रविवार, 20 दिसंबर 2015

क्या है पूना पैक्ट ?

पूना पैक्ट क्या है?
----------------------------------बाबा साहेब ने अछूतों की समस्याओं को ब्रिटिश सरकार के सामने रखा था....

और उनके लिए कुछ विशेष सुविधाएँ प्रदान किये जाने की मांग की....

बाबा साहेब की तर्कसंगत बातें मानकर ब्रिटिश सरकार ने विशेष सुविधाएँ देने के लिए बाबा साहेब डा. अम्बेडकर जी का आग्रह मान लिया.....

और 1927 में साइमन कमीशन भारत आया,

मिस्टर गांधी को साइमन कमीशन का भारत आना पसंद नहीं आया,

अतः उन्होंने जबर्दस्त नारे लगवाया, "साइमन कमीशन गो बैक"

बाबा साहेब ने ब्रिटिश सरकार के सामने यह स्पष्ट किया कि....

अस्पृश्यों का हिन्दुओं से अलग अस्तित्व है....

वे गुलामों जैसा जीवन जी रहे है,

इनको न तो सार्वजानिक कुओं से पानी भरने की इज़ाज़त है न ही पढ़ने लिखने का अधिकार है,

हिन्दू धर्म में अछूतों के अधिकारों का अपहरण हुआ है....

और इनका कोई अपना अस्तित्व न रहे इसी लिए इन्हें हिन्दू धर्म का अंग घोषित करते रहते है....

सन 1930, 1931, 1932, में लन्दन की गोलमेज कॉन्फ्रेंस में बाबा साहेब डा. अम्बेडकर जी ने अछूत कहे जाने वाले समाज की वकालत की....

उन्होंने ब्रिटिश सरकार को भी नहीं बख्सा और कहा कि.....

क्या अंग्रेज साम्राज्यशाही ने छुआ-छूत को ख़त्म करने के लिए कोई कदम उठाया.....

ब्रिटिश राज्य के डेढ़ सौ वर्षों में अछूतों पर होने वाले जुल्म में कोई कमी नहीं आई....

बाबा साहेब ने गोलमेज कॉन्फ्रेंस में जो तर्क रखे वो इतने ठोस और अधिकारपूर्ण थे कि ब्रिटिश सरकार को बाबा साहेब के सामने झुकना पड़ा....

1932 में रामसे मैक्डोनल्ड ने अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व के लिए एक तत्कालीन योजना की घोषणा की....

इसे कम्युनल एवार्ड के नाम से जाना गया....

इस अवार्ड में अछूत कहे जाने वाले समाज को दुहरा अधिकार मिला....

1⃣प्रथम वे सुनिश्चित सीटों की आरक्षित व्यवस्था में अलग चुनकर जाएंगे.....

2⃣और दूसरा दो वोटों का अधिकार मिला,

एक वोट आरक्षित सीट के लिए और दूसरा वोट अनारक्षित सीट के लिए....

यह अधिकार दिलाने से बाबा साहेब डा. अम्बेडकर का कद समाज में काफी ऊँचा हो गया,

डा. अम्बेडकर जी ने इस अधिकार के सम्बन्ध में कहा....

पृथक निर्वाचन के अधिकार की मांग से हम हिन्दू धर्म का कोई अहित नहीं करने वाले है,

हम तो केवल उन सवर्ण हिन्दुओं के ऊपर अपने भाग्य निर्माण की निर्भरता से मुक्ति चाहते है....

मिस्टर गांधी कम्युनल एवार्ड के विरोध में थे....

वे नहीं चाहते थे कि अछूत समाज हिन्दुओं से अलग हो....

वे अछूत समाज को हिन्दुओं का एक अभिन्न अंग मानते थे....

लेकिन जब बाबा साहेब डा. अम्बेडकर ने गांधी से प्रश्न किया कि....

अगर अछूत हिन्दुओं का अभिन्न अंग है तो फिर उनके साथ जानवरों जैसा सलूक क्यों..?

लेकिन इस प्रश्न का जवाब मिस्टर गांधी बाबा साहेब को कभी नहीं दे पाएं....

बाबा साहेब ने मिस्टर गांधी से कहा कि....

मिस्टर मोहन दास करम चन्द गांधी....

आप अछूतों की एक बहुत अच्छी नर्स हो सकते है....

परन्तु मैं उनकी माँ हूँ....

और माँ अपने बच्चों का अहित कभी नहीं होने देती है....

मिस्टर गांधी ने कम्युनल एवार्ड के खिलाफ आमरण अनशन कर दिया....

उस समय वह यरवदा जेल में थे और यही वह अधिकार था जिस से देश के करोड़ों अछूतों को एक नया जीवन मिलता और वे सदियों से चली आ रही गुलामी से मुक्त हो जाते.....

लेकिन मिस्टर गांधी के आमरण अनशन के कारण बाबा साहेब की उमीदों पर पानी फिरता नज़र आने लगा,

मिस्टर गांधी अपनी जिद्द पर अडिग थे तो बाबा साहेब किसी भी कीमत पर इस अधिकार को खोना नहीं चाहते थे....

आमरण अनशन के कारण गांधी जी मौत के करीब पहुँच गए इस बीच बाबा साहेब को धमकियों भरे बहुत से पत्र मिलने लगे....

जिसमे लिखा था कि वो इस अधिकार को छोड़ दें अन्यथा ठीक नहीं होगा....

बाबा साहेब को ऐसे पत्र जरा सा भी विचलित नहीं कर सके....

उन्हें अपने मरने का डर बिलकुल नहीं था....

मिस्टर गांधी की हालत दिन पर दिन बिगड़ती जा रही थी....

इसी बीच बाबा साहेब को और खत प्राप्त हुए कि अगर गांधी जी को कुछ हुआ तो हम अछूतों की बस्तियों को उजाड़ देंगे....

बाबा साहेब ने सोचा जब अछूत ही नहीं रहेंगे तो फिर मैं किसके लिए लड़ूंगा,

बाबा साहेब के जो मित्र थे उन्होंने भी बाबा साहेब को समझाया कि....

अगर एक गांधी मर गया तो दूसरा गांधी पैदा हो जायेगा लेकिन आप नहीं रहेंगे तो फिर आप के समाज का क्या होगा....

बाबा साहेब ने काफी गंभीरता से विचार करने के बाद पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर करने का मन बना लिया....

और 24 सितम्बर 1932 को आँखों में आंसू लिए हुए बाबा साहेब ने पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर किये इस संदर्भ में बाबा साहेब का नाम अमर रहेगा क्योंकि उन्होंने मिस्टर गांधी को जीवन दान दे
तीसरे दिन डा. अम्बेडकर ने पूना पैक्ट का धिक्कार दिवस आयोजित किया....

मंच से रोते हुए डा. अम्बेडकर जी ने कहा कि "पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर करके मैंने अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती की है....

मैं ऐसा करने को विवश था....

मेरे बच्चों....

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मेरी इस भूल को सुधार लेना...

बाबा साहेब ने अपने जीवन में कभी मिस्टर गांधी को महात्मा नहीं माना वे ज्योतिबा फुले जी को सच्चा महात्मा मानते है....

दोस्तों सच कहता हूँ कि इस लेख को लिखते समय आँखों में आंसू आ गये....

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जय भीम जय भारत नमो बुध्दाय

सोमवार, 14 दिसंबर 2015

कठिन नही है शुद्ध हिन्दी-भाग-44

कठिन नहीं है शुद्ध हिन्दी - 44
० ० ०
इस भाग में हम 'के भीतर', 'के अन्दर', 'के ऊपर', 'हे', 'रे', 'अरे' आदि के प्रयोग पर बात करेंगे।
'के भीतर' या 'के अन्दर' का प्रयोग तब होता है, जब कर्ता (सब्जेक्ट) पहले से उपस्थित न रहे और कथन के समय क्रियाशील (सक्रिय) रहे, जैसे 'वह घर के अन्दर चला गया'। 'में' का प्रयोग करना यहाँ ठीक नहीं रहेगा। 'वह घर में है' में पहले से उपस्थित होने का अर्थ मिलता है। अंग्रेज़ी की बात करें, तो 'में' के लिए इन (in), 'के अन्दर' या 'के भीतर' के लिए इनटू (into), 'पर' के लिए ऑन (on), 'के ऊपर' के लिए अपॉन (upon) और अबव या एबॅव (above) के प्रयोग को देखा जा सकता है।
'गाँव के भीतर दो स्कूल हैं', 'विधानसभा के भीतर बड़ा हंगामा हुआ', 'पेट के अंदर दर्द हो रहा है' आदि में 'के अंदर' या 'के भीतर' का प्रयोग उचित नहीं है। इन वाक्यों में 'के अंदर' या 'के भीतर' के स्थान पर 'में' का प्रयोग होना चाहिए।
'पर' और 'के ऊपर' में थोड़ा अन्तर है। 'पर' में आधार और आश्रित का स्पर्श होता है, जबकि 'के ऊपर' में आधार और आश्रित एक-दूसरे को स्पर्श नहीं करते। 'छत सिर पर है' और 'छत सिर के ऊपर है', इन दो वाक्यों के अर्थ से यह अन्तर स्पष्ट समझा जा सकता है। 'हृदयेश ने सिर पर छाता तान रखा है' में 'पर' का प्रयोग न करके, 'के ऊपर' का प्रयोग होना चाहिए, क्योंकि छाता सर को स्पर्श नहीं कर रहा, सर के ऊपर है। इसी प्रकार 'उसने आँगन पर छप्पर डाल लिया है' और 'युद्ध के दौरान नगर पर वायुयान मँडराते हैं' में 'पर' की जगह 'के ऊपर' का प्रयोग करना ठीक रहेगा।
'मेरे ऊपर दया कीजिए महाराज!', 'तुम्हारी पीठ के ऊपर चाकू के निशान हैं', 'कानून और व्यवस्था का बोझ पुलिस के ऊपर है', 'भगतसिंह के ऊपर यह आरोप लगाया गया', 'यह तो इस बात के ऊपर निर्भर है', 'कल बजट के ऊपर बहस होगी', 'भगवान् के ऊपर विश्वास करो', 'तुम्हारे मन के ऊपर भारी बोझ है', 'किताब मेज के ऊपर है', 'अपराधी की पीठ के ऊपर कोड़े लगाए गए', 'समारोह की पूरी ज़िम्मेदारी आपके ऊपर है', 'मेरे मन के ऊपर बड़ा प्रभाव पड़ा' आदि वाक्यों में 'के ऊपर' का प्रयोग उचित नहीं है। इनके सही रूप क्रमशः 'मुझ पर दया कीजिए महाराज!', 'तुम्हारी पीठ पर चाकू के निशान हैं', 'कानून और व्यवस्था का बोझ पुलिस पर है', 'भगतसिंह पर यह आरोप लगाया गया', 'यह तो इस बात पर निर्भर है', 'कल बजट पर बहस होगी', 'भगवान् पर विश्वास करो', 'तुम्हारे मन पर भारी बोझ है', 'किताब मेज पर है', 'अपराधी की पीठ पर कोड़े लगाए गए', 'समारोह की पूरी ज़िम्मेदारी आप पर है' और 'मेरे मन पर बड़ा प्रभाव पड़ा' हैं।
'अरे' और 'हे' का प्रयोग सम्बोधन में होता है, जैसे 'हे भगवान्, इस गरीब की रक्षा कीजिए', 'अरे, श्याम तुझे क्या हो गया?' आदि। 'ओ', 'ऐ', अरे' और 'रे' का प्रयोग डाँटने, आश्चर्य व्यक्त करने आदि में भी होता है। सम्बोधन में हमेशा इन शब्दों का प्रयोग नहीं होता, जैसे 'भाइयो और बहनो', 'मोहन, कहाँ थे तुम!' आदि।
कई बार 'हे' या 'ओ' के साथ आने वाले संस्कृत के शब्दों में कुछ परिवर्तन भी होता है। शब्द एकवचन हो और उसके अन्त में इकार, ईकार या आकार हो, तो वह एकार में बदल जाता है, जैसे 'हे विधे', 'हे प्रिये', 'हे बालिके', 'ओ लड़के', 'ओ बच्चे', 'हे सीते', 'हे देवि' और 'हे नदि' में क्रमशः 'विधि', 'प्रिया', 'बालिका', 'लड़का', 'बच्चा', 'सीता', 'नदी' और 'देवी' में बदलाव हुआ है। हिन्दी में 'हे नदी' या 'हे देवी' भी लिखा जा सकता है, लेकिन संस्कृत में नहीं। अन्त में उकार होने पर वह ओकार में बदल जाता है, जैसे 'हे साधो', 'हे बन्धो' आदि। ध्यान रहे कि ऐसा हर बार नहीं होता।
अब 'सहित', 'साथ' आदि के भी कुछ उदाहरण देखते हैं। 'उसने बड़े ध्यान के साथ मेरी बातें सुनीं', 'तुम्हें लगन या धैर्य के साथ अपना काम करना चाहिए', 'मैंने नम्रता के साथ केवल इतना कहा कि... ' आदि में 'के साथ' की जगह 'से' का प्रयोग होना चाहिए। 'आपकी कलम धन्यवाद सहित लौटा दी थी' में 'सहित' के स्थान पर 'पूर्वक' होना चाहिए।
'भोग विलास के लिए धन नष्ट न करो', 'इस रोग के लिए कोई इलाज नहीं', 'स्वान्तः सुखाय के लिए', 'वे सन्तान को लेकर दुखी हैं', 'वह अपनी पुस्तक की अपेक्षा दूसरे की उठा लाया', 'उन समान दूसरा कोई नहीं', 'मेरे आगे कौन ठहर सकता है?', "उसके विरुद्ध मुकदमा चलाया गया' आदि के सही रूप 'भोग विलास पर धन नष्ट न करो', 'इस रोग का कोई इलाज नहीं', 'स्वान्तः सुखाय' (इसमें 'के लिए' का भाव पहले से ही मौजूद है), 'वे सन्तान के कारण दुखी हैं', 'वह अपनी पुस्तक के बदले दूसरे की उठा लाया', 'उनके समान कोई नहीं', 'मेरे सामने कौन ठहर सकता है?' और 'उस पर मुकदमा चलाया गया' हैं।
० ० ०
जारी...

कठिन नही है शुद्ध हिंदी-भाग-43

कठिन नहीं है शुद्ध हिन्दी - 43
० ० ०
इस भाग में हम विभक्ति चिन्ह 'पर' की चर्चा करेंगे।
सामान्यतः 'में' अंतः स्थिति का बोध कराता है और 'पर' बाह्य स्पर्श का। 'पे' या 'पै' भी 'पर' के स्थान पर (ब्रजभाषा वग़ैरह में) कई बार लिखा और बोला जाता है।
आधार के लिए, जैसे 'घोड़े पर बैठना', 'खाट पर सोना', 'सड़क पर चलना', 'पेड़ पर चढ़ना' आदि; दूरी का बोध कराने के लिए, जैसे 'एक कोस पर', 'चार हाथ की दूरी पर', 'एक एक हाथ के अन्तर पर', 'कुछ आगे जाने पर' आदि; आधार के पास होने (सामीप्याधार) पर, जैसे 'मेरा घर सड़क पर है', 'लड़का द्वार पर खड़ा है', 'फाटक पर सिपाही रहता है', 'तेरे दर पर', 'दरवाजे पर ही' आदि ; कारण बताने में, जैसे 'अच्छा करने पर इनाम मिलेगा', 'तो इस बात पर झगड़ा हो गया!', 'मेरे बोलने पर वे अप्रसन्न हो गए'; निश्चित काल के लिए, जैसे 'समय पर वर्षा नहीं हुई', 'नौ बजकर पैंतालीस मिनट पर', 'एक एक घंटे पर दवा ले लेना' आदि और 'तारीख पर तारीख', 'तगादे पर तगादा', 'दिन पर दिन भाव चढ़ रहे हैं', 'सिपाहियों पर सिपाही' जैसे आधिक्य या दोहराव (द्विरुक्ति) की स्थिति में 'पर' का प्रयोग किया जाता है।
'नौकरों पर दया', 'कन्या पर मोहित', 'आप पर विश्वास', 'वह अपनी जाति पर गया है', 'अपनी बात पर रहना', 'जहाँ अभी तालाब है, वहाँ पर किसी समय मन्दिर था' आदि में भी 'पर' का प्रयोग किया जाता है।
निरन्तरता या सातत्य (किसी बात के लगातार होते रहने पर) में भी 'पर' का प्रयोग होता है, जैसे 'बात पर बात निकलती है।
'छोटा होने पर भी', 'वह समझाने पर भी नहीं रुका', 'यह दवा चमड़े की बीमारियों पर भी काम करेगी' जैसे प्रयोग भी 'पर' के लिए देखे जा सकते हैं।
'चढ़ना', 'मरना', 'इच्छा करना', 'छोड़ना', 'घटना', 'निछावर', 'निर्भर' आदि के साथ 'पर' का प्रयोग होता है, जैसे 'नाम पर मरना', 'आज का काम कल पर छोड़ना', 'उसका जाना तुम्हारे जाने पर निर्भर है', 'पहाड़ पर चढ़ना' आदि।
'वे तालाब के किनारे पर बैठ गए', 'वह घर पर नहीं है', 'अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मार ली', 'वह यहाँ पर नहीं है', 'हम तो आपके भरोसे जीवित हैं' आदि में 'पर' लगाना आवश्यक रहता है, लेकिन इसे अक्सर छोड़ दिया जाता है, जिसे उचित नहीं माना जाएगा।
'सारा दोष अपने सिर पर लेना', 'आप कहाँ पर थे' और 'आड़े हाथों पर लेना', 'मैं उसके दरवाजे पर कभी नहीं गया', 'उस जगह पर बहुत भीड़ थी', 'हम आपके पाँव पड़ते हैं' आदि में 'पर' का प्रयोग करना ठीक नहीं है।
कई बार 'पर' का प्रयोग कर दिया जाता है, जबकि उसके स्थान पर दूसरे शब्द आने चाहिए। इसके उदाहरण के लिए 'वह मरने पर है' (यहाँ 'को' होना चाहिए), 'इस युग में विज्ञान पर बड़ा महत्त्व दिया जा रहा है ' (यहाँ 'को' होना चाहिए), 'कश्मीर की नीति पर मंत्री ने एक वक्तव्य दिया' (यहाँ 'पर' के स्थान पर 'के सम्बन्ध में' का प्रयोग करना चाहिए), 'मुझ पर कोई लाचारी नहीं है' (यहाँ 'मुझपर 'की जगह 'मेरी' होना चाहिए), 'पत्र लम्बा होने पर माफी चाहता हूँ' ('की' या 'के कारण' होना चाहिए), 'किशोर पर मुझे सहानुभूति है' ('किशोर के साथ' या 'किशोर से' होना चाहिए), 'राहुल सांकृत्यायन ने हिन्दी पर बड़ा उपकार किया' ('का' होना चाहिए), 'उस पर क्या दोष है' ('उसका' होना चाहिए), 'तुम पर क्या दोष दियी जाय' ('तुमको' होना चाहिए), 'वह खेत पर चौकीदारी करता है' (यहाँ 'की' होना चाहिए), 'सामान दुकान पर है' ('में' होना चाहिए), 'हरदेव ने इस विषय पर अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया है' ('का' होना चाहिए), 'ऐसा करने पर कोई नुक़सान नहीं होगा' ('में' होना चाहिए), 'वह राजमहल पर चला गया' (यहाँ 'के ऊपर' होना चाहिए), 'इस कुएँ पर एक टीन डाल दें, तो अच्छा होगा' (यहाँ भी 'के ऊपर ' होना चाहिए) आदि देखे जा सकते हैं।
० ० ०
जारी...

कठिन नही है शुद्ध हिंदी-भाग-42

कठिन नहीं है शुद्ध हिन्दी - 42
० ० ०
इस भाग में हम विभक्ति चिन्ह 'में' के प्रयोग पर चर्चा करेंगे।
'में' का प्रयोग भावों या गुणों की मौजूदगी में, जैसे 'दूध में मिठास', 'मन में दया' आदि; आवास या वास में, जैसे 'वन में रहना', 'समुद्र में रहना', 'नदी में नहाना' आदि; मोल या खरीद-बिक्री में, जैसे 'किताब सौ रुपए में मिली', 'अपनी गाय कितने में बेचोगे', 'तुषार ने बीस हज़ार में यह ज़मीन सुरेश से ली' आदि; मेल और अन्तर बताने में, जैसे 'किशन और हरदेव में कोई अन्तर नहीं है', 'भाई भाई में प्रेम है', 'दोनों में अनबन हो गई', 'नरेश और महेश में कहा सुनी हो गई' आदि; निर्धारण या चयन में, जैसे 'अंधों में काने राजा', 'भारत की नदियों में गङ्गा सर्वाधिक दूषित है', देवताओं में कौन अधिक पूज्य है', 'घर में सबसे छोटा' आदि; रुचि, विषय, क्षेत्र आदि बताने तथा काम में जुटे रहने पर या मन की स्थिति बताने में, जैसे 'धर्म में रुचि', 'गणित में दिलचस्पी', 'वह तो अपनी धुन में था', 'पढ़ाई में मन नहीं लगता', 'होश में रहो', 'फ़िल्मों में दिलचस्पी', 'चिन्ता में' और निश्चित काल (समय) की स्थिति में, जैसे 'वह एक दिन में आ जाएगा', 'कई दिनों में', '1934 में अकाल पड़ा', 'प्राचीन समय में', 'दिन में चार बार', 'वह आठ दिनों में लौटेगा' आदि किया जाता है।
भरना, समाना, घुसना, मिलना, मिलाना आदि क्रियाओं के साथ भी 'शामिल होने' यानी 'मौजूदगी' के अर्थ में 'में' का प्रयोग होता है, जैसे 'घड़े में पानी भरना', 'धरती में समाना', 'बिल में घुसना', 'मिट्टी में मिलाना', 'रास्ते में मिलना' आदि।
'में' के प्रयोग के कुछ उदाहरण 'लड़का कमरे में है', 'वह घर में नहीं आता', 'मैं रात के समय गाँव में पहुँचा', 'चोर जंगल में जाएगा' आदि हैं। 'वह घर में गया' और 'वह घर को गया' के अर्थ में अन्तर है। यहाँ 'घर में' का अर्थ 'घर के भीतर से' है, जबकि 'घर को' का अर्थ से 'घर की सीमा तक जाने से है'; इसका ध्यान रखा जाना चाहिए।
'में' का प्रयोग हमेशा उचित नहीं रहता। 'आप भीतर में जाकर देख लें', 'दरअसल में वह सनकी है', 'पिछले दिनों में तपस्या बहुत पढ़ती रही', 'तुम्हारे हाथ में क्या आया', 'तृप्ति मन ही मन रोने लगी', 'बच्चे विद्यालय में जाते हैं', 'जिस समय में वह आया था, उस समय में मैं नहीं था', 'परस्पर में सहयोग होना चाहिए', 'कल रात में वर्षा नहीं हुई' आदि वाक्यों में 'में' का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
'वह आसन में बैठा है', 'वे लोग रात में जागते रहे', 'वह सबमें शक्तिशाली है', 'रात में 10 बजे बैठक होगी', 'वह नदी में पानी भरने गया', 'आज की बैठक आपके निवास में होगी', 'वह पढ़ने में जी चुराता है', 'अनेक स्थलों में यह स्पष्ट किया गया है', 'उनकी दृष्टि चित्र में गड़ी थी', 'वह किताब में आँख गड़ाए पढ़ रही थी', 'समुद्र में सैर करने चलें', 'भीष्म शरशय्या में थे', 'पुलिस ने हरेन्द्र में आरोप लगाया है', 'मनोहर जी गणित में मर्मज्ञ हैं', 'प्रथम विश्वयुद्ध 1914 और 1918 में हुआ', 'वह क्रोध में भर कर बोला', 'उसे आने में रोका गया', 'उसकी योग्यता काम में प्रकट होती है' आदि वाक्यों में 'में' के स्थान पर दूसरे शब्दों का प्रयोग करना ठीक रहेगा। 'वह आसन पर बैठा है', 'वे लोग रात भर जागते रहे', 'वह सबसे शक्तिशाली है', 'रात को 10 बजे बैठक होगी', 'वह नदी से पानी भरने गया', 'आज की बैठक आपके निवास पर होगी', 'वह पढ़ने से जी चुराता है', 'अनेक स्थलों पर यह स्पष्ट किया गया है', 'उनकी दृष्टि चित्र पर गड़ी थी', वह किताब पर आँख आँख गड़ाए पढ़ रही थी', 'समुद्र की सैर करने चलें', 'भीष्म शर शय्या पर थे', 'पुलिस ने हरेन्द्र पर आरोप लगाया है', 'मनोहर जी गणित के मर्मज्ञ हैं', 'प्रथम विश्वयुद्ध 1914 और 1918 के बीच में हुआ था' ('1914 से 1918 तक' भी हो सकता है), 'वह क्रोध से भर कर बोला', 'उसे आने से रोका गया है', 'उसकी योग्यता काम से प्रकट होती है' आदि वाक्य सही प्रयोग दिखाते हैं।
'दिल्ली और श्रीनगर के बीच दंगे हुए', 'बाबू लोग हिन्दी वाक्यों के बीच अंग्रेज़ी शब्दों का प्रयोग कर देते हैं' जैसे वाक्यों में 'के बीच' की जगह 'में' का प्रयोग करना ठीक रहेगा।
'हमारे धर्मशास्त्रों के अन्दर बहुत कुछ पड़ा है', 'हमारी पाठ्यपुस्तक के अन्दर लिखा हुआ है' आदि वाक्यों में 'के अन्दर' की जगह 'में' का प्रयोग करना चाहिए। इसी तरह 'उस गाँव के भीतर दो कुएँ हैं', 'कल संसद के भीतर इस पर बहस होगी', 'वह संकटों के भीतर घबराने वाला नहीं है' आदि वाक्यों में 'के भीतर' की जगह 'में' का प्रयोग करना चाहिए।
'यहाँ', 'वहाँ', 'किनारे', 'आसरे', 'दरवाजे' आदि के बाद 'में' का प्रयोग नहीं होता।
हम ग़लती से 'में' की बिन्दी को अनुस्वार मान लेते हैं, जो चन्द्रबिन्दु है।
० ० ०
जारी...

बुधवार, 9 दिसंबर 2015

वीरा पासी

। ...............
........वीरा पासी का जन्म सन 1835 ई0 मे
रायबरेली के गोविन्द पुर गाँव मे हुआ था । ये
रायबरेली मे शंकरपुर रियासत के राजा राना बेनी
माधव सिंह के अंगरक्षक थे । जब अग्रेंज राजा को
बंन्दी बनाके ले गये थे ,तब वीरा
पासी ही राजा को छुङा के लाये थे 50 से
अधिक अगेंज सिपाहियो को मौत के घाट उतार कर ।
तब राजा ने खुश
होकर इनको राज्य का सेनापति नियुक्त किया था
ईनके नाम से अग्रेंज
कॉपते थे,और अग्रेंज इनसे इतना डरने लगे थे कि,,अग्रेंजो
ने इन पर
50000 रू ईनाम घोषित किया ,जी हाँ 50 हजार रू।
जिसका उचित प्रामाण आज भी लंदन मे रख्खा है उस
जमाने मे जो भारतीय इतिहास मे पहली बार
था ,नही तो अग्रेंज 2 या 5 रू ही ईनाम
घोषित करते थे,,ये वीरा पासी जी
का भय था अग्रेंजो मे ,कि ऐसा करना पङा। लेकिन
वीरा
जी को पकङ ना सके ,अगेंजो द्वारा राजा के हत्या
के बाद
वीरा पासी छापेमार तरीके से देश
के लिऐ लङते रहे ,लेकिन कभी अग्रेंजो के हाथ ना
आये,। ये तो जातिगत राजनीती का खेल था
जिसके कारण ईनका नाम ईतिहास मे गुमनाम कर
दिया गया क्योकि इनके
नाम के आगे पासी लगा था, कही अगर
पान्डे लगे होता तो इन्को भी मंगल पान्डे के साथ
इतिहास
मे शामिल कर लिया जाता,,,वह रे जातिवाद
Jai ho yese mahan veer yoddha

रविवार, 6 दिसंबर 2015

बाबा साहेब के विचार

बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर के विचार
AMBEDKAR SANDESH
१. तुम्हीं भारत के मूलनिवासी और सहोदर भाई हो |
२. तुम्हीं को इससे पहले अनार्य,असुर,राक्षस,शुद्र,अचुत और अब दलित या हरिजन कहा जाता है |
३. आर्यों और अनार्यों के युद्ध मैं तुमारी हार का परिणाम तुमारी गुलामी है |
४. समस्त भारत भूमि तुम्हारे पूर्वजों की धरोहर है |
५. तुम्ही इसके सच्चे और सही उतराधिकारी हो |
६. तुम्हें बलात गुलाम बनाया गया है |
७. तुम्हारे धन और धरती पर बलात कब्ज़ा किया गया है |
८. तुम्हारी सभ्यता, संस्कृति, साहित्य, इतिहास,और धर्म नष्ट कर दिया गया है|
९. तुम्हें धर्म का भी गुलाम बना लिया गया है
१०. तुम हिन्दू कभी नहीं थे, तुम आज भी हिन्दू नहीं हो
११. तुम हिन्दू धर्म के गुलाम हो
१२. हिन्दू धर्म छोडना धर्म परिवर्तन नहीं बल्कि गुलामी की जंजीरे तोडना है |
१३. इसे वीर ही कर सकते है , तुम्हारे पूर्वज वीर थे
१४. तुहारी रगों मैं उनका खून है इसे पहचानो
१५. शिक्षित बनो,संगठित रहो,संघर्ष करो विजय तुमारी है
१६. जाती के अधर पर किसी को ऊँचा मानना पाप है और नीचा मन्ना महापाप
१७. हिन्दू धर्म की आत्मा वर्ण जाती और ब्रह्मण हितेषी कर्मकांडो मैं है |
१८. वर्ण और जाती के बिना हिन्दू धर्म की कल्पना ही नहीं की जा सकती |
१९. हिन्दू धर्म मैं कर्म नहीं जाती प्रधान है |
२०. जब तक तुम हिन्दू धर्म के गुलाम रहोगे तुम्हारा स्थान सबसे नीचा रहेगा
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तुम हिन्दु क्यों नहीं हो ?
१. हिन्दु धर्म वर्णों का है तुम किसी भी वर्ण मैं नहीं आते हो, जबरदस्ती सबसे नीचे वर्ण मैं रखा है |
२. हिन्दु धर्म के कर्मकांडों को तुम्हे नहीं करने दिया गया और तुम नहीं कर सकते हो |
३. हिन्दु धर्म के भगवन उनके अवतार और उनके देवी देवता न तो तुम्हारे है और न तुम उनके हो |
४. इसलिए वे तुम्हारे साये से भी परहेज करते आये हैं और आज भी कर रहे है |
५. कुत्ते बिल्ली की पेशाब से उन्हें कोई परहेज नहीं है परन्तु तुम्हारे द्वारा दिए गए गंगा जल से अपवित्र हो जाते हैं|
६. उनकी पुनः शुद्धि गाये के मल-मूत्र से होती है |
७. हिन्दू धर्म के देवी देवता तुम्हारे पूर्वजों के हत्यारे हैं |
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मंगलवार, 1 दिसंबर 2015

मैं पागल कहूँ

वैसे तो एक पागल व्यक्ति भी अपने आप को पागल नहीं मानता है परन्तु फिर भी हमें अपने अन्दर झांक कर पता लगाने का प्रयास करना चाहिये कि वास्तव में
मैं समझदार हूं या नहीं ।
मुझे मालूम है कि यदि किसी व्यक्ति की गर्दन धड़ से अलग हो जाये तो हाथी की गर्दन बिलकुल भी नहीं लग सकती है,लेकिन फिर भी मैं एक ऐसे देवता को सबसे पहले पूजता हूं जिसके हाथी की गर्दन लगी हुई है,अब अपने आप को समझदार समझूँ या बेवकूफ ।
मुझे मालूम है कि कोई भी व्यक्ति न तो हाथ में पहाड़ लेकर आकाश में उड़ सकता है व न सूर्य को गाल में दबा सकता है,लेकिन फिर भी मैं एक ऐसे देवता की पूजा करता हूँ जिसको इसी प्रकार से दिखाया गया है,अब मैं अपने आप को समझदार समझूँ या बेवकूफ।
मुझे मालूम है कि किसी भी महिला के दो से अधिक हाथ नहीं हो सकते हैं एवं न किसी महिला की पूजा करने से धन मिल सकता है या न विद्या मिल सकती है फिर भी मैं ऐसी कई देवीयों की पूजा करता हूँ,अब अपने आप को समझदार समझूँ या बेवकूफ।
मुझे मालूम है कि किसी भी जाति विशेष के व्यक्ति को दान देने से कोई धर्म नहीं होता है एवं न उसके द्वारा पूजा पाठ करवाने से कोई लाभ मिलने वाला है,फिर भी मैं ब्राह्मण को दान देता हूँ और उससे पूजा पाठ करवाता हूं,अब अपने आप को समझदार समझूँ या बेवकूफ ।
मुझे मालूम है कि हरिद्वार या अन्य किसी भी तीर्थ यात्रा करने से न कोई स्वर्ग मिलने वाला है एवं न कोई पाप धूलने वाले हैं,फिर भी मैं हरिद्वार ,पुष्कर या गंगा नदी में डुबकी लगाने जाता हूँ,अब अपने आप को समझदार समझूँ या बेवकूफ।
मुझे मालूम है कि मृत्यु होने के बाद किसी को कुछ भी मिलने वाला नहीं है फिर भी मैं श्राध, मृत्यु भोज अथवा मोसर करता हूँ,अब अपने आप को समझदार समझूँ या बेवकूफ।
मुझे मालूम है कि पिता के पिताजी को दादा कहते हैं या फिर कोई व्यक्ति दादागिरी करता है उसे भी दादा बोल देते हैं लेकिन मैं तो ब्राह्मण के बीस वर्ष के बेटे को भी दादा मानता हूँ उसका आशीर्वाद भी लेता हूँ,अब मैं अपने आप को समझदार समझूँ या बेवकूफ।
मुझे मालूम है कि असमानता,अशिक्षा,अन्धविश्वास,पाखण्डवाद,जातिवाद एवं पुरोहित वाद पापियों का काम है लेकिन मैं इस प्रकार के संगठन को धर्म कहता हूँ अब मैं अपने आप को समझदार समझूँ या बेवकूफ।
मुझे मालूम है कि गौतम बुद्ध,संत रैदास,कबीर,गुरू नानक,ज्योति राव फुले एवं बाबा साहेब अंबेडकर इन सभी ने देवी देवताओं की पूजा के लिए मना किया है लेकिन मैं उन सभी महापुरुषों की बात को दरकिनार करके इन देवी देवताओं की पूजा करता हूँ,अब मैं अपने आप को समझदार समझूँ या बेवकूफ।
मुझे मालूम है कि बाबा साहेब अंबेडकर के लिखे हुए संविधान में ही मेरा कल्याण लिखा हुआ है फिर भी मैं अखण्डपाठ रामायण का करवाता हूँ,अब मैं अपने आप को समझदार समझूँ या बेवकूफ।
मुझे मालूम है कि राजा राम ने अपनी गर्भवती पत्नी को घर से निकाल दिया था एवं एक दलित महापुरुष शम्भुक की हत्या केवल इस लिए कर दी थी कि वह लोगों को शिक्षा देता था फिर भी मैं जय श्रीराम बोलता हूँ लेकिन जो हमारा सच्चा भगवान है उसके लिए जय भीम बोलने से मैं गुरेज़ करता हूँ,अब अपने आप को मैं समझदार समझूँ या बेवकूफ।
मुझे यह भी मालूम है कि यदि मैंने अब अतिशीघ्र यह निर्णय नहीं लिया कि मैं समझदार हूँ या बेवकूफ,तो आने वाली पीढ़ियों मुझे माफ नहीं करेंगी एवं अब मैं स्वयं भी वास्तविकता को जान गया हूँ, इसलिए समय रहते मैंने कोई निर्णय नहीं लिया तो अपने आप को भी माफ नहीं कर पाऊँगा l
आज से ही अपने आपको बदलने का काम शुरू करें l