सोमवार, 14 सितंबर 2015

12th class 2015-16

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बुधवार, 9 सितंबर 2015

कठिन नही है शुद्ध हिंदी-भाग-29

कठिन नहीं है शुद्ध हिन्दी - 29
० ० ०
बात जब नामों (शब्दों) की, खासकर घरेलू पुकार नामों (निक नेम) की हो, तो हम एक लगभग सार्वभौम (सबजगह लागू होने वाला) नियम खोज सकते हैं। रिंकू, टिंकू, पिंकी, बिट्टू, पप्पू, अब्बा, सुब्बू, अम्मीजैसे शब्द हमें इस तरफ इशारा करते हैं। पहले यह स्पष्ट कर लें कि आ, ई, ऊ, ऐ और औ क्रमशः अ, इ, उ, ए और ओ के दीर्घ रूप हैं। हम आ को अ का दीर्घ रूप कह सकते हैं। यही बात बाकी वर्णों पर भी लागू होगी। इस हिसाब से हम अ, इ और उ को ह्रस्व कहेंगे और आ, ई और ऊ को दीर्घ। ऐ और औ पर फिलहाल हम बात नहीं करेंगे।हम कह सकते हैं कि अधिकांश शब्दों में (खासकर दो वर्णों वाले शब्दों में, भले ही अंतिम वर्ण संयुक्त हो) अंतिम वर्ण दीर्घ होता है और उसके पहले वाला वर्ण ह्रस्व। मंटू, निक्की, चिंटू आदि में हम यह देख सकते हैं। म के बाद का अनुस्वार म का नहीं टू का हिस्सा है, यह ध्यान रखें। पुकार केनामों के अतिरिक्त यह नियम दूसरे प्रकार के शब्दों पर भी लागू होता है। हालांकि पहले भी हमने देखा है कि अधिकांश शब्दों में अंत में स्वरों के दीर्घ रूप (ई, आ या ऊ) दिखाई पड़ते हैं; ए और ओ को फिलहाल इससे बाहर ही रखकर बात करेंगेे।रिंकी, सिंकी, पिंकी, टिंकी, चिंटू, पिंटू, पप्पू, कल्लू, लल्लू, बुद्धू, सिद्धू, सप्रू, नेहरू, सविता, कविता, अनिता, मिक्की, निभी, अप्पू, सोनिया, जिया, मियाँ, गप्पू, चप्पा, कच्चा, बच्चा, मुन्ना, अन्ना, अन्नू, मन्नू, चिंता, टिंकू, मंटू, संटू, बिल्लू, टिल्लू, टिक्की, अब्बा, अम्मा, मज्जा, पता, पत्ता, गत्ता, बित्ता, करिश्मा, आरजू, मंजू, संजू, अंजू, रंजू, नंदू, चंदू, मुरली, निभा, निरमा, माधुरी, अनामिका, सिन्हा, मुन्नू, चुन्नू, सत्तू, रट्टू, जग्गा, पहिया, चुहिया, बनिया, बँधुआ, चिमटा, झगड़ा, नत्थू, गुंजा, तनुजा, सपना, कामिनी, विहारिणी, दामिनी, हत्था, आदि इसके उदाहरण के तौर पर लिए जा सकते हैं। देशों, शहरों आदि के नाम हों या बीमारियों के, यह नियम बहुत हद तक लागू होता है। कोरिया, अमेरिका, अल्बानिया, पटना, निमोनिया, दमा आदि देखे जा सकते हैं। क्रियाएँ भी बहुत हद तक इसका पालन करती हैं, जैसे करना, मरना, पूछना, मारना, बोलना आदि। निरर्थक किस्म के नामों पर तो यह नियम लगभग ठीक बैठता है।पप्पू को पप्पु लिखना उचित नहीं है। यह अक्सर ग़लत रूप में दिखाई पड़ने वाला शब्द है।शब्दों के अन्त में ऐ और औ न के बराबर आते हैं। क़ै, जौ, नौ, रौ, गौ, जै, तै, मै, सौ, है आदि हिन्दी के कुछ ऐसे ही शब्द हैं। करै, चरै, टरै, मिटै, बसौ, हरौ आदि शब्द ब्रजभाषा, अवधी आदि में प्रयोग होने वाले शब्द हैं। इन भाषाओं में अंत में इ की भी परंपरा है, जैसे सोइ, कोउ आदि; लेकिन वर्तमान हिन्दी में ऐसा नहीं होता।हम अगले भाग में इकार, ईकार, उकार और ऊकार वाले वर्णों से शुरू होने वाले शब्दों का एक संक्षिप्त संग्रह प्रस्तुत करेंगे, जिनका उपयोगसाधारण संदर्भ के लिए किया जा सकेगा।
० ० ०
जारी...

कठिन नही है शुद्ध हिंदी-भाग-28

कठिन नहीं है शुद्ध हिन्दी - 28
० ० ०
इस बार थोड़ी देर हुई है... खैर... हिन्दी के रास्ते पर चलते हैं
० ० ०
इस भाग में उकार और ऊकार पर बात करते हैं। इकार की ही तरह शब्दों के अन्त में उकार भी बहुत कम आता है, जैसे अणु, साधु, मधु, तनु, परमाणु, शांतनु, हेतु, केतु, कटु, तरु, मरु, प्रभु, गुरु, जंतु, बिन्दु, सिन्धु, पशु, शत्रु, वस्तु आदि। अधिकांश शब्दों में अंत में ऊकार आता है; जैसे भालू, बालू, शुरू, दारू आदि। 'उ' भी शायद ही किसी शब्द के अन्त में आता है।शब्दों की शुरूआत भी उकार से ही ज़्यादा होती है, ऊकार से नहीं। उजरत, उजागर, उथला, उतावला, उतार, उचाट, उछाल, उद्योग, उदार, उदास, उस्तरा, उफ़, उलफ़त, उमर, उम्मीद, उजबक, उन्नीस, उनतीस, उमंग, उल्टा, उल्लू, उलझन, उकताना, उठाना, उलाहना, उत्तर, उत्पादन, उत्पत्ति, उन्नति, उपकार, उष्म, उष्ण, उद्विग्न आदि शब्द उ से शुरू होते हैं।संख्या वाचक शब्द उ से हैं, न कि ऊ से; जैसे उनचास, उनहत्तर आदि।अनु, कु, पुरो, पुरा, पुनः, सु, फुल, उत्, उप, कुल, दुर्, दुस् आदि उपसर्गों में उकार है। अनुमान, अनुसंधान, कुपोषण, कुमार्ग, पुरातात्विक, पुरापाषाण, पुरोहित, सुशील, सुसंगत, उत्कर्ष, उत्क्रमित, उपचार, उपकार, उपलब्धि, दुर्गम, दुर्घटना, दुष्प्रभाव, दुष्कर आदि इसके उदाहरण हैं।सुनना, चुनना, बुलाना, खुलना, घुलना, गुलाब, गुब्बारा, चुप्पी, बुखार, बुद्धि, बुधवार, कुमार, दुल्हन आदि उकार वाले कुछ शब्द हैं।बहुवचन में ओं से पहले के ऊकार का उकार हो जाता है, भालू का भालुओं, आँसू का आँसुओं। ध्यान रहे किबिन्दु का बहुवचन बिन्दुएँ नहीं होता।आलु, पुर, आकुल आदि प्रत्ययों से समाप्त होने वाले शब्दों में उकार है, ऊकार नहीं। दयालु, कृपालु, श्रद्धालु, नागपुर, सिंगापुर, कानपुर, व्याकुल, शोकाकुल आदि इसके उदाहरण हैं।इसका, इसकी, इनका, इनकी, इन्हें, इन्होंने, इन्हीं, इस, इसी, इससे, इनमें, इसलिए, इधर, इनसे आदि में शुरु में ह्रस्व इ है और इसी तरह उस, उनका, उनमें, उन्हें, उन्हीं, उनके, उनकी, उससे, उधर आदि में भी शुरू में ह्रस्व उ है।मृदुल, राहुल, वर्तुल, नकुल आदि संस्कृत शब्दों में उल है, ऊल नहीं।बुलडोजर, बुलेटिन, कुनैन, जुलाई, टेबुल, पेंडुलम, फुट, फुटबॉल, बुक, ग्रेजुएट, अनाउंसर, अल्युमिनियम, आउट, आउटपुट, इनफ़्लुएंज़ा, एम्बुलैंस, एजुकेशन, लुक, कम्पाउंड, कम्पाउंडर, बाउंड्री, ग्राउंड, राउंड, साउंड, इंस्ट्रुमेंट, बुशर्ट, रेगुलर, रेगुलेटर, सुपर, सुप्रीम, हुक आदिमें उकार है।ऊ से शुरू होने वाले कुछ शब्द ऊपर, ऊँचा, ऊँट, ऊन, ऊब, ऊँघना, ऊष्मा, ऊलजलूल, ऊसर, ऊहापोह, ऊबड़ खाबड़,ऊमस, ऊर्जा, ऊटपटांग, ऊर्ध्व, ऊर्ध्वारोहण, ऊर्मिला, ऊर्मि आदि।उबाऊ, पंडिताऊ, भड़काऊ, उपजाऊ, बिकाऊ, टिकाऊ आदि में अंत में ऊ है। बाजारू, लड़ाकू, झगड़ालू आदि में भी अन्त में ऊ है।माकूल, वसूल, उसूल, रसूल आदि में अन्त में ऊल है।भूत, पूर्व, पूर्वक, आकू, मूल, दूत, पूर्ण से समाप्तहोने वाले शब्दों में ऊकार है, जैसे भभूत, प्रभूत,अभिभूत, लड़ाकू, वर्गमूल, घनमूल, राजदूत, यमदूत, अपूर्ण, महत्त्वपूर्ण आदि।बोलूँ, करूँ, जाऊँ, कहूँ, रहूँ, पुकारूँ, बताऊँ, सजाऊँ, हूँ, खूँ, जूँ, दूँ, लूँ आदि में भी ऊकार होता है। बोलूँगा, कहूँगा, जाऊँगा, मरूँगा, कहूँगा, छोड़ूँगा, चाहूँगा, नाचूँगी, भूलूँगी सभीक्रिया सूचक शब्दों में भी ऊकार होता है। चुका, चुकी, चुके आदि में ऊकार न होकर, उकार है।सूप, सोल्यूशन, स्कूल, स्कूटर, स्क्रू, स्टूल हूट, बूट, स्टूडेंट, म्यूजिक, यूनियन, यूनिट, शूट, शेड्यूल, शैम्पू, सूट, सूटकेस, लूडो, लूप, बैलून, यूज़, रंगरूट, रूट, रूटीन, रिव्यू, रिफ़्यूज, व्यू, यूनिफार्म, शू, थ्रू, पैराशूट, प्रूफ़, फ़्यूज़, फ़्लू, नून, न्यूज़, न्यूट्रल, न्यूट्रॉन, इंटरव्यू, इशू, रूल, कंप्यूटर, ट्यूब, ट्यूमर, पतलून, कार्टून, कूलर, कैप्सूल, क्यू, ग्लूकोस, जून, जूनियर, जूस, टूर, टूल, एग्जिक्यूटिव, वैल्यू आदि में ऊकार है।ट्युशन, कम्यूनिटि, टुर्नामेंट, कर्फ़्यु, कम्यूनिज़्म, हनिमून, वैल्युएशन, स्क्रूटिनि, शुगर, म्युजियम, वेनु, मूवि, युरेनियम, ग्रूप, कम्यूनिकेशन आदि कुछ ऐसे शब्द हैं, जिनके रूप हिन्दी में थोड़े अलग प्रचलित हैं; जैसे मूवी, शूगर आदि। हम पहले वाले (ऊपर बताए गए) की ही अनुशंसा करेंगे। कम्युनिस्ट शब्द ही ज़्यादा प्रचलित है, कम्यूनिस्ट नहीं।शुरूआत को शुरुआत लिखना या बोलना उचित नहीं है। दूकान-दुकान, गुरु-गुरू, उषा-ऊषा आदि में दोनों ही रूप सही माने जाते हैं। रू और रु में अंतर होना चाहिए। दूरी, हिन्दू, शुरू, रुपया, ऊपर, पूरा, ज़रूरी, स्कूल, रूप, छुआछूत, दूध आदि को क्रमशः दुरी, हिन्दु, शुरु, रूपया, उपर, पुरा, ज़रुरी, स्कुल, रुप, छूआछूत, दुध आदि नहीं लिखा जाना चाहिए।लूटना, लुटना, जूझना, जुझारू, सूखा, सुखा, बुड्ढा, बूढ़ा, भून, भूल, भुलाना आदि में ध्यान देना चाहिए। 'लूट रहा है' और 'लुट रहा है' में स्पष्ट अंतर है, इसलिए यहाँ सावधानी की विशेष आवश्यकता है।मैं, तुम, वह, वे आदि के रूपों मुझसे, मुझको, तुमने, तुमसे, उससे, उसका, उन्होंने, उनका आदि में उकार होता है। तू और तूने में ऊकार, लेकिन तुझमें, तुझेआदि में उकार होता है।चीनी, जापानी आदि के शब्दों में अंत में ऊकार होता है। संस्कृत के अस्तु, एवमस्तु, तथास्तु, भवन्तु आदि (क्रिया वाले भाग) में उकार होता है। अनुकूल, अनुकूलन, अनुभूति, अनुसूचित आदि में अनु उपसर्ग के बाद ऊकारयुक्त व्यंजन है। तमिल या अन्य दक्षिणी भाषाओं में अंत में उकार होता है, जैसे तमिलनाडु, श्रीरामुलु आदि। ऐसे ही रमन, रामेश्वरन, ईश्वरन आदि में ण के स्थान पर न है, क्योंकि यह संस्कृत या हिन्दी के व्याकरण के अनुसार नहीं होकर दक्षिण की परंपरा के अनुसार है।
० ० ०
जारी...

शुक्रवार, 4 सितंबर 2015

आंबेडकर और उनके कृत्य

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बाबासाहब अंबेडकर आठ भाषाएँ जानते थे।

1) मराठी (मातृभाषा)
2) हिन्दी
3) संस्कृत
4) गुजराती
5) अंग्रेज़ी
6) पारसी
7) जर्मन
8) फ्रेंच
डाॅ.बाबासाहब अंबेडकर जी को पाली भाषा
भी आती थी। उन्होंने
पाली व्याकरण और शब्दकोष (डिक्शनरी)
भी लिखी थी जो महाराष्ट्र
सरकार ने Dr.Babasaheb Ambedkar Writing and
Speeches Vol.16 में प्रकाशित की हैं।

*** बाबासाहब अंबेडकर जी ने संसद में पेश किए हुए
विधेयक
��महार वेतन बिल
��हिन्दू कोड बिल
��जनप्रतिनिधि बिल
��खोती बिल
��मंत्रीओं का वेतन बिल
��मजदूरों के लिए वेतन (सैलरी) बिल
��रोजगार विनिमय सेवा
��पेंशन बिल
भविष्य निर्वाह निधी (पी.एफ्.)
����*** बाबासाहब के सत्याग्रह (आंदोलन)
1) महाड आंदोलन 20/3/1927
2) मोहाली (धुले) आंदोलन 12/2/1939
3) अंबादेवी मंदिर आंदोलन 26/7/1927
4) पुणे कौन्सिल आंदोलन 4/6/1946
5) पर्वती आंदोलन 22/9/1929
6) नागपूर आंदोलन 3/9/1946
7) कालाराम मंदिर आंदोलन 2/3/1930
8) लखनौ आंदोलन 2/3/1947
9) मुखेडका आंदोलन 23/9/1931
������*** बाबासाहब अंबेडकर द्वारा स्थापित सामाजिक संघटन
➡1) बहिष्कृत हितकारिणी सभा - 20 जुलै 1924
➡2) समता सैनिक दल - 3 मार्च 1927
��राजनीतिक संघटन
1) स्वतंत्र मजदूर पार्टी - 16 अगस्त 1936
2) शेड्युल्ड कास्ट फेडरेशन- 19 जुलै 1942
3) रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया- 3 अक्तूबर 1957
����धार्मिक संघटन
1) भारतीय बौद्ध महासभा - 4 मई 1955
����शैक्षणिक संघटन
1) डिप्रेस क्लास एज्युकेशन सोसायटी- 14 जून
1928
2) पीपल्स एज्युकेशन सोसायटी- 8 जुलै
1945
3) सिद्धार्थ काॅलेज, मुंबई- 20 जून 1946
4) मिलींद काॅलेज, औरंगाबाद- 1 जून 1950
����अखबार, पत्रिकाएँ
1) मूकनायक- 31 जनवरी 1920
2) बहिष्कृत भारत- 3 अप्रैल 1927
3) समता- 29 जून 1928
4) जनता- 24 नवंबर 1930
5) प्रबुद्ध भारत- 4 फरवरी 1956
����*** बाबासाहब अंबेडकर जी ने अपने जिवन में विभिन्न
विषयों पर 527 से ज्यादा भाषण दिए।
��***बाबासाहब अंबेडकर को प्राप्त सम्मान
1) भारतरत्न
2) The Greatest Man in the World (Columbia
University)
3) The Universe Maker (Oxford University)
4) The Greatest Indian (CNN IBN & History Tv
18)
����*** बाबासाहब अंबेडकर जी इनकी
निजी किताबें (उनके पास थी)
1) अंग्रेजी साहित्य- 1300 किताबें
2) राजनिती- 3,000 किताबें
3) युद्धशास्त्र- 300 किताबें
4) अर्थशास्त्र- 1100 किताबें
5) इतिहास- 2,600 किताबें
6) धर्म- 2000 किताबें
7) कानून- 5,000 किताबें
8) संस्कृत- 200 किताबें
9) मराठी- 800 किताबें
10) हिन्दी- 500 किताबें
11) तत्वज्ञान (फिलाॅसाफी)- 600 किताबें
12) रिपोर्ट- 1,000
13) संदर्भ साहित्य (रेफरेंस बुक्स)- 400 किताबें
14) पत्र और भाषण- 600
15) जिवनीयाँ (बायोग्राफी)- 1200
16) एनसाक्लोपिडिया ऑफ ब्रिटेनिका- 1 से 29 खंड
17) एनसाक्लोपिडिया ऑफ सोशल सायंस- 1 से 15 खंड
18) कैथाॅलिक एनसाक्लोपिडिया- 1 से 12 खंड
19) एनसाक्लोपिडिया ऑफ एज्युकेशन
20) हिस्टोरियन्स् हिस्ट्री ऑफ दि वर्ल्ड- 1 से 25
खंड
21) दिल्ली में रखी गई किताबें- बुद्ध
धम्म, पालि साहित्य, मराठी साहित्य- 2000 किताबें
22) बाकी विषयों की 2305 किताबें
बाबासाहब जब अमेरिका से भारत लौट आए तब एक बोट दुर्घटना में
उनकी सैंकडो किताबें समंदर मे डूबी।
����*** बाबासाहब अंबेडकर जी
1) महान समाजशास्त्री
2) महान अर्थशास्त्री
3) संविधान शिल्पी
4) आधुनिक भारत के मसिहा
5) इतिहास के ज्ञाता और रचियाता
6) मानवंशशास्त्र के ज्ञाता
7) तत्वज्ञानी (फिलाॅसाॅफर)
8) दलितों के और महिला अधिकारों के मसिहा
9) कानून के ज्ञाता (कानून के विशेषज्ञ)
10) मानवाधिकार के संरक्षक
11) महान लेखक
12) पत्रकार
13) संशोधक
14) पाली साहित्य के महान अभ्यासक
(अध्ययनकर्ता)
15) बौध्द साहित्य के अध्ययनकर्ता
16) भारत के पहले कानून मंत्री
17) मजदूरों के मसिहा
18) महान राजनितीज्ञ
19) विज्ञानवादी सोच के समर्थक
20) संस्कृत और हिन्दू साहित्य के गहन अध्ययनकर्ता थे।
����*** बाबासाहब अंबेडकर की कुछ विशेषताएँ
1) पाणी के लिए आंदोलन करनेवाले विश्व के पहले
महापुरुष
2) लंदन विश्वविद्यालय के पुरे लाईब्ररी के किताबों
की छानबीन कर उसकी
जानकारी रखनेवाले एकमात्र महामानव
3) लंदन विश्वविद्यालय के 200 छात्रों में नअबर 1 का छात्र होने
का सम्मान प्राप्त होनेवाले पहले भारतीय
4) विश्व के छह विद्वानों में से एक
5) विश्व में सबसे अधिक पुतले बाबासाहब अंबेडकर
जी के हैं।
6) लंदन विश्वविद्यालय मे डी.एस्.सी.
यह उपाधी पानेवाले पहले और आखिरी
भारतीय
7) लंदन विश्वविद्यालय का 8 साल का पाठ्यक्रम 3 सालों मे पूरा
करनेवाले महामानव
����*** बाबासाहब अंबेडकर जी के वजह से
ही भारत में रिजर्व बैंक की स्थापना हुईं।
बाबासाहब अंबेडकर जी ने अपने डाॅक्टर ऑफ सायंस
के लिए ' दि प्राॅब्लेम ऑफ रूपी' यह शोध प्रबंध लिखा
था। Indian Money & Finance इसके अभ्यास के लिए
ब्रिटिशों ने जो कमिशन चुना था उनको बाबासाहब ने एक निवेदन
(स्टेटमेंट) प्रस्तुत किया था।         

����जय भिम����
����नमो बुद्धाय����
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बुधवार, 2 सितंबर 2015

16 संस्कार

वैदिक कर्मकाण्ड के अनुसार निम्न सोलह संस्कार होते हैं:

1. गर्भाधान संस्कारः उत्तम सन्तान की प्राप्ति के लिये प्रथम संस्कार।

2. पुंसवन संस्कारः गर्भस्थ शिशु के बौद्धि एवं मानसिक विकास हेतु गर्भाधान के पश्चात्् दूसरे या तीसरे महीने किया जाने वाला द्वितीय संस्कार।

3. सीमन्तोन्नयन संस्कारः माता को प्रसन्नचित्त रखने के लिये, ताकि गर्भस्थ शिशु सौभाग्य सम्पन्न हो पाये, गर्भाधान के पश्चात् आठवें माह में किया जाने वाला तृतीय संस्कार।

4. जातकर्म संस्कारः नवजात शिशु के बुद्धिमान, बलवान, स्वस्थ एवं दीर्घजीवी होने की कामना हेतु किया जाने वाला चतुर्थ संस्कार।

5. नामकरण संस्कारः नवजात शिशु को उचित नाम प्रदान करने हेतु जन्म के ग्यारह दिन पश्चात् किया जाने वाला पंचम संस्कार।

6. निष्क्रमण संस्कारः शिशु के दीर्घकाल तक धर्म और मर्यादा की रक्षा करते हुए इस लोक का भोग करने की कामना के लिये जन्म के तीन माह पश्चात् चौथे माह में किया जाने वला षष्ठम संस्कार।

7. अन्नप्राशन संस्कारः शिशु को माता के दूध के साथ अन्न को भोजन के रूप में प्रदान किया जाने वाला जन्म के पश्चात् छठवें माह में किया जाने वाला सप्तम संस्कार।

8. चूड़ाकर्म (मुण्डन) संस्कारः शिशु के बौद्धिक, मानसिक एवं शारीरिक विकास की कामना से जन्म के पश्चात् पहले, तीसरे अथवा पाँचवे वर्ष में किया जाने वाला अष्टम संस्कार।

9. विद्यारम्भ संस्कारः जातक को उत्तमोत्तम विद्या प्रदान के की कामना से किया जाने वाला नवम संस्कार।

10. कर्णवेध संस्कारः जातक की शारीरिक व्याधियों से रक्षा की कामना से किया जाने वाला दशम संस्कार।

11. यज्ञोपवीत (उपनयन) संस्कारः जातक की दीर्घायु की कामना से किया जाने वाला एकादश संस्कार।

12. वेदारम्भ संस्कारः जातक के ज्ञानवर्धन की कामना से किया जाने वाला द्वादश संस्कार।

13. केशान्त संस्कारः गुरुकुल से विदा लेने के पूर्व किया जाने वाला त्रयोदश संस्कार।

14. समावर्तन संस्कारः गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने की कामना से किया जाने वाला चतुर्दश संस्कार।

15. पाणिग्रहण संस्कारः पति-पत्नी को परिणय-सूत्र में बाँधने वाला पंचदश संस्कार।

16. अन्त्येष्टि संस्कारः मृत्योपरान्त किया जाने वाला षष्ठदश संस्कार।

उपरोक्त सोलह संस्कारों में आजकल नामकरण, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म (मुण्डन), यज्ञोपवीत (उपनयन), पाणिग्रहण और अन्त्येष्टि संस्कार ही चलन में बाकी रह गये हैं