शुक्रवार, 24 जून 2016

वैदिक प्रश्नोत्तरी

🙏    वैदिक प्रश्नोत्तरी  🙏
        
         ॥ ॐ ॥
ॐ यह मुख्य परमेश्वर का निज नाम है, जिस नाम के साथ अन्य सब नाम लग जाते हैं।
प्र.1-  वेद किसे कहते है ?
उत्तर-  ईश्वरीय ज्ञान की पुस्तक को वेद कहते है।
प्र.2-  वेद-ज्ञान किसने दिया ?
उत्तर-  ईश्वर ने दिया।
प्र.3-  ईश्वर ने वेद-ज्ञान कब दिया ?
उत्तर-  ईश्वर ने सृष्टि के आरंभ में वेद-ज्ञान दिया।
प्र.4-  ईश्वर ने वेद ज्ञान क्यों दिया ?
उत्तर- मनुष्य-मात्र के कल्याण         के लिए।
प्र.5-  वेद कितने है ?
उत्तर- चार ।                                                  1-ऋग्वेद
2 - यजुर्वेद 
3- सामवेद
4 - अथर्ववेद
प्र.6-  वेदों के ब्राह्मण ।
      वेद              ब्राह्मण
1 - ऋग्वेद      -     ऐतरेय
2 - यजुर्वेद     -     शतपथ
3 - सामवेद     -    तांड्य
4 - अथर्ववेद    -   गोपथ
प्र.7-  वेदों के उपवेद कितने है।
उत्तर -  चार।
      वेद                     उपवेद
    1- ऋग्वेद       -     आयुर्वेद
    2- यजुर्वेद       -    धनुर्वेद
    3 -सामवेद     -     गंधर्ववेद
    4- अथर्ववेद    -     अर्थवेद
प्र 8-  वेदों के अंग हैं ।
उत्तर -  छः ।
1 - शिक्षा
2 - कल्प
3 - निरूक्त
4 - व्याकरण
5 - छंद
6 - ज्योतिष
प्र.9- वेदों का ज्ञान ईश्वर ने किन किन ऋषियो को दिया ?
उत्तर- चार ऋषियों को।
      वेद                    ऋषि
1- ऋग्वेद        -      अग्नि
2 - यजुर्वेद      -       वायु
3 - सामवेद      -      आदित्य
4 - अथर्ववेद     -     अंगिरा
प्र.10-  वेदों का ज्ञान ईश्वर ने ऋषियों को कैसे दिया ?
उत्तर- समाधि की अवस्था में।
प्र.11-  वेदों में कैसे ज्ञान है ?
उत्तर-  सब सत्य विद्याओं का ज्ञान-विज्ञान।
प्र.12-  वेदो के विषय कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-   चार ।
        ऋषि        विषय
1-  ऋग्वेद    -    ज्ञान
2-  यजुर्वेद   -    कर्म
3-  सामवे    -    उपासना
4-  अथर्ववेद -    विज्ञान
प्र.13-  वेदों में।
     ऋग्वेद में।
1-  मंडल      -  10
2 - अष्टक     -   08
3 - सूक्त        -  1028
4 - अनुवाक  -   85
5 - ऋचाएं     -  10589
          यजुर्वेद में।
1- अध्याय    -  40
2- मंत्र           - 1975
          सामवेद में।
1-  आरचिक     -  06
2 - अध्याय     -   06
3-  ऋचाएं       -  1875
            अथर्ववेद में।
1- कांड      -    20
2- सूक्त       -   731
3 - मंत्र       -   5977
         
प्र.14-  वेद पढ़ने का अधिकार किसको है ?                                                                                                                                                              उत्तर-  मनुष्य-मात्र को वेद पढ़ने का अधिकार है।
प्र.15-  क्या वेदों में मूर्तिपूजा का विधान है ?
उत्तर-  बिलकुल भी नहीं।
प्र.16-  क्या वेदों में अवतारवाद का प्रमाण है ?
उत्तर-  नहीं।
प्र.17-  सबसे बड़ा वेद कौन-सा है ?
उत्तर-  ऋग्वेद।
प्र.18-  वेदों की उत्पत्ति कब हुई ?
उत्तर-  वेदो की उत्पत्ति सृष्टि के आदि से परमात्मा द्वारा हुई । अर्थात 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 43 हजार वर्ष पूर्व ।
प्र.19-  वेद-ज्ञान के सहायक दर्शन-शास्त्र ( उपअंग ) कितने हैं और उनके लेखकों का
क्या नाम है ?
उत्तर-
1-  न्याय दर्शन  - गौतम मुनि।
2- वैशेषिक दर्शन  - कणाद मुनि।
3- योगदर्शन  - पतंजलि मुनि।
4- मीमांसा दर्शन  - जैमिनी मुनि।
5- सांख्य दर्शन  - कपिल मुनि।
6- वेदांत दर्शन  - व्यास मुनि।
प्र.20-  शास्त्रों के विषय क्या है ?
उत्तर-  आत्मा,  परमात्मा, प्रकृति,  जगत की उत्पत्ति,  मुक्ति अर्थात सब प्रकार का भौतिक व आध्यात्मिक  ज्ञान-विज्ञान आदि।
प्र.21-  प्रामाणिक उपनिषदे कितनी है ?
उत्तर-  केवल ग्यारह।
प्र.22-  उपनिषदों के नाम बतावे ?
उत्तर- 
1-ईश ( ईशावास्य )  2- केन  3-कठ  4-प्रश्न  5-मुंडक  6-मांडू  7-ऐतरेय  8-तैत्तिरीय 9- छांदोग्य
10-वृहदारण्यक 11- श्वेताश्वतर ।
प्र.23-  उपनिषदों के विषय कहाँ से लिए गए है ?
उत्तर- वेदों से।
प्र.24- चार वर्ण।
उत्तर-
1- ब्राह्मण
2- क्षत्रिय
3- वैश्य
4- शूद्र
प्र.25- चार युग।
1- सतयुग - 17,28000  वर्षों का नाम ( सतयुग ) रखा है।
2- त्रेतायुग- 12,96000  वर्षों का नाम ( त्रेतायुग ) रखा है।
3- द्वापरयुग- 8,64000  वर्षों का नाम है।
4- कलयुग- 4,32000  वर्षों का नाम है।
कलयुग के  4,976  वर्षों का भोग हो चुका है अभी तक।
4,27024 वर्षों का भोग होना है।
           पंच महायज्ञ
       1- ब्रह्मयज्ञ  
       2- देवयज्ञ
       3- पितृयज्ञ
       4- बलिवैश्वदेवयज्ञ
       5- अतिथियज्ञ
  
स्वर्ग  -  जहाँ सुख है।
नरक  -  जहाँ दुःख है।
    

गुरुवार, 23 जून 2016

योग ज्ञान एवं क्रियाएँ

योग का संपूर्ण ज्ञान, जानकर रह जाएंगे हैरान✨
योग का वर्णन वेदों में, फिर उपनिषदों में और फिर गीता में मिलता है, लेकिन पतंजलि और गुरु गोरखनाथ ने योग के बिखरे हुए ज्ञान को व्यवस्थित रूप से लिपिबद्ध किया। योग हिन्दू धर्म के छह दर्शनों में से एक है। ये छह दर्शन हैं- 1.न्याय 2.वैशेषिक 3.मीमांसा 4.सांख्य 5.वेदांत और 6.योग। आओ जानते हैं योग के बारे में वह सब कुछ जो आप जानना चाहते हैं।
*योग के मुख्‍य अंग:- यम, नियम, अंग संचालन, आसन, क्रिया, बंध, मुद्रा, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। इसके अलावा योग के प्रकार, योगाभ्यास की बाधाएं, योग का इतिहास, योग के प्रमुख ग्रंथ।
योग के प्रकार:- 1.राजयोग, 2.हठयोग, 3.लययोग, 4. ज्ञानयोग, 5.कर्मयोग और 6. भक्तियोग। इसके अलावा बहिरंग योग, नाद योग, मंत्र योग, तंत्र योग, कुंडलिनी योग, साधना योग, क्रिया योग, सहज योग, मुद्रायोग, और स्वरयोग आदि योग के अनेक आयामों की चर्चा की जाती है। लेकिन सभी उक्त छह में समाहित हैं।
1.पांच यम:- 1.अहिंसा, 2.सत्य, 3.अस्तेय, 4.ब्रह्मचर्य और 5.अपरिग्रह।
2.पांच नियम:-1.शौच, 2.संतोष, 3.तप, 4.स्वाध्याय और 5.ईश्वर प्राणिधान।
3.अंग संचालन:- 1.शवासन, 2.मकरासन, 3.दंडासन और 4. नमस्कार मुद्रा में अंग संचालन किया जाता है जिसे सूक्ष्म व्यायाम कहते हैं। इसके अंतर्गत आंखें, कोहनी, घुटने, कमर, अंगुलियां, पंजे, मुंह आदि अंगों की एक्सरसाइज की जाती है।
4.प्रमुख बंध:- 1.महाबंध, 2.मूलबंध, 3.जालन्धरबंध और 4.उड्डियान।
5.प्रमुख आसन:- किसी भी आसन की शुरुआत लेटकर अर्थात शवासन (चित्त लेटकर) और मकरासन (औंधा लेटकर) में और बैठकर अर्थात दंडासन और वज्रासन में, खड़े होकर अर्थात सावधान मुद्रा या नमस्कार मुद्रा से होती है। यहां सभी तरह के आसन के नाम दिए गए हैं।
1.सूर्यनमस्कार, 2.आकर्णधनुष्टंकारासन, 3.उत्कटासन, 4.उत्तान कुक्कुटासन, 5.उत्तानपादासन, 6.उपधानासन, 7.ऊर्ध्वताड़ासन, 8.एकपाद ग्रीवासन, 9.कटि उत्तानासन
10.कन्धरासन, 11.कर्ण पीड़ासन, 12.कुक्कुटासन, 13.कुर्मासन, 14.कोणासन, 15.गरुड़ासन
16.गर्भासन, 17.गोमुखासन, 18.गोरक्षासन, 19.चक्रासन, 20.जानुशिरासन, 21.तोलांगुलासन
22.त्रिकोणासन, 23.दीर्घ नौकासन, 24.द्विचक्रिकासन, 25.द्विपादग्रीवासन, 26.ध्रुवासन
27.नटराजासन, 28.पक्ष्यासन, 29.पर्वतासन, 31.पशुविश्रामासन, 32.पादवृत्तासन
33.पादांगुष्टासन, 33.पादांगुष्ठनासास्पर्शासन, 35.पूर्ण मत्स्येन्द्रासन, 36.पॄष्ठतानासन
37.प्रसृतहस्त वृश्चिकासन, 38.बकासन, 39.बध्दपद्मासन, 40.बालासन, 41.ब्रह्मचर्यासन
42.भूनमनासन, 43.मंडूकासन, 44.मर्कटासन, 45.मार्जारासन, 46.योगनिद्रा, 47.योगमुद्रासन, 48.वातायनासन, 49.वृक्षासन, 50.वृश्चिकासन, 51.शंखासन, 52.शशकासन
53.सिंहासन, 55.सिद्धासन, 56.सुप्त गर्भासन, 57.सेतुबंधासन, 58.स्कंधपादासन,
59.हस्तपादांगुष्ठासन, 60.भद्रासन, 61.शीर्षासन, 62.सूर्य नमस्कार, 63.कटिचक्रासन,
64.पादहस्तासन, 65.अर्धचन्द्रासन, 66.ताड़ासन, 67.पूर्णधनुरासन, 68.अर्धधनुरासन,
69.विपरीत नौकासन, 70.शलभासन, 71.भुजंगासन, 72.मकरासन, 73.पवन मुक्तासन, 
74.नौकासन, 75.हलासन, 76.सर्वांगासन, 77.विपरीतकर्णी आसन, 78.शवासन, 
79.मयूरासन, 80.ब्रह्म मुद्रा, 81.पश्चिमोत्तनासन, 82.उष्ट्रासन, 83.वक्रासन, 84.अर्ध-मत्स्येन्द्रासन, 85.मत्स्यासन, 86.सुप्त-वज्रासन, 87.वज्रासन, 88.पद्मासन आदि।
6.जानिए प्राणायाम क्या है:-
प्राणायाम के पंचक:- 1.व्यान, 2.समान, 3.अपान, 4.उदान और 5.प्राण।
प्राणायाम के प्रकार:- 1.पूरक, 2.कुम्भक और 3.रेचक। इसे ही हठयोगी अभ्यांतर वृत्ति, स्तम्भ वृत्ति और बाह्य वृत्ति कहते हैं। अर्थात श्वास को लेना, रोकना और छोड़ना। अंतर रोकने को आंतरिक कुम्भक और बाहर रोकने को बाह्म कुम्भक कहते हैं।
प्रमुख प्राणायाम:- 1.नाड़ीशोधन, 2.भ्रस्त्रिका, 3.उज्जाई, 4.भ्रामरी, 5.कपालभाती, 6.केवली, 7.कुंभक, 8.दीर्घ, 9.शीतकारी, 10.शीतली, 11.मूर्छा, 12.सूर्यभेदन, 13.चंद्रभेदन, 14.प्रणव, 15.अग्निसार, 16.उद्गीथ, 17.नासाग्र, 18.प्लावनी, 19.शितायु आदि।
अन्य प्राणायाम:- 1.अनुलोम-विलोम प्राणायाम, 2.अग्नि प्रदीप्त प्राणायाम, 3.अग्नि प्रसारण प्राणायाम, 4.एकांड स्तम्भ प्राणायाम, 5.सीत्कारी प्राणायाम, 6.सर्वद्वारबद्व प्राणायाम, 7.सर्वांग स्तम्भ प्राणायाम, 8.सम्त व्याहृति प्राणायाम, 9.चतुर्मुखी प्राणायाम, 10.प्रच्छर्दन प्राणायाम, 11.चन्द्रभेदन प्राणायाम, 12.यन्त्रगमन प्राणायाम, 13.वामरेचन प्राणायाम, 14.दक्षिण रेचन प्राणायाम, 15.शक्ति प्रयोग प्राणायाम, 16.त्रिबन्धरेचक प्राणायाम, 17.कपाल भाति प्राणायाम, 18.हृदय स्तम्भ प्राणायाम, 19.मध्य रेचन प्राणायाम, 20.त्रिबन्ध कुम्भक प्राणायाम, 21.ऊर्ध्वमुख भस्त्रिका प्राणायाम, 22.मुखपूरक कुम्भक प्राणायाम, 23.वायुवीय कुम्भक प्राणायाम, 24.वक्षस्थल रेचन प्राणायाम, 25.दीर्घ श्वास-प्रश्वास प्राणायाम, 26.प्राह्याभ्न्वर कुम्भक प्राणायाम, 27.षन्मुखी रेचन प्राणायाम 28.कण्ठ वातउदा पूरक प्राणायाम, 29.सुख प्रसारण पूरक कुम्भक प्राणायाम, 30.नाड़ी शोधन प्राणायाम व नाड़ी अवरोध प्राणायाम आदि।
7.योग क्रियाएं जानिएं:-
प्रमुख 13 क्रियाएं:- 1.नेती- सूत्र नेति, घॄत नेति, 2.धौति- वमन धौति, वस्त्र धौति, दण्ड धौति, 3.गजकरणी, 4.बस्ती- जल बस्ति, 5.कुंजर, 6.न्यौली, 7.त्राटक, 8.कपालभाति, 9.धौंकनी, 10.गणेश क्रिया, 11.बाधी, 12.लघु शंख प्रक्षालन और 13.शंख प्रक्षालयन।
8.मुद्राएं कई हैं:-
*6 आसन मुद्राएं:- 1.व्रक्त मुद्रा, 2.अश्विनी मुद्रा, 3.महामुद्रा, 4.योग मुद्रा, 5.विपरीत करणी मुद्रा, 6.शोभवनी मुद्रा।
*पंच राजयोग मुद्राएं- 1.चाचरी, 2.खेचरी, 3.भोचरी, 4.अगोचरी, 5.उन्न्युनी मुद्रा।
*10 हस्त मुद्राएं:- उक्त के अलावा हस्त मुद्राओं में प्रमुख दस मुद्राओं का महत्व है जो निम्न है: -1.ज्ञान मुद्रा, 2.पृथवि मुद्रा, 3.वरुण मुद्रा, 4.वायु मुद्रा, 5.शून्य मुद्रा, 6.सूर्य मुद्रा, 7.प्राण मुद्रा, 8.लिंग मुद्रा, 9.अपान मुद्रा, 10.अपान वायु मुद्रा।
*अन्य मुद्राएं : 1.सुरभी मुद्रा, 2.ब्रह्ममुद्रा, 3.अभयमुद्रा, 4.भूमि मुद्रा, 5.भूमि स्पर्शमुद्रा, 6.धर्मचक्रमुद्रा, 7.वज्रमुद्रा, 8.वितर्कमुद्रा, 8.जनाना मुद्रा, 10.कर्णमुद्रा, 11.शरणागतमुद्रा, 12.ध्यान मुद्रा, 13.सुची मुद्रा, 14.ओम मुद्रा, 15.जनाना और चीन मुद्रा, 16.अंगुलियां मुद्रा 17.महात्रिक मुद्रा, 18.कुबेर मुद्रा, 19.चीन मुद्रा, 20.वरद मुद्रा, 21.मकर मुद्रा, 22.शंख मुद्रा, 23.रुद्र मुद्रा, 24.पुष्पपूत मुद्रा, 25.वज्र मुद्रा, 26श्वांस मुद्रा, 27.हास्य बुद्धा मुद्रा, 28.योग मुद्रा, 29.गणेश मुद्रा 30.डॉयनेमिक मुद्रा, 31.मातंगी मुद्रा, 32.गरुड़ मुद्रा, 33.कुंडलिनी मुद्रा, 34.शिव लिंग मुद्रा, 35.ब्रह्मा मुद्रा, 36.मुकुल मुद्रा, 37.महर्षि मुद्रा, 38.योनी मुद्रा, 39.पुशन मुद्रा, 40.कालेश्वर मुद्रा, 41.गूढ़ मुद्रा, 42.मेरुदंड मुद्रा, 43.हाकिनी मुद्रा, 45.कमल मुद्रा, 46.पाचन मुद्रा, 47.विषहरण मुद्रा या निर्विषिकरण मुद्रा, 48.आकाश मुद्रा, 49.हृदय मुद्रा, 50.जाल मुद्रा आदि।
9.प्रत्याहार: इंद्रियों को विषयों से हटाने का नाम ही प्रत्याहार है। इंद्रियां मनुष्य को बाहरी विषयों में उलझाए रखती है।। प्रत्याहार के अभ्यास से साधक अन्तर्मुखिता की स्थिति प्राप्त करता है। जैसे एक कछुआ अपने अंगों को समेट लेता है उसी प्रकार प्रत्याहरी मनुष्य की स्थिति होती है। यम नियम, आसान, प्राणायाम को साधने से प्रत्याहार की स्थिति घटित होने लगती है।
10.धारणा: चित्त को एक स्थान विशेष पर केंद्रित करना ही धारणा है। प्रत्याहार के सधने से धारणा स्वत: ही घटित होती है। धारणा धारण किया हुआ चित्त कैसी भी धारणा या कल्पना करता है, तो वैसे ही घटित होने लगता है। यदि ऐसे व्यक्ति किसी एक कागज को हाथ में लेकर यह सोचे की यह जल जाए तो ऐसा हो जाता है।
11.ध्यान: जब ध्येय वस्तु का चिंतन करते हुए चित्त तद्रूप हो जाता है तो उसे ध्यान कहते हैं। पूर्ण ध्यान की स्थिति में किसी अन्य वस्तु का ज्ञान अथवा उसकी स्मृति चित्त में प्रविष्ट नहीं होती।
ध्यान के रूढ़ प्रकार:- स्थूल ध्यान, ज्योतिर्ध्यान और सूक्ष्म ध्यान।
ध्यान विधियां:- श्वास ध्यान, साक्षी भाव, नासाग्र ध्यान, विपश्यना ध्यान आदि हजारों ध्यान विधियां हैं।
12.समाधि: यह चित्त की अवस्था है जिसमें चित्त ध्येय वस्तु के चिंतन में पूरी तरह लीन हो जाता है। योग दर्शन समाधि के द्वारा ही मोक्ष प्राप्ति को संभव मानता है।
समाधि की भी दो श्रेणियां हैं : 1.सम्प्रज्ञात और 2.असम्प्रज्ञात। सम्प्रज्ञात समाधि वितर्क, विचार, आनंद और अस्मितानुगत होती है। असम्प्रज्ञात में सात्विक, राजस और तामस सभी वृत्तियों का निरोध हो जाता है। इसे बौद्ध धर्म में संबोधि, जैन धर्म में केवल्य और हिन्दू धर्म में मोक्ष प्राप्त करना कहते हैं। इस सामान्य भाषा में मुक्ति कहते हैं।
पुराणों में मुक्ति के 6 प्रकार बताएं गए है जो इस प्रकार हैं- 1.साष्ट्रि, (ऐश्वर्य), 2.सालोक्य (लोक की प्राप्ति), 3.सारूप (ब्रह्मस्वरूप), 4.सामीप्य, (ब्रह्म के पास), 5.साम्य (ब्रह्म जैसी समानता) 6.लीनता या सायुज्य (ब्रह्म में लीन होकर ब्रह्म हो जाना)।
*योगाभ्यास की बाधाएं: आहार, प्रयास, प्रजल्प, नियमाग्रह, जनसंग और लौल्य। इसी को सामान्य भाषा में आहार अर्थात अतिभोजन, प्रयास अर्थात आसनों के साथ जोर-जबरदस्ती, प्रजल्प अर्थात अभ्यास का दिखावा, नियामाग्रह अर्थात योग करने के कड़े नियम बनाना, जनसंग अर्थात अधिक जनसंपर्क और अंत में लौल्य का मतलब शारीरिक और मानसिक चंचलता।
1.राजयोग:- यम, नियम, आसन, प्राणायम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि यह पतंजलि के राजयोग के आठ अंग हैं। इन्हें अष्टांग योग भी कहा जाता है।
2.हठयोग:- षट्कर्म, आसन, मुद्रा, प्रत्याहार, ध्यान और समाधि- ये हठयोग के सात अंग है, लेकिन हठयोगी का जोर आसन एवं कुंडलिनी जागृति के लिए आसन, बंध, मुद्रा और प्राणायम पर अधिक रहता है। यही क्रिया योग है।
3.लययोग:- यम, नियम, स्थूल क्रिया, सूक्ष्म क्रिया, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। उक्त आठ लययोग के अंग है।
4.ज्ञानयोग :- साक्षीभाव द्वारा विशुद्ध आत्मा का ज्ञान प्राप्त करना ही ज्ञान योग है। यही ध्यानयोग है।
5.कर्मयोग:- कर्म करना ही कर्म योग है। इसका उद्‍येश्य है कर्मों में कुशलता लाना। यही सहज योग है।
6.भक्तियोग :- भक्त श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य और आत्मनिवेदन रूप- इन नौ अंगों को नवधा भक्ति कहा जाता है। भक्ति योगानुसार व्यक्ति सालोक्य, सामीप्य, सारूप तथा सायुज्य-मुक्ति को प्राप्त होता है, जिसे क्रमबद्ध मुक्ति कहा जाता है।
*कुंडलिनी योग : कुंडलिनी शक्ति सुषुम्ना नाड़ी में नाभि के निचले हिस्से में सोई हुई अवस्था में रहती है, जो ध्यान के गहराने के साथ ही सभी चक्रों से गुजरती हुई सहस्रार चक्र तक पहुंचती है। ये चक्र 7 होते हैं:- मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा और सहस्रार। 72 हजार नाड़ियों में से प्रमुख रूप से तीन है: इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना। इड़ा और पिंगला नासिका के दोनों छिद्रों से जुड़ी है जबकि सुषुम्ना भ्रकुटी के बीच के स्थान से। स्वरयोग इड़ा और पिंगला के विषय में विस्तृत जानकारी देते हुए स्वरों को परिवर्तित करने, रोग दूर करने, सिद्धि प्राप्त करने और भविष्यवाणी करने जैसी शक्तियाँ प्राप्त करने के विषय में गहन मार्गदर्शन होता है। दोनों नासिका से सांस चलने का अर्थ है कि उस समय सुषुम्ना क्रियाशील है। ध्यान, प्रार्थना, जप, चिंतन और उत्कृष्ट कार्य करने के लिए यही समय सर्वश्रेष्ठ होता है।
योग का संक्षिप्त इतिहास (History of Yoga) : योग का उपदेश सर्वप्रथम हिरण्यगर्भ ब्रह्मा ने सनकादिकों को, पश्चात विवस्वान (सूर्य) को दिया। बाद में यह दो शखाओं में विभक्त हो गया। एक ब्रह्मयोग और दूसरा कर्मयोग। ब्रह्मयोग की परम्परा सनक, सनन्दन, सनातन, कपिल, आसुर‍ि, वोढु और पच्चंशिख नारद-शुकादिकों ने शुरू की थी।          ��������������������

पदौन्नति में आरक्षण ,हाई कोर्ट#सुप्रीम कोर्ट के निर्णय


अजाक्स  समाचार
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दिनांक-20.6.2016 समय 12ः05 Pm .....................

   M दिनांक-16.6.2016 को प्रतिनिधि  मण्डल पदोन्नति में आरक्षण के संबंध में चर्चा करने हेतु प्रांतीय अध्यक्ष अजाक्स सम्मानीय श्री जे.एन कांसोटिया,( IAS) से मार्गदर्षन हेतु भेट की प्रांतीय अध्यक्ष द्वारा बिन्दुवार चर्चा की गई एवं निर्देषित किया गया कि म.प्र. शासन द्वारा 15 जून 2016 को अधिकारी एवं कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण का लाभ देने हेतु ‘‘मंत्री परिषद समिति’’ गठित की गई है। समिति से सम्पर्क करे एवं पदान्नति में आरक्षण के संबंध में अपना पक्ष प्रस्तुत करें
    दिये गये निर्देषो के पालन में दिनांक-19.06.2016 को अजाक्स प्रतिनिधि मण्डल द्वारा माननीय श्री गौरी  शंकर सेजवार मंत्री, वन विभाग म.प्र. शासन से भेट की गई एवं निम्नानुसार बिन्दु माननीय श्री सेजवार जी के समक्ष प्रस्तुत किये गये।
             1. सन् 1958 से 15.11.1992 तक आरक्षण की स्थितिः-
म.प्र. का गठन 1 नबम्बर 1956 को हुआ तबसे लेकर आरक्षित वर्ग को 1958 से 15.11.1992 तक सीधी भर्ती एवं पदोन्नति में आरक्षण का लाभ दिया जाता रहा लेकिन 16.11.1992 को इंदिरा साहनी विरूद्ध भारत शासन के मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिशा  निर्देश जारी किये गये कि सविंधान के article 16(4) के अंतर्गत सीधी भर्ती में आरक्षण दिया जा सकता है। पदोन्नति में नही। मंत्री जी को इस जानकारी से अवगत कराया।
            2. 77वां संविधान संषोधन 1995ः-
इंदिरा साहनी प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गये निर्देशो के पालन में भारत की संसद ने 77 वां संविधान संषोधन पारित किया तथा संविधान में । article  16(4A) जोड़ा गया जिसमें निर्देश  दिये गये कि कोई भी राज्य सरकार   में आरंक्षित वर्ग कॊ पिछडेपन,अपर्याप्त प्रतिनिधत्व,ऐफिसियन्सी का आक्कलन करते हुए पदोन्नति में आरक्षण दे सकता है। बाद में पदोन्नति में आरक्षण को शसक्त बनाने हेतु 81 वां, 82 वां,85 वां सवंधिान संषोधन वर्ष 2000 एवं 2001 में पारित किये गये। इस जानकारी से भी अवगत कराया।
          3. पदोन्नति नियम 2002ः-
म.प्र. शासन द्वारा 11 जून 2002 को आरक्षित वर्ग को पदोन्नति में आरक्षण देने हेतु पदोन्न्ती  नियम  2002 नियम बनाये गये तदानुसार विभिन्न विभागों में आरक्षित वर्ग को पदोन्नतियां दी गई। उपरोक्त नियम को 2002 में जबलपूर हाईकोर्ट में चेलेंज किया गया जबलपूर हाई कोर्ट द्वारा भी दिसम्बर 2002 में पदोन्नति नियमों को संवेधानिक बताया। निर्णय के विरूद्ध में अन्य वर्ग द्वारा सुप्रीम कोर्ट में भी अपील की गई वहां भी निर्णय को मान्य किया गया। एवं पदोन्नति नियम 2002 को संवैधानिक बताया गया।
            4. एम.नागराज विरूद्ध भारत शासन सुप्रीम कोर्ट का निर्णय वर्ष 2006
ः- माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा एम.नागराज विरूद्ध भारत शासन सुप्रीम कोर्ट का निर्णय 2006 के संदर्भ में गाईड लाईन जारी की गई कि पदोन्नति में आरक्षण देने हेतु निम्न प्रक्रिया का पालन किया जावें।
                         1. आरक्षित वर्ग के पिछडेंपन के आकडे।
                         2. आरक्षित वर्ग का शासकीय सेवाओं में अपर्याप्त प्रतिनिधत्व।
                         3. आरक्षित वर्ग की पदोन्नति से प्रषासनिक दक्क्षता में हुई वृद्धि।
            उपरोक्त बिन्दुओ का पालन करने के उपरांत ही आरक्षित वर्ग को पदोन्नति में आरक्षण दिया जाये। इस जानकारी से भी माननीय मंत्री जी को अवगत कराया गया।
            5. पदोन्नति में आरक्षण के विरूद्ध जबलपूर हाईकोर्ट का निर्णय प्रकरण क्र. 1942/2011 निर्णय दिनांक-30.4.2016ः-
माननीय उच्च न्यायालय जबलपूर द्वारा अपने निर्णय में कहा है कि पदोन्नति नियम 2002 असंवैधानिक है तथा पदोन्नति में आरक्षण का रोस्टर, बैकलाॅग,केरीफारवड बैकलाॅग, आरक्षण का प्रतिषत इत्यादि निरस्त किये जाते है क्योकि पदोन्नति नियम 2002 के अंतर्गत पदोन्नति दिया जाना एम.नागराज के निर्णय के अनुसार नही है।
            6. माननीय उच्चतम् न्यायालय दिल्ली द्वारा पदोन्नति में आरक्षण के पक्ष मंे दिये गये विभिन्न निर्णयः-
माननीय उच्चतम् न्यायालय नई दिल्ली द्वारा पदोन्नति में आरक्षण के पक्ष में विभिन्न निर्णय लिये गये।
   1. इंदिरा साहनी विरूद्ध भारत शासन प्रकरण क्रमांक- एस.सी.सी.217 निर्णय दिनांक-  16.11.1992
   2. आर के सभरवाल विरूद्ध पंजाब सरकार प्रकरण क्रमांक-एस.सी.सी.745 निर्णय दिनांक-10.02.1995
   3. अजित सिंह जुनेजा विरूद्ध पंजाब सरकार प्रकरण क्रमांक-एस.सी.सी.715 निर्णय दिनांक-01.03.1996
   4. जगदीष लाल विरूद्ध हरियाणा सरकार प्रकरण क्रमांक-एस.सी.सी.538 निर्णय दिनांक-07.05.1997
   5. ई.बी.चेनैया विरूद्ध आन्ध्र प्रदेश सरकार प्रकरण क्रमांक-एस.सी.सी.394 निर्णय दिनांक-05.11.2004

                        उपरोक्त निर्णयों में माननी Mahesh Ahirwar:
य उच्चतम न्यायालय द्वारा कहा गया है कि आरक्षित वर्ग  की समाजिक एवं शेक्षणिक रूप से पिछडेंपन का परिक्षण नही किया जा सकता, इन पर क्रीमीलेयर लागू नही होती है आरक्षित वर्ग अनुसूचित जाति जनजाति के अत्यन्त पिछडे वर्ग की श्रेणी के सदस्य है संविधान के अनुछेद 15(4) एवं 16 (4) के अनुसार इनका प्र्याप्त प्रतिनिधत्व नही है इसलिये इनके पिछडेपन होने के संबंध में माइक्रोक्लासिफिकेषन करने की स्वीकृति नही दी जा सकती तथा आरक्षित वर्ग के सदस्यों को संविधान के अनुछेद 16(4।) के अनुसार पदोन्नति में आरक्षण देना संवैधानिक है। माननीय मंत्री जी को उपरोक्त प्रकरणों के संबंध में भी अवगत कराया गया।

            7. माननीय उच्चतम् न्यायालय दिल्ली में म.प्र. शासन की पदोन्नति के संबंध में एस.एल’पी दायर करनाः-
                    म.प्र.शासन द्वारा पदोन्नति में आरक्षण के संबंध में 3-4 मई 2016 को पदोन्नति में आरक्षण के संबंध में एस.एल.पी दायर की गई जिसमें शासन द्वारा पक्ष रखा गया कि वर्ष 2002 से 2016 की समयावधि में पदोन्नत किये गये आरक्षित वर्ग के अधिकारी/कर्मचारियों को रिवर्ट न किया जाये आगे पदोन्नति में आरक्षण जारी रहेगा या नही इस संबंध में एस.एल.पी में कुछ नही कहा गया। माननीय उच्चतम न्यायालय में पदोन्नति में आरक्षण के संबंध में प्रथम सुनवाई 12 मई 2016 को की जा चुकी है। अगली सुनवाई 23 सितम्बर 2016 को निर्धारित है। म.प्र. शासन की ओर से शासकीय अधिवक्ता श्री मुकुल रोहतगी अटोरनी जनरल आॅफ इण्डिया नियुक्त किये गये।
          8. अन्यः-
अजाक्स प्रतिनिध मण्डल द्वारा उपरोक्त जानकारी प्रस्तुत की गई एवं निम्नलिखित प्रस्ताव पर भी चर्चा हुई।
                 1. अनुसूचित जनजाति अनुसंधान संस्थान (टी.आर.आई) से म.प्र. शासन आरक्षित वर्ग की 2002 से 2016 की समयावधि में समाजिक आर्थिक,षेक्षणिक पिछडे़पन एवं शासकीय सेवा में पर्याप्त प्रतिनिधित्व न होने के संबंध 15 दिवस में रिपार्ट तैयार की करायें।
                  2. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान शासन मुकुल रोहतगी अटोरनी जनरल आॅफ इण्डिया के अलावा श्री वेणु गोपाल, श्री पी.पी. राव, श्री. हरिष सालवें अधिवक्ताओं को नियुक्त करें।
                   3. सुप्रीम कोर्ट में शासन द्वारा प्रकरण कें संबंध में ओ आई सी की नियुक्ति की गई है अजाक्स के प्रस्ताव के आधार पर एक एडीसनल ‘‘ओ आई सी’’ नियुक्त किया जावें।
                   4. विभिन्न विभागों में रिक्त पदो के बैकलाॅग को अतिषीघ्र भरा जावें।
                   5. शासन नवीन पदोन्नति नियम 2016 बनाने की कार्यवाही करें।
                    उपरोक्त जानकारियां 19.06.2016 को माननीय श्री गौरी शंकर सेजवार मंत्री वन म.प्र. शासन को दी गई तथा लगभग 2 से 3 घटे की समयावधि में विस्तृत चर्चा हुई। अगले चरण की चर्चा के संबंध में ‘‘सेजवार कमेंटी’’ द्वारा बाद में बताया जा सकेगा।
                                                                  
           
             श्री एस.एल. सूर्यवंषी
              महासचिव प्रशासन                                    
        म.प्र. (अजाक्स) भोपाल के निदेषानुसार
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दिनांक-20.6.2016
                                                                 एम.सी.अहिरवार
                                                                 सदस्य विधि विधायी सेल
                                                                   म.प्र. अजाक्स भोपाल