रविवार, 7 अक्टूबर 2012

एक अनूठा मिलन



          एक हादसा ऐसा हुआ, न मानोगे विश्वास है |
           न कोई ऐ स्वप्न है       ,पर हकीकत साफ है ||
 दोस्तों सुन लो मुझे ,क्या सचमुच वो खास थी |
लिख रहा हू साफ  वो ,  जो  भी  उसमे बात थी ||
            जब अकेला हु मैं तो, बस तुम्हारा साथ हो
            साथ हो इन होठो का ,और नशीली रात  हो
होठ ऐसे थे कि जैसे ,दो पंखुडियो का मेल हो |
है थिरकते गाल जैसे ,सारे   फूलो का मेल हो ||
            उन काली नशीली आँखों कि ,क्या बात मैं करू दोस्तों |
            काबू में करना सारी दुनिया ,उसके लिए तो बस खेल है ||
फिर करके इशारे नेत्रो से ,मन मेरा विचलित किया |
पाना है मुझको उसे ही ,मन में दृढ  निश्चय किया ||
            अकेला उसको देख   कर,   प्रस्ताव   पेश   मैंने किया |
            मुस्कान उसकी मिलते ही ,जैसे मिल गया सारा जहाँ ||
फिर करती इशारे जब कही ,लगता है प्यासी अभी |
कहना था उसका रोज का ,आ जाओ यार घर कभी ||
            कथनानुसार घुस गया ,मैं घर के उसके द्वार में |
            गजरा   लगा   के  लेटी  थी, वो   मेरे  इंतजार में ||
झटके से पकड़ी उंगालियां ,उसकी उँगलियों में डाल कर |
कहना      था    मेरा    यार  ,  कि   थोडा   इंतजार   कर ||
            बदन जब मैंने चूमा ,तो नेत्र उसके झुक गए |
            शर्म के मारे  यारो  , दोनों  नेत्र   मुंद       गए ||
फिर बढती गई वो धड़कने ,जो पहले से ही तेज थी ||
चूमकर   हुआ   मगन   ,  जो   इन्द्रियां  सुडोल थी ||
            फिर झुकती गई वो ऐसे ,मुझपे जैसे झुकती है लता ||
            परेशान होकर कह रही थी ,जुल्मी मुझको यूँ न सता ||
फिर कुछ समय के बाद ,होशो -हवास मेरे खो गए
ऐसे ही कुछ प्रयासों से ,दिन में सितारे दिख गए
              स्वर्ण  सा   बदन था  उसका ,  सौम्य सी सुगंध थी |
              पसीने से तरबतर  थे हम ,पर कामना अभी और थी ||
इतना सारा होने  पर , अब जाके दिल को चैन है |
 आभास हो गया मुझे ,ये दो जिस्मो का ही मेल है ||
               उस दिन के बाद यारो उसका ,जीवन बर्बाद हो गया |
               कैसे       बताऊ   यारो  ,उसको     एड्स रोग हो गया ||


                                                          BY --sukhram asharma

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