Er subhash kanesh:
इस देश की दुखद त्रासदी पत्थर का भगवान्....
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वैज्ञानिक सोच और परिवर्तन दुनियां को भले ही चाहे चाँद और मंगल पर ले जा रहा हो पर भारत अब भी धर्म के धूर्तो की गिरफ्त में होकर पाषाण युग में जीने के लिए मजबूर है यहाँ ज़िंदा लोगों की कोई कीमत नही होती पर सबकुछ कर्ता धर्ता पत्थर का भगवान होता है जहाँ लोग न खुद पर न बुद्धि और विवेक पर और न विज्ञान पर भरोसा करते है पर निर्जीव पत्थर पर उन्हें अटूट भरोसा होता है. ठीक है पर अगर ऐसा ही है तो आज किधर गया इनका भगवान्. आज भी करोड़ों साल पहले ख़त्म हुए डायनासोर के जीवाश्म तो मिलते है पर धूर्तों के भगवान् क्यों नही मिलते.भारत के दर्शनीय स्थल हो या सांस्कृतिक स्थान सब जगह विदेसी सैलानियों की भीड़ होती है लेकिन तिरुपतिबालाजी हो या शिरडी का साईं जगन्नाथ हो या वैष्णव यहाँ हमेसा देशी महामूर्खों की ही भीड़ क्यों होती है. विदेशी राजनयिक हो या गैर सरकारी लोग सरकार उन्हें हमेसा ताजमहल या दिल्ली का लाल किला ही क्यों दिखाती है क्यों नही दिखाया जाता काले पत्थर का शनि और चारों धाम..सायद हकीकत इन्हें मालुम है.कि भारत के पत्थर अनंत के भगवान् अपाहिज है जो नेपाल सीमा भी पार नही कर सकते.अगर गलती की तो पूरे विश्व में भी इनके भगवानों का अंतिम संस्कार तय है.
आज भी भारत में दुनियां के बड़े बड़े भगवान् मौजूद है फिर बाहर देशों से संसाधनों की क्यों भीख मांगी जाती है कहाँ गया कुबेर भगवान और लक्ष्मी.सरस्वती तो यही विराजमान है फिर क्यों भेजा जाता है लोगों को विदेशों में डाक्टर इंजीनयर और वैज्ञानिक बनने के लिए.यही पर अन्नपूर्णा खा खा के मलंग हो रही है पर देश की आधी आबादी भूंखों मरने के लिए मोहताज है देश जलसंकट से त्रस्त है फिर कहाँ गया इनका इंद्र. देश अनंत तकलीफों से ग्रस्त है और इनका ठेकेदार समुद्र में शेषनाग पर लेटकर चैन की बंसी बजा रहा है.आतंकवाद देश की बड़ी समस्या है ऐसे काम के लिए क्यों नही बजरंगबली की मदद ली जा रही है जब समूचा पहाड़ उठाकर ला सकते है तो आतंकवादियों को तो चुनचुन कर लाया जा सकता है क्यों आतंकियों को देश के हवाले करने के लिए भीख मांगी जाती है इस काम के लिए सुदर्शन चक्र और अचूक ब्रम्हास्त्र की भी मदद ली जा सकती है किसी को कही जाने की भी जरुरत नही पड़ेगी. कहाँ गई इनकी दुर्गा .देश में नौजवान बेरोजगार है विश्वकर्मा से कह कर क्यों नही फैक्टरियां लगवाई जाती है.देश में आतंकवादी तो गिनती के होंगे पर इनके देवी देवता तो करोड़ों में है किधर गए सायद यह भी मारे डर के पत्थरों में तब्दील हो गए.
दरअसल पत्थर तो पत्थर है भगवान् या ईस्वर नाम का अस्तित्व भी इस समूचे जीव जगत में ही नही है यहाँ जो भी घटित होता है या तो वह क्रतिम है या फिर प्राकृतिक हाँ यह बात अलग है की यहाँ महामूर्ख अंधविश्वासी पाखंडियों की भारी भीड़ है जिसका फ़ायदा कुछ धूर्तों ने उठाकर मूर्खों को और अधिक महामूर्ख बनाकर अपना धंधा चमकाया हुआ है और अपनी कुटिल बुद्धि से ज़िंदा इंसानो को मुर्दा और मुर्दा पत्थरों को ज़िंदा बनाने में अभूतपूर्व सफलता पायी है पर एक बात जरूर कहना चाहूँगा कि जिस पत्थर पर नाक रगड़कर अपनी आनेवाली पीढ़ियों को जानबूझकर गुलामी और मूर्खता की गहरी खाई में लोग धकेल रहे है उसी पत्थर पर एकबार और जोर से सर पटकना तुम्हे ज़िंदा और मुर्दा का सायद अहसास हो जाएगा.
किसी देश का कल होता है उसके महापुरुष और उसका इतिहास.यहाँ तो महामूर्खों ने इतिहास और महापुरुषों को दफ़न कर आनेवाले कल को पत्थरों में तब्दील किया हुआ है अब और अगले कल की कल्पना करना सायद कठिन नही होगा..
पर बस अब और नही..
दिमाग की बत्ती जलाओ और खुद जान जाओ.और धूर्तों को दूर भगाओ.और अपना आज और कल बचाओ...
मंगलवार, 21 जून 2016
पत्थर के भगवान
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