शनिवार, 9 जून 2012

लब सूख जाते है


जेठ की दुपहरी में .
तेरी याद आते ही ।
जुबाँ स्याह होकर .
 लब सूख जाते है ।
ये तपन का मंजर .
ये लू के दोजख का खौफ ।
राश नही आती ये मोहब्बत.
इन हवाओ को ।
रेतसे मिटाती है .
इन यादों की तस्वीरो को ।
बह जाती यादो को समेटता हूँ ,
समन्दर कि लहरो में।
तस्वीर खो जाती है .,
बाकी रह जाती है
यादें जहन मेँ ।

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