एक हादसा ऐसा हुआ, न मानोगे विश्वास है |
न कोई ऐ स्वप्न है ,पर हकीकत साफ है ||
दोस्तों सुन लो मुझे ,क्या सचमुच वो खास थी |
लिख रहा हू साफ वो , जो भी उसमे बात थी ||
जब अकेला हु मैं तो, बस तुम्हारा साथ हो
साथ हो इन होठो का ,और नशीली रात हो
होठ ऐसे थे कि जैसे ,दो पंखुडियो का मेल हो |
है थिरकते गाल जैसे ,सारे फूलो का मेल हो ||
उन काली नशीली आँखों कि ,क्या बात मैं करू दोस्तों |
काबू में करना सारी दुनिया ,उसके लिए तो बस खेल है ||
फिर करके इशारे नेत्रो से ,मन मेरा विचलित किया |
पाना है मुझको उसे ही ,मन में दृढ निश्चय किया ||
अकेला उसको देख कर, प्रस्ताव पेश मैंने किया |
मुस्कान उसकी मिलते ही ,जैसे मिल गया सारा जहाँ ||
फिर करती इशारे जब कही ,लगता है प्यासी अभी |
कहना था उसका रोज का ,आ जाओ यार घर कभी ||
कथनानुसार घुस गया ,मैं घर के उसके द्वार में |
गजरा लगा के लेटी थी, वो मेरे इंतजार में ||
झटके से पकड़ी उंगालियां ,उसकी उँगलियों में डाल कर |
कहना था मेरा यार , कि थोडा इंतजार कर ||
बदन जब मैंने चूमा ,तो नेत्र उसके झुक गए |
शर्म के मारे यारो , दोनों नेत्र मुंद गए ||
फिर बढती गई वो धड़कने ,जो पहले से ही तेज थी ||
चूमकर हुआ मगन , जो इन्द्रियां सुडोल थी ||
फिर झुकती गई वो ऐसे ,मुझपे जैसे झुकती है लता ||
परेशान होकर कह रही थी ,जुल्मी मुझको यूँ न सता ||
फिर कुछ समय के बाद ,होशो -हवास मेरे खो गए
ऐसे ही कुछ प्रयासों से ,दिन में सितारे दिख गए
स्वर्ण सा बदन था उसका , सौम्य सी सुगंध थी |
पसीने से तरबतर थे हम ,पर कामना अभी और थी ||
इतना सारा होने पर , अब जाके दिल को चैन है |
आभास हो गया मुझे ,ये दो जिस्मो का ही मेल है ||
उस दिन के बाद यारो उसका ,जीवन बर्बाद हो गया |
कैसे बताऊ यारो ,उसको एड्स रोग हो गया ||
BY --sukhram asharma