चंदन कुमार मिश्रकठिन नहीं है शुद्ध हिन्दी - 8० ० ०इस बार भी तस्वीर के माध्यम से कई चीज़ों पर बात करेंगे। यहाँ चित्र 17 में कोई और कौन में को और कौ में पाई(।) के ऊपर चिन्ह न लगाकर, व्यंजन यानी क पर लगाकर दिखाया गया है। ऐसा करना ग़लत होगा, इसकी जगह पाई पर ऊपर चिन्ह लगना चाहिए।18वें और 19वें चित्र में यह दिखाया गया है कि लिखने और छापने के तरीकों में फर्क देखा जाता है। द्वित्व वाले वर्ण जैसे ल्ल, क्क, न्न आदि को इन दोनों तरीकों से लिख सकते हैं। पहला रूप ही ज़्यादा प्रचलन में है, इसलिए हमें भी उसी रूप में लिखना चाहिए। बचपन में सीखते समय अक्सर न्न के दूसरे रूप को त्र समझ या पढ लिया जाता है, जैसे मुन्ना को मुत्रा। हम पहले रूप को ही प्रयोग में लाने की सिफारिश करेंगे।चित्र 20 त्त यानी त् + त के लिखने के ढंग को लेकरहै। त् + त को त में एक छोटी और बायें से दायें जाने वाली रेखा लगाकर व्यक्त करते हैं, यह रेखा(घटाव के चिन्ह जैसी -) त में चित्र में दिखाए ढंग से लगती है। उतर (चढ़ना का विपरीत, नीचे आना) और उत्तर (जवाब, दिशा), सता (सताना क्रिया का रूप) और सत्ता (ताकत), पता (ठिकाना) और पत्ता (पेड़ का पत्ता), मत(निषेध, विचार) और मत्त(नशे की हालत में) आदि में अंतर इसी सावधानी के कारण कर सकते हैं, वरना हमारा लेखन भाषायी अशुद्धि का शिकार हो जाएगा। त के द्वित्व वाले कुछ शब्द महत्त्व (महत् में त्व लगाने से महत्त्व बनता है, इसका महत्व रूप भी चलन में है), तत्त्व, पुरातत्त्व (यहाँ त के बाद त्, फिर त है), चित्त, वृत्त, वृत्ति, निवृत्त, आवृत्त, अनावृत्त, आर्त्त, प्रवृत्ति, उत्तर, गुणोत्तप, गुणवत्ता, भत्ता, अलबत्ता, लोकोत्तर, शोकार्त्त, दत्त, प्रदत्त, उत्तीर्ण, अनुत्तीर्ण, उदात्त, सात्त्विक, कृत्तिका, निमित्त, कर्त्ता, गत्ता, आवर्त्त, आवर्त्ती, अपवर्त्तक, आर्यावर्त्त, महत्तम आदि हैं। हालांकि तत्व, महत्व, आवर्त, कर्तव्य, कर्ता, आर्यावर्त आदि भी प्रचलन में हैं। लघुतम, इतर आदि शब्द त के द्वित्व वाले नहीं हैं, यह विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए। मानवेतर, विवाहेतर, शिक्षकेतर जैसे शब्द त के द्वित्व वाले नहीं हैं और त्त का इनमें प्रयोग उचित नहीं होगा। वृत्ति से जुड़े सारे शब्द त्त वाले होते हैं, इनमें त नहीं लिखना चाहिए, जैसे प्रवृत्ति, अभिवृत्ति आदि। बृहत्तर या वृहत्तर, उत्पत्ति, व्युत्पत्ति, सम्पत्ति, महत्ता, पत्ती आदि शब्द तके द्वित्व वाले शब्द हैं। अनावृत का अर्थ 'ढका हुआ' है और अनावृत्त का अर्थ 'जिसे दोहराया न गया हो' है।चित्र 21 व्यंजनों के आधे रूपों को दिखाता है। जिन अक्षरों में '।' बीच में होती है, उनके आधे रूपदायीं ओर के भाग को आधा लिखकर बनाते हैं, जैसे क और फ। जिन अक्षरों में दायाँ भाग पाई है, उनके आधेरूप बिना पाई के लिखे या छापे जाते हैं, जैसे ख, ग, घ, च आदि में। जो अक्षर बिना पाई के हैं, उनमें हल का चिन्ह (्) लगाकर आधा रूप दिखाते हैं, जैसे ङ्, छ्, ट्, ठ्, ड्, ढ्, द्, ह्। चित्र में ध के आधे रूप को हल लगाकर और बिना हल लगाए दोनों रूपों में दिखाया गया है। एक खास बात यह भी है कि ढ, छ आदि का आधा रूप कहीं नहीं आता। इस पर अलग से बाद में चर्चा की जाएगी। आधा व लिखते समय पूरा गोल चिन्ह ० लिखना चाहिए, जैसा कि चित्र में है। र का आधा रूप लिखा नहीं जाता, वह रेफ का रूप में ले लेता है। चित्र में आधे व्यंजनों के सामान्य रूप दिखाए गए हैं, इनके दूसरे रूप भी देखने को मिल सकते हैं।चित्र 22 और 23 क् +त और क्र के दूसरे रूप को दिखाते हैं। पुरानी किताबों में क्र का यह रूप देखने को मिलता है।चित्र 24 उन अक्षरों में र लगाकर दिखाता है, जिनमें '।' कहीं नहीं होता। इनमें नीचे ^ लगाते हैं। जिनमें पहले से एक रेखा नीचे दायीं ओर रहती है, उनमें ^ न लगाकर, बायींओर तिरछी रेखा खींच देते हैं, जैसे द्र। छ के लिखित रूप में ऐसा ही किया जाना चाहिए। हालांकि छ के लिखित रूप और मुद्रित रूप में अंतर है।चित्र 25 में ह्+र यानी ह्र को लिखकर दिखाया गया है। ह्रास, ह्रासमान, ह्रासोन्मुख, ह्रस्व जैसे गिने चुने शब्द ह्र वाले हैं। 26वें चित्र में हृ लिखकर दिखाया गया है। हृ वाले शब्द भी अधिक नहीं हैं। हृ वाले कुछ शब्द हृदय, हृदयरोग, हृदयाघात, हृत, अपहृत, हृतंत्री, हृदयाकाश, हृष्ट, हृदयंगम, हृदयेश, सुहृद, सहृदय आदि हैं। यहाँ ह में ऋ और र कैसे जोड़े गए हैं, यह देखा जा सकता है।ह के बीच वाले भाग में र के लिए एक तिरछी रेखा (क्र, ज्र आदि की ही तरह) बायीं ओर खींचकर ह्र लिखते हैं और हृ के लिए ह के बीच वाले भाग में c(ऋकार) जैसा संकेत जोड़ देते हैं।26 रु और रू यानी र् + उ और र् + ऊ को दिखाता है। लिखने में उकार और ऊकार सभी व्यंजनों के साथ लगाना आसान है, लेकिन र में लगाते वक्त परेशानी शुरू से ही यानी बचपन से ही दिखती है। उकार की मात्रा बायीं ओर या पीछे की ओर मुड़ती है, जबकि ऊकार की मात्रा दायीं ओर या आगे की ओर। र को छोड़कर सभी व्यंजनों में उकार और ऊकार की मात्राव्यंजन के नीचे लगती है। र में यह दायें भाग में बीच में लगाई जाती है। चित्र में त्रिभुज में ऊकार की और वर्ग में उकार की मात्रा के वे रूप दिखाए गए हैं, जो र के साथ दिखते हैं। रू (ऊकार) वाले कुछ शब्द रूप, स्वरूप, रूठना, रूखा, रूस, रूसी,रूमाल, रूढ़, रूढ़ि, रूई, रूम, रूल, रूह, रूहानी, शुरू, जागरूक, ज़रूर, ज़रूरत आदि हैं। रु (उकार) वाले कुछ शब्द रुँधना, रुकना, रुपया, रुख, रुखसत, रुचि, रुग्ण, रुझान, रुत, रुधिर, रुबाई, रुलाई, रुष्ट, रुसवा, मरु, मरुभूमि, तरु, चारु, मारुति आदि हैं। कुछ शब्द दोनों रूपों में चलन में हैं, जैसे गुरु-गुरू, रूमाल-रुमाल आदि।27वाँ चित्र यह दिखाता है कि र को छोड़कर सारे वर्ण अपने द्वित्व वाले रूप में दोहरे (साफ़ साफ़ दो बार) दिखते हैं, जैसे क्क, च्च, ट्ट, न्न आदि, लेकिन र इनसे अलग व्यवहार रखता है और 'र्र' जैसा दिखता है।28वाँ चित्र यह बताता है कि संयुक्ताक्षरों में इकार की मात्रा का पाई पहले अक्षर के बायीं ओर लगता है और अर्धगोलाकार भाग दूसरे अक्षर के दायें भाग को छूता है। जैसे आरम्भिक में म पहला अक्षर है और उसके पहले '।' लगा है और भ दूसरा अक्षरहै, जिसकी पाई को अर्धगोलाकार भाग छू रहा है।29वाँ चित्र भ लिखने के तीन तरीकों को दिखा रहा है। म में शिरोरेखा के साथ म घ की तरह बंद है, जबकिभ में ऊपर से ध की तरह खुला स्थान है। म और भ लिखतेसमय इसे ध्यान में रखा जा सकता है।30वें चित्र में ढ और ठ को लिखने का बहुप्रचलित ढंग दिखाया गया है।31वाँ चित्र ह् + म को लेकर है। ब्राह्मण, ब्रह्मा, ब्रह्म, ब्राह्मी, ब्राह्मणवाद आदि शब्दों में ह्म लिखते हैं। शुद्ध रूप तो यही हैं लेकिन ब्राम्हण, ब्रम्ह, ब्राम्हणवाद जैसे शब्द भी अब चलन में आ गए हैं। पहले वाले रूप ही शुद्ध हैं, इसलिए अभ्यास में इन्हें ही रखा जाना चाहिए।32वाँ चित्र द् + म को दिखाता है। पद्म, छद्म, पद्मिनी, पद्मा आदि शब्द द्म वाले हैं, इन्हें पदम, छदम, पदमिनी, पदमा नहीं लिख सकते क्योंकि यह शुद्ध नहीं हैं।० ० ०ज़ारी...
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