शुक्रवार, 10 जुलाई 2015

कठिन नही है शुद्ध हिंदी -भाग-17

कठिन नहीं है शुद्ध हिन्दी - 17० ० ०आशीष देवराड़ी ने शिरोरेखा पर ध्यान खींचा है। इस भाग में शिरोरेखा के साथ-साथ कुछ और बातें इस चित्र के आधार पर होंगी। इस तरह के चित्र की ज़रूरत तब पड़ती है, जब छपे अक्षरों की जगह लिखे जाने वाले अक्षरों पर बात करनी होती है।चित्र 33 में ड ड़ ङ और ड़ (दुबारा) को दिखाया गया है। फ़ेसबुक पर ड़ की जगह ङ लिखा कई बार देखने को मिलता है। मोबाइल या स्मार्टफ़ोन आदि उपकरणों में ड़ लिखनेकी सुविधा होते हुए भी ङ लिखना कहीं से उचित नहीं माना जा सकता। ख़ास तौर पर बच्चों और शिक्षकों को इसपर ध्यान देना चाहिए कि ड़ में बिन्दी नीचे है और ङ में दायीं ओर। हालाँकि इस पर हम चर्चा कर चुके हैं, लेकिन ड़ की जगह ङ लिखने पर विशेष रूप से ध्यान दिलाना चाहते हैं। मोबाइल में टवर्ग के आख़िर में ड़ होता है और कवर्ग के आख़िर में ङ। स्मार्टफ़ोन आदि में ड के बाद नुक़्ते के लिए दिए गए स्थान से ड़ बना सकते हैं।34वें चित्र में च, थ और य को दिखाया गया है। बहुत सारे लोग च और य एक जैसे लिखते हैं। च में शुरू में एक छोटी सीधी रेखा (-) होती है, जबकि य में ऐसा नहीं होता।य शिरोरेखा को दो बार छूता है, जबकि च एक बार। थ य जैसाही होता है, बस उसमें एक घुंडी या हुक लगाते हैं और यह शिरोरेखा को एक बार स्पर्श करता है। लिखने और छापने के अक्षरों में कुछ अंतर भी दिखते हैं, जैसे थ का हुक वाला भाग छापते समय शिरोरेखा को नहीं छूता लेकिन लिखते समय हम इसमें छूट ले लेते हैं और कभी शिरोरेखा का स्पर्श करने देते हैं, कभी नहीं भी करने देते।35वें चित्र में क और फ दिखाए गए हैं। क को ऐसे नहीं लिखना चाहिए कि फ का भ्रम हो। फ में शिरोरेखा से स्पर्श दो बार होता है और क में एक बार। फ देखने में ऐसा लगता है जैसे कि अंग्रेज़ी वर्णमाला के छोटे यू (u) को लिखकर पाई (।) के साथ एन (n) को दायीं तरफ नीचे लगा दिया गया हो। क में बायीं ओर गोला है जबकि फ में बायीं ओर प दिखता है। यह भी कह सकते हैं कि क और फ क्रमशः व और प के समान ही हैं, जिनमें दायीं ओर एक सी ही मुड़ी हुई रेखा जोड़ते हैं।36वाँ चित्र ण और प के आधे रूप को ठीक रूप में दिखाता है। ण के आधे रूप में शिरोरेखा दो बार स्पर्श करती है,जबकि प के आधे रूप में एक बार। लिखते समय प के आधे रूप में गड़बड़ी होने की संभावना ज़्यादा रहती है, इसलिए ध्यान देकर लिखना चाहिए ताकि दायीं ओर न तो वर्ण शिरोरेखा को स्पर्श करे, न ऊपर की ओर बढ़े।चित्र 37 में व के आधे रूप को दिखाया गया है, जिसमें पहला ठीक नहीं है। दूसरा रूप जो ० की तरह दिखता है, वही ठीक है।38वें चित्र में ब और ष के आधे रूप को देखें। ब और ष में तिरछी रेखा ऊपर से नीचे दायीं ओर जाती है। तिरछी रेखा बायीं ओर नहीं जानी चाहिए। ब और ष क्रमशः व और प की तरह ही हैं, अंतर इतना ही है कि ब और ष में अंदर तिरछी रेखा है, जो व और प में नहीं है।चित्र 39 में बिना शिरोरेखा के डा, ण, पाश, पापा और ण दिखाए गए हैं। शिरोरेखा के बिना इन्हें हम S1 या 51, 01, 4121, 4141 और U1 या UI भी पढ़ सकते हैं। 4 को बिना शिरोरेखा वाले प की तरह, 1 या अंग्रेज़ी अक्षर एल या आई(l या I) को पाई की तरह, 5 या अंग्रेज़ी के S को बिना शिरोरेखा के ड की तरह, अंग्रेज़ी के यू (U) को आधे ण की तरह और 2 को आधे श की तरह लिखना या पढ़ना कोई असामान्य या असंभव बात नहीं है। शिरोरेखा ही इस प्रकार के भ्रम सेे मुक्त करती है। घ और ध, म और भ में शिरोरेखा की भूमिका पर हम पहले ही चर्चा कर चुके हैं।आशीष ने बताया कि कई बार शिरोरेखा की परंपरा को व्यर्थ, लिखने की गति में कमी लाने वाली तथा अनावश्यकसमय और ऊर्जा खर्च करने वाली माना जाता है। कम्प्यूटर और तकनीकी दुनिया में शिरोरेखा लगाने में कोई अतिरिक्त श्रम करना ही नहीं है और रूलिंग कॉपी यापन्ने (जिसमें दो लाइनें हों) में अलग से शिरोरेखा लगाने की ख़ास ज़रूरत भी नहीं है, फिर परेशानी कहाँ है! बस सादे यानी बिना लाइन के पन्ने पर ही तो शिरोरेखा विशेष रूप से लगानी है। इसके प्रयोग से भ्रम की स्थिति समाप्त होती है, तो हमारी समझ में इसकी परंपरा जारी रखने से नुक़सान तो कुछ नहीं दिख रहा।40वाँ चित्र 39वें चित्र को ही स्पष्ट करता है।० ० ०जारी...

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