मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

कालिगुला बनाम मोदी

मोदीजी की विदेश यात्राओं क संदर्भ में
हंस पत्रिका से.....
संजय सहाय की संपादकीय कालिगुला का विजय अभियान के अंश
..... एक वक्त रोमन सम्राट कालिगुला नेे ब्रिटेन विजय का अभियान छेड़ा था। फ्रांस होते हुए जब वह सेना सहित समुद्र तट पर पहुंचा तो उसे जानकारी मिली कि दूसरे छोर पर ब्रिटेन के राजा गिल्डेरियस नेे भी लडऩे के लिए बड़ी भारी जुझारू फौज एकत्रित कर रखी है। पिकनिक-रण पर निकला गालिगुला घबरा गया। उसन सैनिकों को आदेश दिया कि वे उसे ब्रिटेन की दिशा में समुद्र में ले चलें। कुछ ही दर बाद उसन ेउन्ेहं वापस लौटने केे निर्देश दिया और उसी तट पर दुबारा उतर एक सिंहासन पर आसीन हो गया। फिर उसने युद्ध आरंभ करनेे का हुक्मसुनाया। किंन्तु वहां युद्ध के लिए कोई शत्रु सेना थी ही नहीं। कालिगुला के सैनिक भ्रमित खड़े रहे। तब सम्राट ने उनसे कहा कि वे समुद्र तट पर बिखरे शंख और सीपियां बटोर लें। फिर उसनेे इन शंख सीपियों को ब्रिटेन विजय के सबूत और ब्रिटन से लूटे गए खजाने की तरह रोम में पेश कर दिया। सत्ता और सिक्कों के दम पर तमाशबीनों को जुटाया जो जय-जयकारा करते रहे। अपने सैनिकों ी भूरि-भूरि प्रशंसा की और मुंह बंद रखने के लिए भारी इनाम-इकराम दिया। यह थी गालिगुला की ब्रिटेन-विजय गाथा। हमने भी पिछले महीनों में करीब-करीब पूरे विशव पर फतह प्राप्त कर ली है।
देश में ऐसा राजनैतिक दीवालियापन कभी नहीं रहा। देश कालिगुला की फौज की तरह दिशाहीन और दिग्भ्रमित है, उधर इतिहास और निज्ञान की नई-नई परिभाषाएं स्थापित की जा रही हैं। विश्व केे महानतम साहित्यकारों, वैज्ञानिकों, इतिहासकारों, अर्थशास्त्रियों और समाजशास्त्रियों की पवित्र आत्माएं एक ही व्यक्ति में प्रवेश कर गई हैं, चारण थालियां बजा रह हैं.................

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