शुक्रवार, 26 जून 2015

कठिन नही है शुद्ध हिंदी-भाग-12

चंदन कुमार मिश्रकठिन नहीं है शुद्ध हिन्दी - 12० ० ०एक बार हमारे दिमाग़ में आया कि हिन्दी में जो लिखते हैं, वही पढ़ते हैं, फिर ऐसा क्यों कि पंकज, वंदन, अंडा, कंपन सबमें अनुस्वार लिखते हैं और उच्चारण सबका अलग अलग है! पता चला कि अनुस्वार केअलग अलग उच्चारण के पीछे निश्चित नियम हैं और ये खासकर अहिन्दीभाषी लोगों के लिए एक बड़ी समस्या का समाधान भी रखते हैं। हमने हेमा मालिनी को ऊँचे को ऊन्चे कहते सुना है, असिन को पैंतीस को पैन्तीस कहते सुना है। ये दोनों मूल रूप से अहिन्दीभाषी हैं। हम यहाँ अनुस्वार के ऊपर चर्चा करेंगे।शुरू में ही वर्णों के उच्चारण स्थान बताए जा चुके हैं। उस भाग को ठीक से याद रखना ज़रूरी है। यहाँ हमें उसकी ज़रूरत पड़ती है। स्पर्श व्यंजनों से आप परिचित हो चुके हैं। कवर्ग से पवर्ग तक सभी वर्गों का अंतिम वर्ण पंचमाक्षर कहा जाता है। किसी भी स्पर्श वर्ण के पहले अनुस्वार होने पर संगत वर्ग का अंतिम वर्ण उच्चरित होता है। कंगण, पंख, गंगा, कंघी, पंक और बैंक में कवर्ग के वर्ण के पहले अनुस्वार है, इसलिए इनके उच्चारण क्रमशः कङ्गण, पङ्ख, गङ्गा, कङ्घी, पङ्क और बैङ्क करेंगे। पुरानी किताबों में ङ् और ञ् का प्रयोग ज़्यादा किया जाता था। संस्कृत में नियम है कि पंचमाक्षर की जगह अनुस्वार लगा सकते हैं। शंका को शङ्का भी लिख सकते हैं। टंकण में अनुस्वार ज़्यादा सुविधाजनकथा, इसलिए इसका प्रयोग ज़्यादा होने लगा। चवर्ग के लिए पंच, पंछी, पंजा, झंझट को देख सकते हैं। हालांकि इनका शुद्ध उच्चारण पञ्च, पञ्छी, पञ्जा, झञ्झट होना चाहिए लेकिन ञ् की जगह न् का उच्चारण ही अब प्रचलित हो गया है। संचय, संचार आदि को सन्चय, सन्चार ही उच्चरित किया जाता है। कंटक, कंठ, पाखंड, पंढेर जैसे शब्द टवर्ग के लिए देख सकते हैं। कण्टक, कण्ठ, पाखण्ड, पण्ढेर के रूप मेंइनका उच्चारण होना चाहिए। ण की जगह न् की परंपरा ज़्यादा हो चली है। सामान्यतः लोग कन्टक, कन्ठ आदि कहते हैं। इंडिया और एंड को इन्डिया और एन्ड न लिखकर इण्डिया और एण्ड लिखने के पीछे यही संगत वर्ग के पंचमाक्षर का नियम काम करता है। हालांकिअंग्रेज़ी के शब्दों में ण, ञ, ङ जैसे वर्ण ही नहीं हैं, फिर भी हम पेण्ट, कैण्ट, बैङ्क लिखते हैं, पेन्ट, कैन्ट, बैन्क नहीं। तवर्ग के साथ भी यही नियम है। पंत, पंथ, मंद और गंध को क्रमशः पन्त,पन्थ, मन्द और गन्ध कहते हैं। वीरेन्द्र, क्रन्दनआदि को वीरेंद्र, क्रंदन की तरह भी लिखने के पीछे यही नियम काम करता है। कांति को कान्ति लिख सकते हैं, शान्ति को शान्ति।अनुस्वारनहीं लिखने पर क्या लिखें, यह समस्या भी संगत वर्ग के पंचम वर्ण से हल होती है। पवर्ग का अंतिम अक्षर म है, इसलिए कंपन, संबल, कंबल, रंभा, खंभा और गुंफन को कम्पन, सम्बल, कम्बल, रम्भा, खम्भा और गुम्फन बोलना चाहिए। ङ और ञ का प्रयोग बहुत कम होता है, इसलिए इनकी जगह अनुस्वार का प्रयोग ठीक रहेगा। टवर्ग, तवर्ग और पवर्ग के साथ संगत पंचम वर्ण का प्रयोग करना चाहिए। हिन्दी पट्टी में कंबल, डंडा, पन्त और गंगा जैसे शब्दों के सही उच्चारण लोग बिना प्रयास के समाज स सीख लेते हैं।अब कुछ जटिलताओं पर चर्चा करते हैं। यदि पंचम वर्ण का द्वित्व हो, तब क्या हम अनुस्वार का प्रयोग कर सकते हैं? सम्मति, सम्मिलन, चौकन्ना, अन्न, अक्षुण्ण, सम्मान आदि ऐसे ही शब्द हैं। ङ औरञ के द्वित्व से युक्त कोई शब्द संभवतः है ही नहीं। संमिलन, चौकंना, संमति, अंन, अक्षुंण, संमाननहीं लिखे जाते। पंचम वर्ण का द्वित्व होने पर अनुस्वार कहीं नहीं लगाया जाता। ऐसी स्थिति में हमेशा अनुस्वार की जगह पंचम वर्ण दोहरे रूप में लिखे जाते हैं। अगर दो पंचम वर्ण साथ हों, तब अनुस्वार का प्रयोग भ्रम पैदा कर सकता है। इसलिएवहाँ भी अनुस्वार से बचना चाहिए। जन्म को जंम, निम्न को निंन, उन्मेष को उंमेष, सन्मार्ग को संमार्ग, तन्मय को तंमय, षण्मुख को षंमुख, मृण्मय को मृंमय नहीं लिखा जाना चाहिए। संमति लिखने से सम्मति(राय) और सन्मति(सद्बुद्धि) में भेद करना भी मुश्किल हो सकता है।य, र, ल और व; ये चार वर्ण अंतःस्थ कहे जाते हैं। श, ष, स और ह ऊष्म कहे जाते हैं। इनके पहले अनुस्वार हो तो उच्चारण कैसे करेंगे! इनके पहले न् और म् न लगाकर, अनुस्वार का प्रयोग करना ठीक रहता है, लेकिन उन्हें, अन्य, अन्वय, सैन्य , अन्वेषण, अन्याय ,सम्यक्, नम्र को उंहे, अंय ,अंवय ,सैंय, अंवेषण, अंयाय, संयक्, नंर नहीं लिखा जाता। इस तरहलिखने पर ये सही नहीं माने जाते। य और व के पहले अनुस्वार की परंपरा है। य और श तालव्य वर्ण हैं। तालु द्वारा उच्चरित होने वाले वर्णों में ञ अनुनासिक है। यह सामान्य सी बात है कि उच्चारण में जीभ एक ही स्थान से उच्चरित होने वाले वर्णों को साथ रखना चाहती है। इस आधार पर संयोग, संयम, संयत, संयंत्र, संयुक्त, संयोजन आदि का उच्चारण सञ्योग, सञ्यम, सञ्यत, सञ्यन्त्र, सञ्युक्त, सञ्योजन के रूप में होता है। य के पहले अनुस्वार की जगह ञ् लिखने की परंपरा नहीं है। य के पूर्व आने वाले अनुस्वार के लिए ञ् की जगह न् कहने की भी परंपरा है। श के पहले अनुस्वार ही लिखते हैं; न्, म् आदि नहीं। विदेशी शब्द अपवाद की स्थिति भी उत्पन्न करते हैं, जैसे ग्राम्शी को ग्रांशी नहीं लिखते, मुंशी को मुञ्शी नहीं लिखते। श तालव्य वर्ण है लेकिन श के पहले का अनुस्वार ञ् नहीं बोला जाता। श के पहले का अनुस्वार न् की तरह बोला जाता है, जैसे संशय, संशोधन, संश्लिष्ट आदि। र और ष मूर्धन्य वर्ण है और मूर्धन्य अनुनासिक ण है। र के पहले अनुस्वार ण् की तरह बोला जाना चाहिए, लेकिन न् ही बोला जाताहै, जैसे संरक्षण। र के पहले भी पंचम वर्ण की जगह अनुस्वार लिखा जाता है। ष के पहले अनुस्वार वालाशायद एक भी शब्द नहीं है। ल और स, दन्त्य वर्ण हैं। न दन्त्य वर्णों का अनुनासिक वर्ण हैं। ल और स के पहले अनुस्वार ही लिखते हैं, न् नहीं, जैसे संसार, संस्कृत, संलिप्त, संलयन, संलग्न आदि। इनके सन्सार, सन्लग्न जैसे रूप प्रचलित नहीं हैं। व दन्तौष्ठ्य वर्ण है और अनुस्वार के पहले आने पर म् के रूप में उच्चरित होता है; जैसे संवत्, संवाद, संवरण, संविदा, संवहन, संवत्सर, संवेदना आदि। व के पहले अनुस्वार का प्रयोग ही उचित है, न् या म् का नहीं। सम्वेदना और समवेदना दो अलग शब्द हैं, भ्रम की स्थिति से बचना चाहिए। हकंठ्य वर्ण है और ङ कंठ्य अनुनासिक वर्ण है। इस आधार पर संहार, संहति, संहिता आदि को सङ्हार, सङ्हति, सङ्हिता पढना या लिखना चाहिए, लेकिन ह के पहले भी अनुस्वार का प्रयोग हो सकता है, ङ् का नहीं। कुछ शब्दों को छोड़कर, ह के पहले अनुस्वार को भी प्रायः न् उच्चारित करने की ही परंपरा है।इस प्रकार हम कह सकते हैं कि अनुस्वार के लिए न् पढ़ने की परंपरा बहुत ज़्यादा ताक़त से बैठी है।अगर प्रचलन की बात करें, तो कवर्ग और पवर्ग के पहले अनुस्वार का उच्चारण क्रमशः ङ् और म् किया जाता है और बाकी किसी भी वर्ण के पहले अनुस्वार का उच्चारण न् किया जाता है। इस बात को वैज्ञानिक नियम न समझकर, व्यावहारिक सूत्र ही माना जाय, क्योंकि सिंह, सिंहल, संवाद, संविदा जैसे अपवाद भी मिल सकते हैं। अनुस्वार का प्रयोगवर्ग और वर्ण देखकर करना चाहिए। य, र, ल, व, श, स, ष और ह के पहले अनुस्वार लगाना ज़्यादा सुविधाजनक है। सौंग (song), लौंग(long) जैसे शब्द भी ङ् की ध्वनि के साथ उच्चरित होते हैं, भले ही अंग्रेज़ी में ङ् नहीं होता। संयुक्ताक्षर के ठीक पहले अनुस्वार होने पर संयुक्ताक्षर के पहले भाग यानी वर्ण के अनुसार चलना पड़ता है, जैसे स्वातंत्र्य में त्र्य है और इसका पहला भागत् है, तब स्वातन्त्र्य में तवर्ग का पंचम अक्षर न् अनुस्वार की जगह आ सकता है। इंकार को संगत वर्ग के पंचमाक्षर वाले नियम से इङ्कार कहना ग़लत है। इसे इन्कार पढ़ते हैं। इम्पॉर्टेंट(important) को भी इम्पॉर्टेण्ट नहीं पढते। यहाँ ट होने पर भी ण् की जगह न् ही उच्चरित होगा। विदेशज शब्दों में संगत भाषा पर ध्यान देकर उच्चारण करना चाहिए। अरबी, फ़ारसी, अंग्रेज़ी आदि में ङ, ञ् या ण् की जगह न् का उच्चारण ही अधिकांश शब्दों में होता है। जंग, गैंग, बैंक आदि इसके अपवाद हैं।० ० ०ज़ारी...

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