चंदन कुमार मिश्र
कठिन नहीं है शुद्ध हिन्दी - 10
० ० ०
हल चिन्ह `\` जैसा होता है, जो आकार में छोटा
होता है और प्रायः शब्द के अंतिम अक्षर में लगाया
जाता है। इसे सामान्यतः हलंत कहा जाता है। ध्यान
रहे कि यह प्र या ज्र के र की तरह नहीं लिखा जाता
है। यह ऊपर से नीचे आगे की ओर यानी दायीं ओर
बढ़ता है। अंत में यह संस्कृत के शब्दों में ही लगता है।
अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश में भी हल का प्रयोग किया
जाता है, जब उच्चारण में व्यंजन में अकार नहीं होता,
जैसे 'लिसन्'। यह सामान्य प्रवृत्ति है कि हिन्दी के
शब्दों के अंतिम व्यंजन का अकार उच्चारित नहीं
होता, जैसे लिखते मोहन हैं, पढते मोहन् हैं। संस्कृत में ऐसा
नहीं होता, वहाँ एव बोलते समय अकार के साथ व का
उच्चारण होता है। हम जिन्हें आधा अक्षर कहते हैं, वे ही
मूल व्यंजन हैं, जैसे क्, ख्, ग्, च्, त् आदि।
हल का प्रयोग अर्थ भी स्पष्ट कर सकता है, जैसे अहम् और
अहम के अर्थ का बोध हल के कारण ही स्पष्ट रूप से हो
सकता है। अहम् संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ अहंकार है,
जबकि अहम अरबी का शब्द है, जिसका अर्थ महत्त्वपूर्ण
और गंभीर है; सन् ईस्वी सन का बोध कराता है, तो सन
हवा की सनसनाहट और एक फसल या पौधे का;
कीर्तिमान का अर्थ रिकार्ड है और कीर्तिमान् का
यशस्वी; अंतर् का अर्थ अंदर है और अंतर का अर्थ फर्क
या दूरी। अर्थात्, अकस्मात्, आपात्, सम्यक्, पृथक्,
सम्वत्, परिषद्, महान्, जगत्, एवम्, वाक्, एतद्, तद्, हठात्,
विराट् आदि ऐसे कुछ प्रमुख शब्द हैं, जिनमें अंत में हल
लगाकर लिखा जाना चाहिए। यदि जगत् या उत् को
बिना हल के लिखें तो जगज्जननी, जगन्नाथ, उज्ज्वल
आदि शब्द हमें समझ नहीं आएंगे। हल के बिना संधि का
एक प्रकार व्यंजन सन्धि समझ ही नहीं आएगा। विद्,
पुरम्, पट्टनम्, पत्तनम्, या वत् के साथ समाप्त होने वाले
शब्द भी हल से खत्म होते हैं, जैसे मूर्तिवत्, पूर्ववत्,
मित्रवत्, भाषाविद्, मसूलीपट्टनम् आदि।
हल शब्द के मध्य आ आरंभ में भी लगता है। संयुक्ताक्षर
का पहला वर्ण हल से युक्त रहता है, जैसे ड्वार्फ़, धनाढ्
य, विद् यालय आदि उदाहरण के लिए देखे जा सकते हैं।
अधिकतम, अष्टम, कार्यरत, अध्ययनरत आदि रत से समाप्त
होनेवाले शब्द, दशम, नवम, पंचम, परम, श्रीयुत, सतत आदि
शब्दों के अंतिम अक्षर बिना हल के होते हैं। तम वाले
शब्द जैसे महानतम, उच्चतम, निम्नतम, न्यूनतम आदि बिना
हल के होते हैं, इसका कारण व्याकरण बताता है।
'तम' ('तम्' नहीं) एक शब्दांश है जो सर्वोच्च अवस्था
या स्थिति का बोधक है। हम आगे ऐसे शब्दांशों
(प्रत्ययों) के बारे में चर्चा करेंगे।
कई बार संयुक्ताक्षर में दूसरे वर्ण को पहले वर्ण के नीचे
लिखा जाता है। सबसे ज़्यादा प्रचलन में द् वाले
संयुक्ताक्षर हैं। लोग अक्सर द् और ध से मिलकर बने द्ध
को द्व लिखते हैं। द में व न जोड़कर ध जोड़ना चाहिए,
अगर उद्धार, प्रबुद्ध, क्रुद्ध आदि लिखें। द्व में द् और व
मिले हुए हैं, द्वार, द्वंद्व आदि इसके नमूने हैं। उद्घाटन,
उद्गार, उद्विकास, उद्धरण आदि को लिखते समय द के
निचले हिस्से में बायीं ओर वह अक्षर लिख देते हैं, जो
संयुक्ताक्षर में द के बाद आता है या उच्चरित होता है।
मात्राएँ द में लगाकर लिखी जाती हैं, जैसे उद्भूत,
उद्भेदन, उद्विग्न आदि में द में व्यंजन जुड़ा है और ऊकार,
एकार, ईकार द में लगाए गए हैं।
हालांकि हिन्दी में हल नहीं लिखने की परंपरा प्रबल
हो चली है, फिर भी शुद्धता की बात करें, तो इसका
प्रयोग व्यर्थ नहीं है।
० ० ०
ज़ारी....
शुक्रवार, 19 जून 2015
कठिन नही है शुद्ध हिंदी-भाग-10
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