कठिन नहीं है शुद्ध हिन्दी - 35
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हम कुछ और क्रियारूपों पर चर्चा करेंगे। 'मैं पढ़ता हूँगा (होऊँगा)', 'मैं पढ़ती हूँगी (होऊँगी), 'तुम पढ़ते होगे', 'मैं पढ़ रहा हूँगा (होऊँगा)', 'मैं पढ़ रही हूँगी (होऊँगी)' आदि में क्रियारूपों में बिन्दी पर ध्यान देकर यह समझा जा सकता है कि कहाँ बिन्दी है और कहाँ नहीं। 'तुम' के साथ 'पढ़ेगी' के स्थान पर 'पढ़ोगी' लिखना और बोलना चाहिए। 'तू' के साथ 'पढ़ेगी' होना चाहिए, 'पढोगी' नहीं। बिहार में 'तुम जाएगी' जैसे अशुद्ध प्रयोग भी धड़ल्ले से चल रहे हैं।
एक खास बात यह है कि सम्बोधन के समय बिन्दी नहीं लगती! लिखते और बोलते समय यह ग़लती 100 में 99 बार की जाती है! 'भाइयो और बहनो', 'देवियो और सज्जनो', 'मित्रो!', 'साथियो', 'मेरे दोस्तो', 'प्यारे बच्चो', 'देशवासियो', 'देशप्रेमियो' आदि के स्थान पर 'मेरे प्यारे दोस्तों', 'भाइयों 'और बहनों', 'मित्रों! आज हम सब रहीम को याद कर रहे हैं!' आदि का प्रयोग उचित नहीं है। ध्यान रहे कि सम्बोधन या उद्बोधन में ही बिन्दी नहीं होती, शेष सभी स्थानों पर वचन के अनुसार हो सकती है। आप अगर मोहम्मद रफी का गाया 'कर चले हम फिदा जानोतन साथियो' सुनें, तो वहाँ 'साथियो' स्पष्ट सुनाई देगा', साथियों' नहीं।
चंद्रबिन्दु का बहुवचन से भी सीधा सम्बन्ध है। ने, को आदि के प्रयोग पर चर्चा करने के पहले वचन पर नज़र डालते हैं। संस्कृत में तीन वचन हैं, एकवचन, द्विवचन और बहुवचन! अंग्रेज़ी में टू राम्स या राम्स जैसे प्रयोग पर कोई सोचेगा भी नहीं, लेकिन संस्कृत में (रामौ या रामाः के रूप में) यह सामान्य बात है। संस्कृत में थोड़ी जटिलता संख्या तक के तीन वचनों में मिलने के कारण भी है! हिन्दी संस्कृत की तुलना में सरल ही कही जाएगी! 10 लकारों में एक ही क्रिया के 90 रूप होने पर भी हिन्दी के सभी प्रकार के वाक्य आसानी से संस्कृत में सीधे अनूदित नहीं हो सकते। क्रियारूपों पर भी संस्कृत से हिन्दी सरल है। हिन्दी भोजपुरी या अंग्रेज़ी की ही तरह दो वचनों वाली भाषा है। एकवचन और बहुवचन, वचन के दो प्रकार हैं।
कुछ लोग समझते हैं कि शेर, हंस, बाघ, बिन्दु आदि के बहुवचन शेरें, हंसें, बाघें, बिन्दुएँ आदि होते हैं। छोटी कक्षाओं को पढ़ाने वाले शिक्षकों को ऐसा लिखते हमने देखा है। यह बिलकुल ग़लत है। भोजपुरी में यह बिलकुल स्पष्ट है, जैसे 'एगो आदमी जाता', 'दस गो हाथी बारन सन', 'ढेरे बानर रहेलन सन' आदि में 'आदमी', 'हाथी', 'बानर' शब्द एकवचन की तरह ही हैं, इनके मूल रूप में कोई बदलाव नहीं हुआ है।
'ने', 'को', 'से', 'के लिए', 'में' आदि विभक्ति चिन्ह हैं। इनके लिए अंग्रेज़ी में प्रिपोज़िशन का इस्तेमाल होता है।
बहुवचन दो प्रकार से बनते हैं, पहला विभक्ति चिन्ह रहित और दूसरा विभक्ति चिन्ह सहित। घर, डाकू, गुरु आदि के विभक्ति चिन्ह रहित बहुवचन और एकवचन रूप एक ही हैं। घर बहुवचन और एकवचन दोनों है। विभक्ति चिन्ह होने पर गुरुओं, घरों, शेरों, हंसों, डाकुओं जैसे रूप बनते हैं। 'चार डाकू जा रहे हैं' और 'चार डाकुओं ने मुझे घेर लिया', इन दो वाक्यों में पहली स्थिति में डाकू के बाद कोई विभक्ति चिन्ह नहीं है, जबकि दूसरी स्थिति में 'ने' विभक्ति चिन्ह होने के कारण डाकुओं हुआ।
बालक, नर जैसे अकारांत पुलिंग; ऋषि, मुनि, कवि जैसे इकारांत पुलिंग; भाई, स्वामी, सिपाही जैसे ईकारांत पुलिंग; साधु, बिन्दु, कृपालु जैसे उकारांत पुलिंग; भालू, उल्लू जैसे ऊकारांत पुलिंग के एकवचन और बहुवचन रूप विभक्ति चिन्ह रहित होने पर समान होते हैं।
कर्ता, दाता, राजा, योद्धा, युवा, देवता, आदि आकारांत (आ की मात्रा से समाप्त होने वाले) शब्द भी विभक्ति चिन्ह रहित होने पर दोनों वचनों में समान होते हैं। विभक्ति चिन्ह रहित सम्बन्ध वाचक शब्द जैसे मामा, काका, दादा, चाचा, भैया, नाना आदि के रूप भी दोनों वचनों में समान होते हैं। 'हरि तुम्हारे मामा हैं' में मामा एकवचन है, जबकि 'नारायण और सुशील हमारे मामा हैं' में मामा बहुवचन है। 'किशोर एक वीर योद्धा है' में योद्धा एकवचन है, जबकि 'बड़े-बड़े योद्धा मारे गए हैं' में योद्धा बहुवचन है।
विभक्ति चिन्ह रहित अन्य आकारांत पुलिंग शब्दों के आकार के स्थान पर एकार रखकर बहुवचन बनाते हैं; जैसे दिया से दिए; पैसा से पैसे; बच्चा से बच्चे; गधा से गधे आदि।
फिलहाल हम विभक्ति चिन्ह रहित शब्दों पर ही बात करते हैं। अकारान्त स्त्रीलिंग के अन्त में एँ जोड़कर बहुवचन बनाते हैं, जैसे बात से बातें, किताब से किताबें, रात से रातें, सड़क से सड़कें, बहन से बहनें, आदत से आदतें आदि। इकारान्त स्त्रीलिंग होने पर याँ जोड़कर बहुवचन बनाते हैं, जैसे तिथि से तिथियाँ, विधि से विधियाँ आदि। ईकारान्त स्त्रीलिंग होने पर अन्तिम ईकार को इकार में बदलकर याँ जोड़ते हैं यानी इयाँ जोड़ते हैं, जैसे नदी से नदियाँ, गा
बुधवार, 4 नवंबर 2015
कठिन नही है शुद्ध हिंदी-भाग-35
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