मंगलवार, 21 मार्च 2017

मार्शल आर्ट का इतिहास

*मार्शल आर्ट का इतिहास*
आज भारतीय जन अपनी संस्कृति और संभ्यता भूलने के दौर में जी रहा है या यूँ कहे कि भारतीयों ने अपनी संस्कृति और सभ्यता भुला ही दी तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी l जिन संस्कृतियो और मूल्यों को हम भुला चुके या फिर नकार चुके, उन्ही को अपनाकर कई देश आज विकसित अवस्था में हमारे सामने खड़े है और हम कहाँ है आज ये बताने की आवश्यकता नही l
आज जिस मार्शल आर्ट की कला के दीवाने भारतीय है और वो इसे सीखने के लिए हमेशा उत्सुक रहते है उसके बारे में यही सोचते है कि ये चीन की देन है, जबकि हकीकत कुछ और ही है l दरअसल इस कला का ज्ञान चीन ने नही बल्कि चीन के साथ सम्पूर्ण विश्व को हमने दिया l परन्तु विडम्बना तो ये है कि इस अद्भुत विद्या के जनक का नाम ही भारतीयों को नही मालूम l ये सब मैकाले की शिक्षा नीति का ही प्रतिफल है |
आज जिसे चीन, जापान, थाईलैंड आदि देशों में जिसे भगवन की तरह पूजा जाता है ; वह हमारे देश के हैं और हम उनका नाम भी नहीं जानते हैं, इससे बड़ी शर्म की बात क्या हो सकती है |
आज आवश्यकता है हमें अपने गौरवमय इतिहास को जानने की, जो भी प्राचीन ग्रन्थ हैं उनका अध्ययन करने की, जो भी ज्ञान हमारे हमारे ऋषि – मुनियों ने हमें प्रदान किया हुआ है उस पर अमल करने की |
पश्चिम और दुनिया के अन्य देशों में मार्शल आर्ट को चर्चित करने का श्रेय काफी हद तक स्वर्गीय ब्रूस ली को दिया जाता है। बाद में 1960 और 1970 के दशक में मार्शल कलाकार और हॉलीवुड अभिनेता ब्रूस ली से प्रभावित मीडिया की दिलचस्पी मार्शल आर्ट के प्रति देखी गई । एशियाई और हॉलीवुड मार्शल आर्ट फिल्मोंको भी आंशिक रूप से इसका श्रेय दिया जाता हैं जहां जैकी चेन और ब्रूस ली जैसे प्रख्यात फिल्मी हस्तियों को हाल के वर्षों में चीनी मार्शल आर्ट को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार माना जाता है।

मार्शल आर्ट में सबसे अच्छी विद्या मानी जाती है कुंग्फु और इसको सिखाने का सबसे अच्छा विद्यालय माना जाता है चीन में स्थित सओलिन मन्दिर | आपको यह जानकार बेहद आश्चर्य होगा की इस विद्यालय की आधारशिला रखने वाले और चीन को इस कला का ज्ञान देने वाले भारतीय थे | उस भारतीय का नाम था – ” बोधिधर्मन ” |
550 ई.पू. दक्षिण भारत के पल्लव वंश के राजकुमार, बोधिधर्मन (जिन्हे धरुमा नाम से भी पुकारा गया) नाम के भिक्षु बन गये। बोधिधर्मन आत्मरक्षा कला के अलावा एक महान चिकित्सक भी थे | उन्होंने अपने ग्रन्थ में डीएनए के माध्यम से बीमारियों को ठीक करने की विधि के बारे में भी आज से १६०० साल पहले बता दिया था | बोधिधर्मन के माध्यम से ही चीन, जापान और कोरिया में बौद्ध धर्म का विस्तार हुआ था। 520-526 ईश्वी में चीन जाकर उन्होंने चीन में ध्यान संप्रदाय की नींव रखी थी जिसे च्यान या झेन कहते हैं। ओशो रजनीश ने बोधिधर्मन के बारे में बहुत कुछ कहा है।
माना जाता है कि यह भिक्षु दक्षिण भारत के कांचीपुरम के राजा सुगंध के तीसरे पुत्र थे। बौद्ध धर्म के ज्ञान को भगवान बुद्ध ने महाकश्यप से कहा। महाकश्यप ने आनंद से और इस तरह यह ज्ञान चलकर आगे बोधिधर्मन तक आया। बोधिधर्मन उक्त ज्ञान व गुरु शिष्य परंपरा के अट्ठाइसवें गुरु थे।
उत्तरी चीन के तत्कालीन राजा बू-ति बोधिधर्मन से प्रभावित थे। बू-ति के निमन्त्रण पर बोधिधर्मन की उनसे नान-किंग में भेंट हुई। यहीं पर नौ वर्ष तक रहते हुए बोधिधर्मन ने ध्यान का प्रचार-प्रसार किया। माना जाता है कि बोधिधर्म जब तक चीन में रहे मौन ही रहे और मौन रहकर ही उन्होंने ध्यान-सम्प्रदाय की स्थापना कर ध्यान के रहस्य को बताया। बाद में उन्होंने कुछ योग्य व्यक्तियों को चुना और अपने मन से उनके मन को बिना कुछ बोले शिक्षित किया। इसे हम मानसिक संवाद कह सकते हैं | यही ध्यान-सम्प्रदाय कोरिया और जापान में जाकर विकसित हुआ।

बोधिधर्मन के प्रथम शिष्य और उत्तराधिकारी का नाम शैन-क्कंग था, जिसे शिष्य बनने के बाद उन्होंने हुई-के नाम दिया। पहले वह कन्फ्यूशस मत का अनुयायी था। बोधिधर्मन की कीर्ति सुनकर वह उनका शिष्य बनने के लिए आया था। बोधिधर्म का कोई ग्रंथ नहीं है, लेकिन ध्यान सम्प्रदाय की इतिहास पुस्तकों में उनके कुछ वचनों का उल्लेख मिलता है।
मार्शल आर्ट या लड़ाई की कलाएं विधिबद्ध अभ्यास की प्रणाली और बचाव के लिए प्रशिक्षण की परंपराएं हैं। सभी मार्शल आर्ट्स का एक समान उद्देश्य है : ख़ुद की या दूसरों की किसी शारीरिक ख़तरे से रक्षा. इसके अलावा कुछ मार्शल आर्ट को जहां आस्था जैसे हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, दाओवाद,कन्फ्यूशीवाद या शिन्टो से जोड़ा जाता है, वहीं दूसरी सम्मान के एक विशेष नियम का पालन करती हैं। मार्शल आर्ट को विज्ञान और कला दोनों माना जाता है। इनमें से कई कलाओं का प्रतिस्पर्धात्मक अभ्यास भी किया जाता है, ज़्यादातर लड़ाई के खेल में, लेकिन ये नृत्य का रूप भी ले सकती हैं।
मार्शल के गुण अनुशासन, विनम्रता, संयम और सम्मान इसी दर्शन शास्त्री की देन माने जाते हैं। दारुमा को चीन में ज़ैनबौद्धवाद के संस्थापक के रूप में भी जाना जाता है। इसीलिए नैतिक आचरण और आत्मानुशासन पुरातन काल से ही मार्शल अभ्यास का हिस्सा बन गये। इसी के साथ भारतीय ध्यान गुरू बुद्धभद्र (मैंडेरिन में इसे बाटुओ बुलाया जाता है) चीन के शाओलिन मंदिर के पहले महंत बने ! उत्तरी वी राजवंश के राजा झीआओवेन ने 477 ई. पू. शाओलिन मठ का निर्माण करवाया.आज भी केरल में मार्शल आर्ट के इस कौशल को इसके मूल स्वरुप में देखा जा सकता है |
इसी विषय पर कुछ समय पूर्व एक फिल्म भी आई थी आपने चेन्नई V / s चाईन

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