सुबह नींद जल्द ही खुल गई
आँखों के सामने सूरज सी लाल गेंद
अम्मा ने चिल्लाया ,अभी तक सो रहा है
मैंने कहा ,न माँ ,मैं तो लाल गेंद को देख रहा हू
जो मेरी ओर लुढकती आ रही है
जो आसमान पर छा रही है
जिसको वीर हनुमान ने फल समझ खा लिया था
मैं भी पकड़ने की सोच रहा हू
उस पर सैर करने की सोच रहा हू
अम्मा ने कहा ये तो चंदा मामा का भाई है
मैं बड़े अचरज मे पड़ गया
मास्टर जी ने कहा था की
ये तो एक तारा है
जो आकाश गंगा मे विचरण करता है
फिर अम्मा ने बोला -बेटा
ये तो सूरज है
जो सुबह पूरब से निकलता है
शाम को पश्चिम मे अस्त हो जाता है
इस बार दिमाग चकराया
फिर मैंने सोचा की मास्टरजी ने ये क्या बतलाया
सूरज नही पृथ्वी अपने अक्ष पर घुमती है
जिस कारण सूरज उदय होने और अस्त
होने का भ्रम होता है
जिस कारण सूरज उदय होने और अस्त
होने का भ्रम होता है
पृथ्वी को ग्रह कहते है
मास्टर जी ने एक और गोली दाग दी
बोले चंदा मामा सूरज का भाई नही
ये तो पृथ्वी का उपग्रह है
जाने मन मे, मैं क्या बडबडा रहा था
इधर अम्मा का हिसाब गड़बड़ा रहा था
पीछे से चिल्लाती अम्मा डंडा लेकर आई
बोली तू सपने बहुत देखता है
मैं उछल के चारपाई के बाहर खड़ा बोला
न अम्मा ,न अम्मा अब सपने नही देखूंगा
अब कभी चंदा मामा और सूरज को नही कोसुंगा
*****नरेन्द्र *******
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें