'सदृश्य' शब्द का प्रयोग अक्सर लोग कर देते हैं, जबकि सही शब्द 'सदृश' है। 'सदृश्य' का प्रयोग अनुचित है, क्योंकि यह अर्थहीन है; लेकिन एक दूसरा शब्द 'सादृश्य'है, जिसका अर्थ समानता, बराबरी, तुल्यता या तुलना है। 'सदृश' का अर्थ समान या बराबर है।महत्व शब्द अशुद्ध है, लेकिन इसपर ध्यान नहीं दिया जाता। महत् में त्व मिलने से महत्त्व बनता है, न कि महत्व। यहाँ त का द्वित्व नहीं रहे, तो शब्द अशुद्ध माना जाएगा। सौन्दर्य या सुन्दरता ही सही हैं, सौन्दर्यता या सौन्दर्यत्व नहीं। मौलिकता की तर्ज पर सौन्दर्यता जैसे शब्द बनाना ठीक नहीं है।इस भाग में हम कुछ और प्रत्ययों पर विचार करेंगे। साथही प्रत्ययों के ग़लत प्रयोग के कुछ उदाहरणों पर भी बात करेंगे।विद् का अर्थ जानना होता है। यह प्रत्यय की तरह कई शब्द बनाता है, जैसे शिक्षाविद्, विज्ञानविद्, पुरातत्त्वविद्,भौतिकीविद्, प्राच्यविद् आदि। यह ध्यान रखना चाहिए कि शब्द के अन्तिम वर्ण के आधा होनेपर उसके बहुवचन में आधा वर्ण पूरे वर्ण में बदल जाएगा, जैसे शिक्षाविद् से शिक्षाविदों बनेगा और इसमें द् (हलयुक्त या आधा) नहीं होगा।इज़्म, आइट, अर, इक जैसे कई प्रत्यय अंग्रेज़ी के हैं और नक्सलाइट, सोशलिज़्म, पेंटर, मेकेनिक आदि बनाते हैं।इयत अरबी का प्रत्यय है और काबिलियत, इन्सानियत, हैवानियत आदि बनाता है। बीन फ़ारसी का प्रत्यय है और खुर्दबीन, दूरबीन, तमाशबीन जैसे शब्द बनाता है। गिरी से दादागिरी, चमचागिरी, नेतागिरी, गुंडागिरी जैसे शब्द बनते हैं। यह भी फ़ारसी का प्रत्यय है। आलु से शंकालु, दयालु, कृपालु आदि बनते हैं, तो आलू से झगड़ालू जैसे शब्द।वाँ और वीं से पाँचवाँ, सातवाँ, नौवाँ, दसवीं, बारहवीं आदि बनते हैं। शः से शतशः, क्रमशः, कोटिशः आदि बनते हैं। तया से पूर्णतया, सामान्यतया, विशेषतया, साधारणतया आदि बनते हैं। तः से अंशतः, पूर्णतः, सामान्यतः, स्वतः, मूलतः आदि बनते हैं।द (देने वाला), ज (उत्पन्न), ज्ञ (जानने वाला), घ्न (को मारने वाला) आदि से जलद, सुखद, दुखद, जलज, अंडज, अग्रज, सर्वज्ञ, नीतिज्ञ, शत्रुघ्न, कृतघ्न आदि बनते हैं। दा और जा क्रमशः द और ज के स्त्रीलिंग हैं और ज्ञानदा, शैलजा, गिरिजा, अग्रजा आदि बनाते हैं। यह दा सर्वदा, सदा, यदा, कदा आदि के दा (समय का बोध कराने वाला) से अलगहै।अध्यक्ष, अधीन, अतीत, आशय, अंतर, अर्थ, उन्मुख, ग्रस्त, चर, दायक, प्रिय, मय, धार, जीवी, जन्य, घात, कालीन, वीर, शाली, उत्तर आदि कुछ प्रत्यय की तरह प्रयुक्त शब्द याशब्दखंड हैं। इनसे सेनाध्यक्ष, कोषाध्यक्ष, पराधीन, विचाराधीन, कालातीत, आशातीत, जलाशय, महाशय, गर्भाशय, देशांतर, कालांतर, विषयांतर, परमार्थ, प्रकाशानार्थ, ह्रासोन्मुख, मरणोन्मुख, रोगग्रस्त, नभचर, जलचर, उभयचर, फलदायक, लाभदायक, लोकप्रिय, रहस्यमय, सूत्रधार,मँझधार, परजीवी, बुद्धिजीवी, शोकजन्य, पांचजन्य, आघात,प्रतिघात, संघात, अल्पकालीन, दीर्घकालीन, समकालीन, मौर्यकालीन, दानवीर, कर्मवीर, वैभवशाली, शक्तिशाली, लोकोत्तर, पूर्वोत्तर आदि बने हैं।इतर से बने मानवेतर को मानवेत्तर नहीं समझना चाहिए। विवाहेतर, साहित्येतर आदि शब्द 'इतर' से बने हैं, जो 'से परे', 'भिन्न' या 'दूसरा' का अर्थ देता है। यहाँ उत्तर की तरह त का द्वित्व नहीं है।अब हम कुछ शब्दों के अशुद्ध (लेकिन आम तौर पर प्रचलित) और उनके शुद्ध रूपों को (कोष्ठक में) यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं - आधीन (अधीन), एकत्रित (एकत्र), गोपित (गुप्त), त्रिवार्षिक (त्रैवार्षिक), धैर्यता (धैर्य, धीरता), अभ्यन्तरिक (आभ्यन्तरिक), तत्व (तत्त्व), द्विवार्षिक (द्वैवार्षिक), प्रफुल्लित (प्रफुल्ल), प्रतिनिधिक (प्रातिनिधिक), बुद्धिमानता (बुद्धिमत्ता), लब्धप्रतिष्ठित (लब्धप्रतिष्ठ),वैमनस्यता (वैमनस्य), सम्पर्कित (सम्पृक्त), निरपराधी (निरपराध), पौरुषत्व (पौरुष), पैत्रिक (पैतृक), व्यवहारित (व्यवहृत), वास्तविक में (वास्तव में, वस्तुतः), षष्ठम (षष्ठ), अनाथिनी (अनाथा), कोमलांगिनी (कोमलांगी), सुलोचनी (सुलोचना), श्वेतांगिनी (श्वेतांगी), गोपिनी (गोपी), विहंगिनी (विहंगी), अज्ञानता (अज्ञान), बाहुल्यता (बाहुल्य, बहुलता), पांडित्यता (पांडित्य), निरोग्य (नीरोग), आवश्यकीय (आवश्यक), अक्षुण्य (अक्षुण्ण), निर्दोषी (निर्दोष), शहरीय (शहरी), गोप्यनीय या गोप्यपूर्ण (गोप्य, गोपनीय), निराशपूर्ण (निराशापूर्ण), स्वस्थ्य(स्वस्थ), निर्लोभी (निर्लोभ), सकुशलपूर्वक (कुशलतापूर्वक, सकुशल), सानन्दपूर्वक (सानन्द, आनन्दपूर्वक), कवित्री या कवियत्री (कवयित्री), प्रदर्शिनी (प्रदर्शनी), भिखारिणी (भिखारिन), सिंहिनी (सिंहनी), अभिशापित (अभिशप्त), अभीष्टित (अभीष्ट), सलज्जित (सलज्ज, लज्जित), पड़ोसन (पड़ोसिन), पिशाचिनी (पिशाची), ग्रामीणवासी (ग्रामीण, ग्रामवासी), सुबोधपूर्ण (सुबोध), सुनयनी (सुनयना), भुजंगिनी (भुजंगी), सम्राटिनी या साम्राज्ञी (सम्राज्ञी), जापानीय (जापानी), अमेरिकीय (अमेरिकी), सार्वभौमिक (सार्वभौम), अमानुषी (अमानुष), अचम्भित (चकित), आकर्षित (आकृष्ट), अनुवादित (अनूदित), क्रोधित(क्रुद्ध), गठित (गठा हुआ), व्यापित (व्याप्त), विश्वासित या विश्वसित (विश्वस्त), आश्वासित (आश्वस्त), संयमित (संयत), हतोत्साहित (हतोत्साह), निरुत्साहित (निरुत्साह), निर्दयी (निर्दय), लाचारी हालत (लाचार हालत), शक्तिशील (शक्तिशाली)...इनमें एकत्रित, आकर्षित, क्रोधित, संयमित, पिशाचिनी, त्रिवार्षिक, तत्व आदि ज़्यादा प्रचलित हैं। ये इतनीबार लिखे और पढ़े गए हैं कि हमें सहज और सही प्रतीत होते हैं। भविष्य में भी ये चलते ही रहेंगे, ऐसा लगता है। शब्दकोशों में ये सब मिल भी सकते हैं।इक प्रत्यय के सम्बन्ध में यह देखने को मिलता है कि जब यह नीति, मिति आदि के साथ लगता है, तब इन्हें नैतिक, मैतिक आदि में न बदलकर नीतिक, मितिक आदि में बदलता है। कूटनीतिक, ज्यामितिक, मनोमितिक, रणनीतिक, राजनीतिक (इसके लिए राजनैतिक शब्द भी स्वीकृत है, कहीं कहीं राजनीतिक को शुद्ध और राजनैतिक को अशुद्ध माना गया है) आदि इसके लिए देखे जा सकते हैं।प्रथम, पंचम, षष्ठम, सप्तम, अष्टम, नवम, दशम आदि में 'म्' नहीं होता। दश को दस ही लिखा जाता है। संस्कृत के शब्दों में दश लिखते हैं, जैसे दशम, एकादश, दशानन, दशमलव, दशांश आदि। दशहरा में श होता है, स नहीं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें