इतिहासिक, पुराणिक, समाजिक, रसायनिक, व्यवहारिक, प्रमाणिक, अध्यात्मिक, विज्ञानिक जैसे शब्द प्रायः देखने को मिलते हैं। ये सारे प्रयोग ग़लत हैं। हिन्दी पर कठिन होने का आरोप लगाने से बेहतर छोटी छोटी बातों को समझने का प्रयास करना है। व्याकरण के अनुसार संज्ञा से विशेषण बनाने का एक तरीका शब्द के अंत में 'इक' लगाना भी है, लेकिन हमने व्याकरण के पदों की चर्चा करने की जगह व्यावहारिक हिन्दी को प्राथमिकता देने के इरादे से यह शृंखला शुरू की है; इसलिए हम शब्दों की दुनिया में बिना संज्ञा और विशेषण के चक्कर में पड़े आगे चलते हैं।इक लगाते समय हमें शब्द के पहले वर्ण पर ध्यान देना होता है। जिन शब्दों में इक लगाना हो, उनके पहले वर्ण में लगी मात्रा को देखना और समझना ज़रूरी है। अगर शब्द का पहला वर्ण में अ या आ से युक्त हो, तो उसमें आकार होगा और अंत में इक लगेगा, जैसे प्रमाण में प्र पहला वर्ण है और इसमें अकार है; इसलिए यह प्रा में बदलजाएगा। इस तरह प्रामाणिक शब्द बनेगा। भाषा में भा पहला वर्ण है और इसमें आकार है, इसलिए इससे भाषिक शब्द बनेगा। अध्यात्म, अधिकार, समाज, रसायन, संस्कृति,अनुभव, अनुपात, समास, समूह, मंगल, अर्थ, धर्म, व्यवसाय, व्यवहार आदि में पहला वर्ण अकार वाला है; इसलिए आध्यात्मिक, आधिकारिक, सामाजिक, रासायनिक, सांस्कृतिक, आनुभविक, आनुपातिक, सामासिक, सामूहिक, मांगलिक, आर्थिक, धार्मिक, व्यावसायिक, व्यावहारिक आदि शब्द बनेंगे। सांप्रदायिक, कार्मिक, मार्मिक, तार्किक, क्रांतिक, आधुनिक, आनुषंगिक, आनुष्ठानिक, आपराधिक, प्राथमिक, शारीरिक, मानसिक, आंशिक, मात्रिक, सार्वजनिक (सर्वजन से बना), पाक्षिक, साप्ताहिक, मासिक, वार्षिक, लाक्षणिक, सार्विक, आणविक, आलंकारिक, आरंभिक, कालिक, काल्पनिक, कारुणिक, आंचलिक, चारित्रिक,तात्त्विक, तांत्रिक, नागरिक, पारस्परिक, पारिवारिक, पारिश्रमिक, प्राकृतिक, याज्ञिक, वास्तविक, साहित्यिक, सामयिक, सांकेतिक, सांसारिक, स्वाभाविक, स्थानिक, सामरिक, चामत्कारिक, आंकिक, सांख्यिक, आत्मिक, आंतरिक, दार्शनिक, प्रादेशिक, पारिभाषिक, सामुद्रिक, आनुवंशिक, प्रासंगिक आदि कुछ ऐसे ही शब्द हैं।इ, ई, ए और ऐ वाले वर्ण ऐकार से युक्त होते हैं, जब इक लगता है। सिद्धांत, शिक्षा, निदान, विज्ञान, विचार, नीति, इच्छा, इतिहास, सेना, वेद आदि के पहले वर्ण ऐकार से युक्त हो जाते हैं। ऐच्छिक, ऐतिहासिक, सैनिक, वैज्ञानिक, वैदिक, नैतिक, दैविक, नैदानिक, वैचारिक, पैशाचिक, नैमित्तिक, नैसर्गिक, वैमानिक, वैवाहिक, ऐकिक, ऐकांतिक, वैधानिक, भैषजिक, वैतनिक, पैतृक, दैहिक आदि शब्द इसी तरह बनते हैं।उ, ऊ, ओ और औ अगर शब्द के पहले वर्ण में हों, तो औकार होता है। पुराण, मुद्रा, उपनिवेश, उद्योग, उपन्यास, भूमि, भूत, भूगोल, लोक आदि से पौराणिक, मौद्रिक, औपनिवेशिक, औद्योगिक, औपन्यासिक, भौमिक, भौतिक, भौगोलिक, लौकिक आदि बनते हैं। हमें स्वयं औद्योगिक शब्द के सही रूप का ज्ञान न था। इस नियम ने स्पष्ट कर दिया कि सही रूप क्या और क्यों है। उपचार, मूल आदि से औपचारिक, मौलिक, यौगिक, पौष्टिक, मौखिक, कौटुंबिक, बौद्धिक आदि शब्द भी इसी तरह बने हैं।इकता, इकी आदि वाले प्रामाणिकता, वैज्ञानिकता, औपचारिकता, वैचारिकी, यांत्रिकी आदि शब्दों में भी यही नियम लागू हुआ है। संस्कृत और हिन्दी के समझने केलिए यह बात हमेशा ध्यान रखनी चाहिए कि अ या आ का संबंधआ से, इ या ई का संबंध ए से, उ या ऊ का संबंध ओ से और ऋ का संबंध अर् से होता है।लोकतांत्रिक, गणतांत्रिक, अधार्मिक, राजनैतिक, मनोवैज्ञानिक, अलौकिक, संवैधानिक, पुरातात्विक, अभियांत्रिकी जैसे शब्दों में पहले भाग लोक, गण, अ, राज, मनो (मनः), सं, पुरा, अभि आदि उपसर्ग की तरह हैं और इनमें ऊपर बताए नियम लागू नहीं हुए हैं। इनमें मूल शब्द, जो शब्द के दूसरे भाग के रूप में हैं, उनपर इक वाले नियम लागू हुए हैं।राजनैतिक के लिए राजनीतीक शब्द भी प्रचलित है। एक शब्द पारलौकिक है, जो परलोक से बना है; इसमें पर और लोक दोनों शब्द बदलकर पार और लौकिक बने हैं। स्वर्ग से स्वर्गिक बनता है, स्वार्गिक नहीं। न्याय से न्यायिक और नैयायिक दोनों बनते हैं। अणु से आणविक, स्नायु से स्नायविक बनते हैं। अंत में उकार होने पर अव जुड़ता है, तब जाकर इक जुड़ता है। पशु से पाशव बना, फिर पाशविक बना है। क्षणिक, रणनीतिक, कूटनीतिक आदि शब्दों के लिए क्षाणिक, रणनैतिक, कूटनैतिक शब्द नहीं मिलते हैं।ज़्यादातर अशुद्धियाँ शब्द में आकार की जगह अकार लिखने, बोलने से होती हैं। इसलिए रसायनिक को रासायनिक, व्यवहार को व्यावहारिक, व्यवसायिक को व्यावसायिक, अध्यात्मिक को आध्यात्मिक, समाजिक को सामाजिक लिखने और बोलने का अभ्यास बढ़ाना चाहिए।० ० ०जारी...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें