बुधवार, 27 मई 2015

आस्तिक v नास्तिक

केवल बौद्ध धर्म ही सचमुच में एक नास्तिक धर्म है जबकि बाकी सब आस्तिक धर्म हैं।जाहिद भाई के दो सवाल(कंवल भारती)मोहम्मद जाहिद भाई ने नास्तिकों से दो सवाल इस अंदाज़ में पूछे हैं कि अगर नास्तिक उनके सवालों का जवाब दे दें, तो वह भी नास्तिक हो जाएंगे. उनके दो सवाल ये हैं--1- जन्म-मृत्यु का रहस्य क्या है ?2- जिस विज्ञान को आप अपने सिद्धांत का आधार मानते हैं, उसी विज्ञान का बड़े से बड़ा डाक्टर अक्सर अपने मरीजों से कहता हुआ क्युँ पाया जाता है कि ईश्वर से प्रार्थना करें ।जाहिद भाई, नास्तिक बनने की शर्त ठीक नहीं है, क्योंकि इसके पीछे यह तथ्य है कि आस्तिक एकदम अकाट्य हैं, जबकि यह सिर्फ भ्रम है. सवाल तो हमारे भी बहुत सारे हैं, जिनके जवाब आस्तिकों ने आज तक नहीं दिए. इस्लामी विद्वान् भी आस्तिकों के सवालों से हमेशा बचते हैं. मैंने अपनी वाल पर ही कभी लिखा था कि पैगम्बरे इस्लाम के जीवन में ही नास्तिकों ने उनसे सवाल किया था कि “अगर आदमी को अल्लाह ने बनाया है, तो अल्लाह को किसने बनाया है?” और कोई जवाब नबी नहीं दे पाए थे, अलबत्ता ऐसेनास्तिकों को उन्होंने शैतान कहकर उनकी उपेक्षाकरने की सलाह दी थी. चौदह सौ साल पहले पूछे गये नास्तिकों के इस सवाल को आज भी इस्लामी विद्वानों के जवाब का इंतज़ार है.अब मैं जाहिद भाई के पहले सवाल पर आता हूँ—(1) ‘जन्म-मृत्यु का रहस्य क्या है?’ नास्तिकों ने इस तरह के सवाल कभी नहीं पूछे. ऐसे सवाल सिर्फ आस्तिकों के ही दिमागों में होते हैं’ क्योंकि उन्हें यह सिखाया जाता है कि जन्म-मृत्यु एक ईश्वर के अधीन है. वह ही पैदा करता है और वह ही मारता है. और अभी मस्जिद में नमाज अदा करते हुए कितने सारे मुसलमानों को दूसरे मुसलमानों ने मौत की नींद सुला दिया. तब जन्म-मृत्यु अल्लाह या गॉड या ईश्वर के अधीन कहाँ है? पहले तो आस्तिकों को यह समझना होगा कि जगत का निर्माण नहीं हुआ है, विकास हुआ है. वे निर्माण की बात इसलिए करते हैं, क्योंकि ‘निर्माता’ शब्द उनके दिमाग में पहले से बैठा होता है. वे भूकम्प को भी वैज्ञनिक प्रक्रिया नहीं मानते, ईश्वरीय कर्म मानते हैं, ईश्वर ने धरती हिलाई और हजारों लोगों को मार दिया. क्यों भई? इतना ज़ालिम क्यों है वह? जन्म-मृत्यु में कुछ भी रहस्य नहीं है. जो जन्मता है, वह मरता ही है. नर-मादा के संसर्ग से, चाहे वह किसी भी तरह कराया गया हो, नये जीव का जन्म होता है, अगर उस जीव को सही खुराक नहीं मिलेगी, और सही ढंग से पाला न जायेगा, तो वह वक्त से पहले भी मर सकता है. वह बीमार रहकर भी मर सकता है और शरीर के अंगों के क्षीण होने से भी मर सकता है, जिसे पूरी आयु जीना कहते हैं. लेकिन उसे मरना जरूर है. जिस रहस्य की आप बात कर रहे हैं, उसका आस्तिक दर्शन में चाहे जो अर्थ हो, पर भौतिक जगत में उसका कोई रहस्य नहीं है. जीव न कहीं से आता हैऔर न मरने के बाद कहीं जाता है. ये स्वर्ग, नर्क, आवागमन, पुनर्जन्म, पूर्वजन्म और आखिरत वगैरा सब झूठी कल्पनाएँ हैं. धर्मों ने इनकी शिक्षाएं सिर्फ लोगों को नैतिक जीवन जीने के मकसद से दी हैं. लेकिन सबसे ज्यादा खून-खराबा इन शिक्षाओं को अपने दिमागों में भरने वाले लोग ही कर रहे हैं.(2) अब रहा दूसरा सवाल—“जिस विज्ञान को आप अपने सिद्धांत का आधार मानते हैं, उसी विज्ञान का बड़े से बड़ा डाक्टर अक्सर अपने मरीजों से कहता हुआ क्युँ पाया जाता है कि ईश्वर से प्रार्थना करें”.यह सवाल इस समझ पर टिका है कि डाक्टर वैज्ञानिक होते हैं, इसलिए नास्तिक होते हैं. वह डाक्टर भी बेवकूफ है, जो ऐसा बोलता है, क्योंकि वह इलाज करनाही नहीं जानता है. डाक्टर के पास जैसा मरीज जाता है, उसको वह वैसा ही जवाब देता है. मुझसे आज तक किसी डाक्टर ने नहीं कहा कि ‘ईश्वर से प्रार्थना करो’.नास्तिक दर्शन को डाक्टरों से जोड़कर मत देखिये, न उसे वैज्ञानिको से जोड़कर देखिये, क्योंकि जरूरी नहीं कि ये लोग नास्तिक भी हों. डाक्टर तो प्रवीन तोगड़िया भी हैं, क्या वो वैज्ञानिक और नास्तिक हैं? मैं तो ऐसे डाक्टरों को भी जनता हूँ, जो, बच्चों के गर्दन और कलाई पर से गंडे-ताबीज कटवाकर फेंकवा देते हैं और उनके माता-पिता को साफ़-साफ़ कह देते हैं कि बच्चा इन गंडे-ताबीजों की वजह से ही बीमार पड़ा है. मैं अपना एक वाकया बताता हूँ. मेरे शहर में होमियोपैथी के एक मुस्लिम डाक्टर हैं, जो रमजान के महीने में 40 दिन चिल्ले में रहते हैं, बीवी-बच्चों से दूर एक मस्जिद में बंद हो जाते हैं. ऐसा डाक्टर किस काम का, जिसके लिए मरीज से ज्यादा धर्म जरूरी हो. एक दिन मैं उनके पास पैर के दर्द के सिससिले में गया. उन्होंने दवा देकर कहा कि इसे खाओ, इंशाल्लाह ठीक हो जाओगे. मैंने दवा वहीँ फैंकी. और घर आ गया. जब डाक्टर को खुद ही अपनी दवा पर भरोसा नहीं है, तो पैसा बर्बाद करने से क्या फायदा.जाहिद भाई, नास्तिक का रास्ता धर्म से ज्यादा कठिन है. आप आस्तिक रहकर मानवीय बने रहें, मानवताके लिए यही बहुत है.

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