वर्णों के उच्चारण स्थान पर हम शुरू में ही चर्चा कर चुके हैं। यहाँ संस्कृत के आसान से कुछ सूत्रों पर बात करते हैं, जिन्हें याद करने से उच्चारण स्थानों को याद रखना आसान होगा। सूत्रों में कु, चु, टु, तु और पु से पूरे वर्ग का बोध होगा, जैसे कु से कवर्ग, चु से चवर्ग। एक स्वर से दूसरे सजातीय स्वर का भी बोध होता है।1) अकुहविसर्जनीयानाम् कण्ठः - अ, आ, कवर्ग, विसर्ग औरह का उच्चारण कण्ठ से होता है।2) इचुयशानाम् तालुः - इ, ई, चवर्ग, य और श तालु से उच्चारित होते हैं।3) ऋटुरषाणाम् मूर्धा - ऋ, टवर्ग, र और ष मूर्धा से उच्चारित होते हैं।4) लृतुलसानाम् दन्ताः - लृ, तवर्ग, ल और स दन्त्य वर्ण हैं।5) उपूप्धमानीयानाम् ओष्ठौ - उ, ऊ और पवर्ग होंठ की मदद से बोले जाते हैं।6) ञमङणनानाम् नासिका - पंचम वर्ण (ङ, ञ, ण, न और म) और चंद्रबिन्दु का उच्चारण नाक की मदद से होते हैं।7) एदैतोः कण्ठतालू - ए और कण्ठ तथा तालु से उच्चारित होते हैं।8) ओदौतोः कण्ठोष्ठम् - ओ और और कण्ठ तथा होंठ से उच्चारित होते हैं।9) वकारस्य दन्तौष्ठम् - व का उच्चारण दाँत और होंठ से होता है।इन सूत्रों के कारण हम यह समझ पाते हैं कि समान उच्चारण स्थान वाले वर्ण कौन कौन से हैं! सन्धि को समझने में इस जानकारी का लाभ मिलता है। यहाँ हमारा मकसद सन्धि पर चर्चा करना ही था।जब व्यंजन वर्ण का मेल स्वर या व्यंजन से होता है, तो सन्धि व्यंजन सन्धि कही जाती है।व्यंजन सन्धि के भी कई सूत्र हैं। हम उनमें से कुछ की ही चर्चा करेंगे।जब वर्गों के पहले अक्षर (क, च, ट, त या प) का मेल किसी वर्ग के तीसरे वर्ण (ग, ज, ड, द और ब) चौथे (घ, झ, ढ, ध और भ)वर्ण, य, र, ल, व या किसी स्वर से होता है, तब पहला अक्षर अपने वर्ग के तीसरे अक्षर में बदल जाता है। सत् और गति में सत् का त द् में बदल जाता है, क्योंकि त् अपने वर्ग का पहला अक्षर है और गति का ग अपने वर्ग का तीसराअक्षर है। जगत् + गुरु = जगद्गुरु, तत् + रूप = तद्रूप, षट् + दर्शन = षड्दर्शन, दिक् + गज = दिग्गज, जगत् + ईश = जगदीश, जगत् + आनन्द = जगदानन्द, दिक् + भ्रम = दिग्भ्रम, भगवत् + भक्ति = भगवद्भक्ति, षट् + यंत्र = षड्यंत्र आदि इसके उदाहरण हैं।किसी वर्ग का प्रथम वर्ण (क, च, ट, त या प) किसी वर्ग के पंचम वर्ण से मिलकर पहले वाले वर्ण के पंचम में बदल जाता है। जगत् + नाथ = जगन्नाथ, तत् + मय = तन्मय, उत्+ नति = उन्नति, प्राक् + मुख = प्राङ्मुख, षट् + मुख = षण्मुख, मृत् + मय = मृण्मय, सत् + मति = सन्मति, यज् + न = यज्ञ आदि में पहले पद का अन्तिम वर्ण प्रथम वर्ण है और दूसरे पद का प्रथम वर्ण पंचमाक्षर। इसलिए क् ङ्में, त् न् में तथा ट् ण् में बदल गया है।सन्मान, सन्मुख जैसे शब्द अशुद्ध हैं। सही रूप सम्मान और सम्मुख हैं। सन्यास शब्द भी वास्तव में अशुद्ध है। संन्यास सही शब्द है। हिन्दी में सन्यास का प्रचलन है।स्वर के बाद छ आने पर च्छ हो जाता है, जैसे अनु और छेद मिलकर अनुच्छेद बनाते हैं। यहाँ अनु का उ स्वर है। वि+ छेद = विच्छेद, आ + छादन = आच्छादन, छत्र + छाया = छत्रच्छाया, परि + छेद = परिच्छेद, राज + छत्र = राजच्छत्र, स्व + छन्द = स्वच्छन्द, एक + छत्र = एकच्छत्र, प्र + छन्न = प्रच्छन्न, प्रति + छाया = प्रतिच्छाया आदि इसके उदाहरण हैं। देवीछाया, लक्ष्मीछाया जैसे शब्द भी हो सकते हैं।त् या द् के स्थान पर1) च् होता है यदि आगे च् या छ् हो (जैसे सत् + छत्र = सच्छत्र, शरत् + चन्द्र = शरच्चन्द्र, सत् + चरित्र = सच्चरित्र आदि)2) ज् होता है यदि आगे ज् या झ् हो (जैसे सत् + जन = सज्जन, उत् + ज्वल = उज्ज्वल आदि)3) ट् होता है यदि आगे ट् या ठ हो (जैसे तत् + टीका = तट्टीका)4) ड् होता है, यदि आगे ड् या ढ् हो (जैसे उत् + डयन = उड्डयन)5) च् होता है, यदि आगे श् हो और साथ ही श् छ् में बदल जाता ह (जैसे उत् + श्वास = उच्छ्वास, उत् + शृंखल = उच्छृंखल, उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट, सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र आदि)और 6) ल् होता है, यदि आगे ल् हो। (जैसे तत् + लीन = तल्लीन, उत् + लेख = उल्लेख, उत् + लास = उल्लास आदि)यदि ष् के बाद तवर्ग हो, तो तवर्ग टवर्ग में बदल जाता है, जैसे पृष् + थ = पृष्ठ, आकृष् + त = आकृष्ट, षष् + थ= षष्ठ, कृष् + न = कृष्ण आदि। इनमें त ट में, थ ठ में तथा न ण में बदल गया है। यहाँ यह देखा जा सकता है कि वर्ण अपने संगत वर्ण (नये वर्ग के) में ही बदलते हैं, जैसे थ् तवर्ग का दूसरा वर्ण है, तो यह टवर्ग के दूसरेवर्ण ठ में बदलता है। इसी तरह न तवर्ग का अन्तिम वर्ण है, तो यह टवर्ग के अन्तिम वर्ण ण में ही बदलता है।अगर हम ध्यान से देखें, तो बार बार यह पाएँगे कि वर्णों में अपने उच्चारण स्थान से ही उच्चारित होने वाले वर्णों के साथ रहने की प्रवृत्ति दिख सकती है। ष् के बाद त् हो, तो उसके ट् में बदलने का ही उदाहरण लेते हैं। ष् मूर्धन्य वर्ण है, तो यह त् को ट् में बदल रहा है, क्योंकि ट् भी मूर्धन्य वर्ण है।अहन् के बाद कोई वर्ण जुड़े तो, न् र् में बदल जाता है, जैसे अहन् + मुख = अहर्मुख, अहन् + गुण = अहर्गुण, अहन् + निश = अहर्निश आदि; लेकिन रात्रि, रूप जैसे शब्द मिलने पर अहन् अहो बन जाता है, जैसे अहन् + रूप = अहोरूप, अहन् + रात्र = अहोरात्र आदि।
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