कठिन नहीं है शुद्ध हिन्दी - 19० ० ०क के स्थान पर ख और ख के स्थान पर क लिखना या बोलना भी एक मामूली ग़लती है। धोखा को धोका कहना इसी का एक उदाहरण है।य को ज कहने की परंपरा भोजपुरी आदि लोकभाषाओं में देखने को मिलती है। यज्ञ, कार्यक्रम, कार्य को जग या जग्य, कार्जक्रम, कार्ज लोकभाषाओं में भले कह लें लेकिन हिन्दी में ऐसा नहीं किया जाना चाहिए।व और ब का आपसी उलटफेर भी प्रायः देखने को मिलता है। नबाव, बातावरण, बिख्यात, ब्याकरण, ब्रत, बिद्वान, बिकट, बिधि आदि शब्दों के शुद्ध रूप नवाब, वातावरण, विख्यात,व्याकरण, व्रत, विद्वान, विकट, विधि आदि हैं। हम बिहार में प्रायः व को ब बोलते हुए सुन सकते हैं, जैसे विज्ञान को बिग्यान या बिज्ञान, विकास को बिकास कहा जाता है। बीबी और बीवी दोनों रूप चलन में हैं। ब के स्थान पर व भी ग़लत है, जैसे बल्ब को बल्व, बिहार (राज्य) को विहार, बिखरना को विखरना, दबाव को दवाब नहीं कहा जा सकता। वि उपसर्ग वाले शब्द में बि नहीं हो सकता, जैसे विगत, विजय, विलय, विनाश आदि को बिगत, बिजय, बिलय, बिनाश नहीं लिख या पढ़ सकते।इसी प्रकार क्ष और छ पर भी ध्यान रखना चाहिए। क्ष के लिए लोकभाषाओं में छ या च्छ भी देखने को मिलता है। क्षमा, क्षत्रिय, दक्ष, पक्ष, शिक्षा, दक्षिण को छमा, छत्री, दच्छ, पच्छ, शिच्छा, दच्छिन नहीं लिखना चाहिए।ष और ण पर संस्कृत के षत्व विधान और णत्व विधान की सहायता लेकर कुछ समझते हैं, क्योंकि ण और ष संस्कृत यानी तत्सम शब्दों में ही हो सकते हैं। मुख्य रूप से दो नियम ण के लिए हैं, 1) ऋ, र् या ष् के बाद सीधे न हो, तो न का ण हो जाता है और 2) दो शब्दखंडों में पहले खंड में कहीं भी ऋ, र या ष हो, तो अगले खंड का न ण में बदल जाता है।कुछ शब्दों पर विचार करते हैं:1) ऋण, तृण आदि में ऋ के बाद न के स्थान पर ण हुआ।2) कृष्ण, तृष्णा, उष्ण, तीक्ष्ण आदि में ष् के बाद न का ण हो गया।3) भरण, चरण, कारण, आचरण, वरण, संवरण, रण, मरण, स्मरण, विस्मरण आदि में र के बाद न के स्थान पर ण हुआ।4) भूषण, भाषन, आभूषण, वृषण, दूषण, प्रदूषण, प्रेषण आदि में ष के बाद ण हुआ।5) रामायण में पहले खंड राम में र है और इसमें दूसरा खंड अयन मिला, तो न ण में बदल गया और रामायण बन गया। प्रमाण (प्र+मान), परिणाम (परि+णाम), प्रयाण (प्र+याण), अग्रणी ( अग्र+नी), नारायण (नार+अयन), शूर्पणखा (शूर्प+नखा), अक्षौहिणी (अक्ष+ऊहिनी), निर्वाण (निर्+वान), परिमाण (परि+मान), परिणय (परि+नय), प्रणेता (प्र+नेता), प्रणय (प्र+नय), प्रणाम(प्र+नाम) आदि शब्दों में दूसरे खंड का न ण में बदलता है।6) शत्रुघ्न और आचार्यानी जैसे कुछ अपवाद भी हैं।कुछ शब्द, जिनमें ण होगा, न नहीं - गुण, कल्याण, गण, गणेश, पुण्य, वाणी, प्राण, अन्वेषण, ग्रहण, प्रदूषण, अनुसरण, प्रसारण, विसरण, वितरण, आक्रमण, वर्णन, विश्लेषण, सम्प्रेषण, निराकरण, श्रवण, रुग्ण, टिप्पणी,षण्मुख आदि।अंग्रेज़ी के शब्दों हॉर्न, रन, टॉर्न आदि; अरबी और फ़ारसी के शब्दों रहनुमा, रज़्मनामा, रूमान आदि के लिए ऊपर के नियम नहीं हैं। ये नियम संस्कृत शब्दों केलिए हैं।अब हम ष पर विचार करते हैं। यदि अकार और आकार को छोड़कर किसी स्वर के बाद स् हो, तो स् ष् में बदल जाता है। अभिषेक में अभि और सेक मिले हैं, सेक का स में बदलकर षेक हो जाता है। निषिद्ध (नि+सिद्ध), विषम (वि+सम), निषंग (नि+संग), सुषुप्ति(सु+सुप्ति), निष्णात (नि+स्नात), सुषेण (सु+सेन) आदि शब्द इसके लिए देखे जा सकते हैं।निः उपसर्ग के बाद यदि क, प, फ आते हैं, तो निः का निष् हो जाता है, जैसे निष्कपट, निष्कर्ष, निष्कलंक, निष्कर्षण, निष्प्राण, निष्पक्ष, निष्पादन, निष्फल आदि में।दुः के साथ भी यही बात होती है, जैसे दुष्कर, दुष्कर्म,दुष्ग्राह्य, दुष्प्रभाव आदि में।टवर्ग के किसी भी अक्षर के पहले स या श नहीं होता, ष होता है। अनिष्ट, इष्ट, राष्ट्रीय, निष्ठा, दुष्ट, कृष्ण, तुष्टि, पुष्टि, संतुष्टि, भ्रष्ट, भ्रष्टाचार,शिष्ट, आदि इसके उदाहरण हैं। ड और ढ वाले शब्द संस्कृत में ऐसे हैं ही नहीं, जिनमें ष्ड या ष्ढ हो।भाषा, परिभाषा, मनुष्य, संतोष, विशेष, पुष्प, आशुतोष, पुरुष, मस्तिष्क, विषाद, विषाणु, घोषणा, मनीषा आदि ष वाले कुछ शब्द हैं।ऋ, र्, र आदि के बाद भी श या स नहीं आते, ष आता है, जैसे ऋषि, आर्ष, शीर्ष, शीर्षक, हर्ष, उत्कर्ष, वर्ष आदि।ष और ण मूर्धन्य वर्ण हैं, इसी कारण मूर्धन्य वर्णों (ट, ठ, ड, ढ, ऋ, ऋृ, र) के पहले आने वाले स या न को बदल डालते हैं।अर्श, पर्स, कुर्सी, फास्ट, कास्ट, मॉर्निंग, बर्न, लर्नजैसे विदेशज शब्दों के लिए णत्व और षत्व के नियम लागूनहीं हैं।हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि एक ही उच्चारण स्थान के वर्ण साथ आने की प्रवृत्ति रखते हैं। संस्कृत शब्दों में श्ट, स्च, स्ट, श्त, ष्च, ष्त के नहीं होने का यही कारण है। मूर्धन्य वर्ण ष तालव्य यादन्त्य वर्णों के साथ नहीं है, दन्त्य वर्ण स तालव्य या मूर्धन्य वर्णों के साथ नहीं है और इसी प्रकार तालव्य वर्ण श दन्त्य और मूर्धन्य वर्णों के साथ नहीं है। यही बात काफ़ी हद तक न और ण के लिए भी है।० ० ०जारी...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें