बुधवार, 14 अक्टूबर 2015

कठिन नहीं है शुद्ध हिंदी-भाग-33

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अनुस्वार और चंद्रबिन्दु पर इस शृंखला की ग्यारहवीं और बारहवीं कड़ी में विस्तार से चर्चा की गई है। आज हम चंद्रबिन्दु पर फिर से बात करेंगे। यहाँ यह ध्यान दिलाना चाहेंगे कि अनुस्वार की जगह कवर्ग, टवर्ग और पवर्ग के वर्णों के पहले उनके पंचमाक्षर का प्रयोग करना ज़्यादा ज़रूरी माना जा सकता है; क्योंकि हिन्दी पट्टी के लोग तो समाज से सीख लेते हैं कि कंगण,पंख, गंगा, संघ, चंपक, कंद आदि में लिखे अनुस्वार को क्या पढ़ा जाए (ङ्, न्, म् आदि); लेकिन जो हिन्दी से बिलकुल अपरिचित हैं, जैसे जर्मन, रूसी, तमिल आदि; वे कैसे समझ पाएँगे कि कंबल को कन्बल कहें, कङ्बल कहें, कण्बल कहें या कम्बल! (हालांकि हम इसका समाधान प्रस्तुत कर चुके हैं)करे और करें में किसका प्रयोग कहाँ हो, यह समझने के लिए कुछ बातों से गुज़रते हैं। जब संभावना, प्रार्थना, कामना, आज्ञा, सुझाव आदि के वाक्य हों, आदरसूचक शब्द न हों और बहुवचन न हो, तब क्रिया में अन्त में बिन्दी (हम चंद्रबिन्दु के लिए इसी शब्द का प्रयोग कर रहे हैं) नहीं होगी। इसको समझने के लिए कुछ उदाहरण लेते हैं। 'चाहे कोई कहे', 'कोई भी हो', 'अगर तुम ऐसा करो', 'आपकी इच्छा पूरी हो', 'वह जाए या नहीं?', 'मानो या न मानो', 'तुम निकलो, मैं आता हूँ', 'बाहर जाओ', 'कोई मुझे समझाए', 'ग़रीब आदमी चाहे जितना रोए, कोई नहीं सुनता', 'संभव है वर्षा हो', 'चाहे कोई मुझे जंगली कहे', 'जा सको, तो ज़रूर जाना चाहिए', 'जब तक कोई असंतुलित बल न लगे', 'ग़लती चाहे कोई करे, सज़ा उस बदमाश को ही मिलेगी', 'तू कुछ भी कर ले, बच नहीं सकता' आदि में हम स्पष्ट देख सकते हैं कि इनमें बिंदी के न होने का नियम लागू हुआ है।'आप कहें, तो हम वहाँ नहीं जाएंगे', 'वे लोग चाहे जो करें, हम लिखते रहेंगे' (ध्यान रखें यहाँ 'चाहे' क्रियासूचक नहीं है), 'अपनी भावनाओं पर काबू रखें', 'आपलोग निकलें', 'आप हज़ारों साल जिएँ', 'हम सब क्या करें?', 'गाँधी अमर रहें', 'जब लोग पत्थर बन गए हों, संवेदना अपना अर्थ खो देती है' आदि में क्रिया में बिन्दी है। बहुवचन कर्ता की स्थिति में संभावना, प्रार्थना, शाप, वरदान, आदेश आदि के वाक्य या वाक्यखंड में क्रिया बिन्दी से समाप्त होती है, जैसा कि यहाँ दिखाया गया है।'मैं' के साथ जब इस तरह के वाक्य आते हैं, तो क्रिया के अन्त में बिन्दी आती है, जैसे बोलूँ, करूँ, जाऊँ, हूँ आदि।वर्तमान काल के 'है' और 'हैं' के मामले में स्पष्ट नियम है कि 'है' एकवचन ('तुम' और 'मैं' को छोड़कर) या अनादर या गहरे लगाव के सूचक 'तू' के साथ लगता है, जबकि 'हैं' बहुवचन कर्ताओं और आदरसूचक एकवचन 'आप' और 'वे' के साथ लगता है। यहाँ यह कहना ज़रूरी है कि बिहार में 'तुम', 'तुमसब' और 'तुमलोग' के साथ 'है' या 'था' का प्रयोग जमकर बोलते समय किया जाता है, जैसे 'तुम पढ़ता है?', 'तुमसब वहाँ गया था न?' आदि। 'है' का प्रयोग 'तू' के साथ होता है, 'तुम' के साथ नहीं। 'तुम' के साथ 'हो' का प्रयोग करते हैं।भूतकाल के 'थे' में बिन्दी किसी भी हालत में नहीं लगाई जाती। प्रायः छात्रों द्वारा 'थें' लिखते देखने को मिला है, जो तनिक भी सही नहीं है। 'तू' के साथ 'था' का प्रयोग होता है। 'थी' का प्रयोग स्त्रीलिंग कर्ता या कर्म के एकवचन रूप के साथ और 'तू' के साथ किया जाता है।जिन्हें, उन्हें, जिन्होंने, किन्हीं, उन्होंने, उसमें, किसमें, उनमें, इन्हीं, जिसमें आदि में भी बिन्दी है।माँ, नहीं, मैं आदि में भी बिन्दी है। हाथी, अभी जैसे कुछ शब्दों को उच्चारित करते समय हम चंद्रबिन्दु की मदद ले लेते हैं, जो ठीक नहीं है। हाँथी, हाँथ, अभीं आदि के स्थान पर सही उच्चारण का प्रयास करना चाहिए।रहेंगे, कहूँगा, जाऊँगी आदि में गे, गी या गा पर बिन्दीनहीं लगानी चाहिए। गे, गी या गा के ठीक पहले बिन्दी काप्रयोग होना चाहिए। रहेगें, रहूगां, कहूगीं जैसे शब्दग़लत हैं।दी, दीं, ली, लीं, की आदि पर हम विस्तार से अगले भाग में देखेंगे। क्रियाओं के भिन्न-भिन्न रूपों पर भी चर्चा होगी।० ० ०जारी...

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