गुरुवार, 16 जून 2016

दलित आरक्षण की धूर्तता

दलितों के मिले आरक्षण के बारे में धूर्तो द्वारा फैलाये जा रहा भ्रम -

कई सालो से एक आरक्षण विरोधियो द्वारा एक नया शगूफा छेड़ा जा रहा है की आरक्षण का लाभ केवल कुछ दलित ही ले रहे हैं बाकी के दलित गरीब ही रह गए और उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा है ।आरक्षण की मलाई(?) केवल सम्पन्न दलित ही ले रहा है बाकी के गरीब दलित गरीब ही रह गए और आरक्षण का फायदा उन्हें नहीं हो रहाहै ।वे ऐसा दर्शना चाहते हैं की वे गरीब दलितों के कितने बड़े हितेषी है की गरीब दलित को यह बता रहे हैं की वे गरीब है तो अमीर दलित के कारण ।

दरसल ऐसा अज्ञानता भरा और भ्रमित प्रचार वे धूर्त लोग कर रहे हैं जो सैकड़ो सालो से दलितों के साथ अमानवीय व्यवहार करते रहे हैं और उनका आर्थिक और सामजिक शोषण कर उन्हें फ्री के गुलाम बनाये रखे हुए थे ।

आज जब आरक्षण से दलित मुख्य धारा में आ रहा है और गुलामी की जंजीरे तोड़ शोषकों के समकक्ष आ खड़ा हो रहा है तो शोषक वर्ग बेचैन है की करे तो क्या करें ...जा कल तक उनके गुलाम थे 'जूते साफ़ करते थे'आज उन्ही को सलाम करना पड़ रहा है ।
भारी बेचैनी है ... शोषको में ।

अतः वे नई नई चालो से लोगो को आरक्षण के खिलाफ करते रहते हैं , कभी यह कहते हैं की दलितों को मिला आरक्षण केवल 10 साल के लिए था तो कभी यह कह के लोगो में रोष भरते हैं की आरक्षण गरीबी के आधार पर होना चाहिए और अमीर दलित गरीब दलित का हक़ मार रहा है ।

जबकि दोनों ही बाते निराधार है , दलितों को प्रशासनिक सेवाओ में आरक्षण की कोई समय सीमा नहीं है ।
जंहा तक 10 साल के लिए आरक्षण व्यवस्था की बात है तो वह अनुच्छेद 334 के तहत लोक सभा और विधान सभा में था व्यवस्था की थी ,उसमें भी हर दस साल बाद यदि समीक्षा में रिजल्ट सही नहीं आता तो उसे बढ़ा दिए जाने का प्रवधान है ।
अनुच्छेद 15(4) और 16(4) द्वारा प्रदत्त आरक्षण की कोई समय सीमा नहीं निर्धारित की गई है । अनुच्छेद 16(1) के तहत सरकारी सेवाओं में कमजोर और निर्बल वर्ग के लोगो द्वारा प्रतिनिधित्व की भागीदारी सुनिश्चित की गई है जिसमें कोई न्यायपालिका हस्तक्षेप नहीं करेगी और न ही कोई कानून उसे बाधित करेगा जो की अनुच्छेद 335 द्वारा संरक्षित है ।
अनुच्छेद 15(4) और 16(4) द्वारा प्रदत्त आरक्षण( शैक्षिक, सरकारी सेवाओं) में समय सीमा नहीं है परन्तु धूर्त लोग इसे अनुच्छेद 334 में मिला के भ्रमित करने के लिए प्रचारित करते हैं ।

दूसरी बात, अमीर दलित गरीब दलित का हक़ मार रहा है ।
तो यह भीं धूर्तो की चाल है ताकि स्वयं दलित ही दलित के विरुद्ध हो जाए और आरक्षण ख़त्म करने की मांग करने लगे।
दरसल, दलितों को मिला आरक्षण अमीरी या गरीबी के आधार पर नहीं दिया गया है । इसका अमीरी और गरीबी से कोई लेना देना नहीं है और न ही यह गरीबी मिटाने का ही उपाय है ।
दलितों के मिले आरक्षण को हम ' प्रतिनिधित्व का अधिकार ' कह सकते हैं ।
जैसे की अभी आपने एक चर्चित घटना पढ़ी होगी की उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थ यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर की 84 सीट्स में से 83 सीट्स केवल चौबे, दुबे, उपाध्याय , तिवारी जैसे सरनेम वालो से भर दी गई ।बाकी सभी जातियो को पीछे कर दिया गया।

चुकी दलित जिन्हें आर्थिक ,सामजिक रूप से हासिये पर रखा गया था , उनका हक़ मारा गया था वे समाज की मुख्य धारा से कटे हुए थे ।
अत:संविधान में ऐसी व्यवस्था की गई की जो अछूत और दलित है ,शोषित हैं वंचित हैं उनकी भी भागीदारी मुख्य धारा में हो । समाज के निर्माण में वंचितो की भी समुचित भागीदारी हो ।
इसलिए सरकारी उपक्रमो जैसे  राजनैतिक,प्रशासनिक सेवाओ आदि में उनकी भी भागीदारी सुनिश्चित हो ताकि जब जनकल्याण की योजनाये बनाई जाये तो समाज के हर वर्ग का प्रतिनिधित्व हो ।
दलितों को आर्थिक,सामाजिक रूप से बहुत पीछे रखा गया था , और आज भी शोषक शक्तियां उन्हें आगे नहीं आने देना चाहती है इसलिए संविधान में उनके लिए आरक्षण का प्रवधान किया गया  ।

आरक्षण लेने के लिए भी एक निर्धारित योग्यता होनी चाहिए ऐसा नहीं की सभी को दे दिया जाता है । जो दलित एक बार आरक्षण से नौकरी पा लेते है निश्चित ही उनकी आर्थिक स्थिति और दलितों से बेहतर हो जाती है और वे अपने बच्चे को ठीक से पढ़ा लेते हैं और आरक्षण लेने के काबिल बना लेते हैं ।जबकि एक गरीब दलित अपने बच्चे के लिए ऐसा नहीं कर पता .सरकार गरीब दलित का बच्चा भी आरक्षण का लाभ ले सके इसलिए कई योजनाये चलाती है जैसे वजीफ़ा, कम फीस , कॉपी किताबे आदि ।पर अभी भी निचले स्तर पर भी शोषक शक्तियां अपना वर्चस्व जमाये हुए हैं और वे गरीब दलित बच्चों को उन सुविधाओ का लाभ ही पहुचने देती ।सरकारी स्कूल्स की हालत आप लोग देखते ही है कैसी पढाई होती है वंहा ।चुकी गरीब होने के कारण अधितर दलित के बच्चे सरकारी स्कूल्स में ही पढ़ते है इसलिए सरकारी स्कूल्स का शिक्षा का स्तर गिरा दिया जाता है । अध्यापक पढना ही छोड़ देते हैं , रिजल्ट ख़राब कर देते है ताकि दलित का बच्चा पढ़ के आरक्षण का लाभ न ले सके ।

अब जो दलित थोडा आर्थिक रूप से सही है वे अपने बच्चों को प्राइवेट पढ़ा लेते है , अच्छी शिक्षा दिला के आरक्षण के काबिल बना लेते हैं ।

अभी देखिये इस वर्ष upsc के एग्जाम में अमीर दलित टीना डाबी भी पास हुई और दिल्ली के झोपड़पट्टी में रहने वाला बेहद गरीब दलित  संदीप भी , दोनों ने आरक्षण का लाभ लिया क्यों की दोनों ने परीक्षा पास की ।

अतः इन धूर्तो के बहकावे में मत आइये

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