कठिन नहीं है शुद्ध हिन्दी - 36
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बहुत सारे शब्द हमेशा बहुवचन में रहते हैं; जैसे प्राण, दर्शन, आँसू, लोग, अक्षत, होंठ (ओठ), हस्ताक्षर, दस्तख़त, दाम, भाग्य, कयास (संभवतः), हिज्जे, होश, समाचार आदि। 'मेरा प्राण ले लो', 'आपका दर्शन पाकर हम धन्य हो गए', 'तुम्हारा होंठ फट गया', 'आँसू बहता है', 'लोग कहता है' (बिहार में खूब चलता है यह!), 'छात्र का हस्ताक्षर ', 'आपका दस्तख़त नहीं है', 'मेरा होश उड़ गया' जैसे प्रयोग ग़लत हैं। इनमें बहुवचन की जगह एकवचन मान लिया गया है उपरोक्त शब्दों को। 'मेरे प्राण ले लो', 'आपके दर्शन पाकर हम धन्य हो गए', 'आँसू बहते हैं', 'छात्र के हस्ताक्षर, 'आपके दस्तख़त नहीं हैं', 'लोग कहते हैं ', 'होंठ फट गए', 'मेरे भाग्य बड़े अच्छे हैं', 'फलों के दाम बढ़ गए हैं', 'मेरे होश उड़ गए' आदि उदाहरण सही प्रयोग को स्पष्ट करते हैं। बिहार में 'लोग कहेगा' जैसे वाक्य भी चलते हैं, जो एकदम ग़लत हैं।
कुछ शब्द हमेशा एकवचन में रहते हैं; जैसे पानी, प्रत्येक, हर एक, दूध, सामान, समर्थन, जनता आदि। जिसने, उसने, इसने, कोई, जिस, उस, उसमें, वह, उसको, उसे, उससे, उसका, उसकी, इसका, इसकी, इसको, इससे, यह, इसमें, उसके, इसपर, उसपर, जिसपर, जिसका, जिसके, जिसकी, जिसमें, जिससे, किसी, किसका, किसकी, किसके, किससे, किसको, किसमें, किसपर, किसने आदि भी एकवचन के शब्द हैं। 'हो' और 'हों' को क्रियारूपों पर बात करते समय स्पष्ट किया जा चुका है। 'हो' एकवचन में और 'हों' बहुवचन में लगता है। द्रव्यवाचक शब्द (मैटेरियल नाउन) एकवचन में होते हैं। सोना, धन, चाँदी, तेल आदि इसके उदाहरण हैं। यदि द्रव्य के भिन्न-भिन्न प्रकारों का बोध हो, तो कई बार एकवचन की जगह बहुवचन भी होता है; जैसे 'कई प्रकार के लोहे जमशेदपुर में मिलते हैं', 'चमेली, गुलाब, तिल आदि के तेल अच्छे होते हैं' आदि।
खूबी, कमी, सुन्दरता, मित्रता, शत्रुता, जवानी, बचपन, बुढ़ापा, ऊँचाई, पढ़ाई, दौड़, सुस्ती, मिठास, करुणा, दया, लिखावट, बीमारी जैसे भाववाचक शब्द (एब्सट्रैक्ट नाउन) एकवचन में रहते हैं। जहाँ संख्या या प्रकार का बोध होता है, वहाँ ऐसे शब्दों के बहुवचन रूप भी मिलते हैं, जैसे 'कमियाँ', 'विशेषताएँ', 'खूबियाँ' आदि। ध्यान रखें कि 'ऐं' या 'एैं' किसी शब्द के अन्त में नहीं हो सकते और 'एै' हिन्दी में होता ही नहीं। 'मोहब्बतें', 'चाहतें', 'पूजाएँ' जैसे शब्द कहीं से सही नहीं हैं, लेकिन फ़िल्मों में 'मोहब्बतें', 'मेहरबानियाँ' और 'चाहतें' जैसे शब्द चल रहे हैं। इनका प्रयोग बिलकुल नहीं करना चाहिए।
'फुट' के लिए अंग्रेज़ी में बहुवचन 'फीट' है, लेकिन हिन्दी में हम 'फुट' का ही प्रयोग करते हैं। किसी भाषा में शब्द भले विदेशी हों, व्याकरण तो उस भाषा का ही होना चाहिए, जिसमें बात हो रही है। 'मकान', 'कागज', 'सवाल' जैसे शब्दों के बहुवचन फ़ारसी या अरबी में 'मकानात', 'कागजात', 'सवालात' हैं, लेकिन हिन्दी में हम 'मकान' 'कागज' 'सवाल' ही प्रयोग करते हैं। वैसे कागजात जैसे शब्दों का प्रयोग भी हिन्दी में किया जाता रहा है।
ऐसा ही एक अशोभनीय चलन बन गया है हिन्दी में आए अंग्रेज़ी शब्दों में अंग्रेज़ी प्रत्ययों का अंधाधुंध प्रयोग। 'स्कूल्स', 'कॉलेजेज़', 'टीचर्स', 'स्टुडेंट्स' जैसे शब्दों का प्रयोग बिलकुल नहीं करना चाहिए हिन्दी में। क्या अंग्रेज़ी में ऐसा कोई कह सकता है- 'समोसे आर बीइंग इटेन', 'साड़ियाँ आर सोल्ड', 'द टीचर्स मेट ऑल द गुरुओं' आदि! नहीं, तो हिन्दी में अंग्रेज़ी शब्दों के बहुवचन अपने मूल रूप में कैसे रह सकते हैं! हमें 'कम्प्यूटर्स', 'स्कूल्स', 'कॉलेजेज़', 'प्रोफेसर्स' जैसे शब्दों का हिन्दी में प्रयोग नहीं करना चाहिए। हिन्दी में 'स्कूलों', 'प्रोफेसरों', 'कम्प्यूटरों' जैसे शब्द ही लिखे और बोले जाने चाहिए।
पिछले भाग में विभक्ति चिन्हों के बारे में बताया गया था। विभक्ति चिन्ह सहित बहुवचन बनाते समय इकारांत या ईकारान्त शब्दों में अन्त में 'यों' जोड़ते हैं; जैसे मुनि से मुनियों, गली से गलियों, नदी से नदियों, कवि से कवियों, कहानी से कहानियों आदि। यों के पहले ईकार को इकार में बदलने की बात यहाँ भी लागू होती है। उकारान्त, ऊकारान्त और औकारान्त शब्दों में अन्त में 'ओं' जोड़कर बहुवचन बनाते हैं, जैसे साधु से साधुओं, भालू से भालुओं, डाकू से डाकुओं, वस्तु से वस्तुओं, बिन्दु से बिन्दुओं, गौ से गौओं आदि। यहाँ भी अन्त में ऊकार हटाकर उकार बनाने के बाद ओं जोड़ा गया है।
अकारान्त शब्दों में ओं लगाकर बहुवचन बनाते हैं, जैसे छात्र से छात्रों, घर से घरों, बालक से बालकों, किरण से किरणों आदि।
आकारान्त शब्द अगर तत्सम हों, तो ओं लगाकर बहुवचन बनाते हैं, जैसे माता से माताओं, लता से लताओं, पिता से पिताओं आदि। जब आकारान्त शब्द संस्कृत के न हों यानी तत्सम न होकर तद्भव या अन्य प्रकार के हों, तब अन्त में ओ की मात्रा और बिन्दी लगाकर बहुवचन बनाते हैं जैसे लड़का से लड़कों, घोड़ा से घोड़ों, छाता से छातों आदि।
एकारान्त शब्द दूबे से दूबों बनता है। अन्त में आने वाला आ, अ या ए ओं से विस्थापित हो जाता है। बात से बातों, दादा से दादों आदि इसके उदाहरण हैं।
विभक्ति चिन्ह सहित बहुवचनों के कुछ उदाहरण :
माताओं ने, पिताओं को, कारणों की, साँपों में, वेदों पर, डाकुओं से, भाषाओं में, ऋषियों की, छात्रों के लिए, लड़कियों से, तालों में, बातों से, दवाइयों का, कठिनाइयों पर, कविताओं में, किताबों से, मुनियों की, मुखियों पर, नालियों में, क्रांतिकारियों का, बाबुओं से, बाबाओं ने, दुआओं (दुआ से दुए या दुओं नहीं बनता) का आदि।
ध्यान रहे कि बच्चे को बच्चें नहीं लिखा जा सकता। बिन्दी का प्रयोग वहीं किया जा सकता है, जहाँ यह आवश्यक हो।
चाहिए में बिन्दी लगाकर चाहिएँ नहीं बनाया जाता। इसी प्रकार खाइए, जाइए, लीजिए, दीजिए आदि में भी अन्त में बिन्दी नहीं लगाई जाती। चाहिएँ जैसे प्रयोग प्रायः देखने को मिलते हैं। इनपर ध्यान देकर सुधार किया जा सकता है।
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जारी...
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बहुत सारे शब्द हमेशा बहुवचन में रहते हैं; जैसे प्राण, दर्शन, आँसू, लोग, अक्षत, होंठ (ओठ), हस्ताक्षर, दस्तख़त, दाम, भाग्य, कयास (संभवतः), हिज्जे, होश, समाचार आदि। 'मेरा प्राण ले लो', 'आपका दर्शन पाकर हम धन्य हो गए', 'तुम्हारा होंठ फट गया', 'आँसू बहता है', 'लोग कहता है' (बिहार में खूब चलता है यह!), 'छात्र का हस्ताक्षर ', 'आपका दस्तख़त नहीं है', 'मेरा होश उड़ गया' जैसे प्रयोग ग़लत हैं। इनमें बहुवचन की जगह एकवचन मान लिया गया है उपरोक्त शब्दों को। 'मेरे प्राण ले लो', 'आपके दर्शन पाकर हम धन्य हो गए', 'आँसू बहते हैं', 'छात्र के हस्ताक्षर, 'आपके दस्तख़त नहीं हैं', 'लोग कहते हैं ', 'होंठ फट गए', 'मेरे भाग्य बड़े अच्छे हैं', 'फलों के दाम बढ़ गए हैं', 'मेरे होश उड़ गए' आदि उदाहरण सही प्रयोग को स्पष्ट करते हैं। बिहार में 'लोग कहेगा' जैसे वाक्य भी चलते हैं, जो एकदम ग़लत हैं।
कुछ शब्द हमेशा एकवचन में रहते हैं; जैसे पानी, प्रत्येक, हर एक, दूध, सामान, समर्थन, जनता आदि। जिसने, उसने, इसने, कोई, जिस, उस, उसमें, वह, उसको, उसे, उससे, उसका, उसकी, इसका, इसकी, इसको, इससे, यह, इसमें, उसके, इसपर, उसपर, जिसपर, जिसका, जिसके, जिसकी, जिसमें, जिससे, किसी, किसका, किसकी, किसके, किससे, किसको, किसमें, किसपर, किसने आदि भी एकवचन के शब्द हैं। 'हो' और 'हों' को क्रियारूपों पर बात करते समय स्पष्ट किया जा चुका है। 'हो' एकवचन में और 'हों' बहुवचन में लगता है। द्रव्यवाचक शब्द (मैटेरियल नाउन) एकवचन में होते हैं। सोना, धन, चाँदी, तेल आदि इसके उदाहरण हैं। यदि द्रव्य के भिन्न-भिन्न प्रकारों का बोध हो, तो कई बार एकवचन की जगह बहुवचन भी होता है; जैसे 'कई प्रकार के लोहे जमशेदपुर में मिलते हैं', 'चमेली, गुलाब, तिल आदि के तेल अच्छे होते हैं' आदि।
खूबी, कमी, सुन्दरता, मित्रता, शत्रुता, जवानी, बचपन, बुढ़ापा, ऊँचाई, पढ़ाई, दौड़, सुस्ती, मिठास, करुणा, दया, लिखावट, बीमारी जैसे भाववाचक शब्द (एब्सट्रैक्ट नाउन) एकवचन में रहते हैं। जहाँ संख्या या प्रकार का बोध होता है, वहाँ ऐसे शब्दों के बहुवचन रूप भी मिलते हैं, जैसे 'कमियाँ', 'विशेषताएँ', 'खूबियाँ' आदि। ध्यान रखें कि 'ऐं' या 'एैं' किसी शब्द के अन्त में नहीं हो सकते और 'एै' हिन्दी में होता ही नहीं। 'मोहब्बतें', 'चाहतें', 'पूजाएँ' जैसे शब्द कहीं से सही नहीं हैं, लेकिन फ़िल्मों में 'मोहब्बतें', 'मेहरबानियाँ' और 'चाहतें' जैसे शब्द चल रहे हैं। इनका प्रयोग बिलकुल नहीं करना चाहिए।
'फुट' के लिए अंग्रेज़ी में बहुवचन 'फीट' है, लेकिन हिन्दी में हम 'फुट' का ही प्रयोग करते हैं। किसी भाषा में शब्द भले विदेशी हों, व्याकरण तो उस भाषा का ही होना चाहिए, जिसमें बात हो रही है। 'मकान', 'कागज', 'सवाल' जैसे शब्दों के बहुवचन फ़ारसी या अरबी में 'मकानात', 'कागजात', 'सवालात' हैं, लेकिन हिन्दी में हम 'मकान' 'कागज' 'सवाल' ही प्रयोग करते हैं। वैसे कागजात जैसे शब्दों का प्रयोग भी हिन्दी में किया जाता रहा है।
ऐसा ही एक अशोभनीय चलन बन गया है हिन्दी में आए अंग्रेज़ी शब्दों में अंग्रेज़ी प्रत्ययों का अंधाधुंध प्रयोग। 'स्कूल्स', 'कॉलेजेज़', 'टीचर्स', 'स्टुडेंट्स' जैसे शब्दों का प्रयोग बिलकुल नहीं करना चाहिए हिन्दी में। क्या अंग्रेज़ी में ऐसा कोई कह सकता है- 'समोसे आर बीइंग इटेन', 'साड़ियाँ आर सोल्ड', 'द टीचर्स मेट ऑल द गुरुओं' आदि! नहीं, तो हिन्दी में अंग्रेज़ी शब्दों के बहुवचन अपने मूल रूप में कैसे रह सकते हैं! हमें 'कम्प्यूटर्स', 'स्कूल्स', 'कॉलेजेज़', 'प्रोफेसर्स' जैसे शब्दों का हिन्दी में प्रयोग नहीं करना चाहिए। हिन्दी में 'स्कूलों', 'प्रोफेसरों', 'कम्प्यूटरों' जैसे शब्द ही लिखे और बोले जाने चाहिए।
पिछले भाग में विभक्ति चिन्हों के बारे में बताया गया था। विभक्ति चिन्ह सहित बहुवचन बनाते समय इकारांत या ईकारान्त शब्दों में अन्त में 'यों' जोड़ते हैं; जैसे मुनि से मुनियों, गली से गलियों, नदी से नदियों, कवि से कवियों, कहानी से कहानियों आदि। यों के पहले ईकार को इकार में बदलने की बात यहाँ भी लागू होती है। उकारान्त, ऊकारान्त और औकारान्त शब्दों में अन्त में 'ओं' जोड़कर बहुवचन बनाते हैं, जैसे साधु से साधुओं, भालू से भालुओं, डाकू से डाकुओं, वस्तु से वस्तुओं, बिन्दु से बिन्दुओं, गौ से गौओं आदि। यहाँ भी अन्त में ऊकार हटाकर उकार बनाने के बाद ओं जोड़ा गया है।
अकारान्त शब्दों में ओं लगाकर बहुवचन बनाते हैं, जैसे छात्र से छात्रों, घर से घरों, बालक से बालकों, किरण से किरणों आदि।
आकारान्त शब्द अगर तत्सम हों, तो ओं लगाकर बहुवचन बनाते हैं, जैसे माता से माताओं, लता से लताओं, पिता से पिताओं आदि। जब आकारान्त शब्द संस्कृत के न हों यानी तत्सम न होकर तद्भव या अन्य प्रकार के हों, तब अन्त में ओ की मात्रा और बिन्दी लगाकर बहुवचन बनाते हैं जैसे लड़का से लड़कों, घोड़ा से घोड़ों, छाता से छातों आदि।
एकारान्त शब्द दूबे से दूबों बनता है। अन्त में आने वाला आ, अ या ए ओं से विस्थापित हो जाता है। बात से बातों, दादा से दादों आदि इसके उदाहरण हैं।
विभक्ति चिन्ह सहित बहुवचनों के कुछ उदाहरण :
माताओं ने, पिताओं को, कारणों की, साँपों में, वेदों पर, डाकुओं से, भाषाओं में, ऋषियों की, छात्रों के लिए, लड़कियों से, तालों में, बातों से, दवाइयों का, कठिनाइयों पर, कविताओं में, किताबों से, मुनियों की, मुखियों पर, नालियों में, क्रांतिकारियों का, बाबुओं से, बाबाओं ने, दुआओं (दुआ से दुए या दुओं नहीं बनता) का आदि।
ध्यान रहे कि बच्चे को बच्चें नहीं लिखा जा सकता। बिन्दी का प्रयोग वहीं किया जा सकता है, जहाँ यह आवश्यक हो।
चाहिए में बिन्दी लगाकर चाहिएँ नहीं बनाया जाता। इसी प्रकार खाइए, जाइए, लीजिए, दीजिए आदि में भी अन्त में बिन्दी नहीं लगाई जाती। चाहिएँ जैसे प्रयोग प्रायः देखने को मिलते हैं। इनपर ध्यान देकर सुधार किया जा सकता है।
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