रविवार, 2 अगस्त 2015

कठिन नहीं है शुद्ध हिंदी-भाग-22

कठिन नहीं है शुद्ध हिन्दी - 22
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हिन्दी को कठिन कहने वालों का सबसे ज़्यादा वार इकार,ईकार, उकार और ऊकार पर होता है। वैसे तो इनको समझ लेनाचाहिए कि कोई भी भाषा हो, उसके शब्दों और उनकी प्रकृति को समझे बिना काम नहीं चल सकता। यह दलील अंग्रेज़ी के पक्षधर खूब देते हैं, लेकिन उन्हें यह नज़र नहीं आता कि एक एक उच्चारण के लिए आठ दस तरीके सीखे बिना अंग्रेज़ी नहीं जान सकते। इसके प्रमाण के लिए उदाहरण पहले ही दिए जा चुके हैं।हम इकार और ईकार पर कुछ सामान्य नियमों को ध्यान में रख कर काफ़ी हद तक शुद्ध लिख सकते हैं।अति, अधि, अभि, नि, निर्, निस्, चिर, प्रति, परि, वि आदि उपसर्गों से शुरू होने वाले शब्दों में उपसर्ग वाले हिस्से में इकार लगाते हैं, जैसे अतिकाय, अतिक्रमण, अतिरेक, अतिवाद, अतिवृष्टि, अतिशय, अतिरिक्त, अधिकार, अधिग्रहण, अधिनायक, अधिवक्ता, अभिकर्ता, अभिभावक, अभियांत्रिकी, अभिज्ञान, अभिनंदन, अभिनय, अभिनव, अभिनेता, अभिलेख, अभिव्यक्ति, अभिमत, अभिमान, अभिशाप, चिरकाल, चिरपरिचित, चिरनिद्रा, चिरयुवा, चिरप्रतीक्षित, निरंकुश, निरंजन, निरंतर, निर्माता, निरक्षर, निरर्थक, निरस्त, निराशा, निर्दय, निर्दोष, निर्धन, निश्चित, निश्चय, निष्कर्ष निष्क्रिय, निष्कासित, निस्संदेह, निस्संतान, निकाय, निढाल, निबंध, निदेश, नियंत्रण, निवासी, निवारण, नियम, परिकलन, परिवार, परिचय, परिधान, परिपथ, परिभाषा, परिक्रमा, परिमाण, परिणाम, परिमाप, परिवर्तन, परिवहन, परिवेश, परिसर, प्रतिकूल, प्रतियोगिता, प्रतिक्रिया, प्रतिदिन, प्रतिध्वनि, प्रतिनिधि, प्रतिलिपि, प्रतिरोध, प्रतिरक्षा, प्रतिमान, प्रतिबंध, प्रतिबिंब, विकर्ण, विकार, विकृत, विक्रय, विघटन, विचलन, विपरीत, विफल, वियोग, विलग, विसंगति, विवश, विनाश, विवाद, विज्ञान विवेक आदि।जिस शब्द के अत में ई की मात्रा हो, उसके बहुवचन में इकार हो जाता है, जैसे मिठाई से मिठाइयाँ, मिठाइयों; स्त्री से स्त्रियाँ; प्राणी से प्राणियों; दवाई से दवाइयाँ आदि।आइन, इक, इका, इत, इन, इम, इमा, इया, इयल, इल, इष्ठ आदि से समाप्त होने वाले शब्दों में इकार होता है, ईकार नहीं,जैसे चौधराइन, पंडिताइन; ऐतिहासिक, वैज्ञानिक, प्राकृतिक, यौगिक, मानसिक; अध्यापिका, गायिका, याचिका,लेखिका, बालिका; अंकित, आनंदित, पुष्पित, फलित, कथित; धोबिन, पुजारिन, लुहारिन; अंतिम, अंतरिम, स्वर्णिम; कालिमा, लालिमा, गरिमा, महिमा, नीलिमा; धुनिया, रसोइया,बुढ़िया, खटिया, कुतिया, बिटिया, चुहिया, चिड़िया, बंदरिया, डलिया, लुटिया; जटिल, धूमिल, फेनिल, पंकिल, सर्पिल, स्वप्निल, अनिल; मरियल, दढ़ियल, सड़ियल, अड़ियल; वरिष्ठ, कनिष्ठ, बलिष्ठ, गरिष्ठ आदि।सुझाव या प्रार्थना वाले शब्दों लीजिए, कीजिए, पढ़िए, जाइए, खाइए, आइए, बताइए, बनाइए, चाहिए, जाइए आदि के अंत में ईए नहीं होता; बताईए, जाईए आदि ग़लत हैं।अंग्रेज़ी के शब्दों जैसे लाइट, लाइक, माइंड, लाइब्रेरी, लाइन, साइन, फ़ाइन, फ़ाइल, ऑनलाइन, साइट, वेबसाइट, जॉइन, क्लाइंट, टाइट, राइट, राइटर, प्राइम, वाइन, साइज़, साइड आदि में ईकार नहीं होता; लाईन, टाईम, हाईट, साईज़, काईट आदि उचित नहीं हैं।अंग्रेज़ी के शब्दों में इंग है, ईंग नहीं, जैसे किंग, रिंग, सिंगर, किलिंग, रनिंग, फ्लाइंग, बुकिंग, शिपिंग, राइटिंग आदि; शायद ही कुछ शब्द हों, जिनमें ईंग मिले।भईया शब्द ठीक नहीं है, सही रूप भइया है।हिन्दी में ऐसे शब्द कम ही हैं, जिनके अंत में इकार हो,जैसे यति, रति, पति, मति, शक्ति, भक्ति, विरक्ति, आसक्ति,नियुक्ति, मुक्ति, मुनि, मणि, क्रांति, शांति, भ्रांति, चूँकि, हवि, कवि, शुचि, कटि, यदि, गति, संगति, प्रगति, व्याधि, ऊर्मि, कलि, बलि, शशि, हरि, गिरि, रवि आदि। हम देख सकते हैं कि ति से समाप्त होने वाले शब्द ज़्यादाहैं।भोजपुरी में खाईल, जाईल, गईल, कईलख, नईखे आदि के स्थान पर खाइल, जाइल, गइल, कइलख, नइखे आदि होना चाहिए।० ० ०जारी...

चंदन कुमार मिश्र
अशोक कुमार जी, कहीं हिन्दी पर शृंखला देखते देखते आत्महत्या को बाध्य न हो जाएँ..Ashok Kumar
Malicious intention is conversation stopper. If you have read English , never write this type of words.
Vijay Shanker Karahiya
हिंदी अंग्रेजी से भी ज्यादा जरुरी है सर अपने जड़ो अपने साहित्य अपनी संस्कृति अपने समाज से जुड़े रहने के लिए हिंदी जरुरी है। अन्ग्रेजी के साथ साथ इसे भी सिखा ही जा सकताहै। अंग्रेजी को अवश्य सिखा जाय लेकिन हिंदीकी कीमत पर नहीं
Ashok Kumar
Thanks vijay.
संजय कुमार शुक्ला
भाई अशोक कुमार जी, एक काम करते हैं। बच्चों के भविष्य की ख़ातिर एक दिन बाजार चलते हैं बच्चों को भी साथ ले चलेंगे। फिर आप किसी दुकान से अंग्रेजी में कटहल, तोरई, अरबी, पुदीना , लहसुन खरीद कर दिखाना !अगर ये काम सफलतापूर्वक हो गया तो फिर हम आपका कहा मान लेंगा
Vijay Shanker Karahiya
जी सर शर्मिन्दा ना करे मुझे
चंदन कुमार मिश्र
अशोक कुमार साहब, हम नहीं समझते कि अंग्रेज़ी को लेकर हमारी जानकारी इतनी भी कमहै... 2011 में हज़ारों पन्ने पढ़े हैं... हमारे पास पर्याप्त तर्क भी हैं, तथ्य भी... लेकिन आप यह नहीं समझ पाते कि यहाँ की शृंखलासे आपके अंग्रेज़ी ज्ञान या मोह का क्या संबंध है! आप बिलकुल अनावश्यक, अप्रासंगिक और बेकार टिप्पणी देते हैं... भला अंग्रेज़ी व्याकरण की चर्चा में तमिल और रूसी पढ़ना ज़रूरी है कि नहीं, इसकी क्या ज़रूरत है!
चंदन कुमार मिश्र
स ष श वाले भाग पर ... आपका कहना था.... Hindi me3 . In english only one... हमने कहा... S, ss, sc, si, ce, io, sh, cc, c... Sea, lesson, nation, accept, except, shirt, since, science, sceneस के लिए कितने तरीक़े हैं.. शर्ट और स्काई में एक ही स नहीं है.. अंग्रेज़ी में भी ज़रा ग़ौर से देखा करें.Edited·
Ashok Kumar
1. Shuklaji aap bhi kisi rly.stn.tkt.window par jakar lauh path gamini ka yatra patra kah kar ticket mang lijiye to jane. Dhoomradandika prajwalit karna nai agni shalaka pradan kare kahkar machis prapt karle to jane.Edited·Like·Report·10 hours agoAshok KumarMisraji inter tak hindi padhnewale bahut se log hai jo hindi me one page bhi sahi nahi likhe pate hai. Main bhi hajaro sarkari patra padhe hai kewal 10% hi sahi the. Hindi bhashi pradesh me itni galat draftingpar kasht hota hai. Lekin jab bhi english letter maine padha shayad hi kisi me spell mistake raha ho. Rahi s sc etc ki baat to its depends on english pronunciation as decided in English literature and grammer.
चंदन कुमार मिश्र
आपको बिलकुल ग़लत जानकारी है... ट्रेन या स्टेशन आदि को ऐसा कुछ नहीं कहा जाता... यह दुष्प्रचार है... हाँ, इसी उद्देश्य से तो शृंखला शुरू की है कि कुछ तो हो... और हाँ, हमने जो हज़ारों पन्ने पढ़ने की बात की... वह भाषा, हिन्दी, अंग्रेज़ी, अंतरराष्ट्रीय भाषा, वैज्ञानिक तरक्की आदि को लेकर भाषा पर थे... अंग्रेज़ी पर और उसके रूप, प्रचार, सच परकाफी पढा है.
चंदन कुमार मिश्र
तो हिन्दी में भी तीन तरह के स का होना उसकी संरचना के अनुसार है, फिर क्या ज़रूरत है फालतू किस्म के टिप्पणी की कि तीन है... संभव हो तो इंतज़ार करें... हम पूरा व्याकरण दिखा कर कह सकते हैं कि हिन्दी अंग्रेज़ी से सरल है... अंग्रेज़ी जटिल है... इस कारण हम अंग्रेज़ी से नफरत नहीं करते... भारतीय संदर्भ में यह शोषण का हथियार है... लोहिया कोसमझने का प्रयास करें अगर कर सकें तो...
Ashok Kumar
52 is heavier than 26.
चंदन कुमार मिश्र
अंग्रेजी में कर्सिव लेकर 26 × 2 × 2= 104
Vijay Shanker Karahiya
चन्दन जी यह सत्य है कि अंग्रेजी सीखना कई परिस्थितिओ में हिंदी से तुलनात्मक रूप से आसान है यह भी सच्चाई है कि अंग्रेजी सिखने से हिंदी की तुलना में बड़ा प्लेटफोर्म मिल जाता है। लेकिन यह कहा जाय कि सिर्फ अंग्रजी सिखा जाय हिंदी नहीं या सिर्फ हिंदी सिखा जाय अंग्रेजी नहीं तो यह बेमानी होगी। जरुरतयहाँ है दोनों भाषाओं को सिखने की।
Ashok Kumar
I think it is not necessary to include cursiv(104 ) but if you include it then you must think about avdhi braj bhojpuri etc. And about Mr. Lohia I think not necessary .Like·Report·9 hours agoAshok KumarVijay ji mera matlab yahi hai. Hum jaha bhijate hai bahut kuchh English me likha hotahai. Hum hindi virodhi nahi hai. Mere kahne ka tatparya kewal itna hai ki aaj ke yug me English bahut jaroori hai. Mai chennai gaya tha koi bhi n to hindi bolta tha aur n samajhta tha. English se kam chal gaya. NPA Hyderabad me 1 mah raha koi hindi nahi bolta tha. Aap khud samajh sakte hai English n janne par kya pareshani hoti. Misraji ka apna vichar hai lekin ant me mai yahi kahunga hindi khoobjane magar Bin English bahut kuchh soon. Bahas samapt.
Vijay Shanker Karahiya
सर मैं आपको जानता हूँ इसलिए मेरा आपके विचारों से कोई असहमति नहीं है। चन्दन जी अपेक्षाकृत नयी पीढ़ी के है उतने अनुभव नहींहै जितने आपके , आप जो भी कह रहे है उसके पीछे आपका लंबा अनुभव और ज्ञान है चन्दन जी की या हमारी जितनी उम्र है उससे अधिक आपका अनुभव है अनुभव सेवा का अनुभव भ्रमण का अनुभव विविध किस्म के लोगो से मिलने का आदि इसलिए हमारी या चन्दन जी की टिपण्णी आपके अनुभव को स्पर्श भी नहीं कर पाएगी।
Ashok Kumar
Thanks. Nahi nahi chandan ji ka hindi gyan aur vichar uchch koti ka hai. Mai to janboojh kar comments kar raha tha ki mera bhi kuchh hindi gyan viksit ho. Lekin ek baat zaroor fir se kahunga ki jab bhi hindi patra me ashudhhi dekhata hook to dili dukh hota hai. Mai sabhi se anurodh karunga ki hindi shuddh likhe padhe aur bole. Again thanks.
चंदन कुमार मिश्र
आप बुजुर्ग हैं... इसका यह कतई मतलब नहीं कि मनमर्जी व्याख्या कर लें... अवधी, ब्रज, भोजपुरी आदि की बात नहीं करनी चाहिए यहाँ... बात लिपि और अक्षरों पर हो रही है... 52 अक्षरतो हैं ही न अंग्रेज़ी में... अनुभव क्षेत्र के आधार पर होता है... ऐसे भी लोग हैं जो कहते हैं कि हिन्दी से पूरे देश में काम चला है उनका... वेद प्रताप वैदिक तो विदेशों तक की बात करते हैं... जब आई थिंक से लोहिया को नकारा जा सकता है तो भाषा पर बहस की कोई ज़रूरत नहीं... विज्ञान पर बहस होगी तो संबद्ध लोग और सिद्धांत आएंगे ही आएंगे... हम इस सत्य से परिचित हैं कि पूरे देश की साधारणजनता का 5 प्रतिशत हिस्सा भी अंग्रेजी नहीं बोलता... बाकी हमें नहीं लगता कि भाषा पर हम आपसे विमर्श कर पाएंगे... हम नहीं चाहते वरना इस पर कुछ काम भी किया है हमने.... पचास साल साइकिल बनाने का अनुभव भौतिकी के काम नहीं आ सकता...फिर आपसे कह रहे हैं कि हमारे विषय से आपकी अंग्रेज़ी पढने जानने की बात का कोई संबंध ही नहीं है...

Vijay Shanker Karahiya
अब असंगत बात कहने लगे चन्दन जी। भाषा और उसके जानने का महत्व हमेशा रहेगा हम स्वीकारकरे या ना करे
Vijay Shanker Karahiya
काम उसका चल जाता है जो कोई भाषा नहीं जानता एक हमारे जानने वाले की महिला रिश्तेदार रहीबहुत कम पढ़ी लिखी सिर्फ हिंदी लिख पढ़ लेती थी बोलने के नाम पर केवल भोजपुरी वो नीदरलैंड तक अपने बेटे के यहाँ गयी एक जगह यूरोप में फ्लाइट भी चेंज की। जरा बैदिक जी के कैरियर की तुलना किसी अन्य अंग्रेजी के संपादको से करिए तो भ्रम खुल जाएगा। जितना अंग्रेजी वाले को बाहर जाने अवसर मिला होगा जितने उसके व्याख्यान हुए होगे क्या वैदिक के भी हुए होगे ? बिलकुल नहीं हुए होंगे वहांभाषा एक दिवार जरुर आई होगी। अन्ग्रेजी जैसीभाषाओं को जानने से अवसर ज्यादा मिलते
Ashok Kumar
Vijayji today is friendship day .Enjoy it. Leave the controversial argumen
चंदन कुमार मिश्र
वेद प्रताप वैदिक को जानते हैं आप! हाँ, ऐसा कुछ है ही कहाँ जिसपर हम सही जानकारी रखते हैं... दुनिया के 200 से ज़्यादा देशों में इंग्लैंड, अमेरिका, न्यूज़ीलैंड, आस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका, बारबाडोस... इतने ही देशों को दुनिया मानना हमें नहीं जँचता.. 40 से ज़्यादा विकसित देशों में क़रीब 32 33 की भाषा अंग्रेज़ी नहीं है... जर्मनी, फ़्रांस, स्वीडन, रूस, कोरिया, चीन, जापान, नार्वे, स्विट्जरलैंड, इटली, अरब... सब तो गए गुजरे देश हैं... कि अंग्रेज़ी की चाकरी नहीं कर रहे
Vijay Shanker Karahiya
आप ही तो जानते है वैदिक जी को। जो मैंने कहा है उसका भी आकडा तलाशे तब एक निष्कर्ष निकाल पायेगे। इस तरह का कोई भी निष्कर्ष सिर्फ एक दो के आधार पर नही लेना चाहिए। रेंडमली कुछ हिंदी के जानकारों को लीजिये कुछ अंग्रेजी वालो को लीजिये फिर देखिये किसको कितने अवसरमिले।
चंदन कुमार मिश्र
हमें लगा कि बस टिप्पणी कर रहे हैं... अवसर के मिलने भर से सब कुछ सही साबित नहीं हो सकता.. अंग्रेज़ी सरकार में अंग्रेज़ी जानने वाला लाभ तो उठा ही सकता है... ख़ैर...
Vijay Shanker Karahiya
कमाल है चन्दन सारी चर्चा इसी पे हो रही है और इसे ही त्याग दे? यहाँ विषय सरकार का भी नहीं है विषय है मौके यानी अवसर का प्लेटफोर्म किसका बड़ा है तो निःसंदेह इसमें अंग्रेजी आगे हो जाती है। आप किसी भी विषय का अध्ययन के लिए निकालिए जितने पाठ्य सामग्री अंग्रेजी में है उतने हिंदी तो क्याकिसी और भाषा में नहीं है।
पवन सिंह
आप लोगों की बडी बडी बातें सुन कर मुझे यह नही समझ आता कि हमने अपनी सभ्यता,संस्कृति,परिधान के साथ साथ अपनी मातृ भाषा की तिलांजलि दे ही दी है ,राष्ट्रीय खेल पशु पक्षीयों को भी पूर्णतयः विलुप्तता की कगार पर पहुंचा ही दिया है फिर हमारे पास हमारा क्या बचा है?चलो एक कदम फिर बढाते हैं अंग्रेजों की तरफ उन्हे निमंत्रण देते तुम आओ हम पर पुनः राज करो हमें गुलामी से आजादी दे के हमारी मानसिकता को भी गुलाम बना लिया था हम आजाद तोहो चुके लेकिन इतने बुजदिल हो चुके कि हम अपनी मानसिकता और धारणओ के आज भी गुलाम हैं।
संजय कुमार शुक्ला
चर्चा का मूल तत्व हिंदी बनाम अंग्रेजी था ही नहीं। पता नहीं क्यों इस चर्चा को घसीट करलाया गया। जैसे ही हिंदी की बात होती है अंग्रेजी फोबिया के शिकार लोग अपना डर दूर करने के लिए अर्थहीन तर्कों को लेकर आ जाते हैं।जी हाँ, डर है साफ़ साफ़ दीखता है। हिंदी के फैलते डैनों से डर लगता है इन्हें। हिंदी की ऊंची उड़ान डराती है इन्हें। हिंदी के लिए उठती नई जमात से डर लगता है। और सबसे बड़ा डर अपनी डूबती नैया को देखकर लगता है। डरो और फिजूल बहस करो या हिंदी की नई जमात के साथ आ खड़े होओ।दोंनो विकल्प खुले हैं। चुन लीजिये।
पवन सिंह‪#‎संजय‬सर अच्छा लगा आप के अपनी मातृ भाषा के प्रति इस प्रेम व विचारों को सुन कर सन्तोष हुआ कि कोई तो है गुलामी से पूर्णतयः आजाद।

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