सोमवार, 22 जून 2015

कठिन नही है शुद्ध हिंदी-भाग-11

चंदन कुमार मिश्रकठिन नहीं है शुद्ध हिन्दी - 11० ० ०अनुस्वार और चंद्रबिन्दु इस भाग की चर्चा के विषय हैं। धीरे धीरे चंद्रबिन्दु का प्रयोग कम होता जा रहा है। भारत सरकार का प्रकाशन विभाग भी अनुस्वार का ही प्रयोग करता है, चंद्रबिन्दु का नहीं। अगर हम चंद्रबिन्दु की जगह अनुस्वार का प्रयोग करते हैं, तो हंस और हँस या बाकी(शेष) और बाँकी(तिरछी) में फर्क कैसे करेंगे! परंपरा यह रही है कि अ या अकारयुक्त व्यंजन; आ या आकारयुक्तव्यंजन; उ या उकारयुक्त व्यंजन; ऊ या ऊकारयुक्त व्यंजन और ए के साथ चंद्रबिन्दु का प्रयोग करते हैं। अँधेरा, फँसना, डँसना, अँतड़ी, कहानियाँ, काँटा, आँख, आँसू, उँगली, पहुँच, ऊँघना, ऊँच, ऊँट, पूँछ, हूँ, भाषाएँ, माँएँ आदि शब्द उदाहरण के लिए देखे जा सकते हैं। चंद्रबिन्दु का प्रयोग इ, इकारयुक्त व्यंजन, ई, ईकारयुक्त व्यंजन, ऐ, ऐकारयुक्त व्यंजन, ओ, ओकारयुक्त व्यंजन, औ और औकारयुक्त व्यंजन के साथ नहीं होता, लेकिन समांतर कोश(थिसारस) वाले अरविन्द कुमार का मानना है कि अब कम्प्यूटर युग में तकनीकी समस्यानहीं होने के कारण इनके साथ भी चंद्रबिन्दु का प्रयोग होना चाहिए, जैसे इँटकोहरा, चीँटी, औँस, छौँक, पेँच, चोँच आदि। मोबाइल पर अनुस्वार की जगह चंद्रबिन्दु कई बार दिखता है। हम यह कहना चाहेंगे कि परंपरा से चंद्रबिन्दु का प्रयोग कहाँ नहीं होता, यह तो पता है ही, तब हम अरविन्द कुमार की सलाह को न भी मानें तो कोई परेशानी नहींहै। हाँ, उनकी सलाह नागरी लिपि को और वैज्ञानिक बना सकती है, यह कहा जा सकता है। हमसब चंद्रबिन्दु का उच्चारण जहाँ करते हैं, वहाँ अनुस्वार का प्रयोग करने से बचना और चन्द्रबिन्दु का प्रयोग करना ठीक रहता है। नागरी लिपि में जो लिखते हैं, वही पढते हैं, यह मान्यता चन्द्रबिन्दु के प्रयोग से बल प्राप्त करती है।माँ को हिन्दी पट्टी वाले बिना अतिरिक्त ध्यान दिए माँ कहते हैं, मा नहीं। 'मैं', 'हूँ' और 'नहीं' को लेकर भी यही बात कही जा सकती है। स्थान का बोध कराने वाले शब्द जैसे यहाँ, वहाँ, जहाँ, कहाँ, यहीं, वहीं आदि वाले शब्द चंद्रबिन्दु के उच्चारण वाले हैं। स्त्रीलिंग बहुवचन रूपों मेंभी चंद्रबिन्दु का उच्चारण होता है, जैसे लड़कियाँ, सब्ज़ियाँ, गाएँ, भाषाएँ, बहनें, किताबें, कलमें आदि। जिन शब्दों के अन्त में अकार नहीं होता, लेकिन अनुस्वार या चंद्रबिन्दु लगता है, उनमें अन्त में चंद्रबिन्दु का उच्चारणहोता है, जैसे माँ, आसमाँ, कहाँ, हिन्दोस्ताँ, चटाइयाँ, मिठाइयाँ, कहीं, ज़मीं, उन्हीं, तुम्हीं, थीं, कहूँ, चलूँ, हैं, मैं, चलें, मरें, जिएँ, कहें, सहें, रहें, भाषाएँ, आहें, राहों, गाँवों, साधुओं, बसौं, कहौं आदि। जिस शब्द के अन्त में अकार हो, वहाँ अनुस्वार का प्रयोग कर सकते हैं, चंद्रबिन्दु का नहीं, जैसे स्वयं, सायं, अहं आदि सही हैं, स्वयँ, सायँ, अहँ आदि नहीं।आटा, चाहिए, नाक, भूसा, हाथ आदि शब्दों में चंद्रबिन्दु का प्रयोग नहीं होता।अनुस्वार नहीं लगाने की आदत भी लोगों में खूब देखी जाती है। खाने(खाना से बना) और खानें(खदानें), होगे और होंगे, मादा और माँदा आदि में फर्क बिना अनुस्वार लिखे नहीं किया जा सकता।० ० ०ज़ारी...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें