चंदन कुमार मिश्र
कठिन नहीं है शुद्ध हिन्दी - 9
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अच्छी हिन्दी के लिए संस्कृत की कुछ जानकारी
(सैद्धांतिक न सही, व्यावहारिक ही सही) होनी
चाहिए, यह हम भी मानते हैं। यहाँ आज हम एक अलग
आधार पर वर्णों के दो भेदों पर बात करेंगे।
सभी मूल वर्णों (यानी संयुक्ताक्षरों को छोड़कर)
को उच्चारण के हिसाब से अल्पप्राण और महाप्राण,
दो भागों में बाँटा गया है। जिन वर्णों के उच्चारण में
हकार की ध्वनि सुनाई नहीं पड़ती है, उन्हें अल्पप्राण
कहते हैं और जिन वर्णों के उच्चारण में हकार की ध्वनि
सुनाई पड़ती है, उन्हें महाप्राण कहते हैं। अगर आप महसूस
करना चाहें तो आप ख बोलकर देखें। ख का उच्चारण करते
समय ऐसा लगता है, जैसे क और ह मिल रहे हों। अंग्रेज़ी में
ख के लिए kh होने का यह कारण हो सकता है। इसी
प्रकार घ में ग जैसा लगता है पहले। सभी वर्गों के पहले,
तीसरे और पाँचवे वर्ण, य, र, ल और व; अल्पप्राण हैं। कवर्ग
(क, ख, ग, घ, ङ) के क, ग और ङ; चवर्ग के च, ज और ञ; टवर्ग
के ट, ड और ण; तवर्ग के त, द और न तथा पवर्ग के प, ब और
म अल्पप्राण हैं। वर्गों के दूसरे(जैसे ख, छ आदि) और चौथे
वर्ण(जैसे घ, झ आदि), श, ष, स और ह महाप्राण हैं।
अंग्रेज़ी में जिन वर्णों में एच(h) लगाते हैं, वे महाप्राण हैं
और जिनमें नहीं लगाते, वे अल्पप्राण हैं; यह भी याद
रखने का एक आसान तरीका है। एक अपवाद 'स' है,
जिसमें 'एच(h)' नहीं लगता, फिर भी यह महाप्राण है।
अब हम शब्दों में इनकी भूमिका पर विचार करेंगे।
अधिकांश स्थितियों में महाप्राण वर्णों का द्वित्व
नहीं मिलता, जैसे घ्घ, ख्ख, छ्छ, झ्झ, ठ्ठ, ढ्ढ, थ्थ, ध्ध, भ्भ
और ष्ष किसी शब्द में नहीं हैं। फ्फ(लफ्फाजी,
मुजफ्फरपुर, मुजफ्फरनगर आदि में), श्श(निश्शंक, निश्शब्द
आदि में) और स्स(ठस्स, निस्सीम, निस्सहाय आदि में) ,
इसके अपवाद हैं। बात श, ष और स को छोड़कर करें, तो
दो महाप्राण मिलकर कभी संयुक्ताक्षर नहीं बनाते।
उदाहरण के लिए ख्झ, ह्छ, फ्भ आदि किसी शब्द में नहीं
मिलते। जब एक ही वर्ग(कवर्ग से पवर्ग) के महाप्राण और
अल्पप्राण मिलकर जब संयुक्ताक्षर बनाते हैं, तब दूसरा
वर्ण अल्पप्राण होता है, महाप्राण नहीं, जैसे पत्थर,
गट्ठर आदि में देखा जा सकता है। घ्ग, थ्त जैसे
संयुक्ताक्षर कहीं नहीं मिलेंगे, इसका कारण एक ही वर्ग
के दो वर्णों के संयुक्ताक्षर बनाने में पहले वर्ण का
महाप्राण नहीं होना है। हाँ, अल्पप्राण का द्वित्व
होता है (ङ और ञ को छोड़कर), जैसे चक्का, जग्गा,
बच्चा, मज्जा, खट्टी, हड्डी, पत्ता, गद्दी, अक्षुण्ण,
ठप्प, डिब्बा, अम्मा, वेंकय्या, कार्रवाई, हल्ला आदि
में हुआ है। मक्खन, रक्खा, बग्घी, अच्छा, मुट्ठी, चिट्ठी,
बुड्ढा, गड्ढा, पत्थर, बुद्धि जैसे शब्दों को देखिए। इनमें
एक ही वर्ग के महाप्राण और अल्पप्राण मिलकर
संयुक्ताक्षर बनाते हैं, जिनमें पहला वर्ण अल्पप्राण है और
दूसरा महाप्राण। अगर कोई बुढ्डा या बुध्दि लिखता
है, तो यह सही नहीं माना जा सकता, क्योंकि ढ ड के
पहले और ध द के पहले लिखना न तो उच्चारण की दृष्टि
से और न ही संयुक्ताक्षरों के प्रयोग की दृष्टि से
उचित है। मख्खन चिठ्ठी या चिठ्टी नहीं लिखा
जाता। दो असमान महाप्राणों से या एक ही वर्ग के
पहले महाप्राण, फिर अल्पप्राण से बने संयुक्ताक्षर का
उच्चारण उच्चारण के ही लिहाज से एक समस्या है। हम
बघ्गी या मुठ्टी के उच्चारण का प्रयास करने पर यह
महसूस कर सकते हैं। एक ही वर्ग के दो भिन्न अल्पप्राण
भी संयुक्ताक्षर नहीं बनाते यानी क्ग, ग्क, च्ज, ज्च,
ट्ड, ड्ट, त्द, द्त, प्ब और ब्प किसी शब्द में नहीं आते।
कब्जा, सब्ज़ी, कुब्जा, ज्योति, राज्य, आप्टे, इप्टा,
शल्य, सत्य, वैराग्य आदि में इस नियम का उल्लंघन नहीं
होता क्योंकि ब और ज या ज और य एक ही वर्ग के
अल्पप्राण नहीं हैं।
अब बात उन संयुक्ताक्षरों की करें, जो एक ही वर्ग के
वर्णों से नहीं बनते। ख्याति, आख्यान, संख्या, सभ्य,
दफ़्न, फाख्ता, हफ़्ता, जिस्म, ज़ख्म, सख्त, तख्त,
शिनाख़्त, मस्ती, अभ्यस्त, वस्तु, नादेझ्दा(रूसी), ब्रेख्त
आदि में हम देखते हैं कि पहला वर्ण महाप्राण है और
दूसरा अल्पप्राण। यह ऊपर बताए नियम के विरुद्ध नहीं
है। ऊपर एक ही वर्ग वाले वर्णों से बने संयुक्ताक्षरों की
चर्चा है और यहाँ वे नियम लागू नहीं होते। पश्चिम,
पश्चाताप, निष्कलंक, निश्चय, निष्पादन, निष्पक्ष,
निष्कर्ष, प्रस्ताव, प्रश्न, प्रस्तावना, स्पंज, स्कंद, श्रम,
श्याम, कष्ट, कृष्ण, फिफ्टी, गिफ्ट, शिफ़्ट, बाध्य,
बाह्य, सह्य, कथ्य, तथ्य, हश्र, इश्क, भास्कर, गह्वर, गुह्य,
धनाढ्य आदि शब्द भी देखे जा सकते हैं। इनमें अल्पप्राण
महाप्राण के बाद आए हैं।
स्थान, स्थगन, विस्फोट, निष्ठा, निष्फल, स्फटिक,
स्फुरण, मुद्रास्फीति, फिफ्थ जैसे शब्दों में दो
महाप्राण मिलकर संयुक्ताक्षर बना रहे हैं। हम कह सकते हैं
कि एक ही वर्ग के नहीं रहने पर दो महाप्राण भी
संयुक्ताक्षर बना सकते हैं। हालांकि ऐसे शब्द बहुत कम हैं।
ष्ष हमारी जानकारी में किसी शब्द में नहीं आता।
लगातार दो समान महाप्राण भी ज़्यादा नहीं
मिलते, जैसे खख, घघ, छछ आदि। घोंघा, छिछोरा,
ठिठकना, ढिंढोरा आदि में दो समान महाप्राण
मात्राओं के साथ आ रहे हैं, लेकिन ऐसे शब्दों की संख्या
बहुत कम है। लगातार दो पूर्ण ष मात्रा के साथ या
बिना मात्रा के भी देखने में नहीं आते। षष्ठी, षष्टि
आदि में दो ष हैं तो, लेकिन संयुक्ताक्षर के रूप में, पूर्ण रूप
में नहीं।
क से म तक के वर्ण स्पर्श वर्ण कहलाते हैं। अब हम कह सकते
हैं कि दो स्पर्श महाप्राण मिलकर संयुक्ताक्षर नहीं
बनाते यानी ख्ख, ख्घ, ख्छ, ख्झ, ख्ठ, ख्ढ, ख्थ, ख्ध, ख्फ,
ख्भ, घ्ख, घ्घ, घ्छ, घ्झ, घ्ढ, घ्ठ, घ्थ, घ्ध, घ्फ, घ्भ, छ्ख, छ्घ,
छ्छ, छ्झ, छ्ठ, छ्ढ, छ्थ, छ्ध, छ्फ, छ्भ, झ्ख, झ्घ, झ्छ, झ्झ,
झ्ठ, झ्ढ, झ्थ, झ्ध, झ्फ, झ्भ, ठ्ख, ठ्घ, ठ्छ, ठ्झ, ठ्ठ, ठ्ढ, ठ्थ,
ढ्ध, ढ्फ, ढ्फ, थ्ख, थ्घ, थ्छ, थ्झ, थ्ठ, थ्ढ, थ्थ, थ्ध, थ्फ, थ्भ,
ध्ख, ध्घ, ध्छ, ध्झ, ध्ठ, ध्ढ, ध्थ, ध्ध, ध्फ, ध्भ, फ्ख, फ्घ, फ्छ,
फ्झ, फ्ठ, फ्ढ, फ्ध, फ्भ, भ्ख, भ्घ, भ्छ, भ्झ, भ्ठ, भ्ढ, भ्थ, भ्ध,
भ्फ और भ्भ किसी शब्द में नहीं आते। फ्फ(यह अरबी और
फारसी के शब्दों में मिलता है) और फ्थ(यह अंग्रेज़ी या
यूरोपीय शब्दों में मिलता है) अपवाद हैं, जिनका
जिक्र ऊपर किया जा चुका है।
ऐसे शब्दों की संख्या काफी है, जिनमें आनेवाले
संयुक्ताक्षर दो स्पर्श अल्पप्राणों से नहीं बने होते और
संयुक्ताक्षर का दूसरा वर्ण य, ल और व होता है। सत्य,
शल्य, सर्व, गर्व, वाक्य, गद्य, पद्य, तारतम्य, नित्य,
पार्थक्य, ग्यारह, भोग्या, योग्य, वाच्य, सूर्य,
च्यवनप्राश, राज्य, ज्योति, अकाट्य, अन्य, गण्य,
प्राप्य, अक्षम्य, सुनम्य, प्रणम्य, कार्य, अनार्य,
प्राचुर्य, स्वीकार्य, अनिवार्य, प्राचार्य, प्रत्यय,
अक्ल, शक्ल, ग्लूकोज़, प्लवन, ब्लॉग, ब्लॉक, अम्ल, कार्ल,
शार्ल, चार्ली, दिल्ली, बिल्ली, हल्ला, परिपक्व,
ग्वाला, ग्वाटेमाला, ज्वलन, प्रज्वलन, त्वरण, तत्त्व,
द्विपद, द्वार, द्वारपाल, अद्वितीय, धन्वन्तरि, कण्व,
सम्वाद, सम्वत्सर, उर्वर आदि इसके उदाहरण हैं।
अंत में हम ऊपर की सारी बातों, नियमों और
उदाहरणों के आधार अल्पप्राण और महाप्राण के मामले
को सूत्रबद्ध कर रहे हैं-1) अंग्रेज़ी में जिन वर्णों में एच(h)
या एस(s) लगता है, वे महाप्राण हैं और बाकी सब
अल्पप्राण हैं। 2) अल्पप्राण का द्वित्व होता है। 3)
फ, श और स को छोड़कर किसी महाप्राण का द्वित्व
नहीं होता। 4) एक ही वर्ग के दो अल्पप्राण या दो
महाप्राण मिलकर संयुक्ताक्षर नहीं बनाते। 5) एक ही
वर्ग के अल्पप्राण और महाप्राण मिलकर जब संयुक्ताक्षर
बनाते हैं, तब पहला वर्ण अल्पप्राण होता है और दूसरा
महाप्राण। 6) दो अल्पप्राण जब एक ही वर्ग के न हों,
तब संयुक्ताक्षर बना सकते हैं। 7) दो महाप्राण यदि एक
ही वर्ग के न हों, तब संयुक्ताक्षर नहीं बनाते। फ्थ
इसका अपवाद है। अंग्रेज़ी में नागरी के अधिकतर
महाप्राणों का उच्चारण नहीं होता, इसलिए
महाप्राण के मामले में अंग्रेज़ी के शब्दों को लिखते
समय चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। 8) जब एक वर्ण
महाप्राण और दूसरा अल्पप्राण हो और दोनों एक ही
वर्ग के नहीं हों, तब संयुक्ताक्षर में पहला वर्ण
महाप्राण और दूसरा वर्ण अल्पप्राण होता है। इस सूत्र
को हम बहुत कम अपवादों को छोड़कर कहीं भी लागू
कर सकते हैं।
सूत्र 8 के अपवाद के लिए हम नात्सीवाद, क्ष और क्ष
वाले सभी शब्द, बरक्स(बरअक्स), बॉक्स,, दुग्ध, स्निग्ध,
पार्ट्स, कार्ड्स, लुत्फ, नीत्शे, कप्स, हॉब्स, मूर्ख, दीर्घ,
अर्थ, अर्ध, हर्फ, गर्भ, फर्श, हर्ष, नर्स, अर्हता, तल्ख,
कुल्फी, अल्हड़, चार्ल्स, व्हाइट आदि को देख सकते हैं।
ध्यान रहे कि भाषा गणित नहीं है, इस कारण कुछ
अपवाद भी होते हैं। खासकर विदेशज शब्द अपवाद बना
देते हैं।
० ० ०
ज़ारी....
शुक्रवार, 19 जून 2015
कठिन नही है शुद्ध हिंदी-भाग-9
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