अंतर्राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय में अर्थभेद है, लेकिन पहले शब्द का प्रयोग ही अधिक प्रचलित है। हम पहले भी अंतः और अंतर के अर्थ और उसके प्रभाव पर बात कर चुके हैं, इसलिए यहाँ थोड़े शब्दों में कह कर आगे बढ़ते हैं। अंतर दो या अधिक के बीच में होना चाहिए, जबकि अंतः (अंतर्) एक के ही अंदर का अर्थ देता है, जैसेअंतरदेशीय का अर्थ दो या अधिक देशों के बीच से होना चाहिए और अंतर्देशीय का अर्थ एक ही देश के अन्दर होनाचाहिए। वैसे अंतर्देशीय (पत्र के लिए इसका प्रयोग होता था) अब बीते दिनों की बात हो चुका है।हिन्दी में ऐसे कई शब्द (या शब्दखंड) हैं, जो उपसर्ग नहीं हैं, लेकिन उपसर्ग की तरह शब्द बनाते हैं। अंतर्(अंतः) और अंतर भी इसी प्रकार के शब्द हैं। हम अब ऐसे ही कुछ शब्दों पर एक नज़र डालते हैं।अंतः- अपने में, मध्य या भीतर का अर्थ देता है। इससे बने शब्द अंतःकोण, अंतर्गत, अंतर्जातीय, अंतर्निहित, अंतस्तल, अन्तःप्रेरणा आदि हैं।अधः- अधो या अधः का अर्थ नीचे है। अधोलिखित, अधोवस्त्र, अधःपतन आदि इससे बने शब्द हैं।विसर्ग और उपविराम (:) में अंतर समझना ज़रूरी है। 'अधःपतन' में 'अधः' के बाद बिना स्थान छोड़े 'पतन' लिखतेहैं, जबकि 'हिन्दी : एक परिचय' में 'हिन्दी' के बाद स्थान छोड़कर उपविराम (अंग्रेज़ी में कोलोन) लगाते हैं और फिर एक अक्षर का स्थान छोड़ देते हैं। 'अंतःकरण' सही है और 'अंत :करण' या 'अंत: करण' ग़लत है। जिन शब्दों के बीच में विसर्ग आता है, उनमें विसर्ग के बाद बिना खाली स्थान छोड़े अगला वर्ण लिखना और छापना चाहिए। 'अंतः प्रेरणा', 'अधः शयन' आदि को 'अंतःप्रेरणा', 'अधःशयन' लिखना या छापना चाहिए।चिर- यह पुराना, बहुत या देर तक का अर्थ देता है और चिरकाल, चिरनिद्रा, चिरयुवा, चिरपरिचित, चिरंजीवी या चिरजीवी जैसे शब्द बनाता है।तत्- यह उसी या वही का अर्थ देता है। कहीं कहीं यह तन्या तद् में भी बदल जाता है। तत्काल, तत्कालीन, तत्पश्चात्, तद्रूप, तद्भव, तन्मय, तत्पर आदि इससे बनेशब्द हैं।पुनः- फिर के अर्थ का यह शब्द पुनर् या पुनश् में बदलता है। पुनर्विचार, पुनरावृत्ति, पुनरीक्षण, पुनरुत्थान, पुनरुद्धार, पुनर्जन्म, पुनर्जागरण, पुनर्रचना, पुनर्मुद्रण, पुनर्वास, पुनर्विवाह, पुनश्च जैसे शब्द इससे बनते हैं।पूर्व- पहले या पीछे के अर्थ का यह शब्द पूर्वज, पूर्वजन्म, पूर्वानुमान, पूर्वाभ्यास जैसे शब्द बनाता है।बहु- बहुज्ञ, बहुदर्शी, बहुभाषी, बहुपति, बहुमत, बहुमूल्य, बहुविवाह, बहुसंख्यक, बहुरूपिया, बहुपद, बहुभुज, बहुमंज़िला, बहुराष्ट्रीय, बहुउद्देशीय आदि इससे बनते हैं और बहुत या अधिक का अर्थ देते हैं।सत्- सत्कर्म, सत्संग, सच्चरित्र, सज्जन, सद्भावना, सदाचार, सद्गति, सन्मार्ग, सन्निकट जैसे शब्दों को बनाने वाला यह शब्द 'अच्छा' अर्थ देता है। इसके रूप सन् और सद् आदि भी हैं।सह- साथ के अर्थ वाले इस शब्द से सहकर्मी, सहजात, सहभागी, सहपाठी, सहयोग, सहमति, सहानुभूति, सहवास, सहोदर, सहचर आदि बनते हैं। स भी इसी अर्थ का शब्दखंड है, जो सक्रिय, सक्षम, सचेत, सजल, सजातीय, सजीव, सदेह, सपरिवार, सफल, सशस्त्र, सश्रम, सानंद जैसे शब्द बनाता है।स्व- इससे अपना, स्वयं या अपने आप के अर्थ वाले स्वदेश, स्वभाव, स्वराज्य, स्वशासन, स्वरूप, स्वचालित,स्वतंत्र, स्वावलम्बन, स्वेच्छा, स्वाधीनता आदि बनाते हैं।अर्ध (अर्द्ध)- यह आधा का अर्थ देता है और अर्धनिर्मित, अर्धवार्षिक, अर्धवृत्त, अर्द्धांगिनी जैसे शब्द बनाता है।आविः- इससे आविष्कार, आविर्भाव जैसे शब्द बनते हैं औरयह दिखाई पड़ने या बाहर होने का भाव रखता है।तिरः (तिरस्)- दिखाई नहीं पड़ना, परे होना आदि के अर्थवाले इस शब्दखंड से तिरस्कार, तिरोहित, तिरोभाव जैसे शब्द बनते हैं।पुरा- पहले के अर्थ के इस शब्द से पुरातत्त्व, पुरापाषाण, पुरालेख आदि इतिहास से सम्बन्धित शब्द बनते हैं।बहिः (बहिष्)- बाहर के अर्थ वाले बहिष्कार, बहिर्भाग, बहिर्जगत् जैसे शब्द इससे बनते हैं।सर्व- सभी के अर्थ वाले सर्वनाश, सर्वदलीय, सर्वप्रथम, सर्वभक्षी, सर्वाहारी, सर्वमान्य, सर्वशक्तिमान्, सर्वसत्तावाद आदि इससे बनते हैं।महा- अच्छा, बड़ा, महान् आदि का अर्थ रखने वाला यह शब्दखंड महात्मा, महाकवि, महादेश, महानगर, महाद्वीप, महापुरुष, महामहिम, महामंत्री, महारथी, महाराज, महाराष्ट्र, महावीर, महविद्यालय, महाडाकपाल, महाधिवक्ता आदि शब्द बनाता है। महामूर्ख, महामारी जैसे बुरे अर्थ वाले शब्द भी इससे बने हैं।स्वयं- इससे स्वयंसेवक, स्वयंवर स्वयंसिद्ध जैसे शब्द बनते हैं, जो खुद या खुदपसन्द का अर्थ रखते हैं।सूक्ष्म- बहुत छोटा का अर्थ रखने वाला यह शब्द सूक्ष्मजीव, सूक्ष्मदर्शी जैसे शब्द बनाता है।हिमपात, हिमखंड, हिमवृष्टि, हस्तकला, हस्तक्षेप, हस्तगत, हस्तरेखा, स्वर्णकार, स्वर्णपदक, स्वर्णमुद्रा, सुखकर, सुखदायक, सारहीन, सारगर्भित, समाजवाद, समाजशास्त्र, समाजसेवा, समबाहु, समतल, समकोण,समरूप, श्रमजीवी, श्रमदान, शोधकर्ता, शोधग्रंथ, शुभकामना, शुभचिंतक, शीतयुद्ध, शीतनिद्रा, शिक्षाविद्, शिक्षापद्धति, वृत्तचित्र, वृत्तखंड, विश्वकोश, विश्वयुद्ध, विचारधारा, विचारपूर्ण, वायुदाब, वायुमंडल, वायुयान, वनवासी, वनमानुष, वंशवृक्ष, वंशज, लोकसभा, लोकतंत्र, लोकप्रिय, रूपांतर,रूपवती, राष्ट्रवाद, राष्ट्रगान, राजनीति, राजतंत्र, राजमाता, रणनीति, रणभूमि, रणपोत, रंगकर्म, रंगभूमि, योगदान, योगनिद्रा, मेघनाद, मेघनाथ, मानवनिर्मित, मानवशास्त्र, मनमुटाव, मनमौजी, मनपसंद, मनोबल, मनोकामना, मनश्चिकित्सा, मतदान, मतपेटी, भूतकाल, भूतपूर्व, भूकंप, भूविज्ञान, बुद्धिजीवी, बुद्धिमत्ता, परमहंस, परमाणु, पदभार, पदच्युत, न्यायपालिका, न्यायविद्, नामकरण , नामधारी, नवजात, नवयुवती, धर्मगुरु, धर्मपत्नी, द्विखंडित, द्विपद, द्विध्रुवीय, देशद्रोह, देशवासी, देवदूत, देवनागरी, दृष्टिकोण, दृष्टिहीन, दूरगामी, दूरदर्शी, दूरभाष, दीर्घकाल, दीर्घसूत्रता, दिलदार, दिलकश, दिलफेंक, दिनकर, दिनचर्या, दरबान, दरगाह, दरकार, त्रिशंकु, त्रिभुज, तापमान, तापक्रम, जीवकोष, जीवविद्या, जनतंत्र, जनवाद, जनसंहार, चौपाया, चौपहिया, चरित्रहीन,चरित्रवान, चतुष्कोण, चतुर्भुज, गृहत्याग, गृहकार्य, गुणधर्म, गुणगान, गतिविधि, गतिशील, गणतंत्र, गणराज्य, क्षेत्रमिति, क्षेत्रफल, कीटनाशक, कीटाणु, कुलपति, कुलवधू, कार्यक्रम, कार्यकाल, कार्यकारिणी, कामचोर, कामगार, कामधेनु, कामदेव, कर्मचारी, कर्मभूमि, एकाधिक,एकाग्र, आत्मघाती, आत्मज, अग्रज, अग्रलिखित, जलमग्न, जलज, राज्यपाल, राज्यसभा आदि में हिम, हस्त, स्वर्ण, सुख, सार, समाज, सम, श्रम, शोध, शुभ, शीत, शिक्षा, वृत्त, विश्व, विचार, वायु, वन, वंश, लोक, रूप, राष्ट्र, राज, रण, राज्य, योग, मेघ, मानव, मन, मनः (मनश्, मनो) , मत, भूत, भू, बुद्धि, परम, पद, न्याय, नाम, नव, दृष्टि, दूर, दीर्घ, दिल, दिन, दर, त्रि, ताप, जीव, जन, चौ, चरित्र, चतुः (चतुष्या चतुर्), गृह, गुण, गति, क्षेत्र, कीट, कुल, कार्य, कर्म, काम, एक, गण, आत्म, अग्र, जल जैसे शब्द उपसर्गों की तरह ही आए हैं।
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