
देवदासियों के नाम पर ब्राह्मणों की करतूत को पढ़िए….. कितना घिनोना काम करते हैं यह लोग नाबालिग बच्चियों के साथ…😢😢
देवदासियों की चीखों से गूंजते मंदिरों के गुम्बद……😢😢😢
अगर यह सच्चाई आपका दिल छू जाये तो एक शेयर करके ब्राह्मणों की करतूत की पोल जरूर खोल देना।
यूँ तो मुझे आप सब देवदासी के नाम से पुकारते हैं जिसका अर्थ “देवता की दासी”
यानी ….. ईश्वर की सेवा करने वाली पत्नी होता है..!!
पर यह सच से कोसों दूर है। कुछ ऐसे जैसे दिन में तपते सूरज के नीचे बिना किसी आश्रय के बैठ कर आँखों को भींच(जोर से बंद करना) कर ये मानना कि “मैं चाँदनी की शीतलता महसूस कर रही हूँ“
इस झूठ को जीते हुए मुझे 30 साल से अधिक हो गए हैं पर मेरे जीवन की वह आखरी बदसूरत शाम मैं आज भी नहीं भूली हूँ।
“आई!!! कोई आया है बाबा से मिलने”
“अरे देवा!!!” माँ आने वाले के चरणों में लेट गई थी “आपने क्यूँ कष्ट किया??? संदेसा भिजवा देते, हम तुरंत हाजिर हो जाते”
तब तक बाबा भी आ गए थे। बाबा भी वही कह और कर रहे थेंं, जो माँ ने किया था।
आने वाले ने एक नज़र मुझे देखा और बोले ”बहुत भाग्यशाली हो। बड़े महंत ने तुम्हारी दूसरी बेटी को भी ईश्वर की पत्नी बनाने का सौभाग्य तुम्हें दिया है” यह सुन कर मैं भी प्रसन्न हो गई। इसका मतलब दीदी से मिलूँगी ! माँ और बाबा ने सारी तैयारी रात को ही कर ली जाने की।
अगली दोपहर हम मंदिर के बड़े से प्रांगण में थे। भव्य मंदिर और ऊपरी हिस्सा सोने से मढ़ा था।
माँ बाबा मुझे झूठ बोलकर छोड़ चुपके से चले गए थे। गर्भ गृह से एक विशालकाय शरीर और तोंद वाला निकला तो सभी लोग सिर झुका कर घुटने के बल थे। मुझे भी वैसा करने को कहा गया।
रात एक बूढ़ी के साथ रही मैं, अगली सुबह मुझे नहला कर दुल्हन जैसे कपड़े मिले पहनने को, जिसे उसी बूढ़ी अम्मा ने पहनाया जो रात मेरे पास थी।
अब मुझे अच्छा लग रहा था । सब मुझे ही देख रहे थे। मेरी खूबसूरती की बलाएँ ले रही थेेे। मेरा विवाह कर दिया गया भगवान की मूर्ति के साथ, जिसे दुनिया पूजती है, अब मै उसकी पत्नी!! सोच कर प्रसन्नता की लहर दौड़ जाती थी पूरे शरीर में।
मुझे रात दस बजे एक साफ सुथरे कमरे में। जहाँ पलंग पर सुगंधित खूल अपनी खुशबू बिखेर रहे थे। बंद कर दिया गया।
”आज ईश्वर खुद तेरी वरण करेंगे, ध्यान रखना!!! ईश्वर नाराज़ न होने पाएँ !!!” वही बूढ़ी अम्मा ने मेरे कमरे में झाँकते हुए कहा पर अंदर नहीं आई।
एक डेढ़ घंटे बाद दरवाजा बंद होने की आहट से मेरे नींद खुली। मैं तुरंत उठ कर बैठ गई। सामने वही बड़े शरीर वाला था।
लाल आँखें और सिर्फ एक धोती पहने और भी डरा रहा था मुझे।
“ये क्यूँ आया है???” मन ने सवाल किया!!!!!!
“मुझे तो भगवान के साथ सोने के लिए कहा गया था”
सवाल बहुत थे पर जवाब एक भी नहीं था
वो सीधा मेरे पास आ कर बैठ गया, और मैं खुद में सिकुड़ गई।
मेरे चेहरे को उठा कर बोला “मैं प्रधान महंत हूँ इस मंदिर का, ऊपर आसमान का भगवान ये है (कोने में रखी विष्णु की मूर्ति की तरफ इशारा करता हुआ बोला) और इस दुनिया का मैं”
यह कह कर मुझे पलंग से खड़ी कर दिया और मेरी साड़ी खोल दी। मेरी नन्हीं मुट्ठियों में इतनी पकड़ नहीं थी कि मैं उसे मेरे कपड़े उतारने, नहीं.. नोंचने से रोक पाती। एक ही मिनट में मैं पूरी तरह नग्न थी और खुद को महंत कहने वाला भी।
उसनें खींच कर मुझे पलंग पर पटक दिया मेरे हाथों को उसके हाथ ने दबा रखा थााा। उसके भारी शरीर के नीचे मैं दब गई थी।
मेरे मुँह के बहुत पास आ कर बोला।
“आज मैं तेरा और ईश्वर का मिलन कराऊँगा, ईश्वर के साथ आज तेरी सुहागरात है, और ये मिलन मेरे जरिए होगा, इसलिए चुपचाप मिलन होने देना, व्यवधान मत डालना”
मैंने बिना समझे सिर हिला दिया। महंत मुस्कुराया और फिर मेरी भयंकर चीख निकली। मैं दर्द से झटपटा रही थी। साँस नहीं लौटी बहुत देर तक। दुबारा चीख निकली तो महंत ने मेरा मुँह दबा दिया। बाहर ढोल मंजीरों की आवाजें आने लगीं। मैं एक हाथ जो छोड़ दिया था मुँह दबाने पर, मैं उस हाथ से पूरी ताकत लगा कर उस पहाड़ को अपने ऊपर से धकेल रही थी, पर सौ से भी ऊपर का भार क्या 11 साल की लड़की के एक हाथ से हटने वाला था ? मैं दर्द से बिलबिला रही थी पर वह रुकने का नाम नहीं ले रहा था। पूरी शिद्दत से भगवान को मुझसे मिला रहा था, पर उस समय और कुछ नहीं याद था सिर्फ दर्द, दर्द और बहुत दर्द था। मैंने नाखून से नोंचना शुरू कर दिया था। पर उसकी खाल पर कोई असर नहीं हो रहा था। मुझे अपने जाँघों के नीचे पहले गर्म गर्म महसूस हुआ और फिर ठंडा ठंडा , वो मेरी योनि के फटने की वजह से निकला खून का फौंव्वारा था।
पीड़ा जब असहनीय हो गई, मुझे मूर्छा आने लगी और कुछ देर बाद मैं पूरी तरह बेहोश हो गई।
मुझे नहीं पता वो कब तक मेरे शरीर के ऊपर रहा, कब तक ईश्वर से मेरे शरीर का मिलन कराता रहा।
चेहरे पर पानी के छींटों के साथ मेरी बेहोशी टूटी। मेरे ऊपर एक चादर थी और वही बूढ़ी अम्मा मेरे घाव को गर्म पानी से संभाल कर धो रही थीं।
”तुुुुने कल महंत को नाखूनों से नोंच लिया ? समझाया था न तुझे, फिर???
दुःख और पीड़ा की वजह से शब्द गले में ही अटक गए थे। सिर्फ इतना ही कह पाई।
“अम्मा मुझे बहुत लगा था”
“दो दिन से ज्यादा नहीं बचा पाऊँगी तुझे” अम्मा बोली। “महंत को नाराज नहीं कर सकते, न तुम और न मैं” कह कर अम्मा मेरे सिर पर हाथ फेर कर चली गई।
आज भी उस रात को सोच कर शरीर के रोंये खड़े हो जाते हैं दर्द और डर से।
मेरी आँखें इस बीच मेरी बहन को ढूँढती रहीं..पर वो नहीं मिली…किसी को उसका नाम भी नहीं पता था क्योंकि विवाह के समय एक नया नाम दिया जाता है और उसी नाम से सब बुलाते है फिर,
इसके बाद मैं जब भी किसी नई लड़की को देखती मंदिर प्रांगण में … तो मैं मेरी उस रात के दर्द से सिहर जाती थी….डर और दहशत की वजह से सो नहीं पाती थी।
मैंने इसी बीच नृत्य सीखा….और भगवान की मूर्ति के समक्ष खूब झूम झूम कर नृत्य करती….साल में एक बार माँ बाबा मिलने आते….क्या कहती उनसे…वे स्वयं भी मुझे अब भगवान की पत्नी के रूप में देखते थे।
मैंने भी अपनी नियति से समझौता कर लिया था।
हमारे गुजारे के लिए मंदिर में आए दान में हिस्सा नहीं लगता था हमारा। नृत्य करके ही कुछ रुपए पा जाती हैं मेरी जैसी तमाम देवदासियाँ…जिसमें हमें अपने लिए और अपने छोडे हुए परिवार का भी भरण पोषण करना पड़ता है।
मेरे बाद कई लड़कियों आईं….एक के माँ बाप अच्छा कमा लेते थे पर भाई अक्सर बीमार रहता था इसलिए पुजारी के कहने पर लड़की को मंदिर को दान कर दिया गया ताकि बहन भगवान के सीधे संपर्क में रहे और उसका भाई स्वस्थ हो जाए….
एक और लड़की का चेहरा नहीं भूलता….उसकी बड़ी और डरी हुई आँखों का ख़ौफ मुझे आज भी दिखाई दे जाता है मैं जब जब अतीत के पन्ने पलटती हूँ।
जिस शाम उसका और महंत के जरिए भगवान से मिलन होना था …बस तभी पहली और आखिरी बार देखा था….फिर कभी नज़र नहीं आई वो।बहुत दिनों बाद मुझे उसी बूढ़ी अम्मा ने बताया था(किसी को न बताने की शर्त पर) कि उस रात महंत को उसका ईश्वर से मिलन कराने के बाद नींद आ गई थी तो वह उसके ऊपर ही सो गए थे….और दम घुट जाने से वह मर गई थी।
सुन कर दो दिन एक निवाला नहीं उतरा हलक से….लगा शायद मुझे भी मर जाना चाहिए था उस दिन तो रोज रोज मरना नहीं पड़ता।
हमें पढ़ने की इजाजत नहीं है….हमें सिर्फ अच्छे से अच्छा नृत्य करना होता था और रात में महंत के बाद बाकी पंडों और पुजारियों की हवस को भगवान के नाम पर शांत करना होता था।
हमें समय समय पर गर्भ निरोध की गोलियाँ दी जाती है खाने के लिए ताकि हमारा खूबसूरत शरीर बदसूरत ना हो जाए। फिर भी, कभी कभी किसी को बच्चा रुक ही जाता था ऐसे में यदि वह कम उम्र की होती थी तो उसका वही मंदिर के पीछे बने कमरे में जबरन गर्भपात करा दिया जाता था। यह गर्भपात किसी दक्ष डॉक्टर के हाथों नहीं बल्कि किसी आई (दाई) के हाथ कराया जाता था…. किसी किसी के बारे में पता भी नहीं चल पाता था कभी न 3 महीने से ऊपर का समय हो जाने पर गर्भपात ना हो पाने की दशा में बच्चे को जन्म देने की इजाजत मिल जाती थी ……बच्चा यदि लड़की होती थी तो इस बात की खुशी मनाई जाती थी मंदिर में शायद उन्हें आने वाली देवदासी दिखाई देती थी उस मासूम में।
मेरी जैसी एक नहीं हज़ारों हैं। जब पुरी के प्रभू जगन्नाथ का रथ निकलता है तो मुझ जैसीे हज़ारों की संख्या में देवदासियाँ होती हैं जो ईश्वर के एक मंदिर से निकलकर दूसरे मंदिर जाने तक बिना रुके नृत्य करती हैं। हम सभी के दर्द एक हैं। सभी के घाव एक जैसे हैं, पर मूक और बघिर जैसे एक दूसरे को देखती हैं बस…..!
मैं उनकी आँखों का दर्द सुन लेती हूँ और वे मेरी आँखों से छलका दर्द बिन कहे समझ लेती हैं।
यहाँ से निकलने के बाद हमारे पास न तो परिवार होता है…न ही कोई बड़ी धनराशि…और न कोई ठौर-ठिकाना जहाँ दो वक्त की रोटी और सिर छुपाने की जगह मिल जाए….नतीजा…हम एक दलदल से निकलकर दूसरे दलदल में आ जाती हैं…वहाँ हमारा उपभोग ईश्वर के नाम पर महंत और पंडे करते थे….और यहाँ हर तरह का व्यक्ति हमारा कस्टमर होता है….न वहाँ सम्मान जैसा कुछ था…न यहाँ।
मुझ जैसी वहाँ ईश्वर के नाम की वेश्याएँ थीं…यहाँ सच की वेश्याएँ हैं….यहाँ पर 100 मे से 80 किसी समय देवदासियाँ ही थीं।
आज तमाम तरह के एनजीओ हैं पर किसी भी एन जी ओ की वजह से कोई भी लड़की इस नर्क से नहीं निकल पाई।
हजारों साल पहले धर्म के नाम पर चलाई गई ये रीति लड़कियों के शारीरिक शोषण का एक बहाना मात्र था जिसे भगवान और धर्म के नाम पर मुझ जैसियों को जबरन पहना दिया गया। एक ऐसी बेड़ी जिसको पहनाने के बाद कभी न खोली जा सकती है और न तोड़ी जा सकती है।
कहने को देवदासी प्रथा बंद कर दी गई है और यह अब कानून के खिलाफ है…पर ये प्रथा ठीक उसी प्रकार बंद है जैसे दहेज प्रथा कानूनन जुर्म है पर सब देते हैं…सब लेते हैं।
ये प्रथा वेश्यावृति को आगे बढ़ाने का पहला चरण है…दूसरे चरण वेश्यावृति में और कोई विकल्प न होने की वजह से मेरी जैसी खुद ही चुन लेती हैं।
यहाँ जवानी को स्वाहा करने के बाद बुढ़ापा बेहद कष्टमय गुजरता है देवदासियों का….दो वक्त का भोजन तक नसीब नहीं होता….जिस मंदिर में देव की ब्याहता कहलाती थीं उसी मंदिर की सीढ़ियों में भीख माँगने को मजबूर हैं….पेट की आग सिर्फ रोटी की भाषा समझती है….पर बुजुर्ग देवदासियाँ एड़ियाँ रगड़ कर मरने को लाचार हैं… कई बार भूख और बीमारी के चलते उन्हीं सीढ़ियों पर दम तोड़ देती हैं।
और हाँ….एक बात बतानी रह गई….वेश्याओं के बाज़ार में मुझे मेरी बड़ी बहन भी मिली….बहुत बीमार थी वो…पता चलने पर मैं लगभग भागती हुई गई थी उसकी खोली की तरफ…पर बहुत भीड़ थी उसके दरवाजे…” लक्ष्मी दीदी”.. कहते हुए मैं अंदर गई जो उसका निर्जीव अकड़ा हुआ शरीर पड़ा था
मर तो बहुत पहले ही गई थी वह भी बस साँसों ने आज साथ छोड़ा था।
छठीं सदी में शुरू यह प्रथा आज 21वीं सदी में कर्नाटक आंध्र प्रदेश तमिलनाडु महाराष्ट्र उड़ीसा में खूब फल-फूल रही है
अशम्मा जैसी 500 साहसी महिलाओं ने हैदराबाद के कोर्ट में इस बात के लिए रिट करी है कि ऐसे संबंधों से पैदा हुए बच्चों की शिक्षा का इंतजाम किया जाए और रहने के लिए हॉस्टल उपलब्ध कराया जाए अकेले महबूबनगर में ऐसे बच्चों की संख्या 5000 से 10000 के बीच है…. बच्चों का डीएनए टेस्ट करा कर पिता को खोजा जाए और उसकी संपत्ति में इन बच्चों को हिस्सा दिया जाए…….. पर जब तक कोर्ट का फैसला आएगा तब तक न जाने कितनी अशम्मा और न जाने कितनी मेरी जैसी इस दलदल में फँसी रहेंगी और घुट कर जीने के लिए मजबूर होती रहेंगी!!!!
(लेखिका पूनम लाल)
Source:- Madhyamarg.com