छुआछूत का खोखलापनएक दिन पंडित को प्यास लगी, संयोगवश घर में पानी नही था इसलिए पंडिताईन पडोस से पानी ले आई Iपानी पीकर पंडित जी ने पूछा....पंडित जी - कहाँ से लायी हो बहुत ठंडा पानी है Iपंडिताईन- पडोस के कुम्हार के घर से Iपंडित जी ने यह सुनकर लोट फैंक दिया और उनके तेवरचढ़ गए वह जोर जोर से चीखने लगा Iपंडित जी- अरी तूने तो मेरा धर्म भ्रष्ट कर दिया, कुम्हार के घर का पानी पिला दिया।पंडिताईन भय से थर-थर कांपने लगी, उसने पण्डित जीसे माफ़ी मांग ली Iपंडिताईन- अब ऐसी भूल नही होगी।शाम को पण्डित जी जब खाना खाने बैठे तो पंडिताईन ने उन्हें सुखी रोटिया परोस दी Iपण्डित जी- साग नही बनाया?पंडिताईन- बनाया तो था लेकिन फैंक दिया क्योंकि जिस हांड़ी में बनाया था वो कुम्हार के घर से आई थी।पण्डित जी- तू पगली है क्या कंही हांड़ी में भी छुत होती है? यह कह कर पण्डित ने दो-चार कौर खाए और बोले की पानी ले आओ Iपंडिताईन जी - पानी तो नही है जीIपण्डित जी- घड़े कहाँ गए हैIपंडिताईन- वो तो मेने फैंक दिए क्योंकि कुम्हार के हाथ से बने थेI पंडित जी ने दो-चार कौर और खाए और बोले दूध ही ले आओ उसमे रोटी मसल कर खा लूँगा Iपंडिताईन- दूध भी फैंक दिया जी क्योंकि गाय को जिस नौकर ने दुहा था वो तो नीची जाति से था न Iपंडित जी-हद कर दी तूने तो यह भी नही जानती कीदूध में छूत नही लगती है Iपंडिताईन-यह कैसी छूत है जी जो पानी में तो लगती है, परन्तु दूध में नही लगती।पंडित जी के मन में आया कि दीवार से सर फोड़ ले।गुर्रा कर बोले- तूने मुझे चौपट कर दिया है जा अब आंगन में खाट डाल दे मुझे अब नींद आ रही है Iपंडिताईन- खाट! उसे तो मैने तोड़ कर फैंक दिया है क्योंकि उसे नीच जात वाले ने बुना था Iपंडित जी चीखे - सब में आग लगा दो, घर में कुछ बचा भी है या नही Iपंडिताईन- हाँ यह घर बचा है, इसे अभी तोडना बाकी है क्योंकि इसे भी तो पिछड़ी जाति के मजदूरों ने बनाया है Iपंडित जी कुछ देर गुम-सुम खड़े रहे फिर पंडिताईन को समझा कर बोले कि तुझे पता नही पगली यह सभी कुछ करना पड़ता है. हम सब से श्रेष्ठ है, हमें धर्म ने ही सर्वश्रेष्ठ बनाया है तू वही कर जो में करता हूँ. यह ही शास्त्रों में लिखा है यह ही भगवान का ब्रह्मा के माध्यम से आदेश है जिसे मनु स्मृति में बताया गया है इसलिए इसे तुझे मानना ही पड़ेगा यह ही तेरा धर्म है।पंडिताईन- ठीक है पंडित जी, मैं भी आज से आपकीकी तरह ढोंग किया करूँगी और बच्चों को भी यही सिखाऊँगी।पंडित जी (कान में फुसफुसा कर) - अरे, मुझे मालूम है कि हमारा ये ढोंग ज्यादा चलने वाला नहीं है, फिर भी जब तक चलता है चला लो।
रविवार, 31 मई 2015
आरक्षण 10 वर्ष या स्थायी
HRD VOICE **************** NEWS-LETTER 2ND............
........................... अजा-अजजा को सरकारी शिक्षण
संस्थानों और नौकरियों में मिला आरक्षण संविधान की
स्थायी व्यवस्था, जबकि राजनेता और सरकार जनता को
करते रहे-भ्रमित
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कुछ दुराग्रही लोग आरक्षण को समानता के अधिकार का
हनन बतलाकर समाज के मध्य अकारण ही वैमनस्यता का
वातावरण निर्मित करते रहते हैं। वास्तव में ऐसे लोगों की
सही जगह सभ्य समाज नहीं, बल्कि जेल की काल कोठरी
और मानसिक चिकित्सालय हैं।
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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ, जिसे
65 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं और इस दौरान विधिक शिक्षा के
क्षेत्र में भी उल्लेखनीय सुधार हुआ है। इसके बावजूद भी
सभी दलों की सरकारों और सभी राजनेताओं द्वारा
लगातार यह झूठ बेचा जाता रहा कि अजा एवं अजजा
वर्गों को सरकारी शिक्षण संस्थानों और सरकारी
नौकरियों में मिला आरक्षण शुरू में मात्र 10 वर्ष के लिये
था, जिसे हर दस वर्ष बाद बढाया जाता रहा है। इस झूठ
को अजा एवं अजजा के राजनेताओं द्वारा भी जमकर
प्रचारित किया गया। जिसके पीछे अजा एवं अजजा को
डराकर उनके वोट हासिल करने की घृणित और निन्दनीय
राजनीति मुख्य वजह रही है। लेकिन इसके कारण
अनारक्षित वर्ग के युवाओं के दिलोदिमांग में अजा एवं
अजजा वर्ग के युवाओं के प्रति नफरत की भावना पैदा
होती रही। उनके दिमांग में बिठा दिया गया कि जो
आरक्षण केवल 10 वर्ष के लिये था, वह हर दस वर्ष बाद वोट
के कारण बढाया जाता रहा है और इस कारण अजा एवं
अजजा के लोग सवर्णों के हक का खा रहे हैं। इस वजह से
सवर्ण और आरक्षित वर्गों के बीच मित्रता के बजाय
शत्रुता का माहौल पनता रहा।
मुझे इस विषय में इस कारण से लिखने को मजबूर होना पड़ा
है, क्योंकि अजा एवं अजजा वर्गों को अभी से डराया
जाना शुरू किया जा चुका है कि 2020 में सरकारी
नौकरियों और सरकारी शिक्षण संस्थानों में मिला
आरक्षण अगले दस वर्ष के लिये बढाया नहीं गया तो अजा
एवं अजजा के युवाओं का भविष्य बर्बाद हो जाने वाला
है।
जबकि सच्चार्इ इसके ठीक विपरीत है। संविधान में आरक्षण
की जो व्यवस्था की गयी है, उसके अनुसार सरकारी
शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में अजा एवं
अजजा वर्गों का आरक्षण स्थायी संवैधानिक व्यवस्था है।
जिसे न तो कभी बढाया गया और न ही कभी बढाये जाने
की जरूरत है। क्योंकि सरकारी नौकरी एवं सरकारी
शिक्षण संस्थानों में मिला हुआ आरक्षण अजा एवं अजजा
वर्गों को मूल अधिकार के रूप में प्रदान किया गया है। मूल
अधिकार संवैधानिक के स्थायी एवं अभिन्न अंग होते हैं, न
कि कुछ समय के लिये।
इस विषय से अनभिज्ञ पाठकों की जानकारी हेतु स्पष्ट
किया जाना जरूरी है कि भारतीस संविधान के भाग-3 के
अनुच्छेद 12 से 35 तक मूल अधिकार वर्णित हैं। मूल अधिकार
संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा होते हैं, जिन्हें किसी
भी संविधान की रीढ की हड्डी कहा जाता है, जिनके
बिना संविधान खड़ा नहीं रह सकता है। इन्हीं मूल
अधिकारों में अनुच्छेद 15 (4) में सरकारी शिक्षण संस्थाओं
में प्रवेश के लिये अजा एवं अजजा वर्गों के विद्यार्थियों के
लिये आरक्षण की स्थायी व्यवस्था की गयी है और अनुच्छेद
16 (4) (4-क) एवं (4-ख) में सरकारी नौकरियों में नियुक्ति
एवं पदोन्नति के आरक्षण की स्थायी व्यवस्था की गयी है।
जिसे न तो कभी बढाया गया और न ही 2020 में यह
समाप्त होने वाला है।
यह महत्वपूर्ण तथ्या बताना भी जरूरी है कि संविधान में
मूल अधिकार के रूप में जो प्रावधान किये गये हैं। उसके पीछे
संविधान निर्माताओं की देश के नागरिकों में समानता
की व्यवस्था स्थापित करना मूल मकसद था, जबकि इसके
विपरीत लोगों में लगातार यह भ्रम फैलाया जाता रहा है
कि आरक्षण लोगों के बीच असमानता का असली कारण
है।
सुप्रीम कोर्ट का साफ शब्दों में कहना है कि संविधान की
मूल भावना यही है कि देश के सभी लोगों को कानून के
समक्ष समान समझा जाये और सभी को कानून का समान
संरक्षण प्रदान किया जाये। लेकिन समानता का अर्थ
आँख बन्द करके सभी के साथ समान व्यवहार करना नहीं है,
बल्कि समानता का मतलब है-एक समान लोगों के साथ एक
जैसा व्यवहार। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये संविधान में
वंचित वर्गों को वर्गीकृत करके उनके साथ एक समान
व्यवहार किये जाने की पुख्ता व्यवस्था की गयी है।
जिसके लिये समाज के वंचित लोगों को अजा, अजजा एवं
अपिवर्ग के रूप में वर्गीकृत करके, उनके साथ समानता का
व्यवहार किया जाना संविधान की भावना के अनुकूल एवं
संविधान सम्मत है। इसी में सामाजिक न्याय की मूल
भावना निहित है। आरक्षण को कुछ दुराग्रही लोग
समानता के अधिकार का हनन बतलाकर समाज के मध्य
अकारण ही वैमनस्यता का वातावरण निर्मित करते रहते हैं।
वास्तव में ऐसे लोगों की सही जगह सभ्य समाज नहीं,
बल्कि जेल की काल कोठरी और मानसिक चिकित्सालय
हैं।
अब सवाल उठता है कि यदि अजा एवं अजजा के लिये
सरकारी सेवाओं और सरकारी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण
की स्थायी व्यवस्था है तो संसद द्वारा हर 10 वर्ष बाद
जो आरक्षण बढाया जाता रहा है, वह क्या? इस सवाल के
उत्तर में ही देश के राजनेताओं एवं राजनीति का कुरूप चेहरा
छुपा हुआ है।
सच्चार्इ यह है कि संविधान के अनुच्छेद 334 में यह व्यवस्था
की गयी थी कि लोक सभा और विधानसभाओं में अजा
एवं अजजा के प्रतिनिधियों को मिला आरक्षण 10 वर्ष
बाद समाप्त हो जायेगा। इसलिये इसी आरक्षण को हर दस
वर्ष बाद बढाया जाता रहा है, जिसका अजा एवं अजजा
के लिये सरकारी सेवाओं और सरकारी शिक्षण संस्थाओं में
प्रदान किये गये आरक्षण से कोर्इ दूर का भी वास्ता नहीं
है। अजा एवं अजजा के कथित जनप्रतिनिधि इसी आरक्षण
बढाने को अजा एवं अजजा के नौकरियों और शिक्षण
संस्थानों के आरक्षण से जोड़कर अपने वर्गों के लोगों का
मूर्ख बनाते रहे हैं और इसी वजह से अनारक्षित वर्ग के लोगों
में अजा एवं अजजा वर्ग के लोगों के प्रति हर दस वर्ष बाद
नफरत का उफान देखा जाता रहा है। लेकिन इस सच को
राजनेता उजागर नहीं करते!
>>>>>>
आपको हमारा यह प्रयास कैसा लगा? कृपया अपनी
प्रतिक्रिया से अवगत जरूर करावें और आपके सुझावों का
स्वागत है। यदि सम्भव हो तो ‘सच का आर्इना’ फेस बुक
ग्रुप विषय की चर्चा में भी भाग लें।
शनिवार, 30 मई 2015
राहुल सांकृत्यायन--:अछूत और शोषित(भागो नही बदलो)
अध्याय १३
अछूत और सोसित▲
दुखराम:भैया, तुमने उस दिन जो औरतों की गुलामी के बारे में कहा था, उस पर मैं बहुत सोचता रहा, लेकिन उसी तरह की और कुछ बातों में उनसे भी सताई जमात है, उन लोगों की जिनको बड़ी जाति अछोप, अछूत कहती हैं।
भैया:और उन्हीं को गाँधी जी ने नया नाम दिया— ‘हरिजन।
’दुखराम:मैंने सोचा, अब्दुल और सुखारी को साथ लेकर बात करो तो और अच्छा होगा। मैं उनसे मरकस बाबा की बातें करता हूँ और अभी तो वह दुनिया कहाँ है, इसका कहीं पता नहीं है, तो भी सुनके ही दोनों तुमसे भेंट करने के लिए आना चाहते थे। मैंने उनसे कहा कि रजबली भैया को मैं तुम्हारे ही घर पर लाता हूँ, वही सामने है अब्दुल भाई की झोंपड़ी, देखते हैं न, क्या यह आदमी का घर है? हिन्दू भंगी होता, तो बगल में एक सूअर की खोभार होती और दोनों में कोई फरक नहीं दिखाई पड़ता। अच्छा अब हम आ गये,
अब्दुल भाई ने आम के नीचे पुआल बिछा दिया। सलाम अब्दुल भाई!
अब्दुल:सलाम दुक्खू भाई! और यह रजबली भैया तो नहीं हैं?
दुखराम:हाँ, यही हमारे रजबली भैया हैं। सलाम सुखारी भाई!
सुखारी:सलाम दुक्खू भैया, सलाम रजबली भैया! आओ इसी पुआल पर बैठें।अब्दुल:हाँ, भैया! बैठो। जोंकों ने हमें और किस काम के लायक छोड़ा है। यह तो थोड़ा-सा कोदो का पुआल कहीं से माँग-जाँच कर ले आये हैं। जाड़े मेंलड़के-बाले इसी में घुसकर दिन काटेंगे।
सुखारी:पुआल भी मिल जाय भैया! तो जनुक हम लोगों को साल-दुसाला मिल गया।
दुखराम:हमारे ही हाथ* साल-दुसाला बनाते हैं, लेकिन भकुआ बनाकर दूसरे उसे पहनते हैं। हमने अपने रूप को नहीं पहचाना सुक्खू भाई! कोई बाघ का बच्चा था। बचपन ही में किसी गड़रिये ने पकड़ लिया और भेड़-बकरी का दूध पिलाकर पोसा। जब वह बढ़कर पूरा बाघ हो गया, तब भी कोई उसका कान पकड़ता, कोई मारता, जैसे अब भी कुत्ते का पिल्ला है। फिर किसी दूसरे बाघ ने देखा, उसको बड़ा अचरज हुआ और अफसोस हुआ। जब वह समझाने के लिए उसके पास गया तो सब भेड़-बकरियाँ भाग गईं और उन्हीं के साथ वह बाघका बच्चा भी भाग निकला। कई दिन के बाद बाघ ने जवान बाघ को पकड़ पाया। बाघ समझाने लगा कि तुम भी हमारी तरह बाघ के बच्चे हो, काहे मार खाते हो, काहे बेइज्जत होते हो! बाघ-बच्चे ने कहा— कि नहीं हमको छोड़ दो नहींतो गड़रिया मार-मार कर बेदम कर देगा। बाघ उसे पानी के पास ले गया, परछाईं दिखा के कहा कि देखो तुम्हारा भी रूप मेरे ही ऐसा है। अब बाघ-बच्चे ने देखा तो उसे सच्ची बात मालूम हुई लेकिन तब भी उसका डर नहीं जा रहा था। बाघ ने कहा कि गड़ेरिये के सामने मेरी तरह गुर्राना और जब गड़रिया जान लेके भाग जाय तब तो मेरी मानोगे न? बाघ-बच्चे ने वैसे ही किया, गड़रिया भाग गया। बाघ-बच्चा जंगल का राजा बन गया। वही बात तो है सुक्खू भाई! हम लोगों की। हजार आदमी मर-मरकर कमाते हैं और पाँच जोंकें सब खा जाती हैं, कमाने वालों को उन्होंने छत्तीस खोम में बाँट दिया है, उस पर से हम लोगों को भेड़ बना दिया। लेकिन जिस दिन हम लोग अपना रूप पहचान लेंगे, उसी दिन जोंकों का अन्त समझो।
सुखारी:दुक्खू भैया, जो तुम कहते हो, वह सब हमारे घट के भीतर उतर जाती है। छोटा भइयवा सुआरथकाल्ही तो यहाँ से गया है। पलटन में सिपाही है भैया! वहाँ अच्छा-अच्छा पहनना मिलता है दुक्खू भाई! तुमने जो दो अच्छर बताया है, उसे सुआरथ से भी कहा। उसने कहा कि रूस के पलटन इतनी बीर दुनिया में कहीं नहीं है, लेकिन उसको यह मालूम नहीं था कि रूस में जोंकें नहीं हैं, वहाँ कमेरों का राज है।
दुखराम:तो तुमने कुछ बताया कि नहीं सुक्खू भाई?
सुखारी:जो कुछ समझ में आता है, वह बतलाया दुक्खूभाई! कह रहा था कि मैं पलटन में जाकर और पता लगाऊँगा। अच्छा यह बात तो हुई, अब रजबली भैया कुछ बतावें।
भैया:दुनिया भर में सुक्खू भाई, जोंकों का राज है, जोंकें कारखाना खोलती हैं, सौदा बेंचती है, जिसमें कोई गड़बड़ न करे, इसलिए राज भी अपने हाथ में रखा है। गरीब सब जाति में हैं सुक्खू भाई! बाभन में भी गरीब हैं, रजपूत में भी गरीब हैं, भुँइहार में भी गरीब हैं, जो गरीब हैं, उसकी जिन्दगी नरक है, धरती पर हमारा देस सबसे बड़ा नरक है काहे से कि इतनी गरीबी चारों खूँट में कहीं भी नहीं है। और बड़ी जातियों में तो दो-चार खुसहाल भी होते हैं, लेकिन अछूत जाति में तो एक ओर से सभी गरीब ही गरीब हैं। मदरसा में पढ़ने जायँ तो सबकी तिउरी चढ़ जाती— ‘मेहतर का लड़का हमारे लड़के के साथ बैठा करे! चमार का लड़का हमारे लड़के के साथ पढ़े!’ रोजगार से लोग पैसा पैदा करते हैं, लेकिन अब्दुल भाई! तुम मिठाई की दूकान खोलो तो कोई आयेगा!
अब्दुल:देह तो छुआते ही नहीं हैं भैया! हमारे हाथ की मिठाई कौन खायेगा? कपड़ा का दूकान खोलो तोवही बात। नौकरी में तो और मुस्किल। सब बड़ी-बड़ी जातियों के हाथ में है।
भैया:जोंकों ने वैसे तो सारी दुनिया में सब कुछ अपने हाथ में रखा लेकिन हिन्दुस्तान में तो उन्होंने गजब ढाया है। तीस करोड़ हिन्दुओं को ही ले लो। दस करोड़ अछूत हैं, बड़ी जाति वाले जो उन्हें आदमी कहते तो जनुक बड़ी दया करते हैं। बाकी बीस करोड़ में दस करोड़ औरतें हैं, जिनको कहने के लिए तो अरधांगिनी नाम दिया जाता है, लेकिन कहावत है— “बहुरिआ का बहुत मान लेकिन हाड़ी-बरतन छूने न पाये।” दुक्खू भाई! उस दिन बात हो रही थी न, जायदात में औरतों का भी हक होना चाहिए।
दुखराम:हाँ भैया! सन्तोखी भाई ने जो सभा की नोटिस दिखाई थी।सुखारी:किस बात की नोटिस थी भैया?
भैया:आजकल बड़े लाट के यहाँ एक कानून बनाने की बात हो रही है। औरतों को न बाप की जायदात में हक मिलता है, न पति की। इसीलिए कानून बना देना चाहते हैं कि औरतों को भी हक मिले लेकिन हिन्दू कहते हैं कि औरतों को हक मिलने से हिन्दू धरम खतम हो जायगा। हिन्दू धरम बढ़ेगा कैसे? दस करोड़ आदमियों को अछूत रखो, उनको न साथ में पढ़ने दो, न उन्हें कुएँ की जगत पर चढ़ने दो, न मन्दिर के भीतरघुसने दो, एक है यह रास्ता। दस करोड़ औरतों को कोईहक मत दो, जिससे वह मरदों की दासी बनी रहें, हिन्दू धरम की बढ़ोतरी का यह दूसरा रास्ता है; बीस करोड़ को तो इस तरह जानवर बनाया, फिर दस करोड़ हिन्दू आदमी रह जाते हैं। लेकिन उस दस करोड़ में कितने ही बाम्हन हैं, जिनका दिमाग आसमान पर रहताहै, वह अपने को बर्म्हा का बेटा कहते हैं, कुछ हैंराजपूत, फिर हैं खत्री, अगरवाल, बरनवाल, रस्तोगी, कायथ और भी पचासों जातियाँ हैं, सबकी अलग-अलग दुनिया है; मरना-जीना, सादी-ब्याह सबका अपनी-अपनी जाति में। हिन्दू सिरिफ एक नाम है, नहीं तो यह सैकड़ों जातियों का अपना अलग संसार। तो देख रहे हो न सुक्खू भाई, 20 करोड़ औरत और अछूत कहकर जानवर बना दिया। फिर 10 करोड़ को सैकड़ों जातियों में तोड़-फोड़कर बिल्कुल कमजोर कर दिया। इससे फायदा किसको हुआ? बाहर वालों को। घर फूटै गँवार लुटै, आज बिलायती जोंकें हिन्दुस्तान पर राज कर रही है, क्यों? इसीलिए कि हिन्दुस्तान फूट के कारन दुरबल है और दुरबल की मेहरी गाँव भर की भौजाई है। और दूसरा नफा उठाने वाले हैं हमारेदेस के निकम्मे लोग, जोंकें, जो हाथ-पैर हिलाना नहीं जानतीं, जो दूसरों का खून चूसती हैं; किसान उनके लिए अनाज पैदा करता है, मजूर उनके लिये कपड़ा बुनता है।
दुखराम:इन्हीं जोंकों ने भैया, जात-पात बनाई हैक्या?
भैया:एक कहावत है दुक्खू भाई— जब गंगा हहा के समुन्दर के पास पहुँची तो समुन्दर को बड़ा डर लगा। उसने सोचा, जो गंगा इतने जोर से चलेगी तो मुझे भी लाँघ जायेगी। उसने हाथ जोड़के कहा— “गङ्गा महारानी, एक बात का बरदान माँगता हूँ। एक धारा से आने पर मुझे बहुत तकलीफ होगी। आप हजार धारा बनकर आयें तो मुझ पर बड़ी दया होगी।” गंगा हजार धारा बन गई, उसका जोर हजार टुकड़ों में बँट गया और कहते हैं, इसलिये समुन्दर गङ्गा को खा गया। हमारा देस भी वैसे ही है। हजारों जातियों में बँटा है, इसीलिये हमारे यहाँ की जोंकें हजारों बरस से हमें खा रही हैं, हमारे लिये ये जोंकें मजबूत हैं लेकिन यह भी हजारों टुकड़ों में बँटी हैं, इसलिये बिलायती जोंकें हिन्दुस्तान में पहुँच गईं। तुमने सुक्खू भाई, पूछा था कि तुम तो इतना काम करते हो, बड़े भोरे ही हल नाधते हो, बरसा हो या जाड़ा हो या गरमी हो, कुछ नहीं गिनते। अढ़ाई पहर तक खेत में हर जोतते हो, जमीन खोदते हो, खेत काटते हो और मिलता तुम्हें क्या है?
सुखारी:चार पैसा और पाव भर पन पियाव, न कुल। चार पैसा के साँवाँ में भी आज-कल पेट नहीं भरता, क्या अपने खायँ और क्या बाल-बच्चे को खिलायँ, सबकी हड्डी-हड्डी निकली हुई है। परसाल 12 बरस का लड़का झुक (मर) गया।
भैया:12 बरस का लड़का मरने के लिये नहीं पैदा हुआथा सुक्खू भाई! जिसको आध पेट भी भोजन नहीं मिलेगा, उसको तो बीमारी ढूँढ़ती ही रहती है। खानेका ठिकाना नहीं है तो दवाई कहाँ से लाके पिलाओगे?
सुखारीभैया:आज-कल भी भैया, आठ साल का गदेला (लड़का) महीना भर से जड़ैया में पड़ा है। बस भगवान पर छोड़ दिया और क्या करें! पहिले चार पैसे की कुनैन की पुड़िया मिलती थी तो कहीं से माँग-जाँच कर खरीद लाते थे। लेकिन अब तो उसका कहीं पता ही नहीं है।
भैया:यह आदमी की जिन्दगी नहीं है सुक्खू भाई, दोसौ पीढ़ी से तो भगवान पर छोड़ा, लेकिन भगवान ने आज तक तुम्हारी ओर झाँका भी नहीं।
सुखारी:सो तो जानता हूँ भैया! लेकिन जब आदमी का कुछ भी नहीं चलता तो क्या करे? सुनते हैं गाँधी महातमा हम लोगों की सुध ले रहे हैं।
भैया:अपनी सुध न लोगे सुक्खू भाई तो कोई तुम्हारी सुध न लेगा। हिन्दू और गाँधी जी भी जो हरिजन-हरिजन कहने लगे तो इसमें भी दूसरा ही मतलब है।दुखराम:दूसरा मतलब क्या है भैया और हरिजन क्या?भैया:हरि भगवान को कहते हैं और जन का माने है आदमी, भगवान का आदमी, नाम तो अच्छा है, लेकिन नाम से कुछ नहीं होता।
दुखराम:एक खिस्सा सुना दें, किसी लड़के का नाम ठठपाल था, अच्छा नाम रखने से जम उठा ले जाता था, इसलिये मतारी ने खराब नाँव रख दिया। लड़का पढ़ के हुसियार हुआ। दूसरे लड़के ठठपाल कहते, मजाक करते। उसने अपने गुरु से कहा कि मेरा नाम बदल दें। गुरु ने कहा— ‘नाम में कुछ नहीं है।’ ठठपाल ने फिर-फिर जोर देकर कहा तो गुरु ने कहा, जाओ तुम्हीं कोई अच्छा-सा नाम ढूँढ़ लाओ। ठठपाल नाम ढूँढ़ने चला। किसी खेत में फटे चीथड़े लपेटे कोई औरत पिछुआ (छूटा दाना) बीन रही थी, ठठपाल के पूछने पर उसने अपना नाम लछमिनिया बताया। ठठपाल सोचने लगा कि लछमिनिया ऐसा अच्छा नाम है, लेकिन इससे उसे क्या नफा है? ठठपाल और आगे बढ़ा, चैत-बैसाख की दुपहरिया में कोई आदमी नंगे बदन हल जोत रहा था, पूछने पर नाम बतलाया- धनपाल। ठठपाल फिर सोचने लगा। लेकिन फिर आगे बढ़ा। कुछ आदमी कंधे पर मुर्दा उठाये “राम नाम सत्त है” कहते गाँव से बाहर निकल रहे थे। ठठपाल ने नाम पूछा तो मालूम हुआ- अमर! ठठपाल वहाँ से गुरु के पास लौट आया। गुरु ने पूछा, कोई नाम ढूँढ़ लाये? ठठपाल ने कहा— “बिनिया करती लछमिनिया देखा, हल जोतत धनपाल। खटिया चढ़े हम अम्मर देखा, सबसे भला ठठपाल॥”
दुखराम:हाँ, नाम बदलने से क्या होता है भैया?
भैया:और नाम भी कैसा बदला है, हरिजन, भगवान का आदमी। भगवान ने अछूतों की ओर फूटी आँख भी कभी देखी? जोंकें अपने सारे चूसने को भगवान ही की कृपा बतलाती हैं। सुखारी क्यों भूखे मरते हैं? भगवान की कृपा; सुखारी का 12 साल का लड़का पथ और दवाई के बिना क्यों मर गया? भगवान की मर्जी। सालमें 10 महीना सुखारी को क्यों भूखा और आधा पेट रहना पड़ता है? — भगवान की इच्छा। इनके दो करोड़ चमार भाई काहे नंगे-भूखे मरने के लिये पैदा हुए हैं? भगवान की खुसी! राजा सुरेमनपुर काहे 20 लाखरुपया हर साल आतिसबाजी, रंडी और मोटर पर फूँकते?— भगवान की दया। सेठ तिनकौड़ीमल मोटाई के मारे चारपाई पर से उठ भी नहीं सकते। उन्होंने चोर-बाजार में अनाज बेंचकर एक करोड़ रुपया काहे मार लिया?— भगवान की दया। सेठ तिनकौड़ीमल के भाई-बन्दों ने अनाज छिपाके उसे महँगा कर बंगाल में 20 लाख आदमियों को भूखा क्यों मार डाला?— भगवान की दया। कोई काम करते-करते मर जाता, लेकिनउसे एक साँझ भी पेट भर अन्न न मिलता, यह भी भगवान की दया। किसी के कुत्ते हलुवा-मलीदा खाते हैं और कोई भूख के मारे कुत्तों का जूठ छीनके खाता है, यह भी भगवान की दया।दुखराम:जिनके कुत्ते घी-मलीदा खायँ, वह भले ही भगवान की दया की तारीफ करते फिरें, लेकिन जिनके ऊपर भगवान के नाम से हमेसा ही बज्र गिराया गया है, वह काहे को भगवान के आदमी बनने जायँ?
भैया:गाँधी जी ने अछूतों को हरिजन— भगवान का आदमी बनाया और एक काम और किया।
सुखारी:सो क्या है भैया?
भैया:हरिजनों के लिए मन्दिर का दरवाजा खोल देनाचाहिए। जब हरिजन हैं तो इनको हरि का दरसन जरूर मिलना चाहिए। लेकिन बाभन पोथी खोल-खोलके दिखाते फिरते हैं कि चमार के मन्दिर के भीतर जाने से मन्दिर असुद्ध हो जाता है, भगवान असुद्धहो जाते हैं। मैं तो उनसे कहता हूँ दुक्खू भाई कि क्या हिन्दुस्तान में गाय का गोबर और मूत नहीं है, क्यों नहीं खिला-पिला के भगवान को सुद्ध कर लेते!
दुखराम:चमार के लिए मन्दिर का दरवाजा खोल देने से क्या उसका पेट भर जायगा?[
भैया:डाक्टर अम्बेडकर भी यही कहते हैं दुक्खूभाई!
दुखराम:डाक्टर अम्बेडकर कौन हैं भैया?भैया:बम्बई की ओर के चमार। पढ़ने में बहुत तेज थे, किसी तरह तकलीफ सह-सहके दो अच्छर पढ़ा, फिर किसी ने रुपये की थोड़ी मदद की, बिलायत गये, बलिस्टर हुए, डाक्टर बने— दवाई वाले डाक्टर नहीं, विद्दावाले डाक्टर। हिन्दुस्तान आये। वकालत करने जायँ तो धन तो है बड़ी जातिवालों के पास और चमार को कौन बलिस्टर रखेगा। कचेहरी के हाकिम बने, तो सब बड़ी जातिवाले सरकार का सिर खाने लगे कि हम चमार के इजलास में नहीं जायेंगे।अम्बेडकर के भाई-बन्दों को हजारों बरस से जानवरकी तरह रखा गया, वे बड़ी जातिवालों के सामने न छाता लगाके निकल सकते हैं, न जूता पहिन कर के। लेकिन उनको कभी भी इसका दिल में ख्याल नहीं आया, वह समझते हैं कि भगवान ने हमें इसीलिए पैदा कियाहै। लेकिन अम्बेडकर ने विद्दा पढ़ी थी, दुनिया केदेस देखे थे, वह ऐसे अपमान को चुपचाप बरदास नहीं कर सकते थे। उन्होंने अपने चमार भाइयों को समझाया और सभी अछूतों को समझाया कि हम आदमी हैं, कुत्ता-बिल्ली नहीं हैं, जो हिन्दुओं के धरम में हमें कुत्ता-बिल्ली बनाके रखने की बात लिखीहै तो हम ऐसा धरम नहीं चाहते। भगवान को हमने देख लिया जो वह 200 पीढ़ी से हमारे नहीं हुए तो अब वह कभी हमारे नहीं होंगे।
सुखारी:तो भैया! अम्बेडकर हमारी ही जाति के आदमी हैं, वह भी इस दिहात में चले आवें, तो भितौराके राजा साहब जूता-छाता पहनकर नहीं न चलने देंगे?
भैया:अम्बेडकर बड़े लाट के मन्त्री हैं। झूठी खबर भी उड़ जाय कि अम्बेडकर की मोटर भिटौरा से होकर जायगी, तो यहाँ सड़क के किनारे फाटक बनेंगे और लाल-पीली झंडियों, असोक के पल्लवों से सजाया जायगा, राजा साहब हाथ जोड़कर अगवानी करेंगे और चाय-पानी कर लेने पर अपना धन्नि भाग समझेंगे।
सुखारी:तो भैया! अम्बेडकर बड़े लाट के मंत्री हो गये, तो उनकी जाति ढँक गई न?
भैया:जोंकों का कायदा है दुक्खू भाई कि जब किसी को बड़ा देखते हैं तो अपनी ओर खींचना चाहते हैं, जिसमें कि वह आदमी भी जोंकों का पच्छ करे, नहीं तो खून चूसने में मुसकिल होगी न!
सुखारी:क्या अम्बेडकर हम गरीबों को भूल जायेंगे?
भैया:भूले तो नहीं हैं सुक्खू भाई, वह तोदसो करोड़ अछूत भाइयों को जानवर से आदमी बनाना चाहते हैं।**]
सुखारी:बड़े होकर नहीं भैया।
भैया:दस करोड़ अछूत भाइयों को जानवर से आदमी बनाना है। लेकिन दसों करोड़ आदमी अपने मन से जानवर नहीं बने, जोंकों ने उन्हें जानवर बनाया।
सुखारी:किस तरह हम लोगों को आदमी बनाना चाहते हैं भैया?
भैया:कहते हैं हिन्दुओं में एक तिहाई अछूत हैं, उनको भी बड़ी-बड़ी नौकरी मिलनी चाहिए। काहे जज, कलट्टर, मजिट्टर सब बड़ी-बड़ी जाति के ही लोग बनेंगे। हम एक तिहाई हैं, नौकरी में एक-तिहाई हमारा हिस्सा होता है।
सुखारी:तोभैया, क्या हमारी जाति में भी अब कलट्टर-मजिट्टर बन रहे हैं?
भैया:हाँ, दस-बीस काहे नहीं बने हैं! लेकिन सुक्खू भाई, जो तिहाई नौकरी मिल जाय तो यह भी ऊँटके मुँह में जीरा होगा। दस करोड़ में एक हजार नौकरी मिल जाने से दसों करोड़ की भूख भाग जायगी?
सुखारी:कहाँ भागेगी भैया! राजपूत, बाभन, कायथ में हजारों नोकरिहा हैं, लेकिन हर गाँव में तो पेट में पत्थर बाँध के ढेला पीटने वाले भरे पड़े हैं।
भैया:मैं यह नहीं कहता, अछूतों को नौकरी नहीं मिलनी चाहिए, लेकिन ओस के चाटे से प्यास नहीं बुझेगी सुखारी भाई!
सुखारी:और भी कोई रास्ता बतलाते हैं भैया?
भैया:राज-काज चलाने के लिए जो छोटे लाट बड़े लाट की पंचायत (एसेम्बली, कौंसिल) है, उसमें भी एक-तिहाई हमारे भाइयों को जाना चाहिए।
सुखारी:तो इससे भैया हम लोगों को रोटी-कपड़ा मिलने लगेगा?
भैया:बड़ी जाति के लोग पंचायत में गये हैं। देख रहे हो न, उनकी जाति के ढेला फोड़ने वालों को कितना खाना-कपड़ा मवस्सर हो रहा है।
सुखारी:तो यह भी बेकार ही हुआ न भैया?
भैया:बेकार नहीं है सुक्खू भाई, अछूतों को उस पंचायत में जाना चाहिए, तभी न बड़े लोगों को मुँहतोड़ जवाब मिलेगा और फिर छाता-जूता उतरवाने का नाम नहीं लेंगे। लेकिनसींकबोर के पानी देनेसे कंठ नहीं भीगेगा सुक्खू भाई!
सुखारी:तो भैया, कौन उपाय है, जिससे हम लोगों का दुख-दलिद्दर जाय?
भैया:बस रोगों की एक ही दवा है सुक्खू भाई और वह दवा मरकस बाबा बतला गये हैं।
सुखारी:मरकस बाबा की बात दुक्खू भाई ने बतलाई है।
भैया:ताल-तलैया, डबरा-गड्ढा, चाहे गड़हा-गड़ही, चाहे गाय-भैंस के खुर का दाग; एक-एक चीज को लोटा के पानी से भरने में जिनगी बीत जायगी लेकिन वह नहीं भरेंगे और एक बेर बाढ़ आ जाय, तो सब भर जायँगे। मरकस बाबा कहते हैं कि खून चूसने वाली सभी जोंकों को निकाल बाहर करो और खेती-बारी, बाग-बगैचा, खान-कारखाना सब साझे में कर लो, बस सबका दुख-दलिद्दर दूर हो जायगा।
सुखारी:हमारे नेताअम्बेदकर इसे क्यों नहीं मानते भैया?
भैया:इनकोअम्बेदकर बाढ़ के आने पर विस्वास नहीं।
सुखारी:बाढ़ के आने पर विस्वास नहीं है तो क्या लोटा-लोटा पानी से भर देने का विस्वास है, यह तो और अनहोनी बात है।
भैया:वह सोचते हैं, कि अबकी साल सौ नौकरी मिलेगी, अगले साल दो सौ आदमी हाकिम हो जायेंगे। इसी तरह कुछ दिन में हमारी जाति के दस-बीस हजार आदमी को नौकरी मिल जायगी। कोई दो हजार महीना पायेगा, कोई हजार, कोई पाँच सौ, कोई सौ।
सुखारी:दो हजार या सौ महीना लेके अपने ही अंडे-बच्चे को पालेगा न भैया! बहुत हुआ तो दो लाख आदमियों का इससे काम चल जायगा, लेकिन दस करोड़ में दो लाख क्या है?दुखराम/
सुखारी भैया:बड़ी जाति वालों के पास तोभैया जमीन-जमींदारी भी है, कल-कारखाना भी है, हमारे पास तो मँड़ई डालने की भी जमीन नहीं, तो दस-पन्द्रह हजार नौकरियों के मिल जाने से हमाराक्या बनेगा?
भैया:नौकरी वाले जिमींदारी खरीदेंगे, कारखानोंमें भी हिस्सेदार बनेंगे, हो सकता है, पचास बरस में अछूतों में भी कुछ हजार जमींदार और कारखानेदार बन जायँ।
दुखराम:लेकिन इससे तो भैया! जोंक ही बढ़ेगी न? जोंकों के बढ़ाने से हमारा दुख जायगा या खतम करनेसे?
भैया:यही तो ये लोगअम्बेदकर नहीं समझते। उन्होंने खुद सब तकलीफ और अपमान भोगा है, उनके दिल में अपने भाइयों के लिए बड़ा दर्द है। वह अछूतों को उठाकर खड़ा कर रहे हैं, यह सब अच्छा है।वह गाँधी जी के हरिजन-उद्धार या अछूत-उद्धार कोबेकार समझते हैं, यह भी ठीक है। और गाँधी जी जो मन्दिर में अछूतों को भेजना चाहते हैं तो यह मायाजाल है। मन्दिर और भगवान सब धोखे की टट्टी है। चारा देकर बहेलिया मारता है। अछूतों को भगवान से दूर ही से सलाम करना चाहिए और कह देना चाहिए, बाबा! जाओ, बहुत दिनों छाती पर मूँग दला।
सुखारी:मरकस बाबा के रस्ता पर चलने से हम लोगों का कैसे उद्धार होगा भैया?
भैया:सुक्खू भाई! यही अपने दाउदपुर गाँव की बात ले लो। बाभन-चमार सब मिलाकर 100 घर हैं। तुम्हारे यहाँ 500 बीघा खेत हैं और सब रब्बी का। अभी तो 100 घर में 20 घर चमारों के पास कुल मिलाकर 3-4 बीघा से ज्यादा जमीन नहीं और उसके लिए भी मालिक की गाली-मार सहनी पड़ती है और भी कितने ही बाभनों, अहीरों और दूसरी जाति के घर हैं, जिनमें किसी-किसी के पास नाम के लिए थोड़ी-सी जमीन है। 8-9 घर हैं, जिनके पास जमीन भी बेसी है और मुँह में गाली भी। मरकस बाबा के रस्ते का मतलब है कि पाँचो सौ बीघा इकट्ठा कर दिया जाय, कोले-कोलियों की मेड़ें तोड़ दी जायँ औरपाँचों सौ बिगहा की खेती सभी घर की साझी हो। जितने देह से काम करने लायक आदमी मर्द-औरत हैं, सब काम करें।
सुखारी:लेकिन भैया, सुखलाल तेवारी के घर की बुढ़िया भी चौखट से बाहर नहीं निकलती, उनके घर की औरतें कैसे निकाई-रोपाई करने आयेंगी?
भैया:सात परदे के भीतर रहना, चौखट नहीं लाँघना, हाथ में मेंहदी लगाके बैठना, यह सब जोंकों का धरम है भाई। कमेरों का धरम है काम करना। सुखलाल तेवारी और उनके घर की औरतों को दो में से एक बात चुननी पड़ेगी; जो वह जोंक धरम पालन करना चाहते हैं, तो “काम नहीं तो रोटी नहीं” वाली बात होगी और एक हफ़्ता में सब पटपटा के दाउदपुर को छोड़ जायँगे। जोंकों के मरने से धरती का भार उतरता हैसुक्खू भाई! और जो कमेरा-धरम पर चलना चाहेंगे तोसबके भाई हैं, सबके साथ मिलके काम करें। खूब धन पैदा करें और सब बाँट-चोटकर खायें-पियें।
सुखारी:तो मरकस बाबा के रस्ता में भैया, काम पियारा होता है, चाम नहीं, यही न भैया!भैया:जो दाउदपुर में सब घर चाम से पियार करने लगे तो धरती माता एकहू अच्छत अनाज देंगी?
दुखराम: धरती माता का दिल तब तक नहीं पसीजता भैया, जब तक चोटी का पसीना एड़ी तक नहीं पहुँचता।
भैया:दाउदपुर में सब घर काम करेगा। खेतों में मोटर का हल चलेगा, सिंचाई के लिए पाइप और बिजली लगेगी। खेत-खेत में बिलायती खाद पड़ेगी। 200 बीघा गेहूँ बोने में लोगों का साल भर का खाना हो जायगा। 300 बीघा जो सिगरेट वाला तमाकू बो दो तो खाली तमाकू बेंच देने से साल में 3 लाख रुपया आ जाय। लेकिन तमाकू काहे को बेचोगे सुक्खू भाई! दाउदपुर में सिगरेट का कारखाना खुल जायगा। खेतीका समय छोड़कर मरद-औरत अपने कारखाना में रोज 6 घन्टा काम करेंगे और बीस लाख का सिगरेट साल में बिक जायगा और गाँव वाले जितना सिगरेट पियेंगे, उतना मुफुत रहेगा।
सुखारी:तो भैया इसी दाउदपुर की मिट्टी से 20 लाख 25 लाख सालाना निकलेगा न?
भैया:और यह 20-25 लाख सुक्खू भाई, सब घर का धन होगा। फिर दाउदपुर में कोई सुअर की खोभार नहीं दिखाई पड़ेगी, कोई छान और खपड़ैल भी नहीं बच रहेगा। उसकी जगह दाउदपुर में होगी— एक चौड़ी सड़कजिसके दोनों ओर ईंट, सीमेन्ट और लोहे से बने पक्के मकान होंगे। हर मकान में नल से पानी जायगाऔर बिजली दीया बारेगी। हर घर के पीछे पक्का पाखाना होगा, लेकिन अबदुल भाई को उठाना नहीं पड़ेगा; नल से पानी छोड़ा जायगा और वह धरती के भीतरही भीतर वहाँ ले जायगा। फिर आज के नंगे-भूखे आदमी दाउदपुर में नहीं दिखाई पड़ेंगे। सब साफ़ कपड़ा पहिनेंगे। लड़के-लड़की सब पढ़ेंगे। सुखलाल तेवारी के पोते और सुखारी चमार के पोते एक-दूसरे को भाई समझेंगे और एक परिवार के बेकति (आदमी)।
अबदुल:लेकिन भैया, यह सपना जैसी बात मालूम होती है।
भैया:सपना वह होता है अबदुल भाई, जिसे धरती पर कहीं न देखा जाय, लेकिन जो बात धरती के किसी कोनेमें देखी जाय, उसे भी क्या सपना कहेंगे?
अबदुल:धरती पर ऐसी बात कहीं हुई है भैया?भैया:हाँ अबदुल भाई! और बहुत दूर नहीं। दो दिन रेल और 3 दिन मोटर से चलने पर तुम उस देस में पहुँच जाओगे, जहाँ सब कारबार साझे के परिवार का है, जहाँ कोई अछूत और बड़ी जाति का नहीं है, जहाँ कोई जोंक नहीं है, उस देस का नाम है सोवियत रूस, किसानों-मजूरों का पंचायती राज और उसी को पहले रूस भी कहा करते थे।
अबदुल:तब भैया! सपना की बात नहीं, लेकिन अपनी जिनगी में हम यह सब देख लेंगे?
भैया:तमासा देखना चाहोगे तो कभी नहीं, लेकिन वैसा बनाने में लग जाओगे और खूब जिउजान से लग जाओगे तो जरूर देख लोगे। अड़तीस बरस पहिले रूस कोभी जोंकों ने नरक बना रखा था लेकिन किसान-मजूर भिड़ गए और अब उन्हें मरके भी सरग में जाने की जरूरत नहीं, अब सरग उनके घर पर उतर आया।
सुखारी:लेकिन भैया हमारे नेताअम्बेदकर इतना पढ़-गुन कर काहे मरकस बाबा के रास्ते को नहीं मानते? जो वह भी दस-बीस लाख के जोंक बनना चाहते हैं तो हम लोगों का क्या उपकार करेंगे?[
भैया:समझ का फेर है सुक्खू भाई! अम्बेडकर मरद बच्चा है, ईमानदारी में 100 में 1 है और मैं समझता हूँ कि वह जोंक नहीं बनना चाहता।
सुखारी:तब तो भैया! अंबेडकर से भेंट हो, तो मैं उनके गोड़ पर पड़कर कहूँ— दादा! तुम भी मरकस ही बाबा का रस्ता पकड़ो, इसी रस्ते से हम लोगों की 200 पीढ़ी की गुलामी दूर होगी।
भैया:गोड़ पड़ने से काम नहीं चलेगा सुक्खू भाई! लेकिन*]हिन्दुस्तान भर के कमेरे जब जोंकों को उखाड़ फेंकने के लिए उठ खड़े होंगे तब उनके मन में भी आसा बँधेगी, अभी तो वह इसे अनहोनी बात समझते हैं, इसीलिए जड़ में पानी न देकर पत्तों को सींचते हैं।
दुखराम:लेकिन सुनते थे भैया! गाँधी जी अछूतों के उद्धार के लिए लाखों रुपया जमा कर चुके थे। और उन्होंने जगह-जगह हरिजन आसरम खोले। वह क्या करना चाहते थे?
भैया:करना तो चाहते थे हरिजनों का उद्धार, लेकिन हो रहा है कंडे से आँसू पोंछना। बस, इतना ही हो रहा था, कि कुछ सौ हरिजन लड़कों को चरखा कातना सिखाया जाय, जिससे बहुत मेहनत करने पर भी आदमी दो आना रोज से बेसी नहीं कमा सकता, जिससे एकआदमी का भी पेट नहीं भर सकता। दूसरी बात यह हो रही थी कि बड़ी जाति के सौ-दो सौ आदमियों को नौकरी मिल जाती।[
सुखारी:तो भैया इससे तो हमारी जाति का उतना भी उपकार नहीं हो सकता, जितना अंबेडकर के रस्ते से।
भैया:हाँ, ठीक कह रहे हो सुक्खू भाई और अंबेडकर का रस्ता धोखे का नहीं है, इतना ही है कि उनके रस्ते पर चलने पर दो-चार पीढ़ी में दसो करोड़ अछूतों का दुख-दलिद्दर दूर होना मुसकिल है।*]× × × × ×▲-संभवतःयह अध्याय अन्तिम रूप से 1955 में संशोधित किया गया है। लेकिन कई जगह लेखक संशोधित नहीं कर सका है और लगता है कि 1944 की बात पढ़ रहे हैं। इस अध्याय का पुराना नाम ‘“हरिजन” या सबसे अधिक सताये आदमी’ था।हाथ*-यहाँ सभी नये संस्करण में ‘साथ’ छाप दिया गया है, यह भी गलत है।अम्बेदकर-पुराने संस्करण में यहाँ ‘अम्बेडकर’ लिखा है।सुखारीभैया-यहाँ सुखारी बोल रहा है, न कि भैया लेकिन सभी संस्करणों में भैया छापकर गलती कई गई है।*-यह अंश पुराने संस्करण से लिया गया है। पुराने संस्करण से लिए अंश को नीले अक्षरों में लिखा गया है।**-यहाँ नये संस्करण में लिखे अंश‘दसो करोड़ अछूत भाइयों को जानवर से आदमी बनाना चाहते हैं।’की जगह ‘दस करोड़ अछूत भाइयों को जानवर से आदमी बनाना है।’ छपा है।दुखराम/सुखारी भैया:-यहाँ भैया गलत है, जबकि सभी संस्करणों में यही छपा है। यहाँ दुखराम या सुखारी, कोई एक ही बोल रहा हैं। अंदाजा है कि यहाँ सुखारी ही बोल रहा है।दुखराम-यहाँ सभी संस्करणों में ‘सुखराम’ छपा है, जबकि यह गलत है।दुखराम-यहाँ दुखराम नहीं बोल रहा है। यह सभी संस्करणों में गलत लगता है, क्योंकि किस्सा ही दुखराम सुना रहा है, तब फिर वह कैसे अगला संवाद बोलेगा?सुखारीभैया:-यह संवाद सुखारी का है, न कि भैया का। सभी संस्करणों में यह गलत ही छपा है।
भकुवा-मूर्ख, बेवकूफ
भुँइहार-भूमिहार, एक जाति
बर्म्हा-ब्रह्मा, विधाता
दुरबल-दुर्बल
हहा के-एकदम तेजी या बेचैनी से आ के
पन-पियाव-पानी पिलाने का मेहनताना
परसाल-पिछले साल
नाँव-नाम
मतारी-माँ
बारेगी-जलाएगी
जिउजान-जी-जान