रविवार, 31 जनवरी 2016

बाबा साहब का ज्ञान

बाबासाहब अंबेडकर 9 भाषाएँ जानते थे।
1) मराठी
2) हिन्दी
3) संस्कृत
4) गुजराती
5) अंग्रेज़ी
6) पारसी
7) जर्मन
8) फ्रेंच
9) पाली

उन्होंने
पाली व्याकरण और शब्दकोष (डिक्शनरी)
भी लिखी थी जो महाराष्ट्र
सरकार ने Dr.Babasaheb Ambedkar Writing and
Speeches Vol.16 में प्रकाशित की हैं।

*** बाबासाहब अंबेडकर जी ने संसद में पेश किए हुए
विधेयक

महार वेतन बिल
हिन्दू कोड बिल
जनप्रतिनिधि बिल
खोती बिल
मंत्रीओं का वेतन बिल
मजदूरों के लिए वेतन (सैलरी) बिल
रोजगार विनिमय सेवा
पेंशन बिल
भविष्य निर्वाह निधी (पी.एफ्.)

*** बाबासाहब के सत्याग्रह (आंदोलन)
1) महाड आंदोलन 20/3/1927
2) मोहाली (धुले) आंदोलन 12/2/1939
3) अंबादेवी मंदिर आंदोलन 26/7/1927
4) पुणे कौन्सिल आंदोलन 4/6/1946
5) पर्वती आंदोलन 22/9/1929
6) नागपूर आंदोलन 3/9/1946
7) कालाराम मंदिर आंदोलन 2/3/1930
8) लखनौ आंदोलन 2/3/1947
9) मुखेडका आंदोलन 23/9/1931

*** बाबासाहब अंबेडकर द्वारा स्थापित सामाजिक संघटन
1) बहिष्कृत हितकारिणी सभा - 20 जुलै 1924
2) समता सैनिक दल - 3 मार्च 1927
राजनीतिक संघटन
1) स्वतंत्र मजदूर पार्टी - 16 अगस्त 1936
2) शेड्युल्ड कास्ट फेडरेशन- 19 जुलै 1942
3) रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया- 3 अक्तूबर 1957

धार्मिक संघटन
1) भारतीय बौद्ध महासभा - 4 मई 1955
शैक्षणिक संघटन
1) डिप्रेस क्लास एज्युकेशन सोसायटी- 14 जून
1928
2) पीपल्स एज्युकेशन सोसायटी- 8 जुलै
1945
3) सिद्धार्थ काॅलेज, मुंबई- 20 जून 1946
4) मिलींद काॅलेज, औरंगाबाद- 1 जून 1950

अखबार, पत्रिकाएँ
1) मूकनायक- 31 जनवरी 1920
2) बहिष्कृत भारत- 3 अप्रैल 1927
3) समता- 29 जून 1928
4) जनता- 24 नवंबर 1930
5) प्रबुद्ध भारत- 4 फरवरी 1956

*** बाबासाहब अंबेडकर जी ने अपने जीवन में विभिन्न
विषयों पर 527 से ज्यादा भाषण दिए।

***बाबासाहब अंबेडकर को प्राप्त सम्मान
1) भारतरत्न
2) The Greatest Man in the World (Columbia
University)
3) The Universe Maker (Oxford University)
4) The Greatest Indian (CNN IBN & History Tv
18)

*** बाबासाहब अंबेडकर जी इनकी
निजी किताबें (उनके पास थी)
1) अंग्रेजी साहित्य- 1300 किताबें
2) राजनिती- 3,000 किताबें
3) युद्धशास्त्र- 300 किताबें
4) अर्थशास्त्र- 1100 किताबें
5) इतिहास- 2,600 किताबें
6) धर्म- 2000 किताबें
7) कानून- 5,000 किताबें
8) संस्कृत- 200 किताबें
9) मराठी- 800 किताबें
10) हिन्दी- 500 किताबें
11) तत्वज्ञान (फिलाॅसाफी)- 600 किताबें
12) रिपोर्ट- 1,000
13) संदर्भ साहित्य (रेफरेंस बुक्स)- 400 किताबें
14) पत्र और भाषण- 600
15) जिवनीयाँ (बायोग्राफी)- 1200
16) एनसाक्लोपिडिया ऑफ ब्रिटेनिका- 1 से 29 खंड
17) एनसाक्लोपिडिया ऑफ सोशल सायंस- 1 से 15 खंड
18) कैथाॅलिक एनसाक्लोपिडिया- 1 से 12 खंड
19) एनसाक्लोपिडिया ऑफ एज्युकेशन
20) हिस्टोरियन्स् हिस्ट्री ऑफ दि वर्ल्ड- 1 से 25
खंड
21) दिल्ली में रखी गई किताबें- बुद्ध
धम्म, पालि साहित्य, मराठी साहित्य- 2000 किताबें
22) बाकी विषयों की 2305 किताबें
बाबासाहब जब अमेरिका से भारत लौट आए तब एक बोट दुर्घटना में
उनकी सैंकडो किताबें समंदर मे डूबी।

*** बाबासाहब अंबेडकर जी
1) महान समाजशास्त्री
2) महान अर्थशास्त्री
3) संविधान शिल्पी
4) आधुनिक भारत के मसीहा
5) इतिहास के ज्ञाता और रचियाता
6) मानवंशशास्त्र के ज्ञाता
7) तत्वज्ञानी (फिलाॅसाॅफर)
8) दलितों के और महिला अधिकारों के मसिहा
9) कानून के ज्ञाता (कानून के विशेषज्ञ)
10) मानवाधिकार के संरक्षक
11) महान लेखक
12) पत्रकार
13) संशोधक
14) पाली साहित्य के महान अभ्यासक
(अध्ययनकर्ता)
15) बौध्द साहित्य के अध्ययनकर्ता
16) भारत के पहले कानून मंत्री
17) मजदूरों के मसिहा
18) महान राजनितीज्ञ
19) विज्ञानवादी सोच के समर्थक
20) संस्कृत और हिन्दू साहित्य के गहन अध्ययनकर्ता थे।

*** बाबासाहब अंबेडकर की कुछ विशेषताएँ
1) पानी के लिए आंदोलन करनेवाले विश्व के पहले
महापुरुष
2) लंदन विश्वविद्यालय के पुरे लाईब्ररी के किताबों
की छानबीन कर उसकी
जानकारी रखनेवाले एकमात्र महामानव
3) लंदन विश्वविद्यालय के 200 छात्रों में नंबर 1 का छात्र होने
का सम्मान प्राप्त होनेवाले पहले भारतीय
4) विश्व के छह विद्वानों में से एक
5) विश्व में सबसे अधिक पुतले बाबासाहब अंबेडकर
जी के हैं।
6) लंदन विश्वविद्यालय मे डी.एस्.सी.
यह उपाधी पानेवाले पहले और आखिरी
भारतीय
7) लंदन विश्वविद्यालय का 8 साल का पाठ्यक्रम 3 सालों मे पूरा
करनेवाले महामानव

*** बाबासाहब अंबेडकर जी के वजह से
ही भारत में रिजर्व बैंक की स्थापना हुईं।
बाबासाहब अंबेडकर जी ने अपने डाॅक्टर ऑफ सायंस
के लिए ' दि प्राॅब्लेम ऑफ रूपी' यह शोध प्रबंध लिखा
था। Indian Money & Finance इसके अभ्यास के लिए
ब्रिटिशों ने जो कमिशन चुना था उनको बाबासाहब ने एक निवेदन
(स्टेटमेंट) प्रस्तुत किया था।

इतने महान थे बाबा साहब.....��

गुरुवार, 21 जनवरी 2016

शम्भुक्

मैं शंबूक बोल रहा हूँ ...
सुनिए , मैं शंबूक बोल रहा हूँ , जी हाँ ! वही शुद्र
शंबूक जिसकी कहानी आपने बाल्मीकि रामायण के
उत्तरकाण्ड के सर्ग 85 में पढ़ी होगी । आप सोच
रहे होंगे की मरने के हजारो साल बाद मैं
यंहा क्या कर रहा हूँ ?
वैसे मेरे असली माता पिता कौन थे इसके बारे में
मुझे स्वयं भी ठीक से याद नहीं ,पर कहा जाताहै
की ( आनंद रामायण और रंगनाथ रामायण के
अनुसार ) मेरी माता का नाम
शुपर्णखा ( स्वरुपनी या चंद्र्नाखा) था ,
जिसकी नाक काट के लक्ष्मण ने अपमानित
किया था ।
मेरे बारे में किसी को कुछ ज्ञात नहीं था पर
जब एक ब्रह्मण ने अपने पुत्र के मर जाने पर
राम को दोषी ठहराया और कहा की उन्होंने अपने
राजा होने का कर्तव्य ठीक से नहीं निभाया ।
क्यों की राम राज्य में पिता के रहते पुत्र की मृत्यु
नहीं हो सकती थी , इसलिए अपने पुत्र की मृत्यु
का सार दोष उसने राम पर डाल दिया।
अत: ऋषि वशिष्ट के कहने पर इस मामले में सलाह
देने के लिए राज्य के प्रमुख आठ ब्रह्मणों का एक
समिति बनायीं गयी , जिसने बड़े सोच विचार के ये
निर्णय दिया की राज्य में किसी शुद्र के
तपस्या करने के कारण ब्रह्मण के पुत्र की मृत्यु
हुयी है( वा . र. उ. सर्ग 87) ।
सारे राज्य में बहुत गहनखोज बीन की गयी और
आखिर में शिवालिक की पहाड़ियों की तराई में के
झील के किनारे एक वृक्ष के नीचे शीर्षासन से तप
करता हुआ राम के सैनिको  को मैं मिला ,
उन्होंने बिना देरी किये राम को बुलाया । राम
ने मुझ से मेरा परिचय पुछा , मैंने बिना कुछ छुपाये
उन्हें अपने शूद्र होने के बारे में बताया ।
मेरी जाती सुनते ही बिना देरी किये राम ने
अपनी चमकती हुयी और तेज तलवार निकाल के
मेरा सरधड से अलग कर दिया ।
ये दृश्य देख कर देवतागण आकाश से पुष्प वर्षा करने
लगे , आखिर राम की कृपया से एक शूद्र स्वर्ग जाने
से रोक लिया गया । इस "महान" कार्य के लिए
अगस्त्य ने राम को पुरष्कार स्वरूप
विश्वकर्मा रचित आभूषण दिया ( उ. कांड , सर्ग
89)
ऐसा नहीं था की मुझे ज्ञात नहीं था की मैं
( शूद्र) तप नहीं कर सकता था , मुझे ज्ञात
था फिर भी मैंने शांति पूर्वक तथा अहिंसक मार्ग
द्वारा तप , शिक्षा , ज्ञान प्राप्त करने के उन
नियमो का विरोध किया जिस पर केवल ब्राह्मण
और सवर्णों का एका अधिकार था और इसके
परिणामो को भुगतने के लिए भी मैं तैयार था ,
तभी मैंने राम से कुछ नहीं छुपाया था ।
मैं देखना चाहता था की जिस राम के "न्याय" और
'उदारता" के गुण सारे राज्य में गए जा रहे थे
वो कितना न्यायी है ? क्या वो उन गलत
नियमो को बदल सकता है जिसको एक वर्ग ने
अपनी मर्जी से समाज पर थोपा था? नहीं, शायद
राम में भी उस"ब्राह्मणवाद" के खिलाफ जाने
की शक्ति नहीं थी ।उन्हें डर था उनका हाल
भी उनके पूर्वज"त्रिशंकु " जैसा न हो जाये और
उन्हें भी राज्य से हाथ धोना पड़ जाये ।
यंहा तक की नारद ने
भी मेरी हत्या को न्यायोचित बताया उन्होंने
कहा की " अन्य वर्णों की सेवा ही शूद्र के लिए
श्रेष्ठ धर्म है ( वाल्मीकि रामयण , उत्तर कांड ,
सर्ग 87)
निरंकुश और सर्व सत्तावादी शासन में
भी अपराधी को अपनी सफाई मेंकुछ कहने
का या अपराध स्वीकार और क्षमा मांगने का एक
अवसर अवश्य दिया जाता है पर मुझ जैसे शूद्र को ये
मूलभूत अधिकार भी नहीं था , धन्य था ऐसा राम
राज और उसी राम राज्य की आज भी कल्पना करने
वाले ।
अच्छा, आज बस यहीं विराम लेता हूँ ,आप
सभी को एक बार फिर से प्रणाम॥
शंबूक

मंगलवार, 19 जनवरी 2016

पत्नी पर निबंध

मास्टर जी – पत्नी पे निबन्ध लिखो ?
छात्र – ..पत्नी पर निबंध :

पत्नी नामक प्राणी भारत सहित पूरे विश्व में बहुतायत पाए जाती है।

प्राचीन समय में यह भोजन शाला में पायी जाती थी, लेकिन वर्तमान में यह शॉपिंग मॉल्स , थिएटर्स  एवं रेस्तरा के नजदीक विचरती हुई अधिक पायी जाती है।

पहले इस प्रजाति में लम्बे बाल, सुन्दर आकृति प्रायः पाये जाते थे। लेकिन अब छोटे बाल, कृत्रिम श्वेत मुख, रक्त के सामान होठ सामान्य रूप से देखे जा सकते है।

इनका मुख्य आहार पति नामक मूक प्राणी होता है। भारत में इन्हें धर्मपत्नी, भाग्यवती, लक्ष्मी नामो से भी जाना जाता है।

अधिक बोलना, अकारण झगड़ना, अति व्यय करना, इस प्रजाति के मुख्य लक्षणों में से है। हालाकि इस प्रजाति पर सम्पूर्ण अध्ययन करना संभव नहीं है, किन्तु सामान्यतः इनके निम्न प्रकार होते है।

1. सुशील पत्नी – यह प्रजाति अब लुप्त हो चुकी है। इस प्रजाति की प्राणी सुशील एवं सहनशील होतीे थी और घरो में ज्यादा पाये जाते थीे।

2. आक्रामक पत्नी – यह प्रजाति भारत सहित पूरे विश्व में बहुत अधिक मात्रा में पायी जाती है। ये अपनी आक्रामक शैली, एवं तेज प्रहार के लिए जानी जाती है। समय आने पर ये बेलन, झाड़ू और चरण पादुकाओँ का उपयोग अधिक करती है।

3. झगडालू पत्नी – यह प्रजाति भी वर्तमान में सभी जगह पायी जाती है। इन्हें जॊर से बोलना और झगडा करना अत्यंत पसंद होता है। इनका अधिकतर सामना “सास” नामक एक और अत्यंत खतरनाक प्राणी से होता है।

4. खर्चीली पत्नी – भारत जैसे गरीब देश में भी पत्नियों की ये प्रजाति निरंतर बढती जा रही है। इनकी मुख्य आदतों में क्रेडिट कार्ड रखना, बिना विचार किये खर्च करना और बिना जरूरत वस्तुए खरीदना है। इस प्रजाति के साथ पति नामक प्राणी को चप्पल में थका हुआ पीछे पीछे घूमते देखा जा सकता है।

5. नखरीली पत्नी – इस प्रजाति के प्राणी अधिकतर आइने के सामने देखी जाती है। इनके होठ रक्त के सामान लाल, नाख़ून बड़े बड़े, केश सतरंगी और चेहरा श्वेत पाउडर से लिपा होता है। इन्हें भोजन शाला में जाना और काम करना नापसंद होता है।

चेतावनी – पति नामक प्राणी के लिए इस प्रजाति के प्राणी अत्यंत खतरनाक व आक्रामक होते है। इन्हें समय-समय पर साड़ी, गिफ्ट्स, फ्लावर्स तथा करवा-चौथ के सुअवसर पर गहना इत्यादि के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है । लेकिन सनद रहे– केवल कुछ समय के लिए।

बीवियों के प्रकार
1. आलसी बीवी :::::::::::::
खुद जाकर चाय बना लो और एक कप मुझे भी दे देना …
2. धमकाने वाली बीवी ::::
कान खोलकर सुन लो , या तो इस घर में तुम्हारी माँ रहेगी या मैं …
3. इतिहास-पसंद बीवी ::::
सब जानती हूँ तुम्हारा खानदान कैसा है …
4. भविष्य-वाचक बीवी :::
अगले साथ जन्मो तक मेरे जैसी बीवी नहीं मिलेगी …
5. भ्रमित बीवी :::::::::::::
तुम आदमी हो या पजामा ?
6. स्वार्थी बीवी :::::::::::::
ये साड़ी मेरी माँ ने मुझे पहनने को दी है तुम्हारी बहनों के लिए नहीं ..
7. शक्की बीवी :::::::::::::
मेरी कौन सी सौतन से फ़ोन पर बात कर रहे थे ?
8. अर्थशास्त्री बीवी :::::::::
कौन सा कुबेर का खजाना कमा ले आते हो जो रोज़ पनीर खिलाऊ ?
9. धार्मिक बीवी :::::::::
शुक्र करो भगवान् का जो मेरे जैसी बीवी मिली …
10. सबकी बीवी :::::::::::::
मेरे नसीब में तुम ही लिखे थे ?

कठिन नही है शुध्द हिंदी-भाग-45

कठिन नहीं है शुद्ध हिन्दी - 45० ० ०'अनाधिकार' हिन्दी और संस्कृत में कोई शब्द ही नहीं है, फिर भी इसका प्रयोग जमकर होता है। आप कहीं भी लिखादेख सकते हैं - अनाधिकार प्रवेश निषेध। इस भाग में हमविलोम (विपरीत यानी उल्टा अर्थ वाले शब्द; विपरीतार्थक शब्द; अंग्रेज़ी में एंटोनिम) शब्दों और हिन्दी के कई उपसर्गों पर चर्चा करेंगे।हिन्दी में आने वाले जो शब्द स्वर वर्ण से शुरू होते हैं (मुख्य रूप से संस्कृत के शब्द) , उनमें कई बार 'अन्' जोड़कर विलोम बनाया जाता है, जैसे अनिच्छा (अन्+ इच्छा), अनुदार (अन् + उदार), अनन्त (अन् + अन्त), अनन्तिम (अन् + अन्तिम), अनधिकार (अन् + अधिकार), अनुपमा (अन् + उपमा), अनुपयोगी (अन् + उपयोगी), अनेक (अन् + एक), अनीश्वरवादी (अन् + ईश्वरवादी), अनाचार (अन् + आचार), अनूह (अन् + ऊह), अनैच्छिक (अन् + ऐच्छिक), अनौपचारिक (अन् + औपचारिक), अनृत (अन् + ऋत) आदि। 'अनधिकार' को 'अन्-धिकार' न पढ़कर, 'अनधि-कार' पढ़ना चाहिए। 'न' का पूरा उच्चारण (अ के साथ) होना चाहिए। यह ध्यान रखना चाहिए कि किसी आधे व्यंजन में स्वर वर्ण मिलने पर संगत मात्रा जुड़ जाती है, जैसे क् में आग के मिलने पर काग होगा, द् में ओना मिलने पर दोना बनेगा। द (पूरा अ मिला द) में ओना मिलने से दोना नहीं, दौना बनेगा; इसी कारण अन् में अधिकार के मिलने पर अनधिकार बनता है, न कि अनाधिकार।संस्कृत से हिन्दी में आए उस शब्द में, जो व्यंजन से शुरू होता है; 'अ' या दूसरा उपसर्ग लगाकर विलोम बनाया जाता है, जैसे शुद्ध से अशुद्ध, ज्ञात से अज्ञात आदि। अनमोल, अनगिनत, अनपढ़, अनहित (अहित शब्द होना चाहिए, लेकिन यह भी चलन में है), अनजान आदि में 'अन' उपसर्ग लगा है, 'अन्' नहीं। अनजान को अंजान नहीं लिखा जाना चाहिए।एक शब्द 'अभिज्ञ' है, जिसे 'भिज्ञ' का विलोम मान लिया जाता है, 'भिज्ञ' शब्द हिन्दी में है ही नहीं। मूल शब्द 'अभिज्ञ' है, जिसका विलोम 'अनभिज्ञ' ('अभिज्ञ' में 'अन्' जोड़ने से बना) होता है। यह भी दिलचस्प है कि 'असुर' का मूल अर्थ 'राक्षस' नहीं, 'देवता' था, लेकिन अब यह 'सुर' के विलोम के रूप में ही माना और समझा जाता है।शब्दों के विलोम कई प्रकार से बनते हैं। लिंग बदल कर, जैसे माता से पिता, बेटा से बेटी, गाय से बैल और भिन्न शब्द द्वारा, जैसे लाभ से हानि, उत्थान से पतन, कृष्ण से शुक्ल आदि विलोम शब्द बनते हैं।विलोम बनाने का एक तरीका उपसर्ग जोड़ना है। अब हम विलोम बनाने वाले उपसर्गों पर नज़र डालते हैं।1) अप - इसका प्रयोग बुरा, हीन, अभाव, छोटा या लघु, विरुद्ध आदि के अर्थ में होता है। यश से अपयश, मान से अपमान आदि इसके प्रयोग से बने विलोम के उदाहरण हैं। अपहरण, अपकार, अपव्यय, अपवाद आदि इससे बने कुछ और शब्दहैं।2) अव- अनादर, हीनता, पतन या नीचे के अर्थ वाला यह उपसर्ग रोह से अवरोह, मानना से अवमानना, मूल्यन से अवमूल्यन जैसे शब्द बनाता है। इसकी जगह 'औ' भी मिलता है कई बार, जैसे औढर।3) आ- यह सीमा, समेत, ओर, विपरीत, कमी या तक का अर्थ देता है। गमन से आगमन इसके कारण बनता है। आजन्म, आजीवन, आमरण आदि शब्द इससे बने हैं। आजन्म, आमरण और आजीवन, तीनों एक ही भाव बताते हैं।4) दुर् और दुस्- दुर्गम, दुर्जेय, दुर्दशा, दुर्लभ, दुष्कर्म, दुर्गुण आदि इनके उदाहरण हैं। बुरा, कठिन, दुष्ट, हीन आदि इन उपसर्गों के अर्थ हैं। दुष्, दुश् और दु भी इसी तरह के उपसर्ग हैं। वास्तव में दुस् के दो अन्य रूप दुष् और दुश् हैं।5) निर् और निस्- निषेध या बाहर का अर्थ देने वाले ये उपसर्ग निर्भय, निष्फल, निष्काम, निस्सहाय, निस्संकोच, निर्दोष, निरपराध, निर्मल जैसे शब्द बनाते हैं। इनकी जगह 'नि' भी कई बार आता है, जैसे निढाल,निकम्मा आदि। निष् और निश् भी निस् के ही रूप हैं।6) वि- यह विशेषता, हीनता, भिन्नता, असमानता आदि का अर्थ देता है। विदेश, विस्मरण, वियोग, विमुख आदि इससे बने विलोमों के उदाहरण हैं। ज्ञान, शुद्ध, वाद, भाग, नाश, भिन्न आदि से बने विज्ञान, विशुद्ध, विवाद, विभाग,विनाश, विभिन्न जैसे शब्द मूल शब्द को विशेष अर्थ देते हैं।7) अ- अथाह, अज्ञात, अशान्त, अनाम आदि बनाने वाला यह उपसर्ग अभाव या निषेध का अर्थ देता है।8) अन- अनपढ़, अनजान, अनमोल, अनबीता जैसे शब्द बनाने वाला यह उपसर्ग भी निषेध या अभाव का अर्थ देता है। यह ध्यान रहे कि अन और अन् दोनों अलग अलग हैं।9) कु- बुराई या हीनता के अर्थ का यह उपसर्ग कुपुत्र, कुमार्ग, कुपात्र, कुरूप जैसे शब्द बनाता है। कई बार इसकी जगह 'क' भी होता है, जैसे कपूत।10) बिन- अभाव का अर्थ देने वाला यह उपसर्ग बिनदेखा, बिनब्याहा जैसे शब्दों में देखा जा सकता है।11) न- नास्तिक, नपुंसक, नग जैसे शब्द बनाने वाला यह उपसर्ग अभाव और निषेध का अर्थ रखता है।12) ग़ैर- निषेध या विरोध के अर्थ वाला यह उपसर्ग ग़ैरकानूनी, ग़ैरसरकारी, ग़ैरवाजिब जैसे शब्द बनाता है।13) ना- नहीं या अभाव के अर्थ वाले इस उपसर्ग से नालायक, नामुमकिन, नाराज, नापसन्द, नाचीज जैसे शब्द बनते हैं।14) बद- बदनाम, बदकिस्मत, बदबू, बदहजमी, बदसूरत जैसे शब्द बनाने वाला यह उपसर्ग 'बुरा' अर्थ देता है।15) बे- इसका अर्थ बिना है और इससे बेईमान, बेइज्जत, बेरहम, बेतरह जैसे शब्द बनते हैं।16) ला- इसका अर्थ भी बिना है। लाइलाज, लाजवाब, लावारिस, लापरवाह, लापता जैसे शब्द इससे बनते हैं।17) बिला- यह भी 'बिना' के अर्थ का शब्द बनाता है, जैसे बिलाशक।18) अन- यह अंग्रेज़ी के शब्दों में जोड़ा जाता है। अनफ़िट, अनबैलेंस जैसे शब्द इससे बनते हैं।19) नन- यह भी अंग्रेज़ी का ही उपसर्ग है और ननमैट्रिक, ननसेंस, ननटेक्निकल जैसे शब्द बनाता है। इल, इर, इम, ए आदि भी इसी तरह के उपसर्ग माने जा सकते हैं।20) परा- उल्टा, अनादर, नाश, अधिक आदि के अर्थ के इस उपसर्ग से पराजय जैसे शब्द बनते हैं।21) प्रति- प्रत्येक, बदले में, विरोध, बराबरी, परिवर्तन आदि के अर्थ के इस उपसर्ग से प्रतिकार, प्रतिक्रिया, प्रतियोगिता, प्रतिवाद, प्रतिदान आदि बनते हैं।अ, अन, क और बिन हिन्दी के अपने उपसर्ग हैं, जबकि ना, बद और बे फ़ारसी के। ग़ैर, बिला और ला अरबी के उपसर्ग हैं। अन, नन आदि अंग्रेज़ी के उपसर्ग हैं। निर्, निस्,वि आदि संस्कृत के उपसर्ग हैं। इन सबका प्रयोग हिन्दी में होता है।कई बार उपसर्गों को बदलने से विलोम बनता है, जैसे आदान से प्रदान, सुलभ से दुर्लभ, आयात से निर्यात, संयोग से वियोग आदि।शब्दों के अन्त में प्रत्यय जोड़कर भी विलोम शब्द बनाया जाता है। हीन, शून्य, रहित, लेस आदि प्रत्ययों के प्रयोग से बने विलोम शब्द बुद्धिहीन, गंधहीन, रंगहीन, स्वादहीन, विवेकशून्य, बैकलेस, आदि हैं।केन्द्राभिगामी का विलोम केन्द्रापसारी है। 'बेफजूल', 'निखालिस', 'बेवाहियात' जैसे शब्दों में उपसर्गों का चुनाव ग़लत है। फजूल, खालिस, वाहियात शब्द बिना उपसर्ग के ही अपने अर्थ स्पष्ट करते हैं। 'बेजिम्मेदार' की जगह 'ग़ैरज़िम्मेदार' होना चाहिए।० ० ०जारी...

सोमवार, 18 जनवरी 2016

क्या आप द्रविड़ का अर्थ जानते है

ये हे भारत का असली इतिहास     
क्या आप द्रविड़ सब्द का अर्थ जानते हो
कुछ लोग मेरे ख्याल से नहीं जानते होंगे
,उनके लिए मैं संक्षिप्त में जानकारी प्रस्तुत कर रहा
हूँ।
द्रविण शब्द सभी ने अपने विद्यार्थी जीवन में अवस्य
पढ़ा होगा ,साथ ही यह भी पढ़ा होगा की भारत
देश की सभ्यता आर्य और द्रविण लोगो की मिली
जुली सभ्यता है ।और यह भी पढ़ा होगा की आर्य
बाहर से आये हुवे लोग है। हमारे भारतीय इतिहासकार
लोगो ने बहुत सारी बातो को दबा दिया ,इतिहास
में ऐसा बताया गया की ये एक काल्पनिक कथा है
और जो काल्पनिक है उस झूठी बातो में जान डाल
दिया गया।
भारत में आर्यों का आगमन हुवा ।ये कौन लोग है।
कहाँ से आया ,भारत में ये लोग है या नहीं इस बारे में
इतिहासकार इतिहास में लिखता नहीं। क्यों?
क्युकी आज भारत देश में इतिहास लिखने वाला आर्य
लोग ही है।
लेकिन आप उसे पहचानते नहीं।
क्या आपको पता है आपको सिक्षा कब से मिली ?
और आप कौन से वर्ण में आते है? आप इस जाति में क्यों
है?आप का इतिहास क्या था?
जिस दिन इन बातो को खोजना शुरू करेंगे।
आपको उत्तर शनै शनै मिलना शुरू हो जायेगा ।और जब
समझ में आएगा तब आपको अहसास होगा की मैं
गुलाम हूँ।
आर्यों ने मुझे घेर रखा है अब मैं कुछ करू।क्युकी द्रविण
कोई और नहीं आप ही द्रविण हो।
इतिहास के पन्ने से-
आर्य कोई और नहीं
ब्राम्हण ,क्षत्रिय,वैश्य ही आर्य है। ये अर्थवा
,रथाईस्ट,वास्तारिया जाति के है इनका आगमन आज
से 4500 साल पहले 2500 ईसा पूर्व भारत में हुवा ,ये
घुड़सवारी होते थे और लोहे के तलवार रखते थे ।ये अपने
साथ गाय भी लेकर आये थे। उस समय भारत तीन
भागो में बटा था पश्चिमोत्तर में राजा बलि का
राज था। पूर्वोत्तर में राजा शंकर का राज था जिसे
आप शंकर भगवान कहते हो ।और दक्षिण में राजा
रावण का राज था जिसे आप हर साल जलाते हो और
खुसिया मनाते हो।
आर्य के आगमन के पहले भारत के मूलनिवासी द्रविण
लोग थे उस समय भारत के द्रविण लोग कृषि पशुपालन
,पक्के ईटो के घर ,नहाने के लिए स्नानागार, देश
विदेश में ब्यापार ,विज्ञानवादी सोच ,मूर्ती
निर्माण कला ,चित्रकारी में कुशल,शांति प्रिय ,एक
उन्नत सभ्यता था उन समय तुलना की जाय अन्य देशो
से तो हमारे सभ्यता उनसे काफी विकसित था।
आर्य सर्वप्रथम राजा बलि के राज में प्रवेश किये
,झुग्गी झोपडी बनाकर रहने लगे ।चोरी चकारी शुरू
किये। द्रविड़ो ने राजा से शिकायत किया ।
द्रविड़ो ने आर्यों को पकड़ कर राजा के सामने
हाजिर किये। आर्यों ने पेट का हवाला दिया
,राजा बलि दयालु मानवता प्रेमी थे। उसने माफ़ कर
दिया और आर्यों के रहने खाने का बंदोबस्त कर
दिया ,और चोरी न करने की सलाह दी।कुछ दिन में
राजा और प्रजा के ब्यवहार समझ जाने के बाद आर्यों
ने एक योजना बनायीं इसमें बामन नाम का एक
आदमी (जिसे आज विष्णु भगवान कहते है) आर्यों में
तेज बुध्हि था ,पुरे आर्य ग्रुप के साथ राजा बलि के
दरबार पहुचे और कहा राजा साहब हम आपके दरबार में
बहुत सुखी है पर कुछ चीज और हमें चाहिए दे देते तो
बड़ी मेहरबानी होती , राजा बलि ने कहा मांगो।
आर्यों ने कहा राजा साहब हमने सुना है आपके राज में
त्रिवाचा चलता है अर्थात तीन वचन। हमें भी
त्रिवाचा दीजिये कही मुकर जायेंगे तो।
इस प्रकार आर्यों ने छल कपट पूर्वक राजा बलि से
त्रिवाचा करवा लिया और तीन चीज मांग रखी।
पहला-राजा साहब हमें ऐसी सिक्षा का अधिकार
दो जिसे चाहे हम दे और न चाहे तो न दे।
दूसरा -राजा साहब हमें ऐसी धन का अधिकार दो
जिसे चाहे हम दे न चाहे तो न दे।
तीसरा - राजा साहब हमें ऐसी राज करने का
अधिकार दो जिसे चाहे उसे राज में बैठाये और न चाहे
तो न बैठाये।
इस प्रकार आर्यों ने छल पूर्वक राजा बलि से
सिक्षा, धन ,राज करने का अधिकार ले लिया और
राज में स्वं बैठ गए। सैनिक शक्ति में अपने लोगो को
कब्ज़ा करवा दिया। फिर राजा बलि को मारकर
जमीन में गाढ़ दिया। जिसे कहा जाता है विष्णु
भगवान ने राजा बलि से दान में तीन पग धरती में
जगह माँगा ,ये तीन पग सिक्षा धन राज करने का
अधिकार है और जमीन में गाडा उसको बतलाया
जाता है पाताल लोक का राजा बना दिया।
आप तो पढ़े लिखे हो जरा सोचो क्या किसी का
पैर इतना बड़ा हो सकता है जो पुरे पृथिवी को ढक
ले। और पुरे पृथिवी पर कब्ज़ा होता तो विष्णु
भगवान को अन्य देश के लोग क्यों नहीं जानते। क्यों
नहीं पूजते।
इस प्रकार आर्यों ने राजा बलि का राज हड़प लिया
उसी दिन से आर्य और द्रविण(भारत के मूलनिवासी)
के बीच युद्ध जारी है ।
इसके बाद राजा शंकर का राज हड़पने के लिए
योजना बनी। इसके लिए विष्णु ने अपनी बहन की
शादी राजा शंकर से करने के लिए सोचा और शादी
का प्रस्ताव भेजा ,राजा शंकर का सेना पति
महिसासुर था उसने आर्यों का चाल समझ गया था
उसने मना करवा दिया। महिषासुर रोड़ा बन गया।
तो आर्य पुत्री पार्वती ने ही महिषासुर को वध करने
के लिए उसे अपने प्रेम जाल में फसाया और वध करने के
लिए मौका खोजते रहे ,नौवा दिन जैसे मौका
मिला धोखे से त्रिशूल द्वारा हत्या कर दिया गया
। और शंकर के पास दास के रूप में सेवा करने लगी। धीरे
धीरे पार्वती अपनी खूबसूरती से शंकर को भी वश में
कर लिया। और योजनाबद्ध तरीके से नशा ,का आदत
लगाया ,इस प्रकार नशा से आदि होकर शंकर का
राज पाठ से मोह भंग हो गया ,फिर आर्यों ने उनका
भी राज चलाया और नशे से आपका शरीर गर्म
होगया कहकर हिमालय पर्वत में रहने का सलाह दिया
,जिसे आज कैलाश पर्वत कहते है।
इस प्रकार दो राज्यों में आर्यों का कब्ज़ा हो गया
।फिर रावण का राज हड़पने के लिए युद्ध छेढ दिया
गया। भभिसन के दोगलापन के कारण छल से रावण
को भी भारी मसक्कत के बाद आखिर में मार दिया
गया।
इस प्रकार तीनो राज्यों में आर्यों ने कब्ज़ा कर
लिया।
आर्यों ने अपने को देव और भारत के मूलनिवासी
(द्रविण) को असुर कहा ।इस प्रकार 1500 वर्षो की
लम्बी युद्ध के बाद द्रविण पूर्ण रूप से हार गए। यह
युद्ध इतिहास में देवासुर संग्राम के नाम से प्रसिद्ध है।
देवासुर संग्राम के बाद ही जाति व वर्ण ब्यवस्था
बनाया गया। आर्यों ने अर्थवा को ब्राम्हण,रथाईस्ट
को क्षत्रिय और वस्तारिया जाति को वैश्य
(बनिया) घोषित किया और भारत के मूलनिवासी
(द्रविण) को शुद्र घोषित किया।
और शुद्र में दो वर्ग बनाये जितने लोगो ने लड़ा भिड़ा
उसे अछूत शुद्र कहा और बाकि को सछुत शुद्र घोषित
किया। तथा सामाजिक एकता तोड़ने के लिए
उन्होंने सिर्फ शुद्र का ही जाति बनाया ,आज ये
जाति लगभग 6743 की संख्या में है इसकी लिस्ट नेट
में देख सकते है। और ब्राम्हण बनिया क्षत्रिय का
कोई जाति नहीं होता ,उसका सिर्फ वर्ण ही
होता है। शर्मा दुबे श्रीवास्तव ,द्विवेदी इनके गोत्र
है जाति नहीं ।यकिन न हो तो चतुराई से पुछ कर देख
लेना।
इस देवासुर संग्राम युद्ध में जो लोग लड़ भीड़ कर जंगल
में शरण लिया व युद्ध जारी रखा वो वन शरणागत
शुद्र (आदिवासी) st,कहलाये ,और जो लोग लड़ भीड़
कर हार कर वही समाज के बाहर रहने लगे वो दलित
(sc)कहलाये ।और बाकि शुद्र सछुत शुद्र कहलाये जिनमे
अन्य पिछड़ा वर्ग (obc)आता है।
जिसने जैसा संग्राम किया उसे उतना ही घृणित
कार्य दिया गया।
रामायण महाभारत ,चारो वेद ,उपनिषद,पुराण उसी
समय के लिखे गए ग्रन्थ है।
इस प्रकार जाति द्रविणो की सामाजिक एकता
तोड़ने के लिए बनाया गया और देवी देवता धार्मिक
गुलाम बनाने के लिए बनाया गया। हम देवी देवता के
रूप में सभी आर्यों की पूजा करते है ।ये सारे देवी
देवता false है। यह सत्य होता तो पुरे विश्व में होता
भारत में ही क्यों ।
इस प्रकार सिक्षा का अधिकार ब्राम्हण ने ले
लिया
क्षत्रिय ने राज करने
वैश्य ने धन का अधिकार ले लिया और शुद्र(द्रविण)
मूलनिवासी को तीनो वर्णों का सिर्फ सेवा करने
का काम दिया गया। जिसे आप कहीं न कहीं पढ़े
अवस्य होंगे।
इसके बाद महावीर स्वामी ने जाति व वर्ण ब्यवस्था
का विरोध किया था (583 ईसा पूर्व में) पर ज्यादा
सफल नहीं हुवे।
फिर गौतम बुद्ध ने 534ईसा पूर्व) के समय बौद्ध धर्म
जो मानव जाति का प्रकृति प्रदत धम्म को खोजा
जो सास्वत धम्म है। जिससे पुरे विश्व का मानव
जीवन का कल्याण है खोज निकाला और जाति व
वर्ण ब्यवस्था को लगभग समाप्त कर दिया था।
गौतम बुद्ध के बाद मौर्य वंश में चन्द्रगुप्त मौर्य अशोक
ने बौद्ध धर्म को नई उचाई दी ,अशोक के पुत्र पुत्री ने
कई देशो में खूब प्रचार किया जो आज के समय में 100
से अधिक देश बौद्ध धर्म को अपना चूका है कही
आंशिक तो कही पूर्ण रूप से।मौर्य वंश 50 साल चला
फिर अंतिम बौद्ध राजा ने गलती की ,कि उसने
सेनापति के रूप में ब्राम्हण पुष्यमित्र शुंग को घोषित
किया। शुंग ने सभी ब्राम्हण को सेना में भर्ती कर
दिया और सेनाओ के सामने अंतिम बौद्ध राजा
बृहद्रथ का हत्या कर दिया गया और 84000 स्तूप
तोड़ दिए गए।पुष्यमित्र शुंग का शासनकाल 32 वर्ष
(184 ईसा पूर्व -148 ईसा पूर्व)है। लाखो बौधो को
काट दिया गया ।एक बौद्ध सिर काटने का इनाम
100 नग सोने का सिक्का रखा गया। भारत की
धरती खून से रक्त रंजित हो गए। बहुतो ने दुसरे देश
जाकर अपनी जान बचाया। सारे बौद्ध ग्रन्थ घर से
खोज खोज कर जला दिए गए। इस प्रकार जिस देश में
बौद्ध धर्म जन्म लिया उस देश से गायब हो गए। मआज
भारत में जो भी बौद्ध ग्रन्थ त्रिपिटक लाये गए वो
सब अन्य देशो से लाये गए है।
इस प्रकार पुष्यमित्र शुङ्ग ने मनुस्मृति लिखा जिसमे
शुद्रो के सारे मानवीय अधिकार छीन लिए गए।
अपनी टूटी हुई रामायण महाभारत को फिर से नए ढंग
से नमक मिर्ची लगाकर लिखा गया। तब से 2000
साल तक शुद्र (sc/st/obc) को सिक्षा और धन का
अधि कार नहीं मिला था ।इस बीच अनेको संत
महापुरुष ,कबीर,गुरु नानक,रविदास,गुरु घासी दास ,
और अनेक महापुरुष हुवे जिन्होंने भक्ति मार्ग से
लोगो को सत्य का अहसास कराया ,लेकिन नैतिक
शक्ति -सिक्षा ,राजनितिक शक्ति - वोट देने के
अधिकार ,सैनिक व शारीरिक शक्ति कुपोषण के
कारन क्षीण हो गया था ।पेशवा ब्राम्हण साही में
दलित की स्थिति अति दयनीय हो गयी थी इस
समय दलित गले में हांड़ी और कमर में झाड़ू बांधकर चलते
थे यह 12 वर्षो तक चला ।1 जनवरी 1818 को महार
सैनिको ने पेशवा शाही लगभग युद्ध करके ख़त्म कर
दिए थे जिसमे 22 महार सैनिक शहीद हुवे थे। मुग़ल
राजाओ ने भी ब्राम्हणों से साठ गाठ कर भारत को
गुलाम बनाया और ब्राम्हणों के मर्जी से शुद्र को
सिक्षा नहीं दिया ,लेकिन जहागीर के शासन काल
में थामस मुनरो आये थे ।यहाँ का अजीब स्थिति
देखकर दंग रह गए ,उसी के बाद ब्रिटिश लोग डच
,पुर्तगाली,फ़्रांसिसी,अंग्रेज आये और कंपनी
स्थापित कर भारत को गुलाम बनाया ,उन्होंने
सिक्षा सबको देना शुरू किया जिसमे पहला ब्यक्ति
महात्मा ज्योतिबा फुले ने सिक्षा पाया जो की
माली जाति के अन्य पिछड़ा वर्ग से आता है
सिक्षा पाया ,उसने अपनी पत्नी सावित्री बाई
फुले को भी पढाया ,इस प्रकार सावित्री बाई फुले
सवर्ण महिला ,शुद्र महिला ,अति शुद्र महिला में
सिक्षा पाने वाली पहली महिला बनी ,ये आर्य
सवर्ण लोग अपनी पत्नी को भी सिक्षा नहीं दिए
क्युकी उनकी पत्नी भी द्रविण महिला ही है। इसी
लिए कहा गया है
ढोल ग्वार शुद्र पशु नारी
ये सब है ताडन के अधिकारी शुद्रो को सिक्षा 19
वी सदी 1840 के आसपास ही मिलना शुरू हुवा।
सारे क्रांति द्रविण शुद्रो ने ब्रिटिश शासन काल में
ही किये।रामास्वामी पेरियार ,
आंबेडकर साहब के जीवन काल में कितना छुवाछुत था
किसी से छुपा नहीं है।
आंबेडकर दलित में पहला ब्यक्ति है जिसने पहली बार
मेट्रिक पास किया ग्रेजुएशन किया ,m a किया।
आंबेडकर साहब जैसे संघर्ष आज तक किसी ने नहीं
किया है। अछूत कहे जाने वाले दलित समाज को
तालाब का पानी पीने का ,मंदिर में प्रवेश का
अधिकार नहीं था ।चवदार तालाब का पानी पीने
का सामूहिक प्रयास पहली बार किया गया ,जिसमे
दलितों को संग बहुत मारपीट किया गया ,करीब 20
दलित इस हमला में जख्मी हो गए थे ,फिर कालाराम
मंदिर में प्रवेश किये।बाबा साहब ने कई सभाए ली
,कई समिति का निर्माण किया ।25 dec 1927 को
मनुस्मृति का दहन किया गया ,यही वह ग्रन्थ है
जिसमे शुद्रो को नरक सा जीवन जीने के लिए
तानाशाही आदेश जारी किये गए। उस समय बाबा
साहब से बड़ा कोई बिद्वान ही नहीं था ,इस कारण
सविधान लिखने का अवसर बाबा साहेब को मिला
,आज दलित को ,शुद्रो को ,महिलाओ को जो भी
अधिकार मिला है चाहे कोई भी फील्ड हो सब
बाबा साहब के अथक प्रयास से सम्भव हुवा है।इसे sc/
st/obc/मिनिरिटी माने या न माने ये उनके ऊपर है।
अनुसूचित जाति कल्याण आयोग
अनुसूचित जनजाति कल्याण आयोग
अन्य पिछड़ा कल्याण आयोग
धार्मिक अल्प संख्यक कल्याण आयोग
(sc/st/obc/minirity) के लिए बनाया। आपको
सविधान में सवर्ण कल्याण आयोग कही नहीं
मिलेगा। क्यों ?जरा सोचे यह सविधान भारत के
मूलनिवासी द्रविण के हित व उनका सम्पूर्ण विकास
के लिए बनाया गया है। हर जरुरी अधिकार सविधान
में डाले गए है। लेकिन अफ़सोस की द्रविड़ो ने आज
तक सविधान को खोलकर देखा ही नहीं और सवर्ण के
साथ ही सविधान को बिना पढ़े जाने घटिया और
बदलने की बात करता है वही अन्य देश के राष्ट्रपति
,pm,कानून के जानकार इसे दुनिया की सबसे महान
सविधान कह्ता है।
सविधान लिखकर शुद्र (द्रविण) को आधी आजादी
दे दी गयी है और आधी आजादी जिस दिन हमारे
द्रविण भाई एक हो जायेंगे उस दिन सम्पूर्ण आजादी
मिलेगी।
आज ब्यापार में 95% सिक्षा में 75%,नौकरी
में75% ,जमीन में90% इन आर्यों का ही कब्ज़ा है। गौर
करो न भाई sc/st/obc/minirity में कितने % लोग
ब्यापर में हाथ पाव जमाये हो , 85% द्रविण सिर्फ
ग्राहक बने हो दुकानदार तो मुख्य रूप से सवर्ण है। बड़े
बड़े उद्योग ,कंपनी,बड़ी बड़ी दुकान हर प्रकार का
दुकान कौन चला रहा है गौर करोगे तो सब समझ आ
जायेगा लेकिन दुःख की बात हमारे भाई दूर की
सोच रखते ही नहीं ,आज सिख बौद्ध भी द्रविण है
इसाई भी द्रविण है मुस्लिम भी द्रविण है ।मुग़ल
काल में हमारे ही द्रविण भाइयो ने 90% मुसलमान
धर्म को ,हिन्दू धर्म की हीनता देख कर अपनाया ।
और अंग्रेज के शासन काल में हमारे द्रविण ही इसाई
धर्म को अपनाया। और सिख अपना अलग सा धर्म
बनाये। सिख बौद्ध मुसलमान इसाई सब द्रविण है
इसी कारण सवर्ण लोग कभी सिख दंगा कभी इसाई
दंगा कभी मुस्लिम दंगा कभी बौद्ध पर हमला क राते
रहता है ।ये सब इनकी सोची समझी साजिश होती
है।
67 साल के बाद आज जैसे ही बीजेपी govt सत्ता में
बहुमत से आई है। गौर कीजिये क्या हो रहा है धर्म
धर्म रट रहा है भारत को हिंदुस्तान करना चाहता है।
सिख हिन्दू थे घर वापसी करो। मुस्लिम 5 लाख में
,इसाई2 लाख में हिन्दू बनो,राम जादा हरम जादा
किसे कहते है इनके मंत्री सिख रहे है साध्वी जी।
नाथू राम गोडसे देश भक्त है जो आपके रस्त्रपिता
को तीन गोली ठोकता है।4 बच्चे पैदा करो एक इन
को दो एक बोर्डर को दो, दो अपने पास रखो
कितना सम्मान करते है महिला का सोचो। 2021
तक पूरा सबको हिन्दू बनाने की धमकी दिया जाता
है तो अल्पसंख्यक कहा जायेंगे। इसी कारण ही बाबा
साहब ने अल्पसंख्यक को कुछ विशेस अधिकार दिए थे
ताकि बहुसंख्यक इस पर हावी न हो सके। गीता
रास्ट्रीय ग्रन्थ घोषित करो। क्यों ताकि पुन युद्ध
करा सके। इतने सारे अनर्गल बयान दे रहे है और मोदी
चुप है क्यों।
द्रविण भाइयो अब एक हो जाओ यह समय खतरे से
भरा है अगर टूट कर रहोगे तो फिर याद रखना
इतना दिन तक ब्रम्हान्वाद ने मारा
अब पूजीवाद मारेगा और वर्ग संघर्ष की स्थिति
निर्मित होगी।
सिक्षा का भगवाकरण करके आपके दिमाग को मार
रहे है। सरकारी सेक्टर में निजीकरण ,fdi ,ppp,ठेकेदारी
करके आपके आरक्षण को मार दिया जायेगा आपके
अगला पीढ़ी दाने दाने के लिए मोहताज हो जायेंगे।पोस्ट लंबी है। जब समय हो तभी पढ़ें।
भाषा शैली व्याकरण पर ध्यान न दें
दूसरे ग्रुप से साभार

16-01-2016 09:06:49 PM: ‪+91 91255 43556‬: इस पोस्ट को जरूर पड़े ये हे भारत का असली इतिहास     क्या आप द्रविड़ सब्द का अर्थ जानते हो कुछ लोग मेरे ख्याल से नहीं जानते होंगे
,उनके लिए मैं संक्षिप्त में जानकारी प्रस्तुत कर रहा
हूँ।
द्रविण शब्द सभी ने अपने विद्यार्थी जीवन में अवस्य
पढ़ा होगा ,साथ ही यह भी पढ़ा होगा की भारत
देश की सभ्यता आर्य और द्रविण लोगो की मिली
जुली सभ्यता है ।और यह भी पढ़ा होगा की आर्य
बाहर से आये हुवे लोग है। हमारे भारतीय इतिहासकार
लोगो ने बहुत सारी बातो को दबा दिया ,इतिहास
में ऐसा बताया गया की ये एक काल्पनिक कथा है
और जो काल्पनिक है उस झूठी बातो में जान डाल
दिया गया।
भारत में आर्यों का आगमन हुवा ।ये कौन लोग है।
कहाँ से आया ,भारत में ये लोग है या नहीं इस बारे में
इतिहासकार इतिहास में लिखता नहीं। क्यों?
क्युकी आज भारत देश में इतिहास लिखने वाला आर्य
लोग ही है।
लेकिन आप उसे पहचानते नहीं।
क्या आपको पता है आपको सिक्षा कब से मिली ?
और आप कौन से वर्ण में आते है? आप इस जाति में क्यों
है?आप का इतिहास क्या था?
जिस दिन इन बातो को खोजना शुरू करेंगे।
आपको उत्तर शनै शनै मिलना शुरू हो जायेगा ।और जब
समझ में आएगा तब आपको अहसास होगा की मैं
गुलाम हूँ।
आर्यों ने मुझे घेर रखा है अब मैं कुछ करू।क्युकी द्रविण
कोई और नहीं आप ही द्रविण हो।
इतिहास के पन्ने से-
आर्य कोई और नहीं
ब्राम्हण ,क्षत्रिय,वैश्य ही आर्य है। ये अर्थवा
,रथाईस्ट,वास्तारिया जाति के है इनका आगमन आज
से 4500 साल पहले 2500 ईसा पूर्व भारत में हुवा ,ये
घुड़सवारी होते थे और लोहे के तलवार रखते थे ।ये अपने
साथ गाय भी लेकर आये थे। उस समय भारत तीन
भागो में बटा था पश्चिमोत्तर में राजा बलि का
राज था। पूर्वोत्तर में राजा शंकर का राज था जिसे
आप शंकर भगवान कहते हो ।और दक्षिण में राजा
रावण का राज था जिसे आप हर साल जलाते हो और
खुसिया मनाते हो।
आर्य के आगमन के पहले भारत के मूलनिवासी द्रविण
लोग थे उस समय भारत के द्रविण लोग कृषि पशुपालन
,पक्के ईटो के घर ,नहाने के लिए स्नानागार, देश
विदेश में ब्यापार ,विज्ञानवादी सोच ,मूर्ती
निर्माण कला ,चित्रकारी में कुशल,शांति प्रिय ,एक
उन्नत सभ्यता था उन समय तुलना की जाय अन्य देशो
से तो हमारे सभ्यता उनसे काफी विकसित था।
आर्य सर्वप्रथम राजा बलि के राज में प्रवेश किये
,झुग्गी झोपडी बनाकर रहने लगे ।चोरी चकारी शुरू
किये। द्रविड़ो ने राजा से शिकायत किया ।
द्रविड़ो ने आर्यों को पकड़ कर राजा के सामने
हाजिर किये। आर्यों ने पेट का हवाला दिया
,राजा बलि दयालु मानवता प्रेमी थे। उसने माफ़ कर
दिया और आर्यों के रहने खाने का बंदोबस्त कर
दिया ,और चोरी न करने की सलाह दी।कुछ दिन में
राजा और प्रजा के ब्यवहार समझ जाने के बाद आर्यों
ने एक योजना बनायीं इसमें बामन नाम का एक
आदमी (जिसे आज विष्णु भगवान कहते है) आर्यों में
तेज बुध्हि था ,पुरे आर्य ग्रुप के साथ राजा बलि के
दरबार पहुचे और कहा राजा साहब हम आपके दरबार में
बहुत सुखी है पर कुछ चीज और हमें चाहिए दे देते तो
बड़ी मेहरबानी होती , राजा बलि ने कहा मांगो।
आर्यों ने कहा राजा साहब हमने सुना है आपके राज में
त्रिवाचा चलता है अर्थात तीन वचन। हमें भी
त्रिवाचा दीजिये कही मुकर जायेंगे तो।
इस प्रकार आर्यों ने छल कपट पूर्वक राजा बलि से
त्रिवाचा करवा लिया और तीन चीज मांग रखी।
पहला-राजा साहब हमें ऐसी सिक्षा का अधिकार
दो जिसे चाहे हम दे और न चाहे तो न दे।
दूसरा -राजा साहब हमें ऐसी धन का अधिकार दो
जिसे चाहे हम दे न चाहे तो न दे।
तीसरा - राजा साहब हमें ऐसी राज करने का
अधिकार दो जिसे चाहे उसे राज में बैठाये और न चाहे
तो न बैठाये।
इस प्रकार आर्यों ने छल पूर्वक राजा बलि से
सिक्षा, धन ,राज करने का अधिकार ले लिया और
राज में स्वं बैठ गए। सैनिक शक्ति में अपने लोगो को
कब्ज़ा करवा दिया। फिर राजा बलि को मारकर
जमीन में गाढ़ दिया। जिसे कहा जाता है विष्णु
भगवान ने राजा बलि से दान में तीन पग धरती में
जगह माँगा ,ये तीन पग सिक्षा धन राज करने का
अधिकार है और जमीन में गाडा उसको बतलाया
जाता है पाताल लोक का राजा बना दिया।
आप तो पढ़े लिखे हो जरा सोचो क्या किसी का
पैर इतना बड़ा हो सकता है जो पुरे पृथिवी को ढक
ले। और पुरे पृथिवी पर कब्ज़ा होता तो विष्णु
भगवान को अन्य देश के लोग क्यों नहीं जानते। क्यों
नहीं पूजते।
इस प्रकार आर्यों ने राजा बलि का राज हड़प लिया
उसी दिन से आर्य और द्रविण(भारत के मूलनिवासी)
के बीच युद्ध जारी है ।
इसके बाद राजा शंकर का राज हड़पने के लिए
योजना बनी। इसके लिए विष्णु ने अपनी बहन की
शादी राजा शंकर से करने के लिए सोचा और शादी
का प्रस्ताव भेजा ,राजा शंकर का सेना पति
महिसासुर था उसने आर्यों का चाल समझ गया था
उसने मना करवा दिया। महिषासुर रोड़ा बन गया।
तो आर्य पुत्री पार्वती ने ही महिषासुर को वध करने
के लिए उसे अपने प्रेम जाल में फसाया और वध करने के
लिए मौका खोजते रहे ,नौवा दिन जैसे मौका
मिला धोखे से त्रिशूल द्वारा हत्या कर दिया गया
। और शंकर के पास दास के रूप में सेवा करने लगी। धीरे
धीरे पार्वती अपनी खूबसूरती से शंकर को भी वश में
कर लिया। और योजनाबद्ध तरीके से नशा ,का आदत
लगाया ,इस प्रकार नशा से आदि होकर शंकर का
राज पाठ से मोह भंग हो गया ,फिर आर्यों ने उनका
भी राज चलाया और नशे से आपका शरीर गर्म
होगया कहकर हिमालय पर्वत में रहने का सलाह दिया
,जिसे आज कैलाश पर्वत कहते है।
इस प्रकार दो राज्यों में आर्यों का कब्ज़ा हो गया
।फिर रावण का राज हड़पने के लिए युद्ध छेढ दिया
गया। भभिसन के दोगलापन के कारण छल से रावण
को भी भारी मसक्कत के बाद आखिर में मार दिया
गया।
इस प्रकार तीनो राज्यों में आर्यों ने कब्ज़ा कर
लिया।
आर्यों ने अपने को देव और भारत के मूलनिवासी
(द्रविण) को असुर कहा ।इस प्रकार 1500 वर्षो की
लम्बी युद्ध के बाद द्रविण पूर्ण रूप से हार गए। यह
युद्ध इतिहास में देवासुर संग्राम के नाम से प्रसिद्ध है।
देवासुर संग्राम के बाद ही जाति व वर्ण ब्यवस्था
बनाया गया। आर्यों ने अर्थवा को ब्राम्हण,रथाईस्ट
को क्षत्रिय और वस्तारिया जाति को वैश्य
(बनिया) घोषित किया और भारत के मूलनिवासी
(द्रविण) को शुद्र घोषित किया।
और शुद्र में दो वर्ग बनाये जितने लोगो ने लड़ा भिड़ा
उसे अछूत शुद्र कहा और बाकि को सछुत शुद्र घोषित
किया। तथा सामाजिक एकता तोड़ने के लिए
उन्होंने सिर्फ शुद्र का ही जाति बनाया ,आज ये
जाति लगभग 6743 की संख्या में है इसकी लिस्ट नेट
में देख सकते है। और ब्राम्हण बनिया क्षत्रिय का
कोई जाति नहीं होता ,उसका सिर्फ वर्ण ही
होता है। शर्मा दुबे श्रीवास्तव ,द्विवेदी इनके गोत्र
है जाति नहीं ।यकिन न हो तो चतुराई से पुछ कर देख
लेना।
इस देवासुर संग्राम युद्ध में जो लोग लड़ भीड़ कर जंगल
में शरण लिया व युद्ध जारी रखा वो वन शरणागत
शुद्र (आदिवासी) st,कहलाये ,और जो लोग लड़ भीड़
कर हार कर वही समाज के बाहर रहने लगे वो दलित
(sc)कहलाये ।और बाकि शुद्र सछुत शुद्र कहलाये जिनमे
अन्य पिछड़ा वर्ग (obc)आता है।
जिसने जैसा संग्राम किया उसे उतना ही घृणित
कार्य दिया गया।
रामायण महाभारत ,चारो वेद ,उपनिषद,पुराण उसी
समय के लिखे गए ग्रन्थ है।
इस प्रकार जाति द्रविणो की सामाजिक एकता
तोड़ने के लिए बनाया गया और देवी देवता धार्मिक
गुलाम बनाने के लिए बनाया गया। हम देवी देवता के
रूप में सभी आर्यों की पूजा करते है ।ये सारे देवी
देवता false है। यह सत्य होता तो पुरे विश्व में होता
भारत में ही क्यों ।
इस प्रकार सिक्षा का अधिकार ब्राम्हण ने ले
लिया
क्षत्रिय ने राज करने
वैश्य ने धन का अधिकार ले लिया और शुद्र(द्रविण)
मूलनिवासी को तीनो वर्णों का सिर्फ सेवा करने
का काम दिया गया। जिसे आप कहीं न कहीं पढ़े
अवस्य होंगे।
इसके बाद महावीर स्वामी ने जाति व वर्ण ब्यवस्था
का विरोध किया था (583 ईसा पूर्व में) पर ज्यादा
सफल नहीं हुवे।
फिर गौतम बुद्ध ने 534ईसा पूर्व) के समय बौद्ध धर्म
जो मानव जाति का प्रकृति प्रदत धम्म को खोजा
जो सास्वत धम्म है। जिससे पुरे विश्व का मानव
जीवन का कल्याण है खोज निकाला और जाति व
वर्ण ब्यवस्था को लगभग समाप्त कर दिया था।
गौतम बुद्ध के बाद मौर्य वंश में चन्द्रगुप्त मौर्य अशोक
ने बौद्ध धर्म को नई उचाई दी ,अशोक के पुत्र पुत्री ने
कई देशो में खूब प्रचार किया जो आज के समय में 100
से अधिक देश बौद्ध धर्म को अपना चूका है कही
आंशिक तो कही पूर्ण रूप से।मौर्य वंश 50 साल चला
फिर अंतिम बौद्ध राजा ने गलती की ,कि उसने
सेनापति के रूप में ब्राम्हण पुष्यमित्र शुंग को घोषित
किया। शुंग ने सभी ब्राम्हण को सेना में भर्ती कर
दिया और सेनाओ के सामने अंतिम बौद्ध राजा
बृहद्रथ का हत्या कर दिया गया और 84000 स्तूप
तोड़ दिए गए।पुष्यमित्र शुंग का शासनकाल 32 वर्ष
(184 ईसा पूर्व -148 ईसा पूर्व)है। लाखो बौधो को
काट दिया गया ।एक बौद्ध सिर काटने का इनाम
100 नग सोने का सिक्का रखा गया। भारत की
धरती खून से रक्त रंजित हो गए। बहुतो ने दुसरे देश
जाकर अपनी जान बचाया। सारे बौद्ध ग्रन्थ घर से
खोज खोज कर जला दिए गए। इस प्रकार जिस देश में
बौद्ध धर्म जन्म लिया उस देश से गायब हो गए। मआज
भारत में जो भी बौद्ध ग्रन्थ त्रिपिटक लाये गए वो
सब अन्य देशो से लाये गए है।
इस प्रकार पुष्यमित्र शुङ्ग ने मनुस्मृति लिखा जिसमे
शुद्रो के सारे मानवीय अधिकार छीन लिए गए।
अपनी टूटी हुई रामायण महाभारत को फिर से नए ढंग
से नमक मिर्ची लगाकर लिखा गया। तब से 2000
साल तक शुद्र (sc/st/obc) को सिक्षा और धन का
अधि कार नहीं मिला था ।इस बीच अनेको संत
महापुरुष ,कबीर,गुरु नानक,रविदास,गुरु घासी दास ,
और अनेक महापुरुष हुवे जिन्होंने भक्ति मार्ग से
लोगो को सत्य का अहसास कराया ,लेकिन नैतिक
शक्ति -सिक्षा ,राजनितिक शक्ति - वोट देने के
अधिकार ,सैनिक व शारीरिक शक्ति कुपोषण के
कारन क्षीण हो गया था ।पेशवा ब्राम्हण साही में
दलित की स्थिति अति दयनीय हो गयी थी इस
समय दलित गले में हांड़ी और कमर में झाड़ू बांधकर चलते
थे यह 12 वर्षो तक चला ।1 जनवरी 1818 को महार
सैनिको ने पेशवा शाही लगभग युद्ध करके ख़त्म कर
दिए थे जिसमे 22 महार सैनिक शहीद हुवे थे। मुग़ल
राजाओ ने भी ब्राम्हणों से साठ गाठ कर भारत को
गुलाम बनाया और ब्राम्हणों के मर्जी से शुद्र को
सिक्षा नहीं दिया ,लेकिन जहागीर के शासन काल
में थामस मुनरो आये थे ।यहाँ का अजीब स्थिति
देखकर दंग रह गए ,उसी के बाद ब्रिटिश लोग डच
,पुर्तगाली,फ़्रांसिसी,अंग्रेज आये और कंपनी
स्थापित कर भारत को गुलाम बनाया ,उन्होंने
सिक्षा सबको देना शुरू किया जिसमे पहला ब्यक्ति
महात्मा ज्योतिबा फुले ने सिक्षा पाया जो की
माली जाति के अन्य पिछड़ा वर्ग से आता है
सिक्षा पाया ,उसने अपनी पत्नी सावित्री बाई
फुले को भी पढाया ,इस प्रकार सावित्री बाई फुले
सवर्ण महिला ,शुद्र महिला ,अति शुद्र महिला में
सिक्षा पाने वाली पहली महिला बनी ,ये आर्य
सवर्ण लोग अपनी पत्नी को भी सिक्षा नहीं दिए
क्युकी उनकी पत्नी भी द्रविण महिला ही है। इसी
लिए कहा गया है
ढोल ग्वार शुद्र पशु नारी
ये सब है ताडन के अधिकारी शुद्रो को सिक्षा 19
वी सदी 1840 के आसपास ही मिलना शुरू हुवा।
सारे क्रांति द्रविण शुद्रो ने ब्रिटिश शासन काल में
ही किये।रामास्वामी पेरियार ,
आंबेडकर साहब के जीवन काल में कितना छुवाछुत था
किसी से छुपा नहीं है।
आंबेडकर दलित में पहला ब्यक्ति है जिसने पहली बार
मेट्रिक पास किया ग्रेजुएशन किया ,m a किया।
आंबेडकर साहब जैसे संघर्ष आज तक किसी ने नहीं
किया है। अछूत कहे जाने वाले दलित समाज को
तालाब का पानी पीने का ,मंदिर में प्रवेश का
अधिकार नहीं था ।चवदार तालाब का पानी पीने
का सामूहिक प्रयास पहली बार किया गया ,जिसमे
दलितों को संग बहुत मारपीट किया गया ,करीब 20
दलित इस हमला में जख्मी हो गए थे ,फिर कालाराम
मंदिर में प्रवेश किये।बाबा साहब ने कई सभाए ली
,कई समिति का निर्माण किया ।25 dec 1927 को
मनुस्मृति का दहन किया गया ,यही वह ग्रन्थ है
जिसमे शुद्रो को नरक सा जीवन जीने के लिए
तानाशाही आदेश जारी किये गए। उस समय बाबा
साहब से बड़ा कोई बिद्वान ही नहीं था ,इस कारण
सविधान लिखने का अवसर बाबा साहेब को मिला
,आज दलित को ,शुद्रो को ,महिलाओ को जो भी
अधिकार मिला है चाहे कोई भी फील्ड हो सब
बाबा साहब के अथक प्रयास से सम्भव हुवा है।इसे sc/
st/obc/मिनिरिटी माने या न माने ये उनके ऊपर है।
अनुसूचित जाति कल्याण आयोग
अनुसूचित जनजाति कल्याण आयोग
अन्य पिछड़ा कल्याण आयोग
धार्मिक अल्प संख्यक कल्याण आयोग
(sc/st/obc/minirity) के लिए बनाया। आपको
सविधान में सवर्ण कल्याण आयोग कही नहीं
मिलेगा। क्यों ?जरा सोचे यह सविधान भारत के
मूलनिवासी द्रविण के हित व उनका सम्पूर्ण विकास
के लिए बनाया गया है। हर जरुरी अधिकार सविधान
में डाले गए है। लेकिन अफ़सोस की द्रविड़ो ने आज
तक सविधान को खोलकर देखा ही नहीं और सवर्ण के
साथ ही सविधान को बिना पढ़े जाने घटिया और
बदलने की बात करता है वही अन्य देश के राष्ट्रपति
,pm,कानून के जानकार इसे दुनिया की सबसे महान
सविधान कह्ता है।
सविधान लिखकर शुद्र (द्रविण) को आधी आजादी
दे दी गयी है और आधी आजादी जिस दिन हमारे
द्रविण भाई एक हो जायेंगे उस दिन सम्पूर्ण आजादी
मिलेगी।
आज ब्यापार में 95% सिक्षा में 75%,नौकरी
में75% ,जमीन में90% इन आर्यों का ही कब्ज़ा है। गौर
करो न भाई sc/st/obc/minirity में कितने % लोग
ब्यापर में हाथ पाव जमाये हो , 85% द्रविण सिर्फ
ग्राहक बने हो दुकानदार तो मुख्य रूप से सवर्ण है। बड़े
बड़े उद्योग ,कंपनी,बड़ी बड़ी दुकान हर प्रकार का
दुकान कौन चला रहा है गौर करोगे तो सब समझ आ
जायेगा लेकिन दुःख की बात हमारे भाई दूर की
सोच रखते ही नहीं ,आज सिख बौद्ध भी द्रविण है
इसाई भी द्रविण है मुस्लिम भी द्रविण है ।मुग़ल
काल में हमारे ही द्रविण भाइयो ने 90% मुसलमान
धर्म को ,हिन्दू धर्म की हीनता देख कर अपनाया ।
और अंग्रेज के शासन काल में हमारे द्रविण ही इसाई
धर्म को अपनाया। और सिख अपना अलग सा धर्म
बनाये। सिख बौद्ध मुसलमान इसाई सब द्रविण है
इसी कारण सवर्ण लोग कभी सिख दंगा कभी इसाई
दंगा कभी मुस्लिम दंगा कभी बौद्ध पर हमला क राते
रहता है ।ये सब इनकी सोची समझी साजिश होती
है।
67 साल के बाद आज जैसे ही बीजेपी govt सत्ता में
बहुमत से आई है। गौर कीजिये क्या हो रहा है धर्म
धर्म रट रहा है भारत को हिंदुस्तान करना चाहता है।
सिख हिन्दू थे घर वापसी करो। मुस्लिम 5 लाख में
,इसाई2 लाख में हिन्दू बनो,राम जादा हरम जादा
किसे कहते है इनके मंत्री सिख रहे है साध्वी जी।
नाथू राम गोडसे देश भक्त है जो आपके रस्त्रपिता
को तीन गोली ठोकता है।4 बच्चे पैदा करो एक इन
को दो एक बोर्डर को दो, दो अपने पास रखो
कितना सम्मान करते है महिला का सोचो। 2021
तक पूरा सबको हिन्दू बनाने की धमकी दिया जाता
है तो अल्पसंख्यक कहा जायेंगे। इसी कारण ही बाबा
साहब ने अल्पसंख्यक को कुछ विशेस अधिकार दिए थे
ताकि बहुसंख्यक इस पर हावी न हो सके। गीता
रास्ट्रीय ग्रन्थ घोषित करो। क्यों ताकि पुन युद्ध
करा सके। इतने सारे अनर्गल बयान दे रहे है और मोदी
चुप है क्यों।
द्रविण भाइयो अब एक हो जाओ यह समय खतरे से
भरा है अगर टूट कर रहोगे तो फिर याद रखना
इतना दिन तक ब्रम्हान्वाद ने मारा
अब पूजीवाद मारेगा और वर्ग संघर्ष की स्थिति
निर्मित होगी।
सिक्षा का भगवाकरण करके आपके दिमाग को मार
रहे है। सरकारी सेक्टर में निजीकरण ,fdi ,ppp,ठेकेदारी
करके आपके आरक्षण को मार दिया जायेगा आपके
अगला पीढ़ी दाने दाने के लिए मोहताज हो जायेंगे।