शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

25 जनवरी -राष्ट्रीय मतदाता दिवस (बड़ी सरवन )

ग्राम पंचायत सरवन मे राष्ट्रीय मतदाता दिवस बड़ी ही धूमधाम से मनाया गया |इस कर्यक्रम मे ग्राम वरिष्ठ नागरिक एवं ग्राम सरवन के सरपंच मुख्य अतिथि के रूप मे उपस्थित हुए
                   इस कार्यक्रम की रुपरेखा को मनाने के लिए ग्राम के मतदाताओं को भी शामिल किया गया |इसमें ऐसे मतदाताओं को शामिल किया गया जिन्हें फोटो परिचय पत्र प्राप्त नही हुआ था |शेष फोटो परिचय पत्र प्राप्त मतदाताओं को बुलाकर कर्यक्रम की शुरुआत सरस्वती पूजन कर किया गया ,उसके बाद सभी को शपथ दिलाई गई | शपथ दिलाने का काम कांतिलाल खराडी ने किया |सभी मतदाताओं को परिचय पत्र का महत्त्व बताया गया |

मंच का संचालन नरेन्द्र कुमार पासी ने किया ,और फोटो परिचय-पत्र के बारे में जानकारी दी |साथ ही ये बताया गया कि वोटर आई.डी. कार्ड प्राप्त करना हर भारतीय का अधिकार है ,यह उसका हक़ है |
                                                          ग्राम बड़ी सरवन में जनसंख्या ज्यादा होने कारण रजिस्ट्रीकरण अधिकारी को तीन B.L.O.( बूथ लेवल अधिकारी ) कि नियुक्ति करनी पड़ी | केंद्र क्रमांक - 40 में श्री विजय कुमार शर्मा ,,,,केंद्र क्रमांक - 41 में कांतिलाल खराड़ी ,,केंद्र क्रमांक - 42 में  नरेन्द्र कुमार पासी है  ,जिन मतदाताओ कि उम्र 18 वर्ष पूर्ण कर ली हो वो इसमें शामिल होने के पात्र हो जाते है |


  देवेन्द्र शर्मा जी ने भी कही की बहर जाते समय हमें पहचान कार्ड ले जाना अति आवश्यक है इसके बिना आप कही भी नही जा सकते है |मोबाइल की सिम लेनी है तो पहचान कार्ड की आवश्यकता पड़ती है ,सरकार की किसी भी योजना मे ,बैंक मे खता खुलवाने के लिए ,यहाँ तक की आधार कार्ड बनवाते समय भी इस मतदाता कार्ड परिचय पत्र की आवश्यकता पड़ती है |

 श्री राजू शर्मा ने अपने वक्तव्यों मे कहा की फोटो परिचय पत्र की अहमियत यह है की जब हम कही बहार दूर गांव या शहर मे होते है तो हमारे जेब मे पड़े हुए २०,००० रूपये भी काम नही आते है जहाँ पर यह फोटो परिचय पत्र हमारी सहायता करता है ,ट्रेनों मे सफर करते हुए भी इसका उपयोग होता है | १ जनवरी से ट्रेनों मे यात्रा करने के लिए रेलवे सरकार ने फोटो आई.डी. कार्ड लेकर चलाना आवश्यक है ,अगर आपके पास यह पहचान कार्ड नही है तो आप को बिना टिकिट ही माना  जाएगा |
सभी शेष फोटो प्राप्त मतदाताओं को फोटो परिचय पत्र वितरित किये गए ||
इस अवसर पर आये हुए अतिथियों का स्वागत स्वल्पाहार व चाय कि चुस्कियो से किया गया | श्री विजय शर्मा ने सभी लोगो का आभार माना ,और कार्यक्रम के अंत में राष्ट्रगान गया गया और जय हिन्द जय भारत के नारों से हाल गूंज गया |                      """"""जय हिन्द """"""


सैलाना कि खूबसूरती -आइये


 ये नजारा है  मध्यप्रदेश के रतलाम जिले के सैलाना कस्बे  का जो अपने आप मे एक ख़ूबसूरती कि  मिसाल है |मैं आपको यहाँ का वर्णन करने से पहले बता दू | कि  यह क़स्बा आदिवासी जन-जाती के हित मे आता हें यहाँ के विधायक श्री  प्रभुदयाल गेहलोत साहब है जो की काँग्रेस कमेटी से है और यह कई वर्षों से लगातार  जीतते आ रहे है,जो की जोकि अपने आप मे एक इतिहास हें |    



             सैलाना की शुरुआत इस महल  से होती है ,जो अपनी गाथा खुद गाता नजर आता है ,,जो एक तरफ खड़े यहाँ के राजदरबार से ही होती है |ये राजदरबार कई शताब्दी वर्ष पुराना है |यहाँ के राजा श्री ब्रिक्रम सिंह यहाँ का राजपाठ सँभालते  थे  |, यह महल रतलाम - बाँसवाड़ा  मार्ग पर  स्थित है |                                              

   इस महल से महज ५ किलोमीटर कि दुरी पर अडवानिया ग्राम में केदारेश्वर नाम का एक बहुत ही प्राचीन मंदिर है ,इस मंदिर का निर्माण रजा विक्रम सिंह के पूर्वजो ने करवाया था |इस मंदिर के सिर के ऊपर एक झरना बहता रहता है जो कि सावन के महीने में बड़ा ही सुंदरता का प्रतीक रहता है {यह एक भील आदिवासी बहुल क्षेत्र होने के कारण यहाँ प्रत्येक वर्ष मेले का आयोजन भी होता है |जो शिवरात्रि के मौके में लगता है 

सिर्फ  यही नहीं ,,इस महल के अंदर एक नायाब खूबसूरती का एक भण्डार भी है ,वह नजारा जो आपने  बहुत  ही  कम या देखा ही ना हो जो कि पूरे एशियाई महाद्वीप के  अन्दर प्रथम  स्थान पर आने वाला केक्टस गार्डन जो की खूबसूरत की मिसाल है | इसके अन्दर सैकड़ो प्रकार कि कैक्टस कि किस्मे पाई जाती है | इसकी कई किस्मो  को विदेशो में भेजा जाता है ,इससे अनेक प्रकार कि बीमारियों के इलाज के लिए दवाईया बनाई जाती है 
  

सम्मान कि रक्षा के लिए क्यों नही लड़ते शिक्षक


                                                  सम्मान कि रक्षा के लिए क्यों नही लड़ते शिक्षक

यह आलेख १८ अगस्त को सुप्रसिध्द समाचार पत्र दैनिक भास्कर में प्रकाशित किया गया था |तब के शिक्षाकर्मी आन्दोलन और और अब अध्यापक के रूप में आंदोलन पैराटीचर्स के लिए एक बार और प्रकाशित किया जा रहा है |

जून के आखिरी सप्ताह से म.प्र. में नया शिक्षा सत्र आरंभ होता है |सत्र के प्रारंभ होते ही समाचार माध्यम भी सक्रीय हो जाते है अखबारों में विद्यालयों के हालत ,शिक्षकों कि कमी ,शासन  कि अन्य कमियों और उपलब्धियों के समाचार पढ़ने को मिलते है |ऐसा प्रतीत होता है कि शिक्षा जगत में कोई नई क्रांति आने वाली है ,हर तरफ शिक्षा के प्रति उत्साह नजर आता है |लेकिन इन्ही दिनों एक समाचार और पढ़ने में आता है ,जो शिक्षाकर्मियों के आन्दोलन से सम्बंधित होता है आखिर वे कौन सी समस्याए है जो पिछले एक दशक से हल नही हो पा रही है ,,और शिक्षाकर्मियो को आन्दोलन के लिए विवश करती है ,,शिक्षाकर्मियो ने अब तक अपनी समस्यायों को जिस रूप में पेश किया है ,उससे तो यह भी प्रतीत होता है कि उनकी लड़ाई शासन से बेहतर वेतन भत्ते एवं चंद सुविधाए हासिल करने भर है ,,शिक्षाकर्मियो का नेतृत्व इतने लंबे समय तक जिन व्यक्तियों के पास रहा ,,उनसे भारी चूक हुई है वे ये नही समझ सके कि हमारे समाज में सुविधाओं के लिए लड़ी जाने वाली लड़ाइयो को कम ही समर्थन मिलता है ,,सरकारे भी बड़ी सामाजिक हलचलों के बिना नही जगती शिक्षाकर्मियो कि समस्याए जितनी भारी शिक्षकर्मोयो के लिए है उससे कही अधिक भारी और घातक समाज के लिए है |इसे यदि चेतावनी भी मान लिया जाए तो भी इस पर व्यापक चिंतन के आवश्यकता है ,,प्रदेश का एक तिहाई से अधिक स्कूली शिक्षक ,शिक्षाकर्मियो ,संविदा ,शिक्षकों ,गुरुजनों,जैसे रूपों में काम करता हुआ अति कुंठित है ,,शिक्षक के लिए प्रयुक्त शिक्षकर्मी शब्द जैसा भी लगता हो ,,पर यह शब्द पुराने जैसी गरिमा और भाव व्यक्त नही करता ,,शासन ने बुध्दिमानी से इस बात को इस भाव को और इतनी बड़ी चूक को अब सुधार लिया है ,प्रदेश का शिक्षाकर्मी इस शब्द भेद को समझ कर उसकी व्याख्या कर पता उससे पहले ही शासन ने इस नए शब्द का प्रयोग बंद कर दिया ,,,हलाकि शिक्षकों को शिक्षाकर्मी बना कर शासन कि मंशा शिक्षक को अपमानित करने कि कतई नही थी ,,शासन से तो चूक भर हुई थी शिक्षाकर्मियो ने नेतृत्व को शिक्षकों कि गरिमा कि रक्षा कि ,,लड़ाई को वेतन ,भत्तो में उलझाए रखा ..,किसी ने भी शिक्षक और शिक्षाकर्मी का शब्द भेद समाज एवं प्रबुध्द वर्ग के सामने व्यापक रूप से नही रखा ,,शिक्षक आर्थिक लाभ से जोड़-घटने के चक्कर में अपने स्कूल से टिन शेड तक घूमते रहे औए शासन को पूरा-पूरा मौका दिया कि वो अपनी चूक सुधारे ,,शासन ने ये चूक सुधारी और शिक्षाकर्मी शब्द का प्रयोग बंद कर दिया ,,,शिक्षाकर्मी और उनका नेतृत्व गत दस वर्षों में शासन और समाज के सामने अपना पक्ष इस तरह से नही रख पाया कि व्यक्ति कि मुलभुत आवश्यकताओं में रोटी कपडा और मकान तो अनिवार्य ही है ,पर इनमे संतुष्ट और सम्मान भी सामिल है ,,शिक्षाकर्मी शब्द का प्रतिस्थापन होने पर जो नया शब्द शिक्षक को मिला है वो संविदा शाला शिक्षक है ,अंतिम शब्द शिक्षक लिखा कर शासन ने शायद पुरानी गरिमा लौटने का प्रयाश किया है ,,लेकिन चूक यहाँ भी हो गई ,,क्यों कि इसमें प्रयुक्त शब्द शाला इस बात कि पुष्टि करता प्रतीत होता है कि शिक्षक का शाला से कोई न कोई स्थाई रिश्ता है ,,प्रतीत में इस रिश्तेदारी को साथ लिखने कि आवश्यकता शायद इसलिए नही थी ,,क्यों कि अकेले शिक्षक से ही लोग उसका पूरा भाव और उसकी शाला से रिश्तेदारी समझ सकते थे ,,परन्तु शासन को शिक्षक के पहले शाला लिखना शायद इसलिए अनिवार्य लगा कि अब लोग शिक्षक का रिश्ता शाला में पढ़ाई के काम से कम मानते है ,,क्यों कि उनका रिश्ता हर माह के सर्वे कि रिपोर्ट तैयार करने और मध्यान भोजन का हिसाब रखने जैसे अन्य कार्यों से गहराता जा रहा है ,,संविदा शाला शिक्षक ने प्रथम शब्द कि राह तो एकदम नई है ,,संविदा का अर्थ ठेका ही होता है ,यह व्यावसायिक शब्द दो पक्षों के बीच व्यापारिक अनुबंध होता है ,ये समझ से परे है कि शिक्षक को संविदाकार बनाकर शासन शिक्षक कि समाज के प्रति जिम्मेदारी को किस दिशा में ले जाना चाहते है ,|||| 

भौतिकवादी -अरुण भार्गव

                                          हर व्यक्ति का भौतिकवादी बनना काफी सरल काम है और है भी दुनिया के सभी लोग भौतिकवादी ही है ,ये अलग बात है कि कुछ लोग अध्यात्म का नाम लेकर ,आत्मा अमर है ,शरीर नश्वर है ,यही कहते -कहते मर जाते है ,पर हासिल क्या हुआ ,,वो सोचते है पुनः हमारा जन्म होगा और अपने कर्मो को सुधार लेंगे ,पर ऐसा कब होगा ,,उसे ही पता नही ,,एक ऐसी शक्ति(अद्रश्य ) के ऊपर भी विश्वास करता है जिसे सारी उम्र भी लग जाने के बाद भी मिलना नही हो पाता ,और जीवन कि सारी घटनाओं को उस शक्ति से जोड़ कर अपने अनुभव को लोगो के सामने बड़ी शेखी के साथ बखान करता रहता है ,,पर भौतिकतावाद में कम से कम जो हम कहते है वह लोगो को बता तो सकते है उसे स्पर्श करके भी बता सकते है ,,लोगो का प्रकृति के ऊपर विजय पाने का एक विज्ञान है !!!
मौज -इस भौतिकतावादी दुनिया में मानव को रोटी,कपडा,मकान के अलावा और भी अवश्कताए है ,,जिसे वह हमेशा अपने बहुबल,बुद्धिबल के प्रयोग से निरंतर पाने का प्रयत्न करता है ,,,बुद्दिवादी लोग विकाशशीलता कि बात करते है ,,और यह काम अध्यात्म के द्वारा सम्भव नही है ,,इसके द्वारा कुछ तथाकथित लोग ही अध्यात्म कि दुकान चलाकर मौज कर सकते है ,,जब कि ऐसे लोगो का देश समाज के विकास में इनका योगदान नगण्य रहता है
इसके लिए भगत सिंह जैसे लोगो कि आवश्कता है ,जो ऐसी व्यवस्थाओं का समूल नष्ट कर एक समाजवादी स्वरूप को अपनाया जाए ,जिससे सभी को बराबरी का न्याय प्राप्त हो सके ,,सभी को एक समान रहने के लिए इस विचारधारा को भी अपनाया जा सकता है ,वरन हम इसके लिए प्रयास करे ,,
    आज के इस दौर में हम अध्यात्मवादी ज्यादा बनते जा रहे है ,,निर्मल बाबा जैसे लोग समाज को लूटते जा रहे है ,जनता है कि मानती ही नही है ,,हम जिस विकासशील देश कि कल्पना करते है ,वो ऐसे ही अध्यात्मवादियो के कारण खोखला होता जा रहा है ,,देश समाज को जिन्दा रहने के लिए भोजन कि आवश्यकता होती है ,जिसका उत्पादन मेहनतकश मजदूरो के द्वारा होता है ,पर हमारा समाज भी दो वर्गों में बटा है शोषक और शोषित ,,,शोषक तो कुछ गिने चुने लोग ही है पर शोषितों कि जनसंख्या तो ८० प्रतिशत ही है ,,भारतीय समाज में जाति व्यवस्था भी इसके दुखदाई कारणों में से मुख्य है ,,आज देश को आजाद हुए ६५ वर्ष बीत गए ,पर इन जातिवादियो कि मानसिक गुलामी आज भी कठोर पत्थर कि भांति मौजूद है ,,,     

राष्ट्रीय जनमानस कि भाषा -हिंदी

                                  विचारों के आदान-प्रदान का सबसे बड़ा माध्यम भाषा ही होती है |जिस भाषा मे जितने अधिक लोग अपने विचार और संवेदनाएँ प्रगट करते है ,वहीं भाषा उतनी ही श्रेष्ठ और व्यापक होती है |इस दृष्टि से हिन्दी भाषा सम्पूर्ण विश्व में सर्वश्रेष्ठ है |यदि हम राष्ट्रीय परिवेश की बात करे ,तो यह तथ्य सहजता से स्वीकार किया जा सकता है ,की हिन्दी भाषा ही समूचे भारत राष्ट्र की अभिव्यक्ति का प्राचीनकाल से ही विशिष्ट माध्यम रही है |राष्ट्र की सामाजिक ,सांस्कृतिक धरोहर को हिन्दी भाषा ने ही आज तक सुरक्षित रखा है |क्यों की हिन्दी भाषा विचारों संवाहिक प्राचीन काल से ही रही है |सच तो यह है ,की हिन्दी भाषा ही भारतीय जनमानस की भाषा है |
           हिन्दी भाषा के वास्तविक स्वरूप का निर्माण विभिन्न बोलियों और भाषाओ के मिश्रण से हुआ है | इससे स्पष्ट होता है ,की इसमें आत्मसात की अद्भुत  क्षमता है |इसके इतिहास की व्यापक परम्परा रही है |इस दृष्टि से भी हिन्दी को पूरे भारतीय जनमानस ने स्वीकार किया है |देश की स्वतंत्रता और हिन्दी भाषा के योगदान के बारे में विचार करे तो एक तथ्य सहज में ही हमारे सामने आता है की देश को स्वतन्त्र करने में हिन्दी का सबसे बड़ा योगदान रहा है |अंग्रेजो के विरोध में समूचे देश में एक राष्ट्रीय वातावरण बनाने में हिन्दी भाषा का सबसे बड़ा योगदान रहा है |पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक देश की जनता को हिन्दी भाषा ने जोड़ रखा था |क्योंकि सच्चे अर्थो में हिन्दी भाषा ही प्राचीन समय से ही राष्ट्र की सामाजिक संवाहिका रही है |
           हिन्दी भाषा के सामाजिक और राष्ट्रीय महत्त्व को ध्यान में रख कर ही सन १९१७ में पूज्य राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने ही हिन्दी भाषा को ही कलकत्ता के एक अधिवेशन में राष्ट्र भाषा का दर्जा दिया था ,तथा सभी देशवासियों से हिन्दी भाषा को ही राष्ट्रभाषा बनाने की अपील की थी |हिन्दी भाषा की सर्व ग्राहता को देखकर ही हमारे राष्ट्र के पुरोधा हमेशा से ही हिन्दी के पक्ष में थे |गुजरात में स्वयं महात्मा गाँधी ,महाराष्ट्र में बालगंगाधर तिलक ,पंजाब से पंजाब केशरी लाला लाजपत राय ,कश्मीर से जवाहरलाल नेहरु तथा सम्पूर्ण दक्षिण भारत से सी.राजगोपालाचार्य आदि देश भक्तो ने हिन्दी भाषा को राष्ट्र भाषा के रूप में स्वीकार किया था |क्योंकि गुलामी के समय देश में अंग्रेजो के डर के कारण जो विपरीत वातावरण था ,उसमे भी हिन्दी भाषा ने समूचे देश को एकसूत्र में बाँधकर रखा तथा देश की जनता को निर्भयता प्रदान की |
          वर्तमान समय में हम देखे तो चाहे अन्ना हजारे का आन्दोलन हो या फिर बाबा राम देव का |दोनों को जो सफलता मिली है वह हिन्दी के बल पर ही सम्भव हुई है |अन्ना हजारे तो मूल रूप से मराठी भाषी है ,लेकिन उन्हें विदित है की वे भारतीय जनमानस को हिन्दी भाषा के बल पर ही जोड़ कर रखा जा सकता है |श्रीमती सोनिया गाँधी ने देश की जनता तक अपनी बात पहुचने के लिए हिन्दी सीखी |कितने ही अहिन्दी भाषी राजनेताओं और अधिकारियो ने जनता में अपनी पैठ बनाने के लिए हिन्दी भाषा को सीखा है |क्योंकि इन सबको विदित है ,की हिन्दी भाषा के बिना न तो भारतीय समाज को पूर्ण रूप से समझ पाएंगे और न ही अपने विचारों को समाज तक पहुंचा पाएँगे |क्योंकि सामाजिक ,सांस्कृतिक और राष्ट्रीय धरातल पर एक मात्र हिन्दी भाषा ही भारतीय समाज का प्रतिनिधित्व करती है |वर्तमान में हिन्दी भाषा का जो थोडा बहुत यहाँ वहाँ विरोध हो रहा है वह मात्र राजनैतिक स्वार्थ के लिए है  |विरोध करने वालो को मालूम है की हिन्दी भाषा के बिना देश का प्रतिनिधित्व नही किया जा सकता है क्योंकि हिन्दी जन-जन के मन की भाषा |

                                                                                               डा.मुनीन्द्र दुबे
                                                                                               परियोजना परिसर
                                                                                               सैलाना  जिला -रतलाम
                                                                                                          (म.प्र.)