रविवार, 27 मई 2012

.........कसक..........


इस कहानी को लिखने से पहले मैं बहुत ही आहत हू ,कि समाज में ऐसे भी दुष्कृत्य होते है ,,जहा आज हमारा देश प्रगतिशीलता कि वाहवाही लूटते नहीं थकता ,वही हमारा समाज इन कुकर्मो को बढ़ावा ही दे रहा है ,,देश में कितने भी कानून महिलाओं के पक्ष में बन जाए ,,पर महिलाओं कि आबरू बचाने में असक्षम रहा है ,,,हर रोबदार राक्षस इन कानूनों कि आड़ में आपने आप को सुरक्षित कर लेता है ,,, और शुरू हो जाता है औरत की अस्मिता से खेलने वाला खेल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,


          यह
कहानी एक गांव कि लड़की रेम्या की है ,,जो दर्दनाक घटना उसके जीवन में घटित होती है ,,उसे सुन हर इन्सान भौचक्का ही रह जाए !!!!
                       गोपालपुर गांव
में कमतू नाम का व्यक्ति था ,पत्नी का नाम शीतल था ,,,वह काफी गरीबी में गुजर-बसर कर रहे थे ,,घर का गुजरा कैसे चलता है ,यह कह पाना काफी मुश्किल है ,बेटा नरेश जो की आलसी ,कामचोर याने की नलायक किस्म का है ,उसे काम धंधे से कोई सरोकार नही है ,,,,घर पर केवल यही चार सदस्य है ,,,,,,दूसरे के खेतों में काम कर जीवन-यापन करना जैसे इनकी दिनचर्या थी ,,,कमतू ने एक ठेकेदार से कर्ज भी ले रखा है ,,पर उसे चुकाने का कोई जरिया नही है ,,,,रेम्या भी लगभग १४ साल की कमसिन लड़की है उसके माँ बाप ने बड़े लाड़
 से पाला है ,,रेम्या का भी ऋतु शुरू ही हुआ है ,जवानी भी जोर पर है ,,पर पता नही भगवान को क्या मंजूर है !!
        एक
दिन अचानक ठेकेदार रामसिंह जो की इलाके में उसकी तूती बोलती है ,गांव में किसी की भी हिम्मत नही की उससे नजर उठाकर भी बात कर ले ,चारो ओर उसका दबदबा है ,,वह कमतू के पास अपना कर्ज मांगने आया है ,,पैसे तो है नही जो कमतू अपना कर्ज चुका दे ,,खेत जमींन भी नही है ,,रहा-सहा टूटा -फूटा झोपड़ा ही बचा है ,पर उससे कभी इतनी बड़ी रकम कहा मिलेगी ,,,,,,,,,,,,,,,,
 कमतू
,,,,,,,,ओ,,,,,,,,,,कमतू,,,,,,,,,मर गया क्या ,,जो बोल नही रहा है ,पैसे लेते समय तो हाथ पैर जोड़ते हुए आया था ,देने के समय सांप सूंघ गया ,,,,अंदर घुसता हुआ चला गया ,,कमतू ,,शीतल और रेम्या वहाँ  मौजूद थे ,,,रेम्या को देखते ही बुरी नीयत से ठेकेदार तो ठिठक कर ही रह गया ,,रेम्या की बगल कनखी से उसके उरोजो की उचाईयां फटी हुई फ्राक से स्पष्ट देखी  जा सकती है ,,उसे देखते ही ठेकेदार के मन में किस योजना ने जन्म ले लिया उन सब को पता ही नही ,,,,,,क्यों कमतू तेरी बेटी इतनी बड़ी हो गई तुने साले बताया ही नही ,,,एक काम कर ,,मैं तेरी बेटी की नौकरी शहर में लगवा देता हू ,,इससे तुझे भी दो पैसे का सहारा मिल जाएगा और मेरा कर्ज भी उतर जाएगा ,,वैसे भी शहर में मेरी खूब जान पहचान है ,तकलीफ की कोई बात नही है वहाँ पर ,,,,,,,,,,
         पर
सरकार इस फूल सी बच्ची को कहा भेजूंगा ,,न सरकार ,,,,,न सरकार ,,,
सोच
ले कमतू ,मैं तेरे फायदे की ही बात कर रहा हू ,,फिर तु मेरा कर्ज कैसे चुकाएगा ,,तु तो बीमार है ,काम के लायक ही नही है ,और मैं कर्ज छोडूंगा नही ,,मान जा वर्ना पछताएगा  !!!!!!!
          किसी
तरह कमतू,, रेम्या को शहर भेजने को तैयार हो जाता है ,,अब एक दिन ठेकेदार रेम्या को लेकर शहर चला जाता है ,,और एक घर में छोड़ देता है ,,पर हाय रे किस्मत कहाँ लाके पटका ,,क्या भगवान को यही मंजूर था ,,,,,,,उसे इस बात का भान भी हुआ की वह एक चकलेघर { वेश्यालय }  में पहुँच चूकी है ,,,ठेकेदार ने उसे महज २५,००० (पच्चीस हजार ) में बेच दिया था ,,,रेम्या बड़े ठाठ से रहती ,उसे यही पता था की काम अभी नही मिला ,,,पर यह क्या ,,मात्र दिन बाद ही उसे दुल्हन की तरह सजाया गया ,वह अब कुछ समझ ही नही पा रही थी ,,आज उसकी नथ उतरवाई थी ,,पहली बार वह बिक रही थी ,,उसे १०,००० (दस हजार ) में एक रात के लिए एक सेठ को बेच गया था ,,सेठ भी एक हवस का पुजारी दरिंदा था ,,सेठ को तो जैसे अपने पूरे पैसे वसूल करना था ,,और शुरू हुआ शीलहरण का तांडव ,वह दरिंदा रेम्या पर टूट पडा ,रेम्या बहुत चीखी - चिल्लाई पर उसकी आवाज उसी कमरे में ही दब कर रह गई ,,वह रेम्या के योनी में जबरदस्ती ही अपने पौरुष को प्रवेश कराए जा रहा था ,,रेम्या बहुत ही दर्दनाक तरीके से चीख रही थी ,वह भगवान को पुकारती रही ,,पर रेम्या कोई द्रोपती तो थी नही जो उसे बचाने भगवान श्री कृष्ण आते ,,,,भगवान तो बस भक्तो की ईज्जत लूटते ही देख सकते है उनमे इतना साहस कहाँ की वह किसी दरिंदे को इस दुष्कर्म की सजा दे सके ,,,वो तो जैसे पोर्न(नग्न फिल्म )फिल्म चल रही हो और उसका आनंद उठा रहे हो ,,,,,,सेठ ने एक जोर का झटका मारा और रेम्या के आँखों के सामने अँधेरा छा गया ,ऐसा लगा की जैसे उसकी योनी में गरम-गरम सलिया किसी ने डाल दिया हो ,,,रेम्या लगभग बेहोश हो चुकि थी पर हवश का पुजारी अब भी रौंदे जा रहा था ,,इस तरह वह रेम्या को रात भर रौंदता रहा ,,
                 अब
यह काम उसकी मर्जी हो या मज़बूरी हो ,दोनों परिस्थितियों में करना था ,,धीरे-धीरे समय बीतता रहा ,अब तो रेम्या को ये जुल्म सहने की आदत सी हो गई थी ,,अब पक्षी के पर कतरे जा चुके थे ,उड़े भी तो कैसे उड़े ,,एक बंदी की तरह उसका जीवन हो गया था ,,,,,,उधर ठेकेदार कमतू को कुछ खर्चा-पानी देते रहता था ,इस तरह साल बीत गया ,पर रेम्या का कोई अता-पता नही था ,ठेकेदार कमतू को झांसे में रखता ,,,पर ठेकेदार कोई न कोई बहाना बना ही लेता ,,कमतू को उसकी बाते मानने के अलावा कोई चारा भी नही था ,,इस तरह चार वर्ष बीत गये रेम्या को गये हुए ,,अब  रेम्या के भाई नरेश की शादी भी होने जा रही है ,,,कमतू ने ठेकेदार के पैरों में गिरकर बहुत गिडगिडाया और रेम्या को वापस शादी में शामिल होने के लिए बुलाना चाहता था ,,ठेकेदार इसी शर्त पर तैयार हुआ की मात्र शादी में ही आएगी ,और फिर काम में वापस चली जाएगी ,,,अब रेम्या को चार दिन की इजाजत मिली थी घर जाने के लिए ,,पर अब तो रेम्या की कद-काठी ही बदल गई थी अब तो उसे जो भी देखता बस ठंडी आहे भरने लगता ,,चकलेघर की ये एक कमाऊ बेटी जो ठहरी थी ,,,,
            मोटर
में बैठ कर रेम्या अपने गांव गोपालपुर पहुची ,,बस से उतरते ही किसी मनचले ने कहा >>क्या यार आजकल तो टमाटर बहुत महंगे है ,,क्या दिखती है यार ,,कास् इससे मेरी शादी हो जाती ,,,,पता नही क्या-क्या लोगो ने कहा ,,,पर रेम्या ने कहा की तुम्हारे घर में माँ,बहन नही है क्या ,,,,,,,,,,,,,,,,,,माँ ,बहन तो है जानेमन   ,,पर तुम नही हो ,,,,,,,,,,,,,,,रेम्या कोई जवाब दिए बगैर आगे बढ़ जाती है ,,,अपने घर की ओर बढ़ जाती है घर पर ,कमतू और शीतल ,, बेटी रेम्या का स्वागत करते दिखाई देते है ,,,मिलाप होता है और शादी की तैयारी होने लगती है ,,आज भाई नरेश की बारात जाने को है ,,,बारात दूसरे दिन लौट आती है ,,
             आज
भाई नरेश की सुहागरात ,,पूरा घर खुशियों में झूम रहा है ,,पर रेम्या कुछ अलग ही उधेड़बुन में लगी है ,,,,,,झोपड़े में एक ही बड़ा कमरा जिसमे एक साडी का पर्दा बना कर एक कमरा तैयार कर दिया गया ,,एक ही छत के नीचे सभी थे ,पर दूरियाँ कुछ भी नही थी ,,,,,नरेश भी एक वहशी किस्म का लड़का था ,,,,,वह भी सुहागरात का मतलब नही समझता था ,,उसे तो यही लगता की सहवास करके ही जंग जीतना है  ,,,,,अब रात का समय हो चला था ,,फिर वही खेल शुरू होने जा रहा था जो पहली बार रेम्या के साथ हुआ था ,,,,नरेश भी हवस में अंधा होकर अपनी बीबी को नंगा कर दिया था और उसे रौंदने का पूरा प्रयास कर रहा था पर सफलता अभी नही मिली थी ,उसकी बीबी बहुत चीखती जा रही थी ,पर सबके लिए तो ये खुशी की घड़ी थी ,,पर रेम्या जो परदे के बगल में लेटी थी उसे नागवार गुजर रहा था ,क्यों की ये पहला दर्द उसे पता था ,पर इधर नरेश तो मानो अंधा हो चुका था ,,,पर रेम्या अपनी भाभी को यह दर्द सहते नही देख सकती थी ,,सो वह उठी और अपने कपडे उतार कर नरेश के सामने जा पहुची और भाभी का हाथ पकड़ बाहर किया और वह नरेश के सामने थी ,,नरेश तो पहले ही पागल हो चुका था ,अब सामने बहन के हुश्न के सामने वह टिक सका और बहन को ही रौंदने लगा ,जब तक रौंदता रहा जब तक की नरेश निस्तेज नही हो गया ,,फिर बाद में नरेश को पछतावा होता है पर """"""""""""अब पछताय होत क्या,,जब चिड़िया चुग गई खेत """"""",,,इसलिए कहा जाता है की """""""""कौवे को रात में दिखाई नही देता ,,उल्लू को दिन में दिखाई नही देता,,,,कामांध एक ऐसा जानवर है की उसे रिश्ते ,नाते या दिन - रात कुछ भी दिखाई नही देता है """"""""
    रेम्या
को रात भर नींद नहीं आई ,बस करवटे बदलती ही रही !! भोर होने का इंतजार कर रही थी  ,,और सोचने लगी की जब हवस के पुजारी हर जगह है तो फिर मंदिर में बैठो या वेश्यालय में बैठो ,बात तो एक ही हुई ,,,,,,,,,,,,,,सुबह हुई और रेम्या ने अपना बैग उठाया और बिना पूछे ही चल दी उस दलदल की ओर जहाँ से वह लौट के आई थी ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,