सोमवार, 15 जून 2015

मनुसमृति में मांस भक्षण

मनु स्मृति में न केवल मांस भक्षणका उल्लेख और संकेत है, बल्किमांस भक्षण की स्पष्ट अनुमतिदी गई है। मनुस्मृति में मांसभक्षण की अनुमति के साथ मांसभक्षण की उपयोगिता औरमहत्व भी बताया गया है –यज्ञे वधोऽवधः।(मनु0, 5-39)भावार्थ – यज्ञ में किया गयावध, वध नहीं होता।या वेदविहिता हिंसानियतास्ंिमश्चराचरे।अहिंसामेव तांविद्याद्वेदाद्धर्मो हिनिर्बभौ।।(मनु0, 5-44)भावार्थ – जिस हिंसा कावेदों में विधान किया गया है,वह हिंसा न होकर अहिंसा हीहै, क्योंकि हिंसा, अहिंसा कानिर्णय वेद करता है।एष्वर्थेषुपशून्हिसन्वेदतत्त्वार्थविद्द्विजः।आत्मानं च पशुं चैव गमयत्युत्तमांगतिम्।।(मनु0, 5-42)भावार्थ – वेद-कर्मज्ञ द्विजयज्ञ-कर्म में पशु वध करता है तोवह पशु-सहित उत्तम गति कोप्राप्त करता है।उष्ट्रवर्जिता एकतो दतोगोऽव्यजमृगा भक्ष्याः।(मनु0, 5-18)भावार्थ- ऊंट को छोड़कर एकओर दांतवालों में गाय, भेड़,बकरी और मृग भक्ष्य अर्थात्खाने योग्य हैं।‘वभिर्हतस्य यन्मांसं ‘ाुचितन्मनुरब्रवीत।क्रव्याöिश्चहतस्यान्यैश्चाण्डालाद्यैश्चदस्युभिः।।(मनु0, 5-134)भावार्थ- मनु के अनुसार, कुत्तोंद्वारा पकड़े गए मृग, ‘ोरोंद्वारा खाया गया कच्चामांस, चांडाल व चोरों द्वारामारे गए मृग का मांस शुद्ध है।दौ मासौ मत्स्यमांसेनत्रीन्मासान् हारिणेन तु।औरभ्रेणाथ चतुरः ‘ााकुनेनाथपत्र्च वै।।(मनु0, 3-269)भावार्थ- विधि-विधान केद्वारा प्रदत्त मछली के मांस सेमानव-पितर दो महीने तक, मृगके मांस से तीन महीने तक, भेड़ केमांस से चार महीने तक,पक्षियों के मांस से पांच महीनेतक तृप्त संतुष्ट होते हैं।“ाण्मासांश्छागमांसेनपार्षतेन च सप्त वै।अष्टावैणेस्यमांसेन रौरवेण नवैवतु।।(मनु0, 3-270)भावार्थ- बकरे, चित्रमृग, भेड़ वरूरूमृग के मांस से क्रमशः सात,आठ और नौ महीने तक मानव-पितर तृप्त-संतुष्ट रहते हैं।दशामासांस्तु तृप्यन्तिवराहमहिषामिषैः।‘ाशकूर्मयोस्तु मांसेनमासानेकादशैव तु।।(मनु0, 3-271)भावार्थ- सूअर और भैंस के मांस सेमानव-पितर दस महीने तक संतृप्तरहते हैं और खरगोश व कछुए के मांससे ग्यारह महीने तक।

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