कठिन नहीं है शुद्ध हिन्दी - 29
० ० ०
बात जब नामों (शब्दों) की, खासकर घरेलू पुकार नामों (निक नेम) की हो, तो हम एक लगभग सार्वभौम (सबजगह लागू होने वाला) नियम खोज सकते हैं। रिंकू, टिंकू, पिंकी, बिट्टू, पप्पू, अब्बा, सुब्बू, अम्मीजैसे शब्द हमें इस तरफ इशारा करते हैं। पहले यह स्पष्ट कर लें कि आ, ई, ऊ, ऐ और औ क्रमशः अ, इ, उ, ए और ओ के दीर्घ रूप हैं। हम आ को अ का दीर्घ रूप कह सकते हैं। यही बात बाकी वर्णों पर भी लागू होगी। इस हिसाब से हम अ, इ और उ को ह्रस्व कहेंगे और आ, ई और ऊ को दीर्घ। ऐ और औ पर फिलहाल हम बात नहीं करेंगे।हम कह सकते हैं कि अधिकांश शब्दों में (खासकर दो वर्णों वाले शब्दों में, भले ही अंतिम वर्ण संयुक्त हो) अंतिम वर्ण दीर्घ होता है और उसके पहले वाला वर्ण ह्रस्व। मंटू, निक्की, चिंटू आदि में हम यह देख सकते हैं। म के बाद का अनुस्वार म का नहीं टू का हिस्सा है, यह ध्यान रखें। पुकार केनामों के अतिरिक्त यह नियम दूसरे प्रकार के शब्दों पर भी लागू होता है। हालांकि पहले भी हमने देखा है कि अधिकांश शब्दों में अंत में स्वरों के दीर्घ रूप (ई, आ या ऊ) दिखाई पड़ते हैं; ए और ओ को फिलहाल इससे बाहर ही रखकर बात करेंगेे।रिंकी, सिंकी, पिंकी, टिंकी, चिंटू, पिंटू, पप्पू, कल्लू, लल्लू, बुद्धू, सिद्धू, सप्रू, नेहरू, सविता, कविता, अनिता, मिक्की, निभी, अप्पू, सोनिया, जिया, मियाँ, गप्पू, चप्पा, कच्चा, बच्चा, मुन्ना, अन्ना, अन्नू, मन्नू, चिंता, टिंकू, मंटू, संटू, बिल्लू, टिल्लू, टिक्की, अब्बा, अम्मा, मज्जा, पता, पत्ता, गत्ता, बित्ता, करिश्मा, आरजू, मंजू, संजू, अंजू, रंजू, नंदू, चंदू, मुरली, निभा, निरमा, माधुरी, अनामिका, सिन्हा, मुन्नू, चुन्नू, सत्तू, रट्टू, जग्गा, पहिया, चुहिया, बनिया, बँधुआ, चिमटा, झगड़ा, नत्थू, गुंजा, तनुजा, सपना, कामिनी, विहारिणी, दामिनी, हत्था, आदि इसके उदाहरण के तौर पर लिए जा सकते हैं। देशों, शहरों आदि के नाम हों या बीमारियों के, यह नियम बहुत हद तक लागू होता है। कोरिया, अमेरिका, अल्बानिया, पटना, निमोनिया, दमा आदि देखे जा सकते हैं। क्रियाएँ भी बहुत हद तक इसका पालन करती हैं, जैसे करना, मरना, पूछना, मारना, बोलना आदि। निरर्थक किस्म के नामों पर तो यह नियम लगभग ठीक बैठता है।पप्पू को पप्पु लिखना उचित नहीं है। यह अक्सर ग़लत रूप में दिखाई पड़ने वाला शब्द है।शब्दों के अन्त में ऐ और औ न के बराबर आते हैं। क़ै, जौ, नौ, रौ, गौ, जै, तै, मै, सौ, है आदि हिन्दी के कुछ ऐसे ही शब्द हैं। करै, चरै, टरै, मिटै, बसौ, हरौ आदि शब्द ब्रजभाषा, अवधी आदि में प्रयोग होने वाले शब्द हैं। इन भाषाओं में अंत में इ की भी परंपरा है, जैसे सोइ, कोउ आदि; लेकिन वर्तमान हिन्दी में ऐसा नहीं होता।हम अगले भाग में इकार, ईकार, उकार और ऊकार वाले वर्णों से शुरू होने वाले शब्दों का एक संक्षिप्त संग्रह प्रस्तुत करेंगे, जिनका उपयोगसाधारण संदर्भ के लिए किया जा सकेगा।
० ० ०
जारी...
बुधवार, 9 सितंबर 2015
कठिन नही है शुद्ध हिंदी-भाग-29
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें