सोमवार, 1 फ़रवरी 2016

कठिन नही है शुद्ध हिंदी-भाग-53

यह भाग सन्धि का आखिरी भाग है।हमने 6 माहेश्वर सूत्रों को देखा है। बाकी के 8 सूत्रइस प्रकार हैं- 7) ञमङणनम् 8) झभञ् 9) घढधष् 10) जबगडदश् 11) खफछठथचटतव् 12) कपय् 13) शषसर् 14) हल्।इन सूत्रों से खर्, अच् और हश् (हयवरट् के ह से शुरू करजबगडदश् के श् तक) प्रत्याहार बनाकर हम सन्धि के तीसरे प्रकार विसर्ग सन्धि को समझेंगे।विसर्ग सन्धि में विसर्ग का मेल स्वर या व्यंजन से होता है।विसर्ग सन्धि में सन्धि के परिणामस्वरूप विसर्ग की जगह श्, ष्, स्, र्, ओ आदि वर्ण आते हैं।खर् प्रत्याहार का वर्ण यदि विसर्ग के बाद आए, तो वह स् (संगत उच्चारण स्थान के अनुसार श्, ष् या स् में से एक) हो जाता है। इसके तीन भाग हैं-विसर्ग के बाद1) यदि श् या चवर्ग (मुख्य रूप से च या छ) का कोई वर्ण आए, तो विसर्ग श् में बदल जाता है। निः + चय = निश्चय, निः + छल = निश्छल, निः + शेष = निश्शेष, दुः + शासन = दुश्शासन आदि इसके उदाहरण हैं।2) ष् या टवर्ग (मुख्य रूप से ट या ठ) का कोई वर्ण आए, तो विसर्ग ष् में बदल जाता है, जैसे धनुः और टंकार मिलकर धनुष्टंकार बनाते हैं।3) स् या तवर्ग (मुख्य रूप से त या थ) आए, तो विसर्ग स् में बदल जाता है।निः + तार = निस्तार, निः + तेज = निस्तेज आदि इसके उदाहरण हैं।विसर्ग के बाद श, ष या स में जो भी आता है, वह सन्धि के बाद ज्यों का त्यों भी रह सकता है और विसर्ग का विसर्ग भी हो सकता है। दुश्शासन, निश्शुल्क, निस्संकोच, निश्शब्द, निश्शक्त, निस्संदेह आदि भी सहीहैं और दुःशासन, निःशुल्क, निःसंकोच, निःशब्द, निःशक्त, निःसंदेह आदि भी।विसर्ग के पहले अ या आ हो, तो आगे क, ख, प या फ आने पर विसर्ग स् में बदल सकता है।नमः + कार = नमस्कार, भाः + कर = भास्कर, पुरः + कार = पुरस्कार, मनः + कामना = मनस्कामना आदि इसके उदाहरण हैं। इसके उलट नियम यह है कि विसर्ग का विसर्ग ही रह जाता है, जैसे अन्तः + करण = अन्तःकरण, रजः + कण = रजःकण आदि। प्रातःकाल, अन्तःपुर आदि भी ऐसे ही कुछ उदाहरण हैं। न तो नमःकार सही है, न रजस्कण। वैयाकरण बाद वाले को नियम और पहले को अपवाद मानते हैं।विसर्ग के पहले इकार या उकार हो, तो आगे क, ख, प या फ आनेपर विसर्ग ष् में बदलता है, जैसे निः + कपट = निष्कपट, निः + फल = निष्फल, दुः+ कर्म = दुष्कर्म, निः + काम = निष्काम, परिः + कार = परिष्कार आदि।विशेष नियम यह है कि दुः के बाद ख आने पर ष् नहीं होता। दुःख सही है, दुष्ख नहीं। दो महाप्राणों का योगवैसे भी नहीं होता।विसर्ग के पहले अ हो और आगे वर्गों के तीसरे, चौथे, पांचवें वर्ण, य, र, ल, व या ह में से कोई एक हो, तो विसर्ग ओ में बदल जाता है। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि अकार युक्त विसर्ग के बाद हश् प्रत्याहार का वर्ण होने पर विसर्ग का ओकार हो जाता है। अधः + गति = अधोगति, यशः + दा = यशोदा, मनः + योग = मनोयोग, तेजः+ राशि = तेजोराशि, तेजः + मय = तेजोमय, वयः + वृद्ध = वयोवृद्ध, मनः + हर = मनोहर आदि इसके उदाहरण हैं।मनोकामना शब्द इस नियम के अनुसार ग़लत है। वनोवास शब्द अशुद्ध माना जाता है।कई बार यदि विसर्ग के पहले अ हो और बाद में भी अ हो तो विसर्ग ओ में बदल जाता है तथा बाद का अ लुप्त हो जाता है। इसी नियम से मनः और अनुकूल मिलकर मनोनुकूल बनाते हैं। मनः और अनुसार मिलकर मनोनुसार बनाते हैं।यदि विसर्ग के पहले अ या आ को छोड़कर कोई दूसरा स्वर हो और आगे अच् (कोई स्वर) या हश् प्रत्याहार (वर्गों के तीसरे, चौथे, पांचवें वर्ण, य, र, ल, व और ह) का कोई वर्ण हो, तो विसर्ग का र् होता है, जैसे निः + आशा = निराशा, दुः + उपयोग = दुरुपयोग, निः + दोष = निर्दोष आदि।अ के बाद विसर्ग हो और बाद में कोई स्वर हो, तो विसर्ग का र् होता है। पुनः + उक्ति = पुनरुक्ति, पुनः+ उत्थान = पुनरुत्थान, पुनः + ईक्षण पुनरीक्षण आदि इसके उदाहरण हैं।यदि इकार या उकार के बाद विसर्ग हो और आगे र हो, तो इकार और उकार का दीर्घ हो जाता है और विसर्ग लुप्त हो जाता है। निः + रोग = नीरोग, निः + रज = नीरज, निः + रस= नीरस, निः + रव = नीरव, दुः + राज = दूराज आदि इसके उदाहरण हैं।निः, दुः आदि को निर्, दुर् भी लिखा जा सकता है।अकार के बाद विसर्ग हो और उसके बाद अ को छोड़कर दूसरा स्वर हो, तो कई बार विसर्ग का लोप हो जाता है और सन्धि नहीं होती, जैसे अतः + एव = अतएव।हिन्दी में सन्धि के नियम पूरी तरह संस्कृत पर आधारित हैं। हिन्दी की अपनी सन्धि कुछ अलग प्रवृत्तिरखती है। कुछ प्रवृत्तियाँ इस प्रकार हैं-1)तब + ही = तभी, अब + ही = अभी, सब + ही = सभी2) मुझ + ही = मुझी, उस + ही = उसी, यहाँ + ही = यहीं, कहाँ + ही = कहीं, वहाँ + ही = वहीं 3) डाकू + ओं = डाकुओं, बहू + एँ = बहुएँ4) नदी + आँ = नदियाँ, रोटी + आँ = रोटियाँ5) तुम + ही = तुम्हीं, उन + ही = उन्हीं6) दीन + नाथ = दीनानाथ, सत्य + नाश =सत्यानाशविसर्ग सन्धि के नियम कुछ कठिन लग सकते हैं। यहाँ कुछशब्दों के प्रचलित रूप और कोष्ठक में उनके संगत शुद्ध रूप प्रस्तुत हैं-अधस्पतन या अधोपतन (अधःपतन), पुनरोत्थान (पुनरुत्थान), पुरष्कार (पुरस्कार), मनःयोग (मनोयोग), यशगान (यशोगान), स्वतस्सिद्ध (स्वतःसिद्ध), दुशासन (दुश्शासन, दुःशासन), अन्तर्रात्मा (अन्तरात्मा), दुरावस्था (दुरवस्था), नभमंडल (नभोमंडल), दुसाध्य (दुस्साध्य) सद्यजात (सद्यःजात या सद्योजात) आदि।

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