शुक्रवार, 30 अक्टूबर 2015

शुद्रो का इतिहास

HShudro Ka Itihas
आज कल हमारे भारत के स्कूलों और कॉलेजों में जो भारत का इतिहास पढाया जाता है, उस इतिहास और वास्तविक इतिहास में बहुत अंतर है । वेदों और पुराणों में जो इतिहास वर्णित है, वो भी मात्र एक कोरा झूठ है । क्या कभी किसी ने सोचा जो भी इतिहास हमारे पुराणों, वेदों और किताबों में वर्णित है उस में कितना झूठ लिखा है । जो कभी घटित ही नहीं हुआ उसे आज भारत का इतिहास बना कर भारत की नयी पीढ़ी को गुमराह किया जा रहा है । पुराणों-वेदों में वर्णित देवता और असुरों का इतिहास? क्या कभी भारत में देवता का हुआ करते थे‌? जो हमेशा असुरों से लड़ते रहते थे. आज वो देवता और असुर कहाँ है?
भारत में कभी भी ना तो कभी देवता थे, ना है और ना ही कभी होंगे । ना ही भारत में कभी असुर थे, ना है और ना ही कभी होंगे । ये शास्वत सत्य है ।
shudro ka itihas
1आज नहीं तो कल पुरे भारत को यह बात माननी ही होगी । क्योकि इन बातों का कोई वैज्ञानिक आधार ही नहीं है । जिन बातों का कोई वैज्ञानिक आधार ही नहीं है, उन बातों को इतिहासकारों ने सच कैसे मान लिया? इतिहासकारों ने बहुत घृणित कार्य किया है । उन्होंने बिना किसी वैज्ञानिक आधार पर बिना कोई शोध किये देवी-देवताओं को भारत के इतिहास की शान बना दिया । देवता भी इसे अजीब अजीब की कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति विश्वास ही नहीं कर सकता । विष्णु जो एक अच्छा खासा इन्सान हुआ करता था, आज वेदों और पुराणों के झूठ के कारण सारी दुनिया का पालक भगवान् बना बैठा है । ऊपर से विष्णु के नाम के साथ ऐसे ऐसे कार्य जोड़ दिए है कि आज स्वयं विष्णु इस धरती पर आ जाये तो बेचारा शर्म के मारे डूब मरे । ये सिर्फ एक विष्णु की ही बात नहीं है, कुल मिला कर 33 करोड़ ऐसे अजीब नमूने हमारे इतिहास में भरे पड़े है । ऊपर से इतिहास में ब्राह्मणों के ऐसे कृत्य लिखे हुए है, अगर ब्राह्मणों में शर्म नाम की और मानवता नाम की कोई चीज होती तो आज पूरा ब्राह्मण समाज डूब के मर जाता । क्या पूरा देश सिर्फ एक ही वर्ग के लोगों ने चलाया? क्या पिछले 2000 सालों में समाज के दुसरे वर्गों ने भारत के लोगों के लिए कुछ भी नहीं किया? अगर किया.. तो इतिहासकारों ने दुसरे वर्गों के बारे क्यों नहीं लिखा? और जो लिखा है उस में इतना झूठ क्यों? इन सब बातों का एक ही अर्थ निकालता है कि भारत के इतिहासकार बिकाऊ थे और आज भी भारत के बिकाऊ इतिहासकार चंद सिक्को के बदले पुरे देश की जनता की भावनाओं से खेल रहे है । हमारे समाज के 5% ब्राह्मणों, राजपूतों और वैश्यों को दुनिया की सबसे ऊँची जाति लिख कर बाकि सभी जातियों (95% लोगों) के साथ इन इतिहासकारों ने नाइंसाफी की है । अगर किसी से पूछा जाये कि ईसा से 3200 साल पहले के इतिहास का कोई वर्णन क्यों नहीं है? तो उत्तर मिलाता है इस पहले कोई विवरण कही नहीं है । लेकिन हम पूछते है, क्या इतिहासकरों ने कोई अच्छा शोध किया? इतिहासकारों ने इतिहास लिखने से पहले पुराणी किताबों को पढ़ा? क्या इतिहासकारों ने देश के सभी एतिहासिक स्थानों पर शोध किये? अगर किये तो वो शोध साफ़ और स्पष्ट क्यों नहीं है? तो कहा है भारत का इतिहास?
आज भारत के बाहर निकालो तो सारी दुनिया को भारत का इतिहास पता है । अगर कोई भारतीय विदेशियों को अपना इतिहास बताता है तो सभी विदेशी बहुत हंसते है, मजाक बनाते है । सारी दुनिया को भारत का इतिहास पता है, फिर भी भारत के 95% लोगों को अँधेरे में रखा गया है । क्योकि अगर भारत का सच्चा इतिहास सामने आ गया तो ब्राह्मणों, राजपूतों और वैश्यों द्वारा समाज के सभी वर्गों पर किये गए अत्याचार सामने आ जायेंगे, और देश के लोग हिन्दू नाम के तथाकथित धर्म की सचाई जानकर हिन्दू धर्म को मानने से इनकार कर देंगे । कोई भी भारतवासी हिन्दू धर्म को नहीं मानेगा । ब्राह्मणों का समाज में जो वर्चस्व है वो समाप्त हो जायेगा ।

बहुत से लोग ये नहीं जानते कि भारत में कभी देवता थे ही नहीं, और न ही असुर थे । ये सब कोरा झूठ है, जिसको ब्राह्मणों ने अपने अपने फायदे के लिए लिखा था, और आज भी ब्राह्मण वर्ग इन सब बातों के द्वारा भारत के समाज के हर वर्ग को बेबकुफ़ बना रहा है । अगर आम आदमी अपने दिमाग पर जोर डाले और सोचे, तो सारी सच्चाई सामने आ जाती है । ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य ईसा से 3200 साल पहले में भारत में आये थे । आज ये बात विज्ञान के द्वारा साबित हो चुकी है । लेकिन ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य इतने चतुर है कि वो विज्ञान के द्वारा प्रमाणित इतिहास और जानकारी भारत के अन्य लोगों के साथ बांटना ही नहीं चाहते । क्योकि अगर ये जानकारी भारत के लोगो को पता चल गई तो भारत के लोग ब्राह्मणों, राजपूतो और वैश्यों को देशद्रोही, अत्याचारी और अधार्मिक सिद्ध कर के देश से बाहर निकल देंगे । भारत के लोगों को सच्चाई पता ना चले इस के लिए आज भी ब्राह्मणों ने ढेर सारे संगठन जैसे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद्, बजरंग दल, दुर्गा वाहिनी, शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी बना रखे है. हजारों धर्मगुरु बना रखे है. जो सिर्फ ढोग, पाखंड और भारत के लोगों को झूठ बता कर अँधेरे में रखते है, क्यों रखते है? ताकि भारत के 95% लोगों को भारत का सच्चा इतिहास पता ना चल जाये । और वो 95% लोग ब्राह्मणों को देशद्रोही करार दे कर भारत से बाहर ना निकल दे । भारत से ब्राह्मणों का वर्चस्व ही ख़त्म ना हो जाये ।

यह भारत के सच्चे इतिहास की शुरुआत है तो यहाँ कुछ बातों पर प्रकाश डालना बहुत जरुरी है । ताकि लोगों को थोडा तो पता चले कि आखिर ब्राह्मणों, राजपूतों और वैश्यों ने भारत में आते ही क्या किया जिस से उनका वर्चस्व भारत पर कायम हो पाया:
1.ईसा से 3200 साल पहले जब भारत में रुद्रों का शासन हुआ करता था । भारत में एक विदेशी जाति आक्रमण करने और देश को लूटने के उदेश्य आई । वह जाति मोरू से यहाँ आई जिनको “मोगल” कहा जाता था । मोरू प्रदेश, काला सागर के उत्तर में यूरेशिया को बोला जाता था । यही यूरेशियन लोग कालांतर में पहले “देव” और आज ब्राह्मण कहलाते है । यूरेशियन लोग भारत पर आक्रमण के उदेश्य से यहाँ आये थे । लेकिन भारत में उस समय गण व्यवस्था थी, जिसको पार पाना अर्थात जीतना युरेशिनों के बस की बात नहीं थी । भारत के मूल-निवासियों और यूरेशियन आर्यों के बीच बहुत से युद्ध हुए । जिनको भारत के इतिहास और वेद पुराणों में सुर-असुर संग्राम के रूप में लिखा गया है । भारत की शासन व्यवस्था दुनिया की श्रेष्ठतम शासन व्यवथा थी । जिसे गण व्यवस्था कहा जाता था और आज भी दुनिया के अधिकांश देशों ने इसी व्यवस्था को अपनाया है । ईसा पूर्व 3200 के बाद युरेशियनों और मूल निवासियों के बीच बहुत से युद्ध हुए जिन में यूरेशियन आर्यों को हार का मुंह देखना पड़ा।

2.पिछले कई सालों में भारत में इतिहास विषय पर हजारों शोध हुए । जिस में कुछ शोधों का उलेख यहाँ किया जाना बहुत जरुरी है । जैसे संस्कृत भाषा पर शोध, संस्कृत भाषा के लाखों शब्द रूस की भाषा से मिलते है । तो यह बात यहाँ भी सिद्ध हो जाती है ब्राहमण यूरेशियन है । तभी आज भी इन लोगों की भाषा रूस के लोगों से मिलती है । कालांतर में यूरेशिया में इन लोगों का अस्तिव ही मिट गया तो भारत में आये हुए युरेशियनों के पास वापिस अपने देश में जाने रास्ता भी बंद हो गया और यूरेशियन लोग भारत में ही रहने पर मजबूर हो गए । युरेशियनों को मजबूरी में भारत में ही रहना पड़ा और आज यूरेशियन भारत का ही एक अंग बन गए है, जिनको आज के समय में ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य कहा जाता है ।

3.ईसा पूर्व 3200 में यूरेशिया से आये लोगों की चमड़ी का रंग गोरा था, आँखों का रंग हल्का था और इनकी खोपड़ी लम्बाई लिए हुए थी । ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य यूरेशिया से आये है. यह बात 2001 में प्रसिद्ध शोधकर्ता माइकल बामशाद ने वाशिंगटन विश्वविद्यालय में भारत की सभी जातियों के लोगों का DNA परिक्षण करके सिद्ध कर दी थी । DNA परिक्षण में यह बात साफ़ हो गई थी कि क्रमश: ब्राह्मण का 99.90%, राजपूत का 99.88% और वैश्य का 99.86% DNA यूरेशियन लोगों से मिलता है । बाकि सभी जाति के लोगों का DNA सिर्फ भारत के ही लोगों के साथ मिलाता है ।

4.जब यूरेशियन भारत में आये तो यह आक्रमणकारी लोग नशा करते थे । जिसको कालांतर में “सोमरस” और आज शराब कहा जाता है । यूरेशियन लोग उस समय सोमरस पीते थे तो अपने आपको “सुर” और अपने समाज को “सुर समाज” कहते थे । यूरेशियन लोग ठंडे प्रदेशों से भारत में आये थे, ये लोग सुरापान करते थे तो इन लोगों ने भारत पर कुटनीतिक रूप से विजय पाने के लिए अपने आपको देव और अपने समाज को देव समाज कहना प्रारम्भ कर दिया ।

5.भारत के लोग अत्यंत उच्च कोटि के विद्वान हुआ करते थे । इस बात का पता गण व्यवस्था के बारे अध्ययन करने से चलता है । आज जिस व्यवथा को दुनिया के हर देश ने अपनाया है, और जिस व्यवस्था के अंतर्गत भारत पर सरकार शासन करती है । वही व्यवस्था 3200 ईसा पूर्व से पहले भी भारत में थी । पुरे देश का एक ही शासन कर्ता हुआ करता था । जिसको गणाधिपति कहा जाता था । गणाधिपति के नीचे गणाधीश हुआ करता था, और गणाधीश के नीचे विभिन्न गण नायक हुआ करते थे जो स्थानीय क्षेत्रों में शासन व्यवस्था देखते या संभालते थे । यह व्यवस्था बिलकुल वैसी थी । जैसे आज भारत का राष्ट्रपति, फिर प्रधानमंत्री और प्रधानमंत्री के नीचे अलग अलग राज्यों के मुख्मंत्री । कालांतर में भारत पर रुद्रों का शासन हुआ करता था । भारत में कुल 11 रूद्र हुए जिन्होंने भारत पर ईसा से 3200 साल के बाद तक शासन किया। सभी रुद्रों को भारत का सम्राट कहा जाता था और आज भी आप लोग जानते ही होंगे कि शिव से लेकर शंकर तक सभी रुद्रों को देवाधिदेव, नागराज, असुरपति जैसे शब्दों से बिभुषित किया जाता है । रुद्र भारत के मूल निवासी लोगों जिनको उस समय नागवंशी कहा जाता था पर शासन करते थे । इस बात का पता “वेदों और पुराणों” में वर्णित रुद्रों के बारे अध्ययन करने से चलता है । आज भी ग्यारह के ग्यारह रुद्रों को नाग से विभूषित दिखाया जाता है । नागवंशियों में कोई भी जाति प्रथा प्रचलित नहीं थी । इसी बात से पता चलता है कि भारत के लोग कितने सभ्य, सुशिक्षित और सुशासित थे । इसी काल को भारत का “स्वर्ण युग” कहा जाता था और भारत को विश्व गुरु होने का गौरव प्राप्त था ।

6.असुर कौन थे? ये भी एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न है । क्योकि भारत के बहुत से धार्मिक गर्न्थो में असुरों का वर्णन आता है । लेकिन ये बात आज तक सिद्ध नहीं हो पाई कि असुर थे भी या नहीं । अगर थे, तो कहा गए? और आज वो असुर कहा है? इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए हमे वेदों और पुराणों का अध्ययन करना पड़ेगा । आज भी हम खास तौर पर “शिव महापुराण” का अध्ययन करे तो असुरों के बारे सब कुछ स्पष्ट हो जाता है । असुराधिपति भी रुद्रों को ही कहा गया है । शिव से लेकर शंकर तक सभी रुद्रों को असुराधिपति कहा जाता है । आज भी रुद्रों को असुराधिपति होने के कारण अछूत या शुद्र देवता कहा जाता है । कोई भी ब्राह्मण रूद्र पूजा के बाद स्नान करने के बाद ही मंदिरों में प्रवेश करते है या गंगा जल इत्यादि अपने शरीर पर छिड़क कर दुसरे देवताओं की पूजा करते है । नागवंशी लोग सांवले या काले रंग के हुआ करते थे और नागवंशी सुरापान नहीं करते थे । आज भी आपको जगह जगह वेदों और पुराणों में लिखा हुआ मिल जायेगा कि नाग दूध पीते है कोई भी नाग “सूरा” अर्थात शराब का सेवन नहीं करते थे । अर्थात भारत के मूल निवासी कालांतर में असुर कहलाये और आज उन्ही नागवंशियों को शुद्र कहा जाता है ।

7.युरेशियनों ने भारत कूटनीति द्वारा भारत की सता हासिल की और पहले तीन महत्वपूर्ण नियम बनाये जिनके करना आज भी ब्राहमण पुरे समाज में सर्वश्रेठ माने जाते है:

8.वर्ण-व्यवस्था: युरेशियनों ने सबसे पहले वर्ण-व्यवस्था को स्थापित किया अर्थात यूरेशियन साफ़ रंग के थे तो उन्हों ने अपने आपको श्रेष्ठ पद दिया । यूरेशियन उस समय देवता कहलाये और आज ब्राह्मण कहलाते है । भारत के लोग देखने में सांवले और काले थे तो मूल निवासियों को नीच कोटि का बना दिया गया । 400 ईसा पूर्व या उस से पहले भारत के मूल निवासियों को स्थान और रंग के आधार पर 3000 जातियों में बांटा गया । आधार बनाया गया वेदों और पुराणों को, जिनको यूरेशियन ने संस्कृत में लिखा । भारत के मूल निवासियों को संस्कृत का ज्ञान नहीं था तो उस समय जो भी यूरेशियन बोल देते थे उसी को भारत के मूल निवासियों ने सच मान लिया । जिस भी मूल निवासी राजा ने जाति प्रथा का विरोध किया उसको युरेशियनों ने छल कपट या प्रत्यक्ष युद्धों में समाप्त कर दिया । जिस का वर्णन सभी वेदों और पुराणों में सुर-असुर संग्रामों के रूप में मिलाता है । लाखों मूल निवासियों को मौत के घाट उतारा गया । कालांतर में उसी जाति प्रथा को 3000 जातियों को 7500 उप जातियों में बांटा गया ।

9.शिक्षा-व्यवस्था: इस व्यवस्था के अंतर्गत युरेशियनों ने भारत के लोगों के पढ़ने लिखने पर पूर्ण पाबन्दी लगा दी । कोई भी भारत का मूल-निवासी पढ़ लिख नहीं सकता था । सिर्फ यूरेशियन ही पढ़ लिख सकते थे । भारत के लोग पढ़ लिख ना पाए इस के लिए कठोर नियन बनाये गए । मनु-स्मृति का अध्ययन किया जाये तो यह बात सामने आती है । कोई भी भारत का मूल निवासी अगर लिखने का कार्य करता था तो उसके हाथ कट देने का नियम था । अगर कोई मूल-निवासी वेदों को सुन ले तो उसके कानों में गरम शीशा या तेल से भर देने का नियम था । इस प्रकार भारत के लोगों को पढने लिखने से वंचित कर के युरेशियनों ने वेदों और पुराणों में अपने हित के लिए मनचाहे बदलाव किये । ये व्यवस्था पहली इसवी से 1947 तक चली । जब 1947 में देश आज़ाद हुआ तो डॉ भीमा राव अम्बेडकर के प्रयासों से भारत के मूल-निवासियों को पढ़ने लिखने का अधिकार मिला । आज भी ब्राह्मण वेदों और पुराणों में नए नए अध्याय जोड़ते जा रहे है और भारत के मूल निवासियों को कमजोर बनाने का प्रयास सतत जारी है ।

10.धर्म व्यवस्था: धर्म व्यवस्था ही भारत के मूल निवासियों के पतन के सबसे बड़ा कारण था । धर्म व्यवस्था कर के युरेशियनों ने अपने आपको भगवान् तक घोषित के दिया । धर्म व्यवस्था कर के युरेशियनों ने खुद को देवता बना कर हर तरह से समाज में श्रेष्ठ बना दिया । धर्म व्यवस्था में “दान का अधिकार” बना कर युरेशियनों ने अपने आपको काम करने से मुक्त कर दिया और अपने लिए मुफ्त में ऐश करने प्रबंध भी इसी दान के अधिकार से कर लिया । धर्म व्यवस्था के नियम भी बहुत कठोर थे । जैसे कोई भी भारत का मूल निवासी मंदिरों, राज महलों और युरेशियनों के आवास में नहीं जा सकता था । अगर कोई मूल निवासी ऐसा करता था तो उसको मार दिया जाता था । आज भी यूरेशियन पुरे भारत में अपने घरों में मूल निवासियों को आने नहीं देते । आज भी दान व्यवस्था के चलते भारत के मंदिरों में कम से कम 10 ट्रिलियन डॉलर की संम्पति युरेशियनों के अधिकार में है । जो मुख्य तौर पर भारत में गरीबी और ख़राब आर्थिक हालातों के लिए जिमेवार है । संम्पति के अधिकार हासिल कर के तो युरेशियनों ने मानवता की सारी सीमा ही तोड़ दी । यहाँ तक भारत में रूद्र शासन से समय से पूजित नारी को भी संम्पति में शामिल कर लिया । नारी को संम्पति में शामिल करने से भी भारत के मूल निवासियों का पतन हुआ । संम्पति के अधिकार भी बहुत कठोर थे । जैसे यूरेशियन सभी प्रकार की संम्पतियों का मालिक था । भारत के मूल निवासियों को संम्पति रखने का अधिकार नहीं था । यूरेशियन भारत की किसी भी राजा की संम्पति को भी ले सकता था । यूरेशियन किसी भी राजा की उसके राज्य से बाहर निकल सकता था । यूरेशियन किसी की भी स्त्री की ले सकता था । यहाँ तक युरेशियनों को राजा की स्त्री के साथ संम्भोग की पूर्ण आज़ादी थी । अगर किसी राजा के सन्तान नहीं होती थी तो यूरेशियन राजा की स्त्री के साथ संम्भोग कर बच्चे पैदा करता था । जिसे कालांतर में “नियोग” पद्धति कहा जाता था । इस प्रकार राजा की होने वाली संतान भी यूरेशियन होती थी । शुद्र व्यवस्था के द्वारा तो युरेशियनों ने सारे देश के मूल निवासियों को अत्यंत गिरा हुआ बना दिया । हज़ारों कठोर नियम बनाये गए । मूल निवासियों का हर प्रकार से पतन हो गया । मूल निवासी किसी भी प्रकार से ऊपर उठने योग्य ही नहीं रह गए । मूल निवासियों पर शासन करने के लिए और बाकायदा मनु-स्मृति जैसे बृहद ग्रन्थ की रचना की गई । आज भी लोग 2002 से पहले प्रकाशित के मनु-स्मृति की प्रतियों को पढेंगे तो सारी सच्चाई सामने आ जाएगी ।

ये कुछ महत्वपूर्ण बातें थी जिन पर भारत का इतिहास लिखने से पहले प्रकाश डालना जरुरी था । यही कुछ बातें है जिनका ज्ञान भारत के मूल निवासियों को होना बहुत जरुरी है । अगर भारत के मूल निवासी युरेशियनों के बनाये हुए नियमों को मानने से मना कर दे । युरेशियनों की बनायीं हुई वर्ण व्यवस्था, जाति व्यवस्था, संम्पति व्यवस्था, वेद व्यवस्था, धर्म व्यवस्था को ना माने । सभी मूल निवासी ब्राह्मणों के बनाये हुए जातिवाद के बन्धनों से स्वयं को मुक्त करे और सभी मूल निवासी नागवंशी समाज की फिर से स्थापना करे । सभी मूल निवासी मिलजुल कर देश का असली इतिहास अपने लोगों को बताये । सभी नागवंशी अपनी क़ाबलियत को समझे । तभी भारत के मूल निवासी पुन: उसी विश्व गुरु के पद को प्राप्त कर सकते है और भारत में फिर से स्वर्ण युग की स्थापना कर सकते है । जल्दी ही भारत का विस्तृत इतिहास अलग अलग अध्यायों के रूप में प्रस्तुत किया जायेगा । हमारी टीम रात दिन भारत के इतिहास पर हुए हजारों शोधों और पुस्तकों का अध्ययन कर रही है, और भारत का सच्चा इतिहास लिखा जा रहा है ।

आप सभी से विनम्र प्रार्थना है कि भारत का इतिहास सभी लोगों तक पहुंचाए।

गुरुवार, 29 अक्टूबर 2015

बामण

ब्राह्मणों के कब्जे में देश की व्यवस्था जानिए कैसे। मित्रो इसे पूरा पढ़े। पढने के बाद इस बहुमूल्य जानकारी को शेयर करके आगे बढ़ाये।️
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भारत का स्वतंत्रता आंदोलन भारत की स्वतंत्रता का आंदोलन नहीं था, बल्कि ब्राह्मणों की स्वतंत्रता का आंदोलन था. अंग्रेजों ने भारत में केवल ब्राह्मणों को गुलाम बनाया था, इस कारण केवल ब्राह्मणों ने अपनी स्वतंत्रता का आंदोलन चलाया था.

15 अगस्त 1947 के बाद केवल ब्राह्मण ही भारत का शासक वर्ग बना क्योंकि अंग्रेजों ने आजादी नहीं दी, बल्कि Trasfer of Power किया, जो पॉवर सीधे अंग्रेज के पास थी, आजादी के बाद ब्राह्मण के हाथ आयी.
अब सत्ता पर 3% ब्राह्मण कैसे राज कर रहे हैं? यह भी देख लीजिये.

सबसे पहले, ब्राह्मणों की जनसंख्या कितनी है?

1) जम्मू कश्मीर : 2 लाख + 4 लाख विस्थापित
2) पंजाब : 9 लाख ब्राह्मण
3) हरियाणा : 14 लाख ब्राह्मण
4) राजस्थान : 40 लाख ब्राह्मण
5) गुजरात : 40 लाख ब्राह्मण
6) महाराष्ट्र : 45 लाख ब्राह्मण
7) गोवा : 5 लाख ब्राह्मण
8) कर्णाटक : 45 लाख ब्राह्मण
9) केरल : 12 लाख ब्राह्मण
10) तमिलनाडु : 36 लाख ब्राह्मण
11) आँध्रप्रदेश : 24 लाख ब्राह्मण
12) छत्तीसगढ़ : 10 लाख ब्राह्मण
13) उड़ीसा : 20 लाख ब्राह्मण
14) झारखण्ड : 12 लाख ब्राह्मण
15) बिहार : 40 लाख ब्राह्मण
16) पश्चिम बंगाल : 18 लाख ब्राह्मण
17) मध्य प्रदेश : 25 लाख ब्राह्मण
18) उत्तर प्रदेश : 65 लाख ब्राह्मण
19) उत्तराखंड : 20 लाख ब्राह्मण
20) हिमाचल : 20 लाख ब्राह्मण
21) सिक्किम : 10 हजार ब्राह्मण
22) असम : 2 लाख ब्राह्मण
23) मिजोरम : 10 हजार ब्राह्मण
24) अरुणाचल : ब्राह्मण
25) नागालैंड : 2 लाख ब्राह्मण
26) मणिपुर : 49 हजार ब्राह्मण
27) मेघालय : 20 हजार ब्राह्मण
28) त्रिपुरा : 30 हजार ब्राह्मण

अब ब्राह्मणों का वर्चस्व भी देख लीजिये.

सबसे ज्यादा ब्राह्मण वाला राज्य: उत्तर प्रदेश
सबसे कम ब्राह्मण वाला राज्य : सिक्किम
सबसे ज्यादा ब्राह्मणों का राजनैतिक वर्चस्व : पश्चिम बंगाल

सबसे ज्यादा ब्राह्मण प्रतिशत वाला राज्य : उत्तराखंड में जनसंख्या के 20 % ब्राह्मण

अत्यधिक साक्षर ब्राह्मण राज्य :
केरल और हिमाचल

सबसे ज्यादा अच्छी आर्थिक स्थिति में ब्राह्मण : असम

सबसे ज्यादा ब्राह्मण मुख्यमंत्री वाला राज्य : राजस्थान

सबसे ज्यादा ब्राह्मण विधायक वाला राज्य : उत्तर प्रदेश
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भारत लोकसभा में ब्राह्मण : 55%
भारत राज्यसभा में ब्राह्मण : 47 %
भारत में ब्राह्मण राज्यपाल : 60 %
भारत में ब्राह्मण कैबिनेट सचिव : 90 %
भारत में मंत्री सचिव में ब्राह्मण : 85%
भारत में अतिरिक्त सचिव ब्राह्मण : 79%
भारत में पर्सनल सचिव ब्राह्मण : 88%
यूनिवर्सिटी में ब्राह्मण वाईस चांसलर : 89%
सुप्रीम कोर्ट में ब्राह्मण जज: 90%
हाई कोर्ट में ब्राह्मण जज : 80 %
भारतीय राजदूत ब्राह्मण : 73%
पब्लिक अंडरटेकिंग ब्राह्मण :
केंद्रीय : 87%
राज्य : 87%

बैंकों में ब्राह्मण अधिकारी : 67%
एयरलाइन्स में ब्राह्मण : 69 %
IAS ब्राह्मण : 79%
IPS ब्राह्मण : 67%
टीवी कलाकार एव बॉलीवुड : 83%
CBI Custom ब्राह्मण 72%

सभी संख्या की गिनती की जाए तो 3% ब्राह्मणों का न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका, मीडिया और अन्य सभी डेमोक्रेटिक इंस्टिट्यूटों पर ब्राह्मणों का 79% वर्चस्व स्थापित है.

आप इन सभी बातों से आप चौंक गये होंगे, यह इनकी मेरिट नहीं है, बल्कि ये बेईमानी से हासिल की पोजीशन है.

जागो बहुजन जागो !







✨������♦����
जिन्हें आरक्षण से तकलीफ है वह ये भी जान लें ।

�� देश में नौकरियों में 3%  ब्राहमण की 87.31% ज़बरदस्ती रिजर्वेशन किया हुआ है और ................
�� 60% OBC का हिस्सा भी ब्राहमण खा  रहे है ��|

��भारत में Obc,Sc,st को न्याय नहीं मिलता क्योकि न्यायपालिका पर ब्राह्मण-बनियों का कब्ज्जा है !!
    �� ��✨��
�� यह रहा सबूत =
✨करिया मुंडा रिपोर्ट -( 2000 )
��1⃣8⃣ राज्यों की हाईकोर्ट में OBC SC ST जजों की संख्या .
♦1) दिल्ली -
▶ कुल जज 27
( ब्राह्मण-बनिया-27 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज , ST- 0 जज ).
♦2) पटना -
▶ कुल जज 32
( ब्राह्मण बनिया-32 जज , ओबीसी -0 जज , SC- 0 जज , ST- 0 जज )
♦3) इलाहाबाद -
▶ कुल जज 49 (  ब्राह्मण- बनिया -47 जज ,ओबीसी - 1 जज, SC- 1 जज ,ST- 0 जज )

♦4) आंध्रप्रदेश -
▶ कुल जज 31
( ब्राह्मण-बनिया-25 जज , ओबीसी - 4 जज, SC- 0 जज ,ST- 2 जज )

♦5) गुवाहाटी -
▶ कुल जज 15
( ब्राह्मण-बनिया-12 जज , ओबीसी - 1 जज, SC- 0 जज ,ST- 2 जज )

♦६) गुजरात -
▶ कुल जज 33
( ब्राह्मण-बनिया-30 जज , ओबीसी - 2 जज, SC- 1 जज , ST- 0 जज )

♦7) केरल -
▶ कुल जज 24
( ब्राह्मण-बनिया- 13 जज ,ओबीसी - 9 जज, SC- 2 जज ,ST- 0 जज )

♦8) चेन्नई -
▶ कुल जज 36
( ब्राह्मण-बनिया-17 जज , ओबीसी -16 जज, SC- 3 जज  ,ST- 0 जज )

♦9) जम्मू कश्मीर -
▶ कुल जज 12
( ब्राह्मण-बनिया- 11 जज , ओबीसी - जज, SC-0 जज , ST- 1 जज )

♦10) कर्णाटक
▶ कुल जज 34
( ब्राह्मण-बनिया- जज 32 , ओबीसी - 0 जज, SC- 2 जज ,ST- 0 जज )

♦11) ओरिसा
▶ कुल -13 जज
( ब्राह्मण-बनिया- 12 जज , ओबीसी - 0 जज, SC- 1 जज ,ST- 0 जज )

♦12) पंजाब-हरियाणा -
▶ कुल 26 जज
( ब्राह्मण-बनिया- 24 जज ,ओबीसी - 0 जज,  SC- 2 जज ,ST- 0 जज )

♦13) कलकत्ता -
▶ कुल जज 37
( ब्राह्मण-बनिया- 37 जज , ओबीसी -0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )

♦१४) हिमांचल प्रदेश
▶ कुल जज 6
( ब्राह्मण-बनिया- 6 जज ,ओबीसी - 0 जज, SC- 0 जज ,ST- 0 जज )

♦15) राजस्थान
▶ कुल जज 24
( ब्राह्मण-बनिया- 24 जज ,ओबीसी - 0 जज,  SC- 0 जज ,ST- 0 जज )

♦16)मध्यप्रदेश
▶ कुल जज 30
( ब्राह्मण-बनिया-30 जज ,ओबीसी - 0 जज,  SC- 0 जज ,ST- 0 जज )

♦17) सिक्किम
▶ कुल जज 2
( ब्राह्मण-बनिया- 2 जज ,
ओबीसी - 0 जज ,
SC- 0 जज ,ST- 0 जज )

♦18) मुंबई -
▶ कुल जज 50
( ब्राह्मण-बनिया- 45 जज , अोबीसी - 3 जज, SC- 2 जज , ST- 0 जज )

��✨कुल TOTAL= 481 जज में से ,
♦ ब्राह्मण-बनिया 426 जज , ♦ओबीसी जात के 35 जज ,♦SC जात के 15 जज ,♦ST जात के 5 जज