शुक्रवार, 13 मार्च 2015

बुध्द की अंतिम शिक्षा

बुद्ध की अन्तिम शिक्षा""
भगवान् बुद्ध अपने शरीर की आखिरी साँसे गिन रहे थे। उनके सारे शिष्य और अनुयायी उनके चारों ओर एकत्रित थे। ऐसे में उन्होनें भगवान् से अपना आखिरी संदेश देने का अनुरोध किया।

बुद्ध अपने सर्वश्रेष्ठ शिष्य की तरफ़ मुख करके बोले: "मेरे मुख में देखो, क्या दिख रहा है"?

बुद्ध के खुले मुख की तरफ़ देख कर वह बोला: "भगवन, इसमें एक जीभ दिखाई दे रही है"

बुद्ध बोले: "बहुत अच्छा, लेकिन कोई दांत भी हैं क्या?"

शिष्य ने बुद्ध के मुख के और पास जाकर देखा, और बोला: "नहीं भगवन, एक भी दांत नहीं है"

बुद्ध बोले: "दांत कठोर होते हैं, इसलिए टूट जाते हैं। जीभ नरम होती है, इसलिए बनी रहती है। अपने शब्द और आचरण नरम रखो, तुम भी बने रहोगे"

यह कहकर बुद्ध ने अपने शरीर का त्याग कर दिया।

नरमी में ही शान्ति और विकास है। इसी में सबकी भलाई है।

भगवान् बुद्ध के उपदेश:

1. मूर्खो की संगती न करना

2. विद्वानों की संगती करना

3. पूज्नीय की पूजा करना

4. अनुकूल स्थान पर निवास करना

5. पुण्य आचरण का संचय करना

6. कुशल धर्म का संकल्प करना

7. बहुश्रुत होना, धर्म ग्रन्थ का खूब ज्ञान होना

8. शिल्प विद्याए सीखना

9. शिष्ट होना

10. सुशिक्षित होना

11. सुन्दर वचन बोलना

12. माता पिता की सेवा करना

13. पत्नी और बच्चों की सेवा करना

14. पाप रहित कर्मो को करना

15. दान देना

16. मन, वचन और कर्म से पुण्य का संचय करना धर्म की सेवा करना

17. अपने बंधुओ रिश्तेदारो का आदर सत्कार करना

18. निर्दोष कार्यो को करना

19. मन, वचन और शरीर से पाप कर्म न करना

20. शराब और किसी भी तरह का नशा न करना

21. धर्म के कार्यो में आलास न करना

22. गौरव मान-मर्यादा बढ़ाने वाले कार्य करना

23. विनम्र होना

24. संतुष्ट रहना

25. कृत्यज्ञ होना

26. उचित समय पर धर्म प्रवचन सुनना

27. क्षमाशील होना

28. गुरुजनो के आदेश का पालन करना

29. संतो और अच्छे लोगो का दर्शन करना

30. उचित समय पर धर्म प्रवचन देना लोगो को धर्म बताना

31. तप करना और लक्ष्य प्राप्ति हेतु कष्टो को भी सहना

32. ब्रह्मचर्य पालन करना

33. आर्य सत्यों को समझना(Four Noble Truths)

34. निर्वाण का साक्षात्कार करना, निर्वाण प्राप्ति के लिए परिश्रम करना

35. लोक में न भटकना, अपनी चेतना शांत रखना, संसार के मोह माया में न फसना, संसार में विचलित न होना

36. शोक न करना

37. राग, द्वेष और मोह की रज से दूर रहना

38. निर्भय रहना

उपरोक्त 38 उपदेश को करने वाले लोग सदा विजय होते है और सदा ही उनका कल्याण होता है! इनका आचरण मनुष्य के लिए कल्याणकारी है!

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