शुक्रवार, 29 जून 2012

छत्तीसमार खां


एक समय की बात है ,रतनगढ़ राज्य के जगतपुर गांव मे मनसुख नाम का एक व्यक्ति रहता था ,वह बहुत ही निठल्ला ,कामचोर था !
एक
बार उसके दोस्त राम लाल के बीच एक शर्त लगी की कौन एक बार मे कितने लोगो को मार सकता है ,,इस पर दोनों के बीच मे मख्खियों को मारने की शर्त लगी ,,,रामलाल ने एक बार मे एक ही मख्खी मार पाया ,,,मनसुख ने अपने हाथों मे गुड़ का लेप लगा कर रखा ,कुछ ही देर मे उसमे बहुत सी मख्खियाँ लिपट गई ,और उसमे छत्तीस मख्खियों ने दम तोड़ दिया ,,,तब से उसका नाम छत्तीसमार खां पड़ गया ,,,अब कोई भी काम पड़ता तो लोग छत्तीसमार खां को ही याद करते !
एक
बार रतनगढ़ मे एक शेर आदमखोर हो गया था ,उसे पकड़ने के लिए राजा ने मुनादी भी पिटवा दी थी ,फिर भी कोई उसे मार या पकड़ पाया था ,,उसी समय छत्तीसमार खां का गधा भी गुम था ,वह उसे कई रोज से तलाश कर रहा था ,पर वह मिला नही ,,उसकी पत्नी रेवती ,गदहा मिलने की वजह से खासा नाराज थी ,,उसने चांदनी रात मे ही गधा ढूँढने छत्तीसमार खां को भेजा दिया ,पास के इलाके तलास करता हुआ गया तो उसे चांदनी रात मे पीपल के पेड़ के नीचे गदहे जैसा कुछ बैठा दिखा ,वह फुर्ती के साथ दौड कर उसकी पीठ पर जा बैठा और उसके सिर के बाल और कान पकड़ कर घर ले आया और घर के बाहर एक मजबूत रस्सी से बांध दिया ,अंदर जाकर सो गया ,,,
सुबह
होते ही बाहर काफी शोर शराबा मचा हुआ था की छत्तीसमार खां ने शेर पकड लाया ,शेर पकड़ लाया ,,लोग उसको अंदर जाकर बता रहे थे ,,पर वह कह रहा था की वह तो गदहे को ले कर आया है ,लोगो ने कहा की चलो बाहर चल कर देखो ,,,वह बाहर आया और उसने देखा की रस्सी से तो शेर बंधा हुआ है ,देखते ही उसके होश उड़ गए ,
यह
खबर राजा तक पहुंची ,दरबारी लोग आए और छत्तीसमार खां को राजा के पास ले गए ,वह काफी डरा हुआ था की राजा उसके साथ क्या करेंगे ,,पर उसे तो वहाँ पर काफी इनाम दिया गया और वापस भेज दिया ,अब छत्तीसमार खां के दिन अच्छे गुजर रहे थे !
काफी
समय बाद राज्य मे एक हाथी पागल हो गया था ,वह कई लोगो की जान ले चुका था ,,उसे पकडने  के कई प्रयास किये गए ,पर सब असफल थे ,संकट की इस घड़ी मे छत्तीसमार खां को याद किया गया ,,कुछ दरबारी उसके घर पहुंचे ,,और बताए की तुम्हें उस पागल हाथी को पकड़ना है ,,कल से काम पर लग जाओ ,,अब छत्तीसमार खां के मन मे डर समा गया था की वह क्या करे ,वह तो कुछ भी नही मार सकता था ,,उसकी पत्नी रेवती भी काफी चिंतित थी पर अब करे क्या ,यह तो राजा का आदेश था जिसे पूरा करना ही था ,भले ही जान चली जाए ,,
दूसरे
दिन तैयार हुआ और पत्नी को रोटी बनाने के लिए बोला ,तो पत्नी ने सोचा की अब इसे हाथी मार ही डालेगा ,,इनको चीर डालेगा ,पैरों से कुचल डालेगा ,,,,,,,,,तो उसने रोटी मे जहर मिला दिया की  की इतनी खतरनाक मौत से अच्छा है की वो अब आराम से मर तो सकेंगे ,खाना देकर उसे विदा किया !
छत्तीस
मार खां एक लोटा-रस्सी और अपनी पत्नी की बनाई रोटियाँ लेकर जंगल मे भटकने लगा ,,अब दोपहर को काफी धूप भी हो चली थी ,अब उसे भूख-प्यास भी लग आई थी ,वह पानी की तलास मे था ,,तभी उसे एक पीपल के पेड़ के नीचे कुआँ दिखा ,वह गया और छाया मे बैठकर आराम किया और लोटे-रस्सी से पानी भरा ,तब वह रोटी खाने की तैयारी करने लगा ,,वह कौर ( निवाला ) तोड़ कर मुहँ मे ही डालने के लिए हाथ उठाया ,उतने मे ही उसने देखा की सामने की ओर से एक हाथी चिंघ्घाडते  हुए उसकी ओर रहा था ,उसने रोटी वही छोड़ी और दौड कर पीपल मे चढ गया ,हाथी आया और उस रोटी को खा गया ,रोटी मे जहर होने के कारण कुछ ही मिनट मे हाथी वहीँ ढेर हो गया ,कुछ ही देर मे राजा के दरबारी आए ,, हाथी को मरा देखा ,,जब उनकी नजर पीपल के पेड़ के ऊपर गई तो देखा की छत्तीसमार खां बैठा हुआ है ,उन्होंने कहा की छत्तीसमार खां नीचे आ जाओ हाथी मर चुका है ,,वह नीचे आया और हाथी को तीन- चार लाते और मारी ,,कहा की बहुत परेशान कर रखा था इस हाथी ने ,,चलो उठा ले चलो इसे ,,,,,इससे छत्तीसमार खां को बहुत सारी दौलत मिली और राजा का चहेता बन गया इस तरह उसके दिन खुशहाल गुजर रहे थे ,,,,,,
काफी
दिनों बाद किसी पडोसी राजा ने रतनगढ़ राज्य मे आक्रमण कर दिया ,जिससे पूरा राज्य परेशान हो गया दुश्मन राजा को हराने की कोई तरकीब नही सूझ रही थी ,ऐसे मे छत्तीसमार खां को याद किया गया ,,क्यों की सबको पता था की छत्तीसमार खां एक बार मे छत्तीस जीवो को मार सकता था ,छत्तीसमार खां को बुलवाया गया ,राजा के सामने पेश किया गया ,राजा ने सारी घटना बताई और बोला की अस्तबल जाओ और अपने लिए जो घोडा चाहिए उसे ले लो ,नौकर अस्तबल लेके गए ,छत्तीसमार खां जब अस्तबल पहुचें तो देखा की एक से एक अरबी घोड़े थे ,,पर वह तो कोई सबसे कमजोर घोड़े की तलाश मे था ,जो की युद्ध मे सबसे पीछे रहे ,और जान भी बच जाएगी ,,,काफी तलाश के बाद उसने एक सबसे कमजोर कानी घोड़ी का चयन किया की ये ठीक रहेगी मेरे लिए ,,,पर छत्तीसमार खां को ये नही मालूम था की ये एक करिश्माई घोड़ी है ,वह लेके चला गया और सुबह युद्ध की तैयारी शुरू हुई ,,,
राजा
अपनी पलटन के साथ चल दिया ,छत्तीसमार खां भी साथ मे चल दिया ,पर वह धीरे-धीरे चल रहा था ,इस तरह वह पीछे ही होता जा रहा था ,वह कमजोर ,लंगडी ,व कानी घोड़ी को लेकर पीछे ही था ,,सभी कहते की छत्तीसमार खां  आगे आओ ,तो वह कहता की हा रहा हू ,,,,दोनों सेनाए आमने-सामने थी और युद्ध शुरू हो गया था ,पर छत्तीसमार खां पीछे ही था ,सभी आवाज दे कर बुला रहे थे ,अचानक अपनी घोड़ी की एक चाबुक मारा ,जिससे घोड़ी तो अब फर्राटा दौड़ने लगी अब वह रोकने से भी नही रुक रही थी ,घोड़ी हवा से बाते कर रही थी ,अब वह सभी पेड़-पौधों को उखाड़ती हुई ,दुश्मन सेना को कुचलने लगी ,लगभग आधे घंटे तक यह करिश्मा चलता रहा ,दुश्मन सेना मे भय व्याप्त हो गया ,उनके हौसले पस्त हो गए ,वे मैदान छोड़ने लगे ,,डर कर भागने लगे ,अब पूरी सेना मे हौसला गया था ,सभी ने मिल कर दुश्मन को खदेड़ दिया ,,और सभी खुशी-खुशी वापस आए ,
राजा
ने छत्तीसमार खां को एक बहुत ही बड़ी जागीर दे दी ,वह अब आराम से अपना जीवन व्यतीत करने लगा ,,अब छत्तीसमार खां नही ,अब वह जागीरदार बन गया था

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