बुधवार, 25 नवंबर 2015

कठिन नही है शुद्ध हिन्दी - भाग - 40

कठिन नहीं है शुद्ध हिन्दी - 40
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आज एक बार फिर से उच्चारण और भाषा की शुद्धता पर बात करते हैं। ताज़ा विवाद लालू प्रसाद यादव के बेटे के शपथ के दौरान 'अपेक्षित' को 'उपेक्षित' पढ़े जाने को लेकर है। हमारे यहाँ एक फ़ैशन चल पड़ा है हिन्दी को अपनी भाषा मानकर उसपर ध्यान न देने का! जब हजामत बनाने से लेकर चप्पल सीने तक सब कुछ सीखना पड़ता है, तो एक भाषा को लेकर यह रुख़ निस्संदेह चिन्ताजनक है। जो लोग अंग्रेज़ी में एक अक्षर की ग़लती को भारी अपराध मान बैठते हैं, वे हिन्दी में जबरदस्ती अंग्रेज़ी घुसा कर और जो मर्जी हो, वह बोल-लिख कर निश्चिंत रहते हैं।
अब सूचना तकनीक का मज़ा देखिए कि वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ के वक़्त के विडियो से पता लगा लिया गया है कि उन्होंने 'को अक्षुण्ण' को 'का अक्षण्ण' पढ़ा था! हमने भी सुना और इस आरोप को सच पाया। प्रधानमंत्री ने जो पढ़ा था, वह निरर्थक वाक्य था! क्या हम किसी रूसी, चीनी, फ़्रांसीसी, पुर्तगाली, जापानी, इतालवी, स्पेनी, अरबी या जर्मन भाषी प्रधानमंत्री या अन्य जनप्रतिनिधि को इस तरह शपथ लेते या बोलते सुन सकते हैं?
प्रधानमंत्री सहित अन्य नेताओं की भाषागत सुस्ती और लापरवाही पर अब हम विस्तार से नज़र डालते हैं। प्रधानमंत्री द्वारा 'मंदिर' को 'मंदीर' भी कहा गया था। हाल में बिहार में शपथ ग्रहण के वक़्त दो मंत्रियों द्वारा 'सम्यक्' को 'सम्पर्क' और 'संसूचित' को 'संचित' पढ़ा गया! यह बीमारी हम रोज़ कक्षाओं में देखते हैं। छात्र शब्दों को बिना पूरा पढ़े मिलते जुलते शब्द से बदल डालते हैं। यह बीमारी आगे भी रह जाती है और लोग इससे मुक्त नहीं हो पाते, यह एक आम व्यवहार है। हम इसे किसी भी क़ीमत पर सही और चलने लायक़ नहीं मान पाते। कुछ और उदाहरण लेते हैं- 'कृप्या करके', 'कृप्या', 'समाजिक', 'रसायनिक', 'अनाधिकार', 'अपराधिक', '' 'टिपण्णी', 'परिणिति', 'पूज्यनीय', 'श्रृंखला' आदि। ये सारे हमारे पत्रकारों तक द्वारा की जाने वाली रोज़ की ग़लतियाँ हैं।
'कृपा करके', 'कृपया', 'सामाजिक', 'रासायनिक', 'अनधिकार', 'आपराधिक', 'टिप्पणी', 'परिणति', 'पूजनीय', 'शृंखला' आदि सही प्रयोग हैं। यही हाल 'सोच', 'हाथ', 'शत्रुघ्न', 'मेधा', 'विद्युत', 'स्थान', 'श्लोक', 'वैचारिक', विज्ञान', 'कार्यक्रम', 'धराशायी', 'पद्म', ' इच्छा', 'टिप्पणी', 'स्रोत', 'स्वच्छ' आदि के उच्चारण का है। हम इन शब्दों की जगह 'सोंच', 'हाँथ', 'शत्रुध्न', 'मेघा', 'विधुत', 'अस्थान', 'अस्लोक', 'बैचारिक', 'बिज्ञान', 'कार्जक्रम', 'धराशाही', 'पदम', 'इक्छा', 'टिप्पड़ी', 'स्त्रोत', 'स्वक्छ' आदि बोलते हुए बहुत सारे लोगों को देख सकते हैं। ये ग़लतियाँ बहुत प्रतिष्ठित पत्रकारों और विद्वान् माने जाने वाले लोगों के द्वारा होती हुई देखी हैं हमने! जाहिर है, अगर ये लोग भी शपथ लेते, तो निश्चित रूप से ये ग़लतियाँ कर सकते थे! फिर आप उन्हें भी नौवीं या बारहवीं फेल कह सकेंगे? प्रधानमंत्री को भी?
जब अंग्रेज़ी के 'peace' और 'piece' में अन्तर है और वह ध्यान देने लायक है, तो 'सामान', 'समान' और 'सम्मान' पर ध्यान क्यों नहीं दिया जाना चाहिए? एक बार खुद की भी जाँच कर लेनी चाहिए कि कहीं 'अपेक्षा' को 'उपेक्षा' या 'अर्हता' को 'अहर्ता' (भूलवश ही सही) तो नहीं पढ़ रहे!
इनमें से कई ग़लतियों पर हम पहले चर्चा कर चुके हैं और कुछ पर आगे करेंगे। यहाँ हमने वाक्यों पर नहीं, शब्दों पर ही ध्यान दिया है। हमने यहाँ शाब्दिक अशुद्धियों तक ही खुद को सीमित रखा है।
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जारी...

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