कठिन नहीं है शुद्ध हिन्दी - 41
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इस भाग में हम 'का', 'के' और 'की' के प्रयोग पर विस्तार से नज़र डालेंगे। 'की' पर हम पहले विस्तार से चर्चा कर चुके हैं। 'मेरा', 'मेरी', 'मेरे', 'हमारे', 'हमारा', 'हमारी', 'तुम्हारे', 'तुम्हारा', 'तुम्हारी', 'अपना', 'अपनी', 'अपने' आदि के साथ 'उनका', 'उनकी', 'उनके', 'उसका', 'उसकी', उसके', 'आपके', 'आपका', 'आपकी', 'किसका', 'किसकी', 'किसके', 'जिसका', 'जिसकी', 'जिसके', 'जिनके', 'जिनका', 'जिनकी', 'जिनके' आदि के लिए भी वही सारी बातें लागू हो सकती हैं, जिनकी बात हम करने जा रहे हैं।
स्वामित्व के भाव में, जैसे 'देश का राजा', 'सत्यम का घर' आदि; अंग, भाग, हिस्से, टुकड़े आदि के साथ, जैसे 'लड़की के केश', 'दस पन्ने की किताब', 'सुरेन्द्र का हाथ', 'तीन कमरे का मकान' आदि; उत्पत्ति या जन्म के कारक के साथ, जैसे 'मनोहर का पुत्र', 'ईश्वर की सृष्टि', 'आधुनिक भारत के निर्माता' आदि; रचना या कृति के साथ, जैसे 'किताब का लेखक', 'मार्क्स की पूँजी', 'रवि वर्मा के चित्र' आदि; नाते या रिश्ते के भाव में, जैसे 'महिला का पति', 'रामेश्वर की माता', 'चंचल की बुआ' आदि; प्रयोजन या मकसद के साथ, जैसे 'बैठने का कमरा', 'पीने का पानी', 'नहाने की जगह', 'दिये की बत्ती आदि; समय या काल के साथ, जैसे 'एक समय की बात है', 'पाँच हज़ार साल का इतिहास', 'छह महीने का बच्चा', 'चार दिन की चाँदनी', 'पचपन बरस का आदमी' आदि तथा परिमाण या मात्रा के साथ (जैसे 'दो हाथ की लाठी', 'दस बीघे का मैदान', 'कम ऊँचाई की दीवाल' आदि) 'का', 'के' और 'की' का प्रयोग किया जाता है।
किसी गाड़ी, बोझ या सवारी के साथ, जैसे 'कोल्हू के बैल', 'गधे का बोझ', 'ऊँट की सवारी' आदि; गुण, करनी या स्वभाव के साथ, जैसे 'नौकर का विश्वास', 'पढ़ाई का काम', 'मनुष्य की बुराई', 'भरोसे का आदमी' आदि; मोल या क़ीमत के साथ, जैसे 'चार रुपए की कलम', 'दो कौड़ी का आदमी', 'रुपए के सात सेर चावल' आदि; पेशा, सेवा, कर्मचारी, सेना आदि के साथ, जैसे 'भारत की सेना', 'ईश्वर का भक्त', 'हरि का नौकर', 'गाँव का किसान', 'स्कूल का मास्टर' आदि और उपादान (साधन या सामग्री, जिससे कोई चीज़ बनती है; जैसे 'लोहे की कील' में 'लोहा' तथा 'मिट्टी का खिलौना' में 'मिट्टी' उपादान हैं), कारण या मूल के साथ (जैसे 'सब उस दुष्ट के चलते हुआ है', 'राम का किया धरा है यह! ', 'चाँदी की अँगूठी', 'सोने का बिस्कुट', 'लकड़ी का घोड़ा' आदि) भी 'का', 'की' या 'के' का प्रयोग होता है।
'नगर के लोग', 'दूध का कटोरा', 'पानी की नहर', 'जाति का शूद्र', 'जय की ध्वनि', 'आषाढ़ का महीना', 'खजूर का पेड़' आदि भी इन विभक्ति चिन्हों के कुछ प्रयोग दिखाते हैं।
'मूर्ख का मूर्ख ही रहा वह!', 'दूध का दूध', पानी का पानी', 'ज्यों का त्यों', 'जैसे का तैसा', 'जहाँ का तहाँ' आदि में, जिनमें अपरिवर्तित रहने का भाव हो और 'सारा का सारा', 'गाँव के गाँव जल गए', 'शहर के शहर तबाह हो गए!', 'घर का घर' आदि में, जिनमें समस्तता का भाव हो; 'का', 'के' या 'की' का प्रयोग होता है।
कई बात अगर नियमित रूप से होती हो, जैसे 'महीने के महीने तनख्वाह' में तथा दशा बदलने की स्थिति में (जैसे 'कुछ का कुछ', 'राई का पहाड़', 'मंत्री का राजा होना' आदि) भी 'का', 'की' या 'के' का प्रयोग होता है।
क्रियाओं से जुड़े होने पर भी इन विभक्ति चिन्हों का प्रयोग होता है, जैसे 'भगवान् का दिया हुआ', 'कमल का खिलना', 'गाँव की लूट', 'नौकर का भेजा जाना', 'ऊँट की चोरी', 'भूख का मारा', 'चूने की छाप', 'दूध का जला', 'कवि की लिखी हुई पुस्तक', 'डाल का टूटा', 'जेल का भागा हुआ', 'मैं कब की पुकार रही हूँ', 'वह तो कब का आ चुका!', 'घर का बिगड़ा हुआ', 'पहाड़ का चढ़ना', 'गोद का खिलाया लड़का', 'खेत का उपजा हुआ अनाज' आदि।
'आँख का अंधा', 'नाम की भूख', 'बात का पक्का', 'धन की इच्छा', 'जन्म का पागल' आदि में भी हम 'का', 'की' या 'के' का प्रयोग करते हैं।
निश्चय के भाव में, जैसे 'मेरा विचार जाने का नहीं था', 'यह करने का मन नहीं है' आदि और 'तपन के यह कहते ही सब शान्त हो गए', 'मेरे रहते किसी का सामर्थ्य नहीं है' आदि के साथ भी ये सम्बन्ध वाचक विभक्ति चिन्ह ('का', 'की' और 'के') होते हैं।
कई बार इन चिन्हों का प्रयोग करना आवश्यक होता है, फिर भी इन्हें छोड़ दिया जाता है, जो ठीक नहीं माना जा सकता। 'यहाँ हिन्दी प्रयोग आवश्यक है', 'भक्त राम नाम लेकर चल पड़े', 'विशिष्ट व्यक्तियों में निम्नलिखित नाम उल्लेखनीय हैं', 'हिन्दूवादी आंदोलनों से देश सर्वनाश हो रहा है' आदि में आवश्यक होने पर भी इन विभक्ति चिन्हों को छोड़ दिया गया है। इनकी जगह 'यहाँ हिन्दी का प्रयोग आवश्यक है', 'भक्त राम का नाम लेकर चल पड़े', 'विशिष्ट व्यक्तियों में निम्नलिखित के नाम उल्लेखनीय हैं' और 'हिन्दूवादी
रविवार, 29 नवंबर 2015
कठिन नही है शुद्ध हिंदी-भाग-41
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