"कथित सवर्णों और हम में जो सबसे बड़ा फर्क "
मुझे समझ में आया है वह ये है कि जैसे ही सुख के दिन आते हैं, हम अपने समाज और संघर्ष को छोड़ देते है,
जबकि सवर्ण इसके उलट जितना संपन्न होता जाता है, उतना ही संघर्ष और अपने समाज के उत्थान के लिए समर्पित होता जाता है.
हम अपने सुखों में इतने चूर हो जाते हैं कि हमें संघर्ष की जरूरत ही महसूस नहीं होती. अगर किसी से संघर्ष कि बात करो तो वे ऐसे बिदक जाते हैं, जैसे अपराध करवाने की बात कर दी हो.
एक कहावत है-’जाके पैर न फटी बिवाई सो का जाने पीर पराई’. जब इनके साथ अन्याय होता है, तब इनको समाज क़ी याद आती है, पर तब तक देर हो चुकी होती है.
आज हमारे समाज में तीन तरह के लोग हैं.
1. अशिक्षित एव असक्षम वर्ग
2. शिक्षित वर्ग पर बहुजन संघर्ष से अपरिचित
3. शिक्षित,ज्ञानी,सक्षम और संघर्षशील वर्ग
इनमे से जो पहला वर्ग है, वह जनसंख्या दबाव या भीड़ के रूप में सबसे ज्यादा संघर्ष को आगे ले जा रहा है.
दूसरा वर्ग किसी काम का नहीं उल्टा ये विभीषण हैं.
तीसरा वर्ग संघर्ष की अगुवाई करता है, पर इन नए नए हुए ज्ञानियों में अपने आपको श्रेष्ट समझने और अन्य को हीन समझने का रोग लग गया है. परिणाम मकसद एक होने के बावजूद ये लोग एक मंच पर नहीं आ पाते.
“ये जिन्दगी का नियम है कि ज्ञानी बोलता पहले है,
पर समझदार पहले सुनता है, तोलता है, फिर बोलता है.
ज्ञानी होना काफी नहीं है, समझदार होना जरूरी है, अन्यथा हमारा संघर्ष कहीं नहीं पहुंचेगा.
जय भारत ,जय मूलनिवासी
! मिशन की नाकामी की वजह कुछ ये भी है !
सभी माँ पापा यही चाहे कि उनके बच्चे सिर्फ
""अच्छी पढ़ाई करे और खूब पैसा कमाए,क्लेक्टर बने,डॉक्टर
बने,एक अच्छे इंजीनियर बने "" लेकिन सामाजिक कामो में
बिलकुल कोई रूचि ना दिखाए,
अगर बाबासाहेब ऐसा सोचते
तो मैं और हम रोड पर कटोरा लेके भिक मांगने लायक
भी आज जिन्दा नही होते !
यदि मैं और आप और सब ऐसे
ही सोचे तो सब बर्बाद होने में ज्यादा वक़्त नही लगेगा,घर
में माँ पापा भी कभी नही सिखाते की मिशन क्या है
तो क्या वे जान पायेगे,
जब उनकी आने वाली पीड़ी कुछ
सिख नही पाती तो वही पीड़ी के बच्चे ये कहकर बात टाल
देते है कि भाई पहले नौकरी मिल जाये फिर समाज के लिए
काम करेगे,लेकिन नौकरी लगने पर सब भूल जाते है फिर कहते है
भाई समय नही मिलता,फिर शादी और बच्चों के बारे में
सोचते है तो फिर बाबासाहेब के नाम का प्रयोग क्यों करते
हो?
क्यों करते है मिशन की बड़ी बड़ी बाते ?
क्यों अपेक्षा करते हो समाज के लोगो से की सब समता के मार्ग
से जुड़े रहे............इसका श्रेय इनके स्वार्थपन को जाता है
डॉ बाबासाहेब ने अपने बच्चे,परिवार और धन दौलत
खो दी सिर्फ हम जैसे स्वार्थो के लिए
वाह रे इंसान !
सोचो और तर्क करो
सिर्फ जय जयकार करने से कुछ नही होगा
कुछ करना ही बेहद जरुरी है ..........
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