शनिवार, 4 जुलाई 2015

कठिन नहीं है शुद्ध हिंदी-भाग-15

कठिन नहीं है शुद्ध हिन्दी - 15० ० ०इस बार फिर से हम अरबी और फ़ारसी के शब्दों पर चर्चा करेंगे। पहले नुक़्ते के प्रयोग को लेकर कुछ प्रत्ययों और उपसर्गों की तरफ़ चलते हैं। प्रत्यय वैसे शब्दांश हैं, जो शब्द के अंत में लगकर अर्थ परिवर्तन करते हैं, जैसे ता, त्व, कारी आदि। इन्हें परसर्ग भी कहते हैं। इनपर विस्तृत चर्चा बाद में होगी। यहाँ हम उर्दू के उन प्रत्ययों को ही देखेंगे, जो नुक़्ते के प्रयोग से जुड़े हैं या फिर जिनमें बिना नुक़्ते के क याग आते हैं।1) नाक प्रत्यय वाले शब्दों में क़ नहीं है, जैसे दर्दनाक, ख़तरनाक, खौफ़नाक आदि।2) कार प्रत्यय वाले शब्द जैसे जानकार, पेशकार, पच्चीकार आदि में भी कार में क़ नहीं है। यह हिन्दी संस्कृत के कार प्रत्यय से अलग है।3) गर या गरी वाले शब्द, जैसे जादूगर, जादूगरी, बाज़ीगर, बाज़ीगरी, सौदागर आदि में ग़ का प्रयोग नहीं होता।4) गी वाले शब्द, जैसे दिल्लगी, बंदगी, सादगी, आवारगी, मौजूदगी आदि में ग़ नहीं है।ख़ाना, ख़ोर, ज़ाद, ज़नी, बाज़, बाज़ी, साज़ आदि प्रत्यय ख़ या ज़ वाले हैं। ख़ाना से बने शब्द कसाईख़ाना, जेलख़ाना, तोपख़ाना, दवाख़ाना, यतीमख़ाना आदि; ख़ोर वाले शब्द, जैसे आदमख़ोर, घूसख़ोर, चुगलख़ोर, मुफ़्तख़ोर, रिश्वतख़ोर, हरामख़ोर आदि; ज़ाद, ज़ादा, ज़ादी वाले शब्द जैसे आदमज़ाद, शहज़ादा, शहज़ादी; ज़नी वाले शब्द जैसे राहज़नी, आगज़नी; बाज़ और बाज़ी वाले शब्द जैसे दग़ाबाज़, दग़ाबाज़ी, धोखेबाज़, धोखेबाज़ी, चालबाज़, चालबाज़ी, चुहलबाज़ी आदि और साज़ वाले शब्द जैसे रंगसाज़, घड़ीसाज़ आदि में प्रत्यय वाले भाग में नुक़्ते का प्रयोग करना ठीक रहेगा।उपसर्ग या पूर्वसर्ग शब्द के शुरू में लगकर नये अर्थ के शब्द बनाते हैं। नेक (फ़ारसी) से बनने वाले शब्द जैसे नेकदिल, नेकनीयत आदि और कम से बनने वाले शब्द जैसे कम (फ़ारसी) वाले शब्द जैसे कमअक़्ल, कमज़ोर, कमतर, कमनसीबी, कमसिन आदि के कम या नेक में क़ नहीं है। ग़ैर (अरबी) से बनने वाले शब्द जैसे ग़ैरक़ानूनी, ग़ैरज़रूरी, ग़ैरज़िम्मेदार,ग़ैरमौजूदगी, ग़ैरसरकारी, ग़ैरहाज़िर आदि के ग़ैर में ग नहीं, ग़ है। ख़ुश उपसर्ग वाले शब्दों में ख़ है, ख नहीं; उदाहरण के लिए हम ख़ुशख़बरी, ख़ुशगवार, ख़ुशनसीब, ख़ुशहाल, ख़ुशबू आदि को देख सकते हैं।अरबी फ़ारसी के शब्दों में, जिन्हें उर्दू के शब्द कहा जाता है, घ, छ, झ, ट, ठ, ड, ढ, ड़, ढ़, थ, ध, भ आदिवाले शब्द न के बराबर हैं। घर, बेघर जैसे बहुत ही कम शब्द हैं। इसका कारण उर्दू की वर्णमाला है। मुश्किल तो स्वर वर्णों को लेकर होती है, क्योंकि अलिफ (उर्दू वर्णमाला का पहला अक्षर) से ही सारे स्वर वर्णों का काम लिया जाता है। भगतसिंह ने एक लेख में नचिकेता को अनुवादक द्वारा नीच कुतिया समझे जाने का उदाहरण दिया है।यह उर्दू या कहें अरबी की एक जटिल समस्या है। नुक़्ते के कारण उर्दू में अब्बा अजमेर गए को अब्बा आज मर गए भी समझा जा सकता है। स्वरों की कमी के कारण इस भाषा की लिपि ज़्यादा वैज्ञानिक रूप नहीं रखती। हमें इस लिपि या भाषा की कोई विशेष जानकारी नहीं लेकिन वैयाकरणों की बात रखी जा सकती है, यह मानकर हम चल रहे हैं।उर्दू में कई बार उकार, इकार और एकार को अकार में बदलते भी देखा जा सकता है, जैसे एहसान को अहसान, इख़्तियार को अख़्तियार, मुक़ाम को मक़ाम, इक़बाल को एक़बाल, इफ़रात को अफ़रात, उल्फ़त को अल्फ़त पढा या लिखा जाता है। उर्दू में संयुक्ताक्षरों की परंपरा भी समृद्ध नहीं है। संभवतः इसमें संयुक्ताक्षर होते ही नहीं।अगले भाग में हम हिन्दी में आए अंग्रेज़ी के शब्दों में नुक़्ते के प्रयोग पर चर्चा करेंगे।० ० ०जारी...

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