बुधवार, 10 जून 2015

दुर्गति दलित की

हम्मूराबी का संविधान हमारे यहाँ भी था... मत्स्य पुराण के अध्याय २२७ के कुछ अंश देखिए...ब्राह्मण यदि अज्ञान से चाण्डाल और अन्त्यज स्त्रियों के साथ सम्भोग, उनके यहाँ भोजन और उनका दिया हुआ दान ग्रहण करता है, तो वह पतित हो जाता है और जान-बूझकर करता है, तो वह उन्हीं के समान हो जाता है। (५४) यदि क्षत्रिय होकर ब्राह्मण को कटु वचन कहता है, तो उसे सौ मुद्रा का दण्ड देना चाहिए। यदि वैश्य है, तो उसे दो सौ मुद्रा का और यदि शूद्र है, तो उसे प्राणदण्ड देना चाहिए। (६६) शूद्र क्षत्रिय को कटूक्ति सुनाता है, तो उसकी जीभ काट लेनी चाहिए। (६८) राजा को द्विजाति को धर्मोपदेश करने वाले शूद्र के मुख और कान में खौलता हुआ तेल डाल देना चाहिए। (७४) द्विजाति से भिन्न व्यक्ति किसी द्विजाति का जिस अंगसे अपकार करता है, उसके उसी अंग को शीघ्र ही बिना कुछ विचार किए कटवा देना चाहिए। (८२) यदि कोई नीच जाति वाला व्यक्ति उत्कृष्ट व्यक्ति के साथ आसन पर बैठना चाहता है, तो राजा उसकी कमर में एक चिन्ह बनाकर अपने राज्य से निर्वासित कर दे या उसके गुदाभाग को कटवा दे। इसी प्रकार यदि कोई निम्न जाति वाला किसी उच्च जातीय व्यक्ति के केशों को पकड़ता है, तो उसके हाथ बिना विचार किए ही कटवा देना चाहिए। इसी प्रकार का दण्ड दोनों पैरों, नासिका, गला आदि को पकड़ने पर भी देना चाहिए। (८४, ८५) यदि नीच जाति वाला जघन्य पुरुष उत्तम जाति की कन्या के साथ प्रेम करता है तो उसे प्राणदण्ड देना चाहिए। (१३१)ये कुछ उदाहरण हैं हमारी महान् परंपरा के... स्त्री कीअस्मिता भी जाति के अनुसार अलग मूल्य की है... इसके लिए भी श्लोक हैं...

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