सरकार क्या होती है ,,ये प्रदेश के अल्पवेतन भोगी शिक्षक जान चुके है |पहले बिहार में पिटे ,फिर छत्तीसगढ़ में लाठियां खाई |इसके बाद जम्मूकश्मीर में ताकत के बल पर रोका गया |मध्यप्रदेश में आन्दोलन खड़ा होने से पहले ही एक कुटनीतिक चाल से उसे दबा दिया गया ,और शिक्षा महापंचायत के नाम पर फूट डाल दी गई |
तमाम दौर कि बाते भी अध्यापक नेताओं को संतुष्ट नही कर सकी थी |इसके बाद ही प्रदेश कि राजधानी भोपाल में 25 से 27 दिसंबर 2012 को , घेरा डालो ,डेरा डालो कि घोषणा हुई थी |जिसके अनिश्चितकालीन धरने में परवर्तित हो जाने कि पूरी संभावना थी |इसे भांप कर ही प्रदेश सरकार ने इसे स्थगित करने पर काम किया ,जिसमे वह सफल भी रहा ,और फूट पड़ गई अध्यापक संघो के बीच |
सरकार नही चाहती थी कि भोपाल एक बार फिर किसान आन्दोलन कि तरह किसी कब्जे कि गवाह बने ,चूकी सरकार को पता था कि उस समय अध्यापक संयुक्त मोर्च ने ये घोषणा कि थी ,इसमें अध्यापको के तीन संघो ने संयुक्त मोर्चा बनाया था ,सरकार भी अध्यापको का शिक्षा विभाग में संविलियन नही करती और अध्यापक मोर्चा इतने कम में मानता नही ,जिसके परिणाम स्वरूप भोपाल में छत्तीसगढ़ से भी ज्यादा भयावह आक्रामक आन्दोलन होने का अंदेशा था ,और राजधानी कि गलियों में अराजकता फ़ैल जाती ,जिससे सरकार का कल्याणकारी चेहरा जनता के सामने आ जाता |फिर न होते भैया ,न होते मामा |
अध्यापको के इस आन्दोलन से प्रेणना लेकर प्रदेश के अन्य संघठन भी ऐसे ही आक्रामक आन्दोलनों के गवाह बनते नजर आते |जिससे सरकार के चुनावी समय में गणित का उलटफेर हो सकता था ,,शिक्षक एक ऐसा तबका है जिसे गणित ,अर्थशाश्त्र भी आता है ,वह हर प्रकार के नफे -नुकसान से वाकिफ है ,इसलिए उसने सरकार के पास तक शिक्षा विभाग में संविलियन ,समान कार्य का समान वेतन का पूरा व्यौरा सरकार के पास लिखित भेज दिया था ,,जिसका खर्च सालाना 2100 करोड़ रूपये था |
किसी भी सरकार के लिए यह रकम ज्यादा नही है ,,प्रदेश में 2 से 10 हजार करोड़ कि दर्जनों परियोजनाए चलती है | इसका मतलब यह हुआ कि शिक्षको के संविलियन के लिए के परियोजना या वेतन पर खर्च होने वाली मात्र कि ही परियोजना से काम चल जाएगा ,इसके लिए किसी भी एक परियोजना को एक या दो वर्ष आगे खिसकाया जा सकता है पर सरकार ऐसा करने के लिए तैयार नही थी ,,जिससे अध्यापको का शिक्षा विभाग में संविलियन हो जाता |
इस कारण आज तक अध्यापको कि कोई भी बातचीत का कोई ठोस निराकरण नही हुआ |शिक्षा विभाग में संविलियन कर समान कार्य ,समान वेतन कि मांग को लेकर प्रदेश के आंदोलित 3 लाख से अधिक अध्यापक ,संविदा ,गुरूजी इस 15 साल कि नौकरी में बड़े-बड़े 15 आन्दोलन कर चुके है पर आज भी नतीजा सिफर ही रहा ,,आज सरकार कम से कम उतना दे कि जिससे अध्यापक अपने बीबी बच्चो को भरपेट खाना खिला सके पर इस वर्तमान बढती महंगाई में ऐसा संभव नही दिखता |
1995 में पांच रुपये मानदेय पर सरकार ने इन शिक्षाकर्मियो कि भारती कि थी लेकिन फिर 1998 में दिग्विजय सिंह ने निति बनाकर इन्हें नियमित तो कर दिया पर कोई आर्थिक लाभ नही पंहुचाया | इस कारण शिक्षाकर्मियो का दिग्विजय सरकार से टकराव चला ,इसका सीधा फायदा भाजपा को मिला और वह सरकार बनाने में कामयाब रही ,लेकिन 2003 तक दिग्विजय सरकार ने शिक्षाकर्मियो को नियमित कर चुकी थी |और वर्ग 1-5175 ,,,वर्ग 2-4025 ,वर्ग 3-2875 रुपये मिलाने लगे थे | इसके बाद भाजपा सरकार को कोई काम बाकि नही था मात्र उनका शिक्षा विभाग में संविलियन एवं समान कार्य समान वेतन देना था ,| जो वह अपने 9 वर्षो के शासनकाल में कर सकी ,,उसने केवल एक ही काम किया है वह केवल शिक्षाकर्मी नाम को बदल कर अध्यापक कर दिया ,पर वह शिक्षको को संतुष्ट करने में असक्षम रही |
मौजूदा शासन काल में उन्हें उतना भी नही मिला जितना कि बाबूलाल गौर सरकार ने अपने शासनकाल में 83 प्रतिशत डी.ए. मिला और शिवराज सरकार ने अपने सात साल के शासन के दौरान मात्र 142 प्रतिशत डी. ए. दिया ,जिसका सीधा सा मतलब ये निकलता है कि जितनी उपेक्षा शिक्षको कि शिवराज सरकार में हुई उतनी कभी अन्य सरकार में नही हुई | जिस कारण शिक्षको में लगातार आक्रोश बढता ही जा रहा है |
शिवराज सरकार भी लगातार शिक्षको को बरगला रही है कभी 7 जनवरी को घोषणा करती है कभी वह 10 जनवरी को घोषणा करती नजर आती है ,,, अब शिक्षक संघो में लगभग फूट पड़ ही चुकी है ,सभी शिक्षक संघ एक दुसरे कि टांग खीचते नजर आते है | लेकिन वाही अध्यापक संवर्ग संघ ने 13 जनवरी को विशाल आन्दोलन को तैयार कड़ी है |
पर क्या शिवराज सरकार अभी भी संतुष्ट कर पाएगी , सरकार अगर 13 जनवरी को कोई घोषणा करती है तो वह अध्यापको को अप्रेल 2013 से ही मिल पाएगा ,ये बात लगभग सभी शिक्षक घरो में पंहुच चुकी है ,,सबसे बड़ी सरकार कि सफलता ये रही कि सरकार ने इन संघठनो के बीच फूट डाल दी और इस बात को शिक्षक अभी तक नही समझ पाई है |
प्रदेश के अध्यापक शिक्षाकर्मी देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी अपनी पीड़ा सुना चुके है | उनके हस्तक्षेप के बाद ही राज्य सरकार ने राज्य कर्मचारियों के साथ-साथ ही शिक्षको का डी.ए. बढाने को तैयार हुई थी |
तमाम दौर कि बाते भी अध्यापक नेताओं को संतुष्ट नही कर सकी थी |इसके बाद ही प्रदेश कि राजधानी भोपाल में 25 से 27 दिसंबर 2012 को , घेरा डालो ,डेरा डालो कि घोषणा हुई थी |जिसके अनिश्चितकालीन धरने में परवर्तित हो जाने कि पूरी संभावना थी |इसे भांप कर ही प्रदेश सरकार ने इसे स्थगित करने पर काम किया ,जिसमे वह सफल भी रहा ,और फूट पड़ गई अध्यापक संघो के बीच |
सरकार नही चाहती थी कि भोपाल एक बार फिर किसान आन्दोलन कि तरह किसी कब्जे कि गवाह बने ,चूकी सरकार को पता था कि उस समय अध्यापक संयुक्त मोर्च ने ये घोषणा कि थी ,इसमें अध्यापको के तीन संघो ने संयुक्त मोर्चा बनाया था ,सरकार भी अध्यापको का शिक्षा विभाग में संविलियन नही करती और अध्यापक मोर्चा इतने कम में मानता नही ,जिसके परिणाम स्वरूप भोपाल में छत्तीसगढ़ से भी ज्यादा भयावह आक्रामक आन्दोलन होने का अंदेशा था ,और राजधानी कि गलियों में अराजकता फ़ैल जाती ,जिससे सरकार का कल्याणकारी चेहरा जनता के सामने आ जाता |फिर न होते भैया ,न होते मामा |
अध्यापको के इस आन्दोलन से प्रेणना लेकर प्रदेश के अन्य संघठन भी ऐसे ही आक्रामक आन्दोलनों के गवाह बनते नजर आते |जिससे सरकार के चुनावी समय में गणित का उलटफेर हो सकता था ,,शिक्षक एक ऐसा तबका है जिसे गणित ,अर्थशाश्त्र भी आता है ,वह हर प्रकार के नफे -नुकसान से वाकिफ है ,इसलिए उसने सरकार के पास तक शिक्षा विभाग में संविलियन ,समान कार्य का समान वेतन का पूरा व्यौरा सरकार के पास लिखित भेज दिया था ,,जिसका खर्च सालाना 2100 करोड़ रूपये था |
किसी भी सरकार के लिए यह रकम ज्यादा नही है ,,प्रदेश में 2 से 10 हजार करोड़ कि दर्जनों परियोजनाए चलती है | इसका मतलब यह हुआ कि शिक्षको के संविलियन के लिए के परियोजना या वेतन पर खर्च होने वाली मात्र कि ही परियोजना से काम चल जाएगा ,इसके लिए किसी भी एक परियोजना को एक या दो वर्ष आगे खिसकाया जा सकता है पर सरकार ऐसा करने के लिए तैयार नही थी ,,जिससे अध्यापको का शिक्षा विभाग में संविलियन हो जाता |
इस कारण आज तक अध्यापको कि कोई भी बातचीत का कोई ठोस निराकरण नही हुआ |शिक्षा विभाग में संविलियन कर समान कार्य ,समान वेतन कि मांग को लेकर प्रदेश के आंदोलित 3 लाख से अधिक अध्यापक ,संविदा ,गुरूजी इस 15 साल कि नौकरी में बड़े-बड़े 15 आन्दोलन कर चुके है पर आज भी नतीजा सिफर ही रहा ,,आज सरकार कम से कम उतना दे कि जिससे अध्यापक अपने बीबी बच्चो को भरपेट खाना खिला सके पर इस वर्तमान बढती महंगाई में ऐसा संभव नही दिखता |
1995 में पांच रुपये मानदेय पर सरकार ने इन शिक्षाकर्मियो कि भारती कि थी लेकिन फिर 1998 में दिग्विजय सिंह ने निति बनाकर इन्हें नियमित तो कर दिया पर कोई आर्थिक लाभ नही पंहुचाया | इस कारण शिक्षाकर्मियो का दिग्विजय सरकार से टकराव चला ,इसका सीधा फायदा भाजपा को मिला और वह सरकार बनाने में कामयाब रही ,लेकिन 2003 तक दिग्विजय सरकार ने शिक्षाकर्मियो को नियमित कर चुकी थी |और वर्ग 1-5175 ,,,वर्ग 2-4025 ,वर्ग 3-2875 रुपये मिलाने लगे थे | इसके बाद भाजपा सरकार को कोई काम बाकि नही था मात्र उनका शिक्षा विभाग में संविलियन एवं समान कार्य समान वेतन देना था ,| जो वह अपने 9 वर्षो के शासनकाल में कर सकी ,,उसने केवल एक ही काम किया है वह केवल शिक्षाकर्मी नाम को बदल कर अध्यापक कर दिया ,पर वह शिक्षको को संतुष्ट करने में असक्षम रही |
मौजूदा शासन काल में उन्हें उतना भी नही मिला जितना कि बाबूलाल गौर सरकार ने अपने शासनकाल में 83 प्रतिशत डी.ए. मिला और शिवराज सरकार ने अपने सात साल के शासन के दौरान मात्र 142 प्रतिशत डी. ए. दिया ,जिसका सीधा सा मतलब ये निकलता है कि जितनी उपेक्षा शिक्षको कि शिवराज सरकार में हुई उतनी कभी अन्य सरकार में नही हुई | जिस कारण शिक्षको में लगातार आक्रोश बढता ही जा रहा है |
शिवराज सरकार भी लगातार शिक्षको को बरगला रही है कभी 7 जनवरी को घोषणा करती है कभी वह 10 जनवरी को घोषणा करती नजर आती है ,,, अब शिक्षक संघो में लगभग फूट पड़ ही चुकी है ,सभी शिक्षक संघ एक दुसरे कि टांग खीचते नजर आते है | लेकिन वाही अध्यापक संवर्ग संघ ने 13 जनवरी को विशाल आन्दोलन को तैयार कड़ी है |
पर क्या शिवराज सरकार अभी भी संतुष्ट कर पाएगी , सरकार अगर 13 जनवरी को कोई घोषणा करती है तो वह अध्यापको को अप्रेल 2013 से ही मिल पाएगा ,ये बात लगभग सभी शिक्षक घरो में पंहुच चुकी है ,,सबसे बड़ी सरकार कि सफलता ये रही कि सरकार ने इन संघठनो के बीच फूट डाल दी और इस बात को शिक्षक अभी तक नही समझ पाई है |
प्रदेश के अध्यापक शिक्षाकर्मी देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी अपनी पीड़ा सुना चुके है | उनके हस्तक्षेप के बाद ही राज्य सरकार ने राज्य कर्मचारियों के साथ-साथ ही शिक्षको का डी.ए. बढाने को तैयार हुई थी |
2005 से ज्यादा आक्रामक आन्दोलन 2012 में होने वाला था |इसका आभास सरकार को हो गया था |सरकार पहली बार बनी अध्यापक संयुक्त मोर्चा संघठन को तोड़ने में सफल हुई थी पर जमीनी स्तर पर वह अध्यापक ,संविदा ,गुरूजी कि एकता को वह नही तोड़ पाई | यदि शिवराज सरकार 13 जनवरी या उससे पहले यदि कोई संतोषप्रद घोषणा नही करती है तो ,,भोपाल में क्या होगा यह सभी जानते है ,और 14 जनवरी से आमरण अनशन ,अनिश्चितकालीन हड़ताल याने कि स्कुलो में तालाबंदी सहजता से देखा जा सकेगा ,,यह लड़ाई अब आर या पार कि होगी |
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