जाति रे जाति, तू कहां से आई?
लाइव इंडिया डिजिटल|
Jan 30, 2016, 04:51 PM IST
भारत में जाति कहां से आयी? किसकी देन है? बहस बड़ी पुरानी है। और यह बहस भी बड़ी पुरानी है कि आर्य कहां से आये? इतिहास खोदिए, तो जवाब के बजाय विवाद मिलता है। सबके अपने-अपने इतिहास हैं, अपने-अपने तर्क और अपने-अपने साक्ष्य और अपने-अपने लक्ष्य! जैसा लक्ष्य, वैसा इतिहास। लेकिन अब मामला दिलचस्प होता जा रहा है। इतिहास के बजाय विज्ञान इन सवालों के जवाब ढूंढने में लगा है। और वह भी प्रामाणिक, साक्ष्य-सिद्ध, अकाट्य और वैज्ञानिक जवाब। हो सकता है कि अगले कुछ बरसों में ये सारे सवाल और विवाद खत्म हो जायें। वह दिन ज्यादा दूर नहीं।Genomic Study and History of Caste System in Indiaआर्य बनाम द्रविड़, कौन पहले आया?मसलन, आर्य कहां से आये? आज जो भारत है, उसका मूल निवासी या आदिम रहिवासी कौन था। दुनिया भर के इतिहासकारों की बहुत बड़ी टोली कहती है कि द्रविड़ यहां के मूल निवासी थे। आर्य बहुत बाद में बाहर से आ कर बसे। इतिहासकारों की दूसरी छोटी टोली इस अवधारणा को बिलकुल खारिज करती है। वह मानती है कि आर्य यहां के मूल निवासी थे, कहीं बाहर से नहीं आये थे। यह दूसरी थ्योरी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की थ्योरी है। क्यों? इसलिए कि अगर यह साबित हो जाये कि आर्य यहां बाहर से आ कर बसे, तो भारत को हिन्दू राष्ट्र मानने का उसका आधार ध्वस्त हो जाता है!जातीय विभाजन: वर्ण व्यवस्था या मुगलों की देन?इस विवाद को फिलहाल यहीं छोड़ते हैं। अब बात दूसरे सवाल की यानी History of Caste Systemin India। भारत में जाति कहां से आयी और किसकीदेन है? जाति व्यवस्था कब शुरू हुई? एक पक्ष मानता है कि हिन्दू वर्ण-व्यवस्था ने ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र के रूप में मनुष्यों को श्रेष्ठ से हीन तक चार वर्गों में बांटा और यहीं से छुआछूत, जातिगत भेदभाव और शोषण की शुरुआत हुई। और इसके उलट बिलकुल अभी हाल ही में एक दूसरा पक्ष उभरा है। इसके अपने राजनीतिक लक्ष्य और कारण हैं।अब यह बात फैलाने की कोशिश हो रही है कि हिन्दू समाज में तो जाति-व्यवस्था थी ही नहीं। यह तो मुगल शासकों की देन है। हिन्दू समाज को बांटे बिना मुगलों के लिए भारत पर शासन कर पाना आसान नहीं था, इसलिए उन्होंने जाति-व्यवस्था को जन्म दिया। हिन्दू धर्म में आयी जाति-व्यवस्था का दोष मुगलों यानी मुसलमानों पर मढ़ने के पीछे कौन है और इससे वह क्या राजनीतिक फायदा उठाना चाहता है, इसे कौन नहीं जानता!इतिहास की पड़ताल विज्ञान से!आपके पास जैसा चश्मा है, वैसा इतिहास देखिए और जिस रंग की स्याही है, वैसा इतिहास लिखिए। लेकिन विज्ञान किसी रंग पर नहीं चलता। स्पष्ट वैज्ञानिक कसौटियों पर चलता है। वह अब इतिहास को भी प्रयोगशालाओं में परख रहा है, और तय कर रहा है कि इतिहास की उम्र कितनी है, वह सच है या मिथ है, और जैसा कहा या माना जाता है, वह कभी हुआ भी था या नहीं!3 Indian Scientists dig deeper in Genome wide data to find out History of Caste System in Indiaभारतीय विज्ञानियों का जेनॉम अध्ययनभारत में जातियां कैसे बनीं? अभी इसी हफ्ते 25 जनवरी को अमेरिका के प्रतिष्ठित विज्ञान जर्नल 'प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइन्सेज' (Proceedings of the National Academy of Sciences) में एक दिलचस्प वैज्ञानिक अध्ययन आया है। यह अध्य्यन पश्चिम बंगाल के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बॉयोमेडिकल जेनॉमिक्स (National Institute ofBiomedical Genomics) के विज्ञानियों पार्थ पी. मजूमदार (Partha P. Majumdar) अनलआभा बसु (Analabha Basu) और नीता सरकार-रॉय (Neeta Sarkar-Roy) की टीम ने किया है। उन्होंने विभिन्न राज्यों से लिये 18 जाति समूहों के नमूने लेकर भारतीय आबादी के जेनॉमअध्ययन के बाद पाया है कि भारत में जातिगत समाज का जन्म आज से करीब सत्तर पीढ़ियों पहले या 1575 साल पहले हिन्दू गुप्त वंश के साम्राज्य में हुआ और यह काल सन् 319-550 (चौथी से छठी शताब्दी) के बीच चन्द्रगुप्त द्वितीय या कुमारगुप्त प्रथम के समय का मानाजा सकता है। इस अध्ययन (Genomic reconstruction of theभारत में पांच पूर्वज-परम्पराएंइन विज्ञानियों के अनुसार भारत में आबादी कीपांच पूर्वज-परम्पराएं (ancestries) पायी जाती हैं। इनमें से चार मुख्य पूर्वज-परम्पराएं भारत की मुख्य भूमि पर (four majorancestries in mainland India) पायी जाती हैं, जिनमें 'दक्षिण भारतीय पूर्वज-परम्परा' सबसे पुरानी है और सम्भवत: दक्षिण अफ्रीका से सात लाख साल पहले जो पहला दक्षिणी प्रवास हुआ था, ये लोग उसी के फलस्वरूप यहां आ कर बसे थे। इसके बाद उत्तर पश्चिम और उत्तर-पूर्व से 'उत्तर भारतीय पूर्वज-परम्परा' के लोग यहां आकर बसे। इसके अलावा दो और पूर्वज परम्पराएं तिब्बती-बर्मी और ऑस्ट्रो-एशियाटिक भी यहां पायी जाती हैं। अंडमान-निकोबार की एक अलग पूर्वज-परम्परा है।आबादी में कब रुका जीन्स-मिश्रण का सिलसिला?जब तक यहां जाति-व्यवस्था का आगमन नहीं हुआ था, तब तक सभी प्रकार की पूर्वज-परम्पराओं केलोगों के बीच आपस में शारीरिक सम्बन्ध निर्बाध और लगातार होते रहे। यह बात इस जेनॉम अध्ययन से साफ-साफ प्रमाणित होती है कि अंडमान-निकोबार की पूर्वज-परम्परा समूह को छोड़ कर (जिनमें जरावा और ओंगे जातियां आती हैं और जो आज भी बाकी आबादी से पूरी तरह कटे हुए हैं) भारत की मुख्यभूमि (Mainland) पर रहने वाले सभी पूर्वज-परम्परा के विभिन्नसमूहों में काफी लम्बे समय तक एक-दूसरे के जीन्स का मिश्रण होता रहा, क्योंकि विभिन्न समूहों के स्त्री-पुरुषों के बीच सम्बन्धों की सहज स्वीकार्यता थी। लेकिन करीब सोलह सौ साल पहले यह सिलसिला अचानक रुक गया। विज्ञानियों का कहना है कि 'यह वैदिक ब्राह्मणवाद का काल था, जब शक्तिशाली गुप्त वंश के शासन के दौरान हिन्दू धर्मशास्त्रों के आधार पर कड़े नैतिक-सामाजिक नियम बनाये गये और राज्य ने इन्हें लागू किया और इस कारणअपने ही वर्ण या जाति में विवाह की व्यवस्था शुरू हुई।' इसी कारण जीन्स मिश्रण का सिलसिलापहली बार यहां थमता दिखा।दूसरे इलाकों तक कब फैली जाति-व्यवस्था?इन विज्ञानियों का कहना है कि पश्चिम भारत में मराठों में जीन्स-मिश्रण का यह सिलसिला कुछ और आगे तक यानी छठी से आठवीं शती तक चलता पाया जाता है और चालुक्य व राष्ट्रकूट साम्राज्यों की स्थापना के बाद वहां भी यह रुक गया यानी इसी दौरान वहां भी राज्य की सत्ता के कारण जातिगत पहचान को आधार बना कर सामाजिक समूहों का निर्माण हुआ और विवाह इसीआन्तरिक संरचना के तहत किये जाने का चलन शुरू हुआ। इसी कारण एक समूह से दूसरे समूह में जीन्स के मिश्रण का सिलसिला रुक गया। लेकिन पूर्वी भारत में बंगाली ब्राह्मणों और तिब्बती-बर्मी पूर्वज-परम्परा के समूहोंमें जीन्स मिश्रण का सिलसिला तो इसके भी आगे यानी आठवीं से बारहवीं शती तक जारी रहा।फिर पूरे देश में फैल गयी जाति की अवधारणासाफ है कि यह अध्ययन भारत में जाति-व्यवस्था की शुरुआत के रहस्यों को खोलता है। और यह भी बताता है कि जाति की अवधारणा कैसे भारतीय भूभाग के एक हिस्से में शुरू हुई, विकसित हुई,फली-फूली और फिर वहां से पहले पश्चिम भारत केमराठों तक फैली और उसके तीन-चार सौ साल बाद भारत के पूर्वी हिस्सों तक फैली और आज के पश्चिम बंगाल व पूर्वोत्तर भारत तक गयी और इस तरह वह पूरे देश की सामाजिक संरचना का आधार बन गयी।और बड़े रहस्य खोलेंगे जेनॉम अध्ययन!भारत ही नहीं, बल्कि ऐसे जेनॉम अध्ययन आज दुनिया भर में हो रहे हैं और बड़े पैमाने पर हो रहे हैं। विज्ञानी जेनॉम अध्ययन के सहारेदक्षिण अफ़्रीका से शुरू हुए मनुष्य के पहलेप्रवास से लेकर दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में उसके फैलने-बसने और समाजों के निर्माण की कड़ियाँ जोड़ने में लगे हैं। उम्मीद है कि अगले कुछ वर्षों में ऐसे सारे रहस्यों से पर्दा बिलकुल उठ जायेगा कि दुनिया में मनुष्यों की बसावट कहां-कहां, कब और कैसे हुई, अलग-अलग भाषाओं को बोलनेवाले आपस में कब, कहां, कैसे मिले, नस्लें कैसे विकसित हुईँ, और यह भी निर्विवाद रूप से तय हो जायेगाकि आर्य कहां से आये थे। धीरज रखिए!(वरिष्ठ पत्रकार क़मर वहीद नक़वी के ब्लॉग raagdesh.com से साभार)
गुरुवार, 11 फ़रवरी 2016
जाति कहाँ से आई रे
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