शुक्रवार, 31 जुलाई 2015

आरक्षण

������आरक्षण और भारत के मूलनिवासी बहुजन����������
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भारत के मूलनिवासियो को अभी तक समझ में नहीं आया है कि आरक्षण क्या है।
   आरक्षण तीन प्रकार का है:
   1=शिक्षा का आरक्षण
    2=नौकरी (सर्विस) का     आरक्षण
     3= राजनीतिक आरक्षण
        गोलमेज सम्मेलन लन्दन में हुए जिसमे बाबा साहब आंबेडकर ने अछूतों की लड़ाई लड़ते हुये जिस अधिकार को हासिल किया था उसे  कम्युनल अवार्ड के नाम से जाना जाता है ।
इसमें 4 अधिकार प्रमुख थे
   (A) पृथक निर्वाचन क्षेत्र
   (B) दो वार वोट देने का अधिकार
   ( C)वयस्क मताधिकार
   (D)संख्यानुपत में
         प्रतिनिधित्व
          24 सितम्बर 1932 को बाबा साहब अम्बेडकर को गांधीजी और उनके चेले चपाटों ने दबाव बनाकर  षड्यंत्र करके पूना
की यरवदा जेल में एक
समझौता किया जिसे पूना पैक्ट  कहा जाता है।
   इस पैक्ट की बजह से राजनीतिक आरक्षण दिया गया जो की 10 साल बाद समीक्षा में बाद उसको समाप्त किया जा सकता है या आगे बढ़ाया जा सकता है।
   इस पैक्ट का विरोध 25 सितम्बर 1932 से बाबा साहब अम्बेडकर जीवन भर विरोध करते रहे लेकिन ब्राह्मणों ने बगैर किसी चर्चा के प्रत्येक 10 साल बाद उसको बढ़ाते जाते है। क्योकि राजनीतिक आरक्षित सीटो से चुने हुए लोगो को ब्राह्मणों ने Agent बना दिया है agent का हिंदी में मतलब है मध्यस्त और देशी बोली भाषा में मतलब है दलाल और भड़वा ।
वर्तमान में 131 सांसद अनुसूचित जाति/जनजाति
के है 1 भी सांसद  आरक्षण के लिये मुँह नहीं खोलता है क्योकि ब्राह्मणों ने हमारे प्रतिनिध के रूप में चुने हुए सांसदों को गुलाम बनाकर दलाली करने पर मजबूर कर दिया है।
पूना पैक्ट एक बड़ा विषय है इसके बारे अभी इतना ही। सारांश यह है की राजीनितक आरक्षण10साल बाद समाप्त होना या बढ़ना है तो दोनों पार्टिओ के बीच चर्चा होने के बाद निर्णय लिया जाना चाहिए।
2 =नौकरियो में आरक्षण 1942 में बाबा साहब  अम्बेडकर ने दिया जो 8.5% था , उस समय बाबा साहब लेबर मिनिस्टर थे।
3= जब संविधान लिखने का  अवसर मिला तो बाबा साहब अम्बेडकर ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की संख्यानुपात में 21.5%आरक्षण की व्यवस्था नौकरियो और शिक्षा में की जो आज 22.5%है।
     नौकरियो और शिक्षा का आरक्षण का आधार सामाजिक शैक्षणिक पिछड़ापन और अशप्रशयता (untouchability) है।
अछूत लोगो के साथ भेदभाव करते हुए प्रशासन में इनके प्रतिनिधित्व को सुरक्षित करने (safegaurd) के रूप मैं अनुच्छेद 16 को बाबा साहब ने लिखा जो कि मौलिक अधिकार है इसे कोई समाप्त नहीं कर सकता है।
अर्थात आरक्षण प्रतिनिधित्व है रोजगार गारन्टी योजना या गरीबी उन्मूलन जा कार्यक्रम नहीं है।
भारत की अनुसूचित जातियो और अनुसूचित जातियो का प्रतिनिधित्व सुनिशिचत करके  इनका विकास किया जा सकता है।
अनुसूचित जाति के लिए 341 अनुसूचित जनजाति के लिए 342 और अन्य पिछड़े वर्ग के लिए 340 अनुच्छेद लिखे है।
  जब अनुच्छेद 340 के अंतर्गत अन्य पिछड़े वर्ग केलिए बने आयोग (काका कालेलकर आयोग) ने रिपोर्ट सरकार को सौपी तो डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने कहा  आरक्षण  ब्राह्मणों के लिए डेथ वारंट(death warnt) है और रिपोर्ट को कचरे के डिब्बे में डाल दिया।
वाद में जनता पार्टी के सरकार  ने दवाब में आकर मण्डल कमीशन गठित किया जो की लागु ना हो इसके लिये इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की कुर्वानी ब्राह्मणों ने दी ।
   यही नहीं मंडल को रोकने के लिये बाबरी मस्जिद कांड किया।
   भारत के मूल निवासियो के शासन प्रशासन में प्रतिधिनित्व को रोकने के लिए निरन्तर षड्यंत्र किये जा रहे है। पोस्ट ज्यादा लम्बा हो गया है  अभी और कई जानकारी देना बाकी है।
सारांश=
आरक्षण वह अधिकार है जिसके माध्यम से ब्राह्मणों द्वारा निर्मित क्रमिक असमानता की व्यवस्था जो मनु समृति पर आधारित है समाप्त हो सकती है । ब्राह्मण अपने वर्चस्व को बचाने के लिए कुछ भी कर सकते है।क्योकि आरक्षण गुलाम मूलनिवासियो के लिए शासक बनने का अधिकार है।
हमारे पास विकल्प क्या है।।   समाज को सही जानकारी देकर जाग्रत करना और फिर संगठित करके शक्ति जा निर्माण करना।
निर्मित शक्ति जा उचित समय ओअर समुचित उपयोग करके व्यवस्था व्यवस्था परिवर्तन करना।
और फिर समस्याएं हमारी और समाधान भी हमारा।
जय मूलनिवासी।
(ड़ॉ राजेश राष्ट्रीय महासचिव इंडियन मेडिकल प्रोफेशनल एसोसियशन)

बुधवार, 29 जुलाई 2015

चरित्र

गाँव में एक किसान रहता था जो दूध से दही और मक्खन बनाकर बेचने का काम करता था।
एक दिन बीवी ने उसे मक्खन तैयार करके
दिया वो उसे बेचने के लिए अपने गाँव से शहर
की तरफ रवाना हुवा।वो मक्खन गोल पेढ़ो की
शक्ल मे बना हुवा था और हर पेढ़े का वज़न एक
kg था।शहर मे किसान ने उस मक्खन को हमेशा
की तरह एक दुकानदार को बेच दिया,और दुकान
दार से चायपत्ती, चीनी, तेल और साबुन व वगैरहा खरीदकर वापस अपने गाँव को रवाना हो गया।
किसान के जाने के बाद, दुकानदार ने मक्खन
को फ्रिज़र मे रखना शुरू किया, उसे खयाल आया
के क्यूँ ना एक पेढ़े का वज़न किया जाए, वज़न
करने पर पेढ़ा सिर्फ 900 gm. का निकला, हैरत
और निराशा से उसने सारे पेढ़े तोल डाले मगर
किसान के लाए हुए सभी पेढ़े 900-900 gm.के
ही निकले।अगले हफ्ते फिर किसान हमेशा की
तरह मक्खन लेकर जैसे ही दुकानदार की दहलीज़
पर चढ़ा, दुकानदार ने किसान से चिल्लाते हुए कहा,
के वो दफा हो जाए, किसी बे-ईमान और धोकेबाज़ शख्श से कारोबार करना उसे गवारा नही।
900 gm.मक्खन को पूरा एक kg.कहकर बेचने वाले
शख्स की वो शक्ल भी देखना गवारा नही करता....।.
किसान ने बड़ी ही विनम्रता से दुकानदार से कहा
"मेरे भाई मुझसे बद-ज़न ना हो
हम तो गरीब और बेचारे लोग है,
हमारी माल तोलने के लिए बाट (वज़न) खरीदने की हैसियत कहाँ"
आपसे जो एक किलो चीनी लेकर जाता हूँ
उसी को तराज़ू के एक
पलड़े मे रखकर दूसरे पलड़े मे
उतने ही वज़न का मक्खन तोलकर ले आता हूँ।
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इस कहानी को पढ़ने के बाद आप क्या महसूस करते हैं, किसी पर उंगली उठाने से पहले क्या हमें अपने गिरहबान मे झांक कर देखने की ज़रूरत नही?

कहीं ये खराबी हमारे अंदर ही तो मौजूद नही?

■चरित्र सुधारने से आत्मा बलवान हो जाती है ........

कठिन नही है शुद्ध हिंदी-भाग-21

कठिन नहीं है शुद्ध हिन्दी - 21० ० ०पूर्ण व्यंजन के स्थान पर अर्ध व्यंजन को नहीं लिखा जाना चाहिए, लेकिन कई बार उनतीस को उन्तीस, ग़लत को गल्त, कृपया को कृप्या, उनतालीस को उन्तालीस, चरमोत्कर्ष को चर्मोत्कर्ष लिखा मिल जाता है। इसमें सबसे ज़्यादा प्रचलित कृपया को कृप्या लिखा या बोला जाना है। शुद्ध रूप कृपया है। पूर्णता से पूर्णतया, सामान्यता से सामान्यतया आदि शब्द बनते हैं। इसी प्रकार कृपा से कृपया बना है। इसके रूप को समझने के लिए संस्कृत व्याकरण में जाना पड़ेगा। यहाँ इतना कहना काफ़ी होगा कि स्त्रीलिंग आकारान्त शब्द के इस रूप में अंत का आकार या में बदल जाता है। जैसे श्रद्धा शब्द के अंत में आ है और यह स्त्रीलिंग है, इसलिए श्रद्धा का आ या से विस्थापित होगा और श्रद्धया बन जाएगा। महोदय से महोदया इस आधार पर नहीं बनता, यह ध्यान रखें।परकार (फ़ारसी का शब्द, ज्यामितिक उपकरण) और प्रकार दो भिन्न शब्द हैं; इसलिए प्रकार के स्थान पर परकार नहीं लिखा जा सकता। स्वास्थ्य को स्वास्थय या स्वस्थ्य, ज्योत्स्ना को ज्योत्सना, उज्ज्वल को उज्जवल, परमाणु को प्रमाणु लिखना और बोलना ग़लत है। इनके शुद्ध रूप का ध्यान रखना ज़रूरी है क्योंकि इन शब्दों में ग़लती सामान्य रूप से देखी जाती है।शर्मा को शरमा नहीं लिखा जा सकता, क्योंकि शब्दों के अर्थ में ही थोड़ी असावधानी अंतर ला देती है।अब हम शब्दों में य को लिखे जाने और न लिखे जाने पर विचार करेंगे। गृहस्थ, केन्द्रीकरण, सदृश, मूलतः, कृतकृत्य, अंतर्धान को क्रमशः गृहस्थ्य, केन्द्रीयकरण, सदृश्य, मूलतयः, अंतर्ध्यान, कृत्यकृत्य लिखना ग़लत है। अंतर्धान का अर्थ लुप्त हो जाना है और अंतर्ध्यानी का अर्थ आत्मा का ध्यान करने वाला है।मानवीय, उद्देश्य, कवयित्री, अंत्याक्षरी, सामर्थ्य आदि को मानवी, उद्देश, कवित्री, अंताक्षरी, सामर्थ नहीं लिखा जा सकता। जहाँ य का प्रयोग होता है, वहाँ उसे छोड़ना और जहाँ नहीं होता, वहाँ शामिल करना दोनोंअनुचित है। मान और लक्ष में य लगाने से मान्य और लक्ष्य बन जाते हैं, जो भिन्न अर्थ देते हैं। उपलक्ष्य या परिप्रेक्ष्य को उपलक्ष या परिप्रेक्ष लिखना या बोलना उचित नहीं है। वयस्क को प्रायः व्यस्क लिख दिया जाता है। वयस्क शुद्ध रूप है, यह ध्यान रखा जाना चाहिए।य के स्थान पर इ को लेकर भी भ्रम की स्थिति बनी रहती है। साइंस, फाइनल, राइटर, साइकिल, लाइसेंस, आइंदा आदि को सायंस, फायनल, रायटर, सायकिल, लायसेंस, आयंदा नहीं लिखा जाना चाहिए। पटना के प्रसिद्ध साइंस कॉलेज के द्वार पर सायंस कॉलेज लिखा है। इन शब्दों में इ के स्थान पर य को अंग्रेज़ी या हिन्दी के किसी नियम के आधार पर सही नहीं कहा जा सकता।हिन्दी में कई बार अक्षर एक दूसरे को विस्थापित कर देते हैं। चिह्न, ब्रह्म, आह्लाद, मध्याह्न, ब्राह्मण,जिह्वा आदि शब्दों में संयुक्ताक्षर के दोनों अक्षरों ने अपने स्थान की अदला बदली कर नया रूप ग्रहणकर लिया है, लेकिन इनका पुराना रूप भी प्रचलित है। इससे उच्चारण सरल बना है। चिह्न को चिन्ह लिखना या बोलना दोनों अपेक्षाकृत आसान है। इसी प्रकार ब्रह्म ब्रम्ह, आह्लाद आल्हाद, मध्याह्न मध्यान्ह, ब्राह्मण ब्राम्हण, जिह्वा जिव्हा में बदल गए हैं। आह्वान, पूर्वाह्न, अपराह्न आदि शब्द उच्चारण की दृष्टि से थोड़े जटिल वाले माने जा सकते हैं। आह्वान के लिए आवाहन शब्द भी मौजूद है।० ० ०जारी...

कठिन नही है शुद्ध हिंदी -भाग-20

कठिन नहीं है शुद्ध हिन्दी - 20० ० ०श, ष और स पर कुछ और बातें करते हैं। बार बार लोग पूछतेहैं कि इनमें किनका प्रयोग कहाँ कर सकते हैं। यह स्पष्ट नहीं है और न ही कोई गणित का सूत्र भाषा में इसतरह का होता है कि मात्र रट्टा लगा जाने से सारा काम चल जाए। ष के लिए कुछ नियम हैं, जिन्हें हमने पिछले भाग में देखा है। स और श के लिए कुछ ऐसे नियम खोजे जा सकते हैं, जो अधिकांश स्थितियों में सही ठहरते हैं।यदि स और श एक साथ आते हों, तो श पहले और स बाद में होताहै, जैसे प्रशंसा, शासन, शस्य, नृशंस, अनुशंसा, अनुशासन,शस्त्र, शास्त्री आदि। सं, स और सु उपसर्ग से जुड़े शब्द होने पर यह नियम अपनी सीमा प्रदर्शित करने लगता है। उदाहरण के लिए संशय, सश्रम, सशक्त, सशरीर, सशंकित, सशस्त्र, सुशील, सुश्री, सुशांत, संशोधन, संश्रय, संश्लेषण आदि शब्द उपसर्गों के कारण पहले श, फिर स के स्थान पर पहले स, फिर श के नियम का पालन करते हैं।अंग्रेज़ी के जिन शब्दों में शन (tion या ssion) प्रत्यय रहता है, उनमें शन के स्थान पर सन नहीं लिखा जाना चाहिए। सेशन, कमीशन, एडमिशन, ट्रांसमिशन, मिशन, स्टेशन, एक्शन, फ़ैशन, जंक्शन आदि इसके उदाहरण हैं।स्ट, स्ट्री, क्स, नेस, एंस, आंस आदि से समाप्त होने वाले अंग्रेज़ी शब्दों में स होता है, जैसे फास्ट, लास्ट, हिस्ट्री, केमिस्ट्री, फ़िक्स, साइबरनेटिक्स, पॉलिटिक्स, टैक्स, डांस, चांस, एडवांस, लेंस, इंट्रेंस, डिफ़ेंस आदि में।च के पहले स का नहीं, श का प्रयोग होता है, जैसे निश्चय,पश्चिम आदि। स्च और ष्च कहीं नहीं मिलते।फ़ारसी के आइश या आयश और इश से समाप्त होने वाले शब्दों में अंत में श होता है, स नहीं, जैसे गुंजाइश, पैदाइश, आज़माइश, ख्वाहिश, कोशिश, तपिश, लरज़िश, कशिश, जुंबिश, गुंजायश, पैदायश, पेचिश आदि। अंग्रेज़ी के भी स्टाइलिश, स्पेनिश, इंग्लिश आदि में स नहीं लिखकर श लिखा जाता है।साज़, आस, सा आदि प्रत्ययों वाले शब्दों में प्रायः स होता है, श नहीं, जैसे घड़ीसाज़, रंगसाज़, मिठास, प्यास, खटास, उजास, जिज्ञासा, पिपासा, मीमांसा आदि।शः प्रत्यय वाले शब्दों में सः नहीं लगा सकते। क्रमशः, अक्षरशः, शब्दशः, कोटिशः आदि इसके उदाहरण हैं।श और ष जब एक साथ आते हैं, तब श पहले और ष बाद में आता है, जैसे शोषण, शेष, विशेष, शुष्क, विशेष्य, शिष्य आदि।स और ष के साथ रहने पर स पहले और ष बाद में आता है, जैसेसुषमा, सुषुप्त, सुषुम्ना आदि।कोष-कोश, केशर-केसर, कौशल्या-कौशल्या, केसरी-केशरी, वशिष्ठ-वसिष्ठ आदि शब्द दोनों रूपों में सही माने जाते हैं। विकास और कैलास प्रायः ग़लत लिखे जाते हैं। विकाश और कैलाश लिखना ठीक नहीं माना जा सकता। वैसे विकाश शब्द अर्थहीन नहीं है, उसक अर्थ है रौशनी, प्रकाश।तत्सम शब्दों का श प्रायः स में बदल जाता है, जैसे शाकसे साग, शूकर से सूअर, श्वसुर से ससुर, श्यामल से साँवला आदि।कष्टम, कश्टम, पोश्ट, पोष्ट, रजिष्टर, रजिश्टर आदि शब्द ग़लत हैं और नहीं लिखे जाने चाहिए। अंग्रेज़ी के शब्दों में टवर्ग के पहले ष का नियम काम नहीं करता। कस्टम, पोस्ट, रजिस्टर आदि शुद्ध हैं, इन्हें इसतरह ही लिखना चाहिए।सोचनीय और अमावश्या के शुद्ध रूप शोचनीय, अमावस्या हैं।अंग्रेज़ी के शब्द श् से शुरू नहीं होते, स् से हो सकते हैं। हाँ, श से शुरू हो सकते हैं, जैसे शर्ट, शूट आदि। सब-इंस्पक्टर जैसे सब उपसर्ग वाले शब्दों में सहै, श नहीं।केश का अर्थ बाल है, तो केस का का मुकदमा, बक्स। इसी तरह साला का अर्थ पत्नी का भाई है, तो शाला का स्कूल या विशेष स्थान। हिन्दी में दोष, संतोष, परितोष, आशुतोष, कोष जैसे तत्सम शब्द हैं, जो ष वाले हैं, तो कोस, ठोस, बोस जैसे स वाले शब्द भी हैं और अरबी फ़ारसी के होश, आगोश, खामोश, जोश, सरफ़रोश जैसे श वाले शब्द भी हैं। इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि श, ष और स का प्रयोग भी सावधानीपूर्वक करना चाहिए।एक सज्जन ने तीन प्रकार के स के कारण अंग्रेज़ी को ही सरल मानने की बात कही है। S, ss, sc, si, ce, io, sh, cc, c आदि अनेक शब्दांश अंग्रेज़ी में स और श के लिए हैं; जैसे Sea, lesson, nation, accept, except, shirt, since, science, scene आदि में। अंग्रेज़ी में शर्ट और स्काईमें एक ही स नहीं है।० ० ०जारी...

कठिन नही है शुद्ध हिंदी -भाग-20

कठिन नहीं है शुद्ध हिन्दी - 20० ० ०श, ष और स पर कुछ और बातें करते हैं। बार बार लोग पूछतेहैं कि इनमें किनका प्रयोग कहाँ कर सकते हैं। यह स्पष्ट नहीं है और न ही कोई गणित का सूत्र भाषा में इसतरह का होता है कि मात्र रट्टा लगा जाने से सारा काम चल जाए। ष के लिए कुछ नियम हैं, जिन्हें हमने पिछले भाग में देखा है। स और श के लिए कुछ ऐसे नियम खोजे जा सकते हैं, जो अधिकांश स्थितियों में सही ठहरते हैं।यदि स और श एक साथ आते हों, तो श पहले और स बाद में होताहै, जैसे प्रशंसा, शासन, शस्य, नृशंस, अनुशंसा, अनुशासन,शस्त्र, शास्त्री आदि। सं, स और सु उपसर्ग से जुड़े शब्द होने पर यह नियम अपनी सीमा प्रदर्शित करने लगता है। उदाहरण के लिए संशय, सश्रम, सशक्त, सशरीर, सशंकित, सशस्त्र, सुशील, सुश्री, सुशांत, संशोधन, संश्रय, संश्लेषण आदि शब्द उपसर्गों के कारण पहले श, फिर स के स्थान पर पहले स, फिर श के नियम का पालन करते हैं।अंग्रेज़ी के जिन शब्दों में शन (tion या ssion) प्रत्यय रहता है, उनमें शन के स्थान पर सन नहीं लिखा जाना चाहिए। सेशन, कमीशन, एडमिशन, ट्रांसमिशन, मिशन, स्टेशन, एक्शन, फ़ैशन, जंक्शन आदि इसके उदाहरण हैं।स्ट, स्ट्री, क्स, नेस, एंस, आंस आदि से समाप्त होने वाले अंग्रेज़ी शब्दों में स होता है, जैसे फास्ट, लास्ट, हिस्ट्री, केमिस्ट्री, फ़िक्स, साइबरनेटिक्स, पॉलिटिक्स, टैक्स, डांस, चांस, एडवांस, लेंस, इंट्रेंस, डिफ़ेंस आदि में।च के पहले स का नहीं, श का प्रयोग होता है, जैसे निश्चय,पश्चिम आदि। स्च और ष्च कहीं नहीं मिलते।फ़ारसी के आइश या आयश और इश से समाप्त होने वाले शब्दों में अंत में श होता है, स नहीं, जैसे गुंजाइश, पैदाइश, आज़माइश, ख्वाहिश, कोशिश, तपिश, लरज़िश, कशिश, जुंबिश, गुंजायश, पैदायश, पेचिश आदि। अंग्रेज़ी के भी स्टाइलिश, स्पेनिश, इंग्लिश आदि में स नहीं लिखकर श लिखा जाता है।साज़, आस, सा आदि प्रत्ययों वाले शब्दों में प्रायः स होता है, श नहीं, जैसे घड़ीसाज़, रंगसाज़, मिठास, प्यास, खटास, उजास, जिज्ञासा, पिपासा, मीमांसा आदि।शः प्रत्यय वाले शब्दों में सः नहीं लगा सकते। क्रमशः, अक्षरशः, शब्दशः, कोटिशः आदि इसके उदाहरण हैं।श और ष जब एक साथ आते हैं, तब श पहले और ष बाद में आता है, जैसे शोषण, शेष, विशेष, शुष्क, विशेष्य, शिष्य आदि।स और ष के साथ रहने पर स पहले और ष बाद में आता है, जैसेसुषमा, सुषुप्त, सुषुम्ना आदि।कोष-कोश, केशर-केसर, कौशल्या-कौशल्या, केसरी-केशरी, वशिष्ठ-वसिष्ठ आदि शब्द दोनों रूपों में सही माने जाते हैं। विकास और कैलास प्रायः ग़लत लिखे जाते हैं। विकाश और कैलाश लिखना ठीक नहीं माना जा सकता। वैसे विकाश शब्द अर्थहीन नहीं है, उसक अर्थ है रौशनी, प्रकाश।तत्सम शब्दों का श प्रायः स में बदल जाता है, जैसे शाकसे साग, शूकर से सूअर, श्वसुर से ससुर, श्यामल से साँवला आदि।कष्टम, कश्टम, पोश्ट, पोष्ट, रजिष्टर, रजिश्टर आदि शब्द ग़लत हैं और नहीं लिखे जाने चाहिए। अंग्रेज़ी के शब्दों में टवर्ग के पहले ष का नियम काम नहीं करता। कस्टम, पोस्ट, रजिस्टर आदि शुद्ध हैं, इन्हें इसतरह ही लिखना चाहिए।सोचनीय और अमावश्या के शुद्ध रूप शोचनीय, अमावस्या हैं।अंग्रेज़ी के शब्द श् से शुरू नहीं होते, स् से हो सकते हैं। हाँ, श से शुरू हो सकते हैं, जैसे शर्ट, शूट आदि। सब-इंस्पक्टर जैसे सब उपसर्ग वाले शब्दों में सहै, श नहीं।केश का अर्थ बाल है, तो केस का का मुकदमा, बक्स। इसी तरह साला का अर्थ पत्नी का भाई है, तो शाला का स्कूल या विशेष स्थान। हिन्दी में दोष, संतोष, परितोष, आशुतोष, कोष जैसे तत्सम शब्द हैं, जो ष वाले हैं, तो कोस, ठोस, बोस जैसे स वाले शब्द भी हैं और अरबी फ़ारसी के होश, आगोश, खामोश, जोश, सरफ़रोश जैसे श वाले शब्द भी हैं। इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि श, ष और स का प्रयोग भी सावधानीपूर्वक करना चाहिए।एक सज्जन ने तीन प्रकार के स के कारण अंग्रेज़ी को ही सरल मानने की बात कही है। S, ss, sc, si, ce, io, sh, cc, c आदि अनेक शब्दांश अंग्रेज़ी में स और श के लिए हैं; जैसे Sea, lesson, nation, accept, except, shirt, since, science, scene आदि में। अंग्रेज़ी में शर्ट और स्काईमें एक ही स नहीं है।० ० ०जारी...

रविवार, 19 जुलाई 2015

कठिन नही है शुद्ध हिंदी-भाग-19

कठिन नहीं है शुद्ध हिन्दी - 19० ० ०क के स्थान पर ख और ख के स्थान पर क लिखना या बोलना भी एक मामूली ग़लती है। धोखा को धोका कहना इसी का एक उदाहरण है।य को ज कहने की परंपरा भोजपुरी आदि लोकभाषाओं में देखने को मिलती है। यज्ञ, कार्यक्रम, कार्य को जग या जग्य, कार्जक्रम, कार्ज लोकभाषाओं में भले कह लें लेकिन हिन्दी में ऐसा नहीं किया जाना चाहिए।व और ब का आपसी उलटफेर भी प्रायः देखने को मिलता है। नबाव, बातावरण, बिख्यात, ब्याकरण, ब्रत, बिद्वान, बिकट, बिधि आदि शब्दों के शुद्ध रूप नवाब, वातावरण, विख्यात,व्याकरण, व्रत, विद्वान, विकट, विधि आदि हैं। हम बिहार में प्रायः व को ब बोलते हुए सुन सकते हैं, जैसे विज्ञान को बिग्यान या बिज्ञान, विकास को बिकास कहा जाता है। बीबी और बीवी दोनों रूप चलन में हैं। ब के स्थान पर व भी ग़लत है, जैसे बल्ब को बल्व, बिहार (राज्य) को विहार, बिखरना को विखरना, दबाव को दवाब नहीं कहा जा सकता। वि उपसर्ग वाले शब्द में बि नहीं हो सकता, जैसे विगत, विजय, विलय, विनाश आदि को बिगत, बिजय, बिलय, बिनाश नहीं लिख या पढ़ सकते।इसी प्रकार क्ष और छ पर भी ध्यान रखना चाहिए। क्ष के लिए लोकभाषाओं में छ या च्छ भी देखने को मिलता है। क्षमा, क्षत्रिय, दक्ष, पक्ष, शिक्षा, दक्षिण को छमा, छत्री, दच्छ, पच्छ, शिच्छा, दच्छिन नहीं लिखना चाहिए।ष और ण पर संस्कृत के षत्व विधान और णत्व विधान की सहायता लेकर कुछ समझते हैं, क्योंकि ण और ष संस्कृत यानी तत्सम शब्दों में ही हो सकते हैं। मुख्य रूप से दो नियम ण के लिए हैं, 1) ऋ, र् या ष् के बाद सीधे न हो, तो न का ण हो जाता है और 2) दो शब्दखंडों में पहले खंड में कहीं भी ऋ, र या ष हो, तो अगले खंड का न ण में बदल जाता है।कुछ शब्दों पर विचार करते हैं:1) ऋण, तृण आदि में ऋ के बाद न के स्थान पर ण हुआ।2) कृष्ण, तृष्णा, उष्ण, तीक्ष्ण आदि में ष् के बाद न का ण हो गया।3) भरण, चरण, कारण, आचरण, वरण, संवरण, रण, मरण, स्मरण, विस्मरण आदि में र के बाद न के स्थान पर ण हुआ।4) भूषण, भाषन, आभूषण, वृषण, दूषण, प्रदूषण, प्रेषण आदि में ष के बाद ण हुआ।5) रामायण में पहले खंड राम में र है और इसमें दूसरा खंड अयन मिला, तो न ण में बदल गया और रामायण बन गया। प्रमाण (प्र+मान), परिणाम (परि+णाम), प्रयाण (प्र+याण), अग्रणी ( अग्र+नी), नारायण (नार+अयन), शूर्पणखा (शूर्प+नखा), अक्षौहिणी (अक्ष+ऊहिनी), निर्वाण (निर्+वान), परिमाण (परि+मान), परिणय (परि+नय), प्रणेता (प्र+नेता), प्रणय (प्र+नय), प्रणाम(प्र+नाम) आदि शब्दों में दूसरे खंड का न ण में बदलता है।6) शत्रुघ्न और आचार्यानी जैसे कुछ अपवाद भी हैं।कुछ शब्द, जिनमें ण होगा, न नहीं - गुण, कल्याण, गण, गणेश, पुण्य, वाणी, प्राण, अन्वेषण, ग्रहण, प्रदूषण, अनुसरण, प्रसारण, विसरण, वितरण, आक्रमण, वर्णन, विश्लेषण, सम्प्रेषण, निराकरण, श्रवण, रुग्ण, टिप्पणी,षण्मुख आदि।अंग्रेज़ी के शब्दों हॉर्न, रन, टॉर्न आदि; अरबी और फ़ारसी के शब्दों रहनुमा, रज़्मनामा, रूमान आदि के लिए ऊपर के नियम नहीं हैं। ये नियम संस्कृत शब्दों केलिए हैं।अब हम ष पर विचार करते हैं। यदि अकार और आकार को छोड़कर किसी स्वर के बाद स् हो, तो स् ष् में बदल जाता है। अभिषेक में अभि और सेक मिले हैं, सेक का स में बदलकर षेक हो जाता है। निषिद्ध (नि+सिद्ध), विषम (वि+सम), निषंग (नि+संग), सुषुप्ति(सु+सुप्ति), निष्णात (नि+स्नात), सुषेण (सु+सेन) आदि शब्द इसके लिए देखे जा सकते हैं।निः उपसर्ग के बाद यदि क, प, फ आते हैं, तो निः का निष् हो जाता है, जैसे निष्कपट, निष्कर्ष, निष्कलंक, निष्कर्षण, निष्प्राण, निष्पक्ष, निष्पादन, निष्फल आदि में।दुः के साथ भी यही बात होती है, जैसे दुष्कर, दुष्कर्म,दुष्ग्राह्य, दुष्प्रभाव आदि में।टवर्ग के किसी भी अक्षर के पहले स या श नहीं होता, ष होता है। अनिष्ट, इष्ट, राष्ट्रीय, निष्ठा, दुष्ट, कृष्ण, तुष्टि, पुष्टि, संतुष्टि, भ्रष्ट, भ्रष्टाचार,शिष्ट, आदि इसके उदाहरण हैं। ड और ढ वाले शब्द संस्कृत में ऐसे हैं ही नहीं, जिनमें ष्ड या ष्ढ हो।भाषा, परिभाषा, मनुष्य, संतोष, विशेष, पुष्प, आशुतोष, पुरुष, मस्तिष्क, विषाद, विषाणु, घोषणा, मनीषा आदि ष वाले कुछ शब्द हैं।ऋ, र्, र आदि के बाद भी श या स नहीं आते, ष आता है, जैसे ऋषि, आर्ष, शीर्ष, शीर्षक, हर्ष, उत्कर्ष, वर्ष आदि।ष और ण मूर्धन्य वर्ण हैं, इसी कारण मूर्धन्य वर्णों (ट, ठ, ड, ढ, ऋ, ऋृ, र) के पहले आने वाले स या न को बदल डालते हैं।अर्श, पर्स, कुर्सी, फास्ट, कास्ट, मॉर्निंग, बर्न, लर्नजैसे विदेशज शब्दों के लिए णत्व और षत्व के नियम लागूनहीं हैं।हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि एक ही उच्चारण स्थान के वर्ण साथ आने की प्रवृत्ति रखते हैं। संस्कृत शब्दों में श्ट, स्च, स्ट, श्त, ष्च, ष्त के नहीं होने का यही कारण है। मूर्धन्य वर्ण ष तालव्य यादन्त्य वर्णों के साथ नहीं है, दन्त्य वर्ण स तालव्य या मूर्धन्य वर्णों के साथ नहीं है और इसी प्रकार तालव्य वर्ण श दन्त्य और मूर्धन्य वर्णों के साथ नहीं है। यही बात काफ़ी हद तक न और ण के लिए भी है।० ० ०जारी...