कवि सुखराम आशर्मा (मेरा खास दोस्त )
""""जीवन का अर्थ है अर्थी में """"
भूल गए है एक सच्चाई ,हमको याद जुबानी है
याद दिलाए हम उन जन को ,जिनकी धन्य जवानी है !
धन्य इन्ही का जीवन समझो ,जिसने समझा म्रत्यु को
म्रत्यु तो है सार जीवन का ,जीवन व्यर्थ कहानी है !!
अपने वाले बदल गए तो ,औरो कि क्या बात करे
अपने वाले बदल गए तो ,औरो कि क्या बात करे
इस काया का नही भरोसा ,तो फिर किसकी आस करे
घर परिवार समाज है झूठा ,झूठा है संसार यहाँ
जब सारा जग झूठा बन बैठा ,तो क्यू व्यर्थ में कष्ट सहे !!
साथ छुटा अपने वालो का ,मिल गए हम बेगानों में
भाई और बन्धु लेकर, चल दिए हमें श्मशानो में !
गाते चलते धुन राम कि ,मुर्दों के सम्मनो
मरने पर नही मुर्दे सुनते ,चाहे कहो तुम कानो में !!
मरने पर नही मुर्दे सुनते ,चाहे कहो तुम कानो में !!
जब तक स्वस्थ्य शरीर था अपना ,कर न सके उनका मान
मुर्दों पर फूलो कि वर्षा ,चौराहों पर होती आज में
मुरझा गए भी फूल शर्म से ,कहते मुर्ख जहा है आज
मुर्दों पर नही हमको चढ़ना ,आती हमको इनसे लाज !!
धन और दौलत बहुत कमाया ,और दुनिया में घुल गए
जिसने जन्म दिया है तुमको ,तुम उसको ही भूल गए !
प्रभु कृपा से मिला यह जीवन ,यू न इसे बर्बाद करो
प्रभु कृपा से मिला यह जीवन ,यू न इसे बर्बाद करो
सोच समझ कर भज लो इनको ,और मोक्ष को प्राप्त करो
चार कंधो पर चढ कर अर्थी ,अर्थ बताती दुनिया को
जिसने मुझ पर शयन किया है ,फिर न लौटा इस जग को
गए थे तीर्थ कभी तीर्थंकर ,अर्थ दे गए जन- जन को
अर्थी में ही अर्थ छुपा है ,व्यर्थ न समझो अर्थी को !!
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